Book Title: Anekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 65
________________ 'दश धर्म' -डॉ. बसन्त लाल जैन आचार्य उमास्वामी ने उत्तम क्षमादि दश धर्म को संवर का हेतु मानते हुए लिखा है कि - ___ 'उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्म:।' अर्थात् उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तमशौच, उत्तमसत्य, उत्तमसंयम, उत्तमतप, उत्तमत्याग, उत्तमआकिंचन्य और उत्तमब्रह्मचर्य- ये दशधर्म संवर के हेतु हैं। दश धर्मों को संवर के हेतु का कथन समितियों में प्रवृत्ति करने वाले के प्रमाद का परिहार करने के लिए किया गया है। ___ संवर पूर्वक होने वाली निर्जरा ही मोक्ष का कारण है। सभी जीवों को संवर एक समान नहीं होता है। जो आत्मा जितना विशुद्ध होता है, वह उतना अधिक संवर का अधिकारी होता है। इसलिए हमें अपनी आत्मा को विशुद्ध करने के लिए उत्तम क्षमादि भाव को धारण करना चाहिए। ये उत्तम भावों को दर्शाने वाले क्षमादि दश धर्म आत्मा के भावनात्मक परिवर्तन से उत्पन्न विशुद्ध परिणाम हैं, जो आत्मा को अशुभ कर्मो के बंध से रोकने के कारण संवर हेतु हैं। 1. उत्तम क्षमा धर्म - उत्तम क्षमा आत्मा का निजी गुण है। जिस प्रकार अग्नि में उष्णत्व, जल में शीतलत्व गुण है, वैसे ही आत्मा में क्षमा गुण है। इसे आत्मा का स्वभाव भी कहते हैं। गुण और गुणी में जो संबन्ध है वही संबन्ध क्षमा और आत्मा का है। गुण को छोड़कर गुणी तथा गुणी को छोड़कर गुण कभी अकेले नहीं रहते। इन दोनों का परस्पर में तादात्य संबन्ध है। पर कर्मो के निमित्त से आत्मा में विभाव रूप परिणति होती है। जिससे क्रोध भाव उत्पन्न होता है। जिसके कारण कर्मो का बंध होता है। क्रोधोत्पत्ति के साक्षात् बाह्य कारण मिलने पर भी अल्प मात्र भी क्रोध न करना, न वैसे परिणाम लाना उत्तमक्षमा है। क्षमा-तितिक्षा, सहिष्णुता और क्रोध निग्रह - ये शब्द एक ही अर्थ के वाचक हैं। क्षमाभाव धारण की विधि यह है कि- क्रोध उत्पन्न होने के जो कारण हैं, उनके सद्भाव और अभाव - दोनों का अपने में चिन्तन करना चाहिए। क्योंकि उन कारणों के अस्तित्व या नास्तित्व का बोध हो जाने से इस धर्म क्षमा भाव की सिद्धि हो सकती है। आचार्य पूज्यपाद स्वामी क्षमा भाव का स्वरूप निरूपण करते हुए लिखते हैं कि "शरीर स्थिति हेतु मार्गणार्थ परकुलान्युपगच्छतो भिक्षोर्दुष्टजना क्रोशप्रहसनावज्ञा ताडनशरीरव्यापादनादीनां सन्निधाने कालुष्यानुत्पत्तिः क्षमा अर्थात् शरीर की स्थिति हेतु आहार के लिए निकले हुए साधु परघरों में जा रहे हैं

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