Book Title: Anekant 1953 09
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 19
________________ उत्तम मार्दव ( श्री १०५ पूज्य तुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी ) आज मार्दव धर्म है, क्षमाधर्म विदा हो रहा है, विदा तो होता ही है उसका एक दृष्टांत आापको सुनाता हूँ। मैं नदियामें दुलारकाके पास न्याय पढ़ता था, वे न्याय शास्त्रके बड़े भारी विद्वान थे। उन्होंने अपने जीवन २२ वर्ष न्याय ही न्याय पढ़ा था । वे व्याकरण प्रायः नहीं जानते थे, एक दिन उन्होंने किसी प्रकरण में अपने गुरूजीसे कहा कि जैसा "बाकी" होता है वैसा "व्रीति" क्यों नहीं होता? उनके गुरू उनकी मूर्खता पर बहुत क्रुद्ध हुए और बोले तु बैल है। भाग जा यहाँ से दुलाझाको बहुत बुरा लगा उसका एक साथी था, जो व्याकरण अच्छा जानता था और न्याय पड़ता था । दुलारकाने कहा कि यहाँ क्या पढ़ते ही चली घर पर हम तुम्हें न्याय बढ़िया से बढ़िया पढ़ा देंगे, साथी इनके साथ गाँवको चला गयावहाँ उन्होंने उससे एक सालमें तमाम व्याकरण पढ़ डाला और एक साल बाद अपने गुरूके पास जाकर क्रोध से कहा कि तुम्हारे बापको धूल दी. पूछ ले व्याकरण, कहाँ पूछता है। गुरूने हँसकर कहा आओ बेटा में यही तो चाहता कि तुम इसी तरह निर्भीक बनो । मैं तुम्हारी निर्भी कतासे बहुत सन्तुष्ट हुआ पर मेरी एक बात याद रक्खोअपराधिनि चेत्क्रोधः क्रोधे क्रोधः कथं नहि । धर्मार्थ-काम-मोक्षाणां चतुर्णां परिपन्थिनि ॥ दुलारा अपने गुरुकी माको देखकर नतमस्तक रह गये । क्षमासे क्या नहीं होता । अच्छे अच्छे मनुष्यों का मान नष्ट हो जाता है । था मायका नाम कोमलता है, कोमलतामें अनेक पु वृद्धि पाते हैं। यदि कठोर जमीनमें बीज डाला जाय तो व्यर्थ चला जायेगा । पानीकी बारिशमें जो जमीन कोमल • हो जाती है उसीमें बीज जमता है । बच्चेको प्रारम्भ में पढ़ाया जाता है "विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । पास्यादनमाप्नोति धनाद ततः सुखम् ॥" विद्या विनयको देती है, विनयसे पात्रता धाती है। पात्रता धन मिलता है धन धर्म और धर्मसे सुख प्राप्त होता है। जिसने अपने हृदयमें विनय धारण नहीं किया धर्मका अधिकारी कैसे हो सकता है ? विनयी छात्र पर Jain Education International 1 गुरुका इतना श्राकर्षण रहता है कि वह उसे एक साथ सब कुछ बतलानेको तैयार रहता है। एक स्थान पर एक पण्डितजी रहते थे पहले गुरुओंके घर पर स्नेह अधिक था। पण्डितानी उनको बार २ कहतीं कि सभी लड़के तो आपकी विजय करते हैं आपको मानते हैं फिर आप इसी एक की क्यों प्रशंसा करते हैं ? पण्डितजीने कहा कि इस जैसा कोई मुझे नहीं चाहता । यदि तुम इसकी परीक्षा ही करनी चाहती हो तो मेरे पास बैठ जाओ आमकां सीज़न था, गुरूने अपने हाथ पर एक पट्टीके भीतर आम बाँध जिया और दुःखी जैसी सूरत बनाकर कराहने लगे। तमाम छात्र गुरूजीके पास दौड़े आये, गुरूने कहा दुर्भा ग्यवश भारी फोड़ा हो गया है । छात्रोंने कहा मैं अभी वैद्य जाता हूँ ठीक हो जायगा गुरूने कहा बेटो ! यह वैद्यसे अच्छा नहीं होता- एक बार पहले भी मुझे हुना था तब मेरे पिताने इसे चूसकर अच्छा किया था यह चूसनेसे ही अच्छा हो सकता है । मवादसे भरा फोड़ा कौन चूसे ? सब ठिठककर रह गये । इतनेमें वह छात्र आ गया जिसकी कि गुरू बहुत प्रशंसा किया करते थे । आकर बोला गुरु क्या कष्ट है ? बेटा फोड़ा है, चूसने से अच्छा होगा । गुरू के कहनेकी देर थी कि उस छात्रने उसे अपने मुँह में ले लिया । फोड़ा तो था ही नहीं आम था पण्डि तानीको अपने पतिके वचनों पर विश्वास हुआ । क्या कहें आजकी बात आत तो विनय रह ही नहीं गया। सभी अपने आपको बड़े से बड़ा अनुभव करते हैं। मेरा मन नहीं चला जाय इसकी फिकर में सब पड़े हैं पर इस तरह किसका मान रहा है। आप किसीको हाथ जोड़ कर या सिर झुकाकर उसका उपकार नहीं करते बल्कि अपने हृदयसे मानरूपी शत्रुको हटाकर अपने आपका उपकार करते हैं। किसीने किसीकी बात मानली, उसे हाथ जोड़ लिये सिर झुका दिया, इतनेसे ही वह खुश हो जाता है और कहता है इसने हमारा मान रख लिया मान रख क्या लिया, मान खो दिया अपने हृदय में जो अहं कार था उसने उसे आपके शरीरकी क्रियासे दूर कर दिया। कल आपने सम्यग्दर्शनका प्रकरण सुना था जिस प्रकार अन्य लोगोके यहाँ ईश्वर या खुदाका महात्म्य है वैसा ही ! For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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