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जैनधर्म में सम्ग्दर्शनका माहात्म्य है, सम्यग्दर्शनका अर्थआत्म-लब्धि है, आत्माके स्वरूपका ठीक ठीक बोध हो जाना श्रात्मलब्धि कहलाती है । श्रात्मलब्धिके सामने सब सुख धूल हैं । सम्यग्दर्शनसे आत्माका महानगुण जागृत होता है, विवेकशक्ति जागृत होती है श्राज कल लोग हर एक बातमें क्यों ? क्यों ? करने लगते हैं, इसका अभिप्राय यही है कि उनमें श्रद्धा नहीं है । श्रद्धाके न होनेसे हर एक बात में कुतर्क उठा करते हैं ।
अनेकान्त
एक आदमीको क्योंका रोग हो गया, उससे बेचारा बढ़ा परेशान हुआ, पूछने पर सलाह दी कि तू इसे किसीको बेच डाल, भले ही सौ पचास लग जांय । बीमार आदमी इस विचार में पड़ा कि यह रोग किसे बेचा जाय, किसीने सलाह दी स्कूल के लड़के बड़े चालाक होते हैं। ५०) रुपये देकर किसी लड़केको बेच दे, उसने ऐसा ही किया - एक लड़केने ५०) लेकर उसका वह रोग ले लिया सब लड़कोंने मिलकर ५०) की मिठाई खाई, जब लड़का मास्टर के सामने गया और मास्टरने पूछा कि कलका सबक दिखलाओ, लड़का बोला क्यों ? मास्टरने कान पकड़ कर लड़के को बाहर निकाल दिया । लड़का समझा कि क्योंका रोग तो बड़ा खराब है - वह उसको वापिस कर आया । अबकी बार उसने सोचा चलो अस्पतालके किसी मरीजको बेच दिया जाय तो अच्छा है, ये लोग तो पलंग पर पड़े पड़े श्रानन्द करते ही हैं । ऐसा ही किया, एक मरीजको बेच आया दूसरे दिन डाक्टर श्राये पूछा तुम्हारा क्या हाल है ? मरीजने कहा क्यों ? डाक्टर ने उसे अस्प तालसे बाहर कर दिया। उसने भी समझा दरअसल में यह रोग तो बड़ा खराब है, वह भी वापस कर थाया, अबकी बार उसने सोचा अदालती आदमी बड़े टंच होते हैं उन्हींको बेचा जाय, निदान उसने एक आदमी को बेच दिया, वह मजिस्ट्रेट के सामने गया मजिस्ट्रेटने कहा तुम्हारी नालिशका ठीक ठीक मतलब क्या है, श्रादमीनें कहा क्यों ? मजिस्ट्रेटने मुकदमा खारिजकर कहा कि घरकी राह लो, विचारकर देखा जाय तो इन हर एक बातों में कुतर्क से काम नहीं चलता । युक्ति के बलसे सभी बातोंका निर्णय नहीं किया जा सकता। यदि आपको धर्ममें श्रद्धा न होती तो यहाँ हजारोंकी संख्या में क्यों श्राते ? यह कांतिलाल जी जो एक माहका उपवास किये हुये हैं क्यों करते ? श्रापका यहाँ आना और इनका उपवास करना यह सब
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[ किरण ४
सम्यग्दर्शनके श्रद्धान गुणका फल है । श्राचार्योंने सबसे पहले यही कहा है -
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"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः " सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक् चारित्र मोक्षका मार्ग है। श्राचार्यकी करुणा बुद्धिको तो देखो - मोक्ष तब हो जबकि पहले बन्ध हो यहाँ पहले बन्धका मार्ग बतलाना था फिर मोक्षका परन्तु उन्होंने मोक्षमार्गका पहले वर्णन इसलिये किया है कि ये प्राणी अनादिकाल से बन्धजनित दुःखका अनुभव करते करते घबड़ा गये हैं, श्रतः पहले इन्हें मोचका मार्ग बतलाना चाहिए। जैसे कोई कारागार में पड़कर दुखी होता है वह यह नहीं जानना चाहता कि मैं कारागारमें क्यों पड़ा ? वह तो यह जानना चाहता है कि मैं इस कारागार से छूट्टू कैसे यही सोचकर श्राचार्यने पहले मोक्षका मार्ग बतलाया है । सम्यग्दर्शन के रहनेसे विवेक शक्ति सदा जागृत रहती है वह विपत्ति में पड़ने पर भी कभी अन्यायको न्याय नहीं समझता । रामचन्द्रजी सीताको छुड़ाने के लिए लंका गये थे, लंकाके चारों ओर उनका कटक पड़ा था, हनुमान आदिने रामचन्द्रजीको खबर दी कि रावण जिन मंदिरमें बहुरूपिणी विद्या सिद्ध कर रहा है यदि उसे यह विद्या सिद्ध हो गई तो फिर वह अजेय हो जायगा । श्राज्ञा दीजिये जिससे कि हम लोग इसकी विद्यासिद्धमें विघ्न करें, रामचन्द्रजीने कहा कि हम क्षत्रिय हैं कोई धर्म करे और हम उसमें विघ्न डालें यह हमारा कर्तव्य नहीं है । सीता फिर दुर्लभ हो जायगीं हनुमानने कहा | रामचन्द्रजीने जोरदार शब्दों में उत्तर दिया, हो जाय एक सीता नहीं दशों सीताएँ दुर्लभ हो जावें पर मैं अन्याय करने की आज्ञा नहीं दे सकता ।
रामचन्द्रजी में इतना विवेक था उसका कारण क्या था ? कारण था उनका विशुद्ध क्षायक सम्यग्दर्शन । सीताको तीर्थयात्रा के बहाने कृतांतवक्र सेनापति जंगल में छोड़ने गया - उसका हृदय वैसा करना चाहता था क्या ? वह स्वामीकी परतन्त्रतासे गया था । उस वक्त कृतांतवक्रको अपनी पराधीनता काफ़ी खली थी। जब वह निर्दोष सीताको जंगल में छोड़ अपने अपराधकी क्षमा मांगकर वापिस आने लगता है तब सीता उससे कहती हैसेनापति ! मेरा एक संदेश उनसे कह देना, वह यह कि जिस प्रकार लोकापवादके भयसे आपने मुझे त्यागा इस
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