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किरण ४ ]
सत्य धर्म
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लिया था वह भी देना पड़ा । यदि मैं वहाँ सत्य न बोलता एक गाँव में एक सेठ सेठानी रहते थे उनके पास एक तो व्यर्थ ही निरपराधी कुंजीलालको कष्ट होता । अब आदमी कामकी तलाशमें पहुँचा सेठने पूछा, क्या क्या एक असत्य बोलनेका उदाररण सुनो-मैं तो अपनो बीती कर सकते हों। उसने कहा जो भी आप बतलायो सब बात ही अधिकतर सुनाता हूँ
कर सकता हूँ। वेतन क्या लोगे । कुछ नहीं सिर्फ सालमें मैं मथुरामें पढ़ता था, मेरा मन कुछ उचाट हुआ सो एक बार आपसे और एक बार सेठानीसे झूठ बोलूगा। सोचा कि बाईजीके पास हो पाऊँ । विद्यालयके मन्त्री सेठने सोचा ऐसा बेवकूफ कब फंसेगा, मुफ्तका नौकर पं. गोपालदासजी बरैया थे। मैंने एक झूठा कार्ड लिखा मिलता है लगा लेना अच्छा है, यह सोच कर उन्होंने उसे कि भैया ! मेरी तबीयत खराब है तुम १५ दिनकी छुट्टी रख लिया। साल भर काम कर चुकनेके बाद जब वह लेकर चले पायो । नीचे दस्तखत बना दिये बाईजीके जाने लगा तब बोला सेठजी अब मैं जाऊँगा कल झूठ और मथुराक ही लेटर बक्समें छोड़ दिया। जब वह बोल्गा , सेठने कुछ ध्यान नहीं दिया। शामके वक्त हमारे पास आया तब मैंने करोड़ीलाल मुनीमको छुट्टीकी नाकर सेठजी से बोला कि मुझे आपका घर अच्छा लगा अर्जी लिखी और साथमें वह कार्ड भी नत्थी कर दिया। पर क्या बताऊँ आपकी सेठानी यदि बदचलन न होती मुनीमने वह दोनों पं० गोपालदासजीके पास आगरा भेजे तो दुनिया में आपका घर एक ही होता। आज वह अपने दिवे । पं० जीने लिख दिया कि छुट्टी दे दो और उससे जारके कहनेसे रातको आपका काम तमाल करेगी इसलिए कह दो जब वापिस श्रावें तब हमसे मिलता जाय । मैं आप सतर्क रहें। मौकरने यह बात इस ढंगसे कही कि बाई जीके पास गया और १५ दिन बाद लौट कर पाया
सेठको बिलकुल सच जम गई। अब वह सेठानीके पास तो पण्डितजीके लिखे अनुसार उनसे मिलनेके लिये गया। पहुँचा और बोला कि तुम्हारीसी देवी तो दुनियामें नहीं उन्होंने पूछा कि कहो बाईजीकी तबीयत ठीक हो है यदि सेठजी वैश्याओंके यहाँ न जाते तो तुम्हारे क्या गई ? मैंन कहा 'हाँ', उन्होंने भोजन कराया जब मथुराको सन्तान न होती । सेठानीको बात जम गई, उसने उपाय जाने लगा तब बोले यह श्लोक याद कर लो
पूछा तब कहने लगा आज रातको जब सेठजी सो जाय उपाध्याये नटे धूर्ते कुट्टिन्यां च तथैव च।
तब उस्तरासे उनके एक तरफकी दाढ़ी मूक बना डालना माया तत्र न कर्तव्या माया तैरेव निर्मिता। जिससे उनकी सरत शकल खराब दिखने लगेगी और
श्लोक तो बिल्कुल सीधा साधा था याद हो गया। तब वेश्यायें उन्हें अपने पास नहीं आने देंगी। सेठानीने मेरा विचार हुआ कि मैंने जो पत्र बाईजीके नामसे लिखा ऐसा ही किया। मेठजी आज नौ बजेसे ही कृत्रिम खुराटे था-वह मथुरा में ही तो छोड़ा था उस पर मुंहर मथुरा लेने लगे. सेठानीने देखा कि सेठजी गादी निद्रामें मस्त की ही थी टीकमगढ़ की नहीं थी, संभव है पण्डितजीको हैं. अब इनकी दाढ़ी मूछ बनाना ठीक होगा। उस्तरा यही हमारी गलत चालाकी पकड़में आगई है। मैंने साफ निकाला उसे सिल्ली पर घिस कर खूब पैना किया. बालों कह दिया पण्डितजी ! मैं बहुत असत्य बोला बाईजीकी पर पानी लगाया और बनानेको तैयार हुई कि सेठजी तबीयत खराब नहीं थी मैंने वैसे ही झू मूठ चिट्टी उठ खड़े हुए और बोले दुष्टे ! यदि आज वह नौकर मुझे लिख दी थी। उन्होंने कहा बस हो गया, कुछ बात नहीं सचेत न कर देता तो तू जान ही ले लेती। वह भी बोली और मुनीमको चिट्ठी लिख दी कि यह कुछ कमजोर है बिलकुल ठीक है तुम आज तक वेश्याओंके यहाँ जा जा अतः इसे ३) तीन रुपया माह दूधके लिये दे दिया करो। कर हमको दुःखी करते रहे उसने ठीक कहा था मुझसे । मुझे अपनी प्रसत्यता पर बहुत शर्मिन्दा होना पड़ा। दोनोंमें खूब झड़ी, इतने में नौकर पाया और बोला सेठजी पर यह भी लगा कि मैंने अन्तमें उनसे सच सच बात मान करो अब मैं जाता हूँ, जो मैंने कहा था कि एक एक कह दी इसीलिये ही वे प्रसन्न हुए हैं।
बार मैं झूठ बोलूगा सो बोल लिया । खासी दिल्लगी जीवन भर सत्य बोलो और एक बार असत्य तो रही। अरे! जरा सोचो तो एक बारकी मूठने कितना तमाम जीवन की प्रतिष्ठा पर पानी फिर जाता है। उपद्रव मचा दिया पर जो जिंदगी भर झूठ बोलते हैं एक बारका.मूठ भी लोगोंको बड़े संकट में डाल देता है। उनका ठिकाना ही क्या । यह पांचवाँ सत्यधर्म है।
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