Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
८४
अनुसन्धान-५०
जिनवर मांनता शुभ ध्यान, सतरै देहरै गिण ग्यांन । फबते फूटरै बाजार, हाटां सोभते हजार ।। तिसमै बैठते बहु साह, करते विणज मन उछाह । मुखमल मैहमुदी मजूब, खासै बासते बहु खूब । थिरमे पांभडी पटकूल, देख्यां होत मन मुखतूल । रेसमी सूतरु अतिचंग, कपडे बेचते मनरंग । केसर वासते कच्चूर, महिकै स्यांम ही किस्तूर । हिमरु ताफताके थान, विकते नवनवे कपडान । जरकस वादले भी जोय, गोटा तार कोरां कोय । हूंडी लिखत हूंडीवाल, मेलत द्वीपकुं के माल । रुपीया मोहरां व्यापार, वाणिज रोकडा व्योहार । तिन विच राजकै कमठांन, सायर चौतरै सुभ जांन । राजा राजते निब्बाब, करते न्यायके जब्बाब । हयवर हींसते हणणाट, गयवर गाजते गणणाट । थंभे गगन के दलथाट, वहते पंथ निरभय वाट । अदल नीत है ऐसीक, त्रैता युग्ग की तैसीक । तिनका सोभते अतिमहल, तिसमै करत है बहु सहल । तिनकै निकट है रंगवाग, दाडिम करमदा फल लाग । केवड केतकी करणा क, नींबू पीलरै वरणा क । गहरै जलभरै दरीया क, तिण पर हंस बग खरीया क । इण पर सोभते ससी नूर, वसती बहूत है भरपूर । करते राजहु जिण थांन, फरजन पूंगडाकी खांन । ऊंची हवेल्यां अनहद्द, पेखज उपजै मनमद्द । आलय अवल ही कमठांण, दोनुं निकटवर्ती जाण । विजै देवसूरिजी परमाण, सागर सूरीया पहचांण । आलय ओपतो सुध मान, गछपति राजते राजान । तपगछ पाटनायक देख, मनसुख उपजै संपेख । जिनइन्द सूरिजी है नाम, गादी वीरकी अभिराम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170