Book Title: Antariksh Tirth Mahatmya
Author(s): Vijaybhuvantilaksuri, Bhadrankarvijay
Publisher: Labdhibhuvan Jain Sahitya Sadan
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वर्तमानतीर्थङ्करचतुर्विंशतिस्तवः । कर्ता:-पू० आ० श्री विजयभुवनतिलकवरीश्वरजी महाराज
( वसन्ततिलकावृत्ते ). भादीचरं प्रणिपताम्यनिशं मुनीशम ,
ननेन्द्रदपरिवन्दितपादपत्रम् ।। चश्चत्सुधांशुकिरणोज्ज्वलरुच्यवाचम् ,
संसारकाननसमुद्धृतिसार्थवाहम् ॥१॥ दारिद्रयदाहशमनामृतवेघवर्षम् ,
श्रेयोनिधानमतुलं सुविशिष्टबोधिम् ।। ऐश्वर्यवन्तमजितं जितरागदोषम् ,
नित्यं नमामि मनसा वचसाऽङ्गतो वै ॥२॥ माङ्गल्यकेलिकमलानिलयं नतेन्द्रम् ,
कल्याणकक्षपरिजम्मणवारिवाहम् । मध्यान्जपोधनसदोदितचण्डरश्मिम् ,
श्रीसम्भवं जिनवरं प्रणिदध्महे तम् ॥२॥ श्रेय सुधासुवरुणाळयमय॑मुख्यम् ,
अध्यात्मनन्दनवनं शमनीरराशिम् । लोके पदार्थपरिभासनदिव्यभानुम् ,
वन्देऽमिनन्दनविभुं भविनां शरण्यम् ॥४॥

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