Book Title: Anekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ सम्पादकीय जैन अध्ययन एवं अनुशीलन केन्द्रों की आवश्यकता प्राचीनकाल के प्रमुख धर्मों में जैन धर्म का विशिष्ट स्थान है । यह धर्म कितना प्राचीन है, इसके विषय में लोगों को प्रायः ज्ञात नहीं हैं । वेदों में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि जैसे तीर्थकरों के नाम प्राप्त होते हैं। मोहन जोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई में कुछ योगियों की प्रतिमायें प्राप्त हुई है, जो कि नग्न अवस्था में हैं । कायोत्सर्ग मुद्रा जैन योगियों की विशिष्ट मुद्रा है, जो आज भी तीर्थकरमूर्तियों में परिलक्षित होती है । भागवत पुराण तथा अन्य हिन्दू पुराणों में जैन तीर्थकर ऋषभदेव का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा । इसका उल्लेख प्रायः हिन्दू पुराणों में उपलब्ध है। इससे पूर्व इस देश का नाम ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकरों तथा अनगिनत सिद्धपुरुपों और मुनियों की लम्बी परम्परा रही है । आज भी दिगम्बर मुद्राधारी निष्परिग्रही जैन साधु पूरे देश में पदविहार कर जनता को धर्मोपदेश देकर समाज के नैतिक और चारित्रिक उत्थान में योगदान रहे हैं। इनके अहिंसा, अनेकान्त, सत्य, अपरिग्रह, जैसे उपदेशों ने महात्मा गांधी को भी प्रभावित किया है। ये उपदेश भारत के स्वतन्त्रता के मौलिक सूत्र बने थे । जैन एक स्वतन्त्र दर्शन है । यह सृष्टिकर्ता ईश्वर प्रणीत धर्म न होकर उन महामानवों के द्वारा उद्घाटित धर्म है, जिन्होंने अपने त्याग, तप और पुरुषार्थ के बल पर पूर्णता को प्राप्त किया था। आतंकवाद और हिंसा से पीड़ित विश्व को जैन धर्म सही राह और त्राण दे सकता है। इसकी इसी उपयोगिता को ध्यान में रखकर भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयो-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृतPage Navigation
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