Book Title: Anekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 138
________________ 42 अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर2009 खनिज का क्षेत्र, उत्कृष्ट धान्य संपदा, वृक्षादि वनस्पति, ईतियों की बाधा न होना, प्रमुदित, सुचरित्र, निर्व्यसनी प्रजा, प्रजापालक राजा उत्तम जलवायु, उत्तम पथ तथा अभिलषित वस्तुओं की प्राप्ति होना प्रमुख है। ये विशेषताएँ उत्तम प्राकृतिक एवं मानसिक पर्यावरण को सूचित करती है। आचार्य रविषेण कृत पद्मचरित के अध्ययन से राज्य की उत्पत्ति के जिस सिद्धांत को सर्वाधिक बल मिलता है, वह है सामाजिक समझौता सिद्धान्त। आधुनिक युग में इस सिद्धांत को अधिक बल देने वाले हाब्स, रूसो और लॉक हैं। इनमें भी पद्मचरित का राज्य की उत्पत्ति संबन्धी संकेत आधुनिक युग के रूसो और लॉक के सिद्धांत से बहुत कुछ मिलता जुलता है। इस सिद्धांत के अनुसार राज्य दैवीय न होकर एक मानवीय संस्था है, जिसका निर्माण प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर किया गया है। इस सिद्धांत के सभी प्रतिपादक अत्यन्त प्राचीन काल में एक ऐसी प्राकृतिक अवस्था के अस्तित्व को स्वीकार करते है, जिसके अन्तर्गत जीवन को व्यवस्थित रखने के लिए राज्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। इस प्राकृतिक अवस्था के विषय में मतभेद है। कुछ इसे पूर्व सामाजिक तथा कुछ इसे पूर्व राजनैतिक अवस्था मानते हैं। इस प्राकृतिक अवस्था के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी इच्छानुसार प्राकृतिक नियमों को आधार मानकर अपना जीवन व्यतीत करते थे। कुछ ने प्राकृतिक अवस्था को अत्यन्त कष्टप्रद तथा असहनीय माना है तो कुछ ने इस बात का प्रतिपादन किया है कि प्राकृतिक अवस्था में मानवजीवन आनंदपूर्ण था। पद्मचरित में इसी दूसरी अवस्था को स्वीकार किया गया है। इस अवस्था को त्यागने का कारण साधनों की कमी तथा प्रकृति में परिवर्तन होने से उत्पन्न हुआ भय था। इन संकटों को दूर करने के लिए समय समय पर विशेष व्यक्तियों का जन्म हुआ। इन व्यक्तियों को कुलकर कहा गया राज्य की उत्पत्ति का मूल इन कुलकरों और इनके कार्यों को ही कहा जा सकता है। ___ आदिपुराण के अनुसार पहले भोगभूमि थी। दुष्ट पुरुषों का निग्रह करना और उन्हें दण्ड देना तथा सज्जनों का पालन करना, यह क्रम भोगभूमि में नहीं था, क्योंकि उस समय पुरुष निरपराध होते थे। भोगभूमि के बाद कर्मभूमि का प्रारंभ हुआ। इस समय यह आशंका हुई कि दण्ड देने वाले राज्य का अभाव होने पर प्रजा असत्यन्याय का आश्रय करने लगेगी। अर्थात् बलवान् निर्बल को निगल जाएगा। ये लोग दण्ड के भय से कुमार्ग की ओर नहीं दौड़ेंगे, इसलिए दण्ड देने वाले राजा का होना उचित है और ऐसा राजा ही पृथ्वी जीत सकता है। जिस प्रकार दूध देने वाली गाय से उसे किसी प्रकार की पीड़ा पहुँचाए बिना उसका दूध दुहा जाता है और ऐसा करने से गाय सुखी रहती है, तथा दुहने वाले की भी आजीविका चलती रहती है, उसी प्रकार राजा को भी प्रजा से टेक्स आदि के रूप में उचित धन वसूल करने का विधान है। वह धन पीड़ा न देने वाले करों से वसूल किया जा सकता है। ऐसा करने से प्रजा भी दु:खी नहीं होती और राज्य व्यवस्था के लिए योग्य धन भी सरलता से मिला जाता है, ऐसा सोचकर भगवान् वृषभेदव ने कुछ लोगों को दण्डधर राजा बनाया; क्योंकि प्रजाओं के योग और क्षेम का विचार करना राजाओं के ही आधीन होता

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