Book Title: Anekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 139
________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009 43 है। अच्छे राजा के होने पर अन्याय शब्द ही पृथ्ची पर नष्ट हो जाता है तथा प्रजा को भय और क्षोभ नहीं होते हैं। राज्य का फल धर्म (जिन कर्तव्यों के करने से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति है।'') अर्थ (जिससे मनुष्य के सभी प्रयोजनों की सिद्धि हों'' और काम (जिससे समस्त इन्द्रियोंस्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र में बाधारहित प्रीति हो) की प्राप्ति हे। उक्त फल प्रदाता होने के कारण आचार्य सोमदेव ने उसे नमस्कार किया है। नीति धर्म की प्रारंभिक भूमिका है। नीतिवेत्ता राजा पृथ्वी को स्त्री के समान वश में कर लेता है। न्यायमार्ग का वेत्ता होने के कारण किसी विषय में विसंवाद होने पर लोग उसके पास न्याय के लिए आते हैं । उत्तम राजा न तो अत्यन्त कठोर होता है ओर न अत्यन्त कोमल, अपितु मध्यम वृत्ति का आश्रय कर जगत को वशीभूत करता है। इसके अतिरिक्त राजा के अनेक कर्त्तव्य बतलाए गए हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं- 1. कुलपालन 2. मत्यनुपालन 3. आत्मानुपालन 4. प्रजापालन 5. मुख्य वर्ग की रक्षा 6. घायल और मृत सैनिकों की रक्षा 7. सेवकों की दरिद्रता का निवारण तथा सम्मान 8. योग्य स्थान पर नियुक्ति 9. कण्टक शोधन 10. कृषि कार्य में योग देना 11. अक्षरम्लेच्छों को वश में करना 12. समञ्जसत्व धर्म का पालन 13. दुराचार का निषेध तथा 14. लोकापवाद से भयभीत होना। 1. कुलपालन- कुलाम्नाय की रक्षा करना और कुल के योग्य आचरण की रक्षा ___ करना। 2. मत्यनुपालन- राजाओं को वृद्ध मनुष्यों की संगति रूपी संपदा से इन्द्रियों पर विजय प्राप्तकर धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र से अपनी बुद्धि को सुसंस्कृत करनी चाहिए। 3. आत्मानुपालन- इस लोक तथा परलोक संबन्धी अपायों, विघ्नों से आत्मा की रक्षा करना। 4. प्रजापालन- प्रजा के कार्य को देखना तथा प्रजा की रक्षा करना। 5. मुख्यवर्ग की रक्षा- जो राजा अपने मुख्य बल से पुष्ट होता है, वह समुद्रान्त पृथ्वी को बिना किसी यत्न के जीत लेता है। 6. घायल और मृत सैनिकों की रक्षा- संग्राम में किसी भृत्य के मर जाने पर उसके पद पर उसके पुत्र अथवा भाई को नियुक्त करना। 7. सेवकों की दरिद्रता का निवारण तथा सम्मान- राजा को चाहिए कि अपनी सेना में किसी योद्धा को उत्तम जानकर उसे अच्छी आजीविका देकर सम्मानित करे। जो राजा अपना पराक्रम प्रकट करने वाले वीर पुरुष को उसके योग्य सत्कारों से संतुष्ट रखता है। उसके भृत्य सदा उस पर अनुरक्त रहते हैं और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ते है। 8. योग्य स्थान पर नियुक्ति- जिस प्रकार ग्वाला अपने पशुओं को काँटों और पत्थरों

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