Book Title: Anekant 1949 07 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jugalkishor Mukhtar View full book textPage 6
________________ अनेकान्त [वर्ष १० ___यह सुनकर विद्यार्थी कुछ गहरी सोच में पड़ गया वेशी होती है। ऐसी स्थितिमें यह ठीक है कि दानका और उससे शीघ्र ही कुछ उत्तर न बन सका । इस- छोटा-बड़ापन केवल दानद्रव्यकी संख्यापर निर्भर पर अध्यापक महोदयने दूसरे विद्यार्थियोंसे पूछा- नहीं होता, उसके लिये दूसरी कितनी ही बातोंको 'क्या तुममेंसे कोई ऐसा कर सकता है ? वे भी देखनेकी जरूरत होती है, जिन्हें ध्यानमें रखते हुए सोचते-से रह गये। और उनसे भी शीघ्र कुछ उत्तर द्रव्यकी अधिक संख्यावाले दानको छोटा और अल्प बन न पड़ा ! तब अध्यापकजी कुछ कड़ककर बोले- संख्यावाले दानको खुशीसे बड़ा कहा जा सकता ___'क्या तुन्हें तत्वार्थसूत्रके दान-प्रकरणका स्मरण है। अतः अब आप कृपाकर अपने दोनों दानियोंका नहीं है ? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि दानका क्या कुछ विशेष परिचय दीजिये जिससे उनके छोटेलक्षण है और उस लक्षणसे गिरकर दान दान नहीं बड़ेपनके विषयमें कोई बात ठीक कही जा सके। रहता ? क्या तुम्हें उन विशेषताओंका ध्यान नहीं .. अध्यापक-हमें पाँच पाँच लाखके दानी चार है जिनसे दानके फलमें विशेषता-कमी-वेशी आती सेठोंका हाल मालूम है जिनमेंसे (१) एक सेठ ठाका है और जिनके कारण दानका मूल्य कमोबेश हो : " डालचन्द हैं, जिनके यहाँ लाखोंका व्यापार होता जाता अथवा छोटा-बड़ा बन जाता है ? और क्या है है और प्रतिदिन हजारों रुपये धर्मादाके जमा होते तुम नहीं समझते कि जिस दानका मूल्य बड़ा-फल हैं, उसी धर्मादाकी रकममेंसे उन्होंने पाँच लाख रुपये बड़ा वह दान बड़ा है, उसका दानी बड़ा दानी है। एक सामाजिक विद्या-संस्थाको दान दिये हैं और और जिस दानका मूल्य कम-फल कम वह दान उनके इस दानमें यह प्रधान-दृष्टि रही है कि उस छोटा है, उसका दानी छोटा दानी है-दानद्रब्यकी समाजके प्रेमपात्र तथा विश्वासपात्र बनें और लोकसंख्यापर ही दानका छोटा-बड़ापन निर्भर नहीं में प्रतिष्ठा तथा उदारताकी धाक जमाकर अपने व्यापारको उन्नत करें । (२) दूसरे सेठ ताराचन्द ____ इन शब्दोंके आघातसे विद्यार्थि-हृदयके कुछ हैं, जिन्होंने ब्लैक मार्केटद्वारा बहुत धन संचय किया कपाट खुल गये, उसकी स्मृति काम करने लगी है और जो सरकारके कोप-भाजन बने हुए थेऔर वह जरा चमककर कहने लगा सरकार उनपर मुकदमा चलाना चाहती थी। उन्होंने _ 'हाँ, तत्वार्थसूत्रके सातवें अध्यायमें दानका एक उच्चाधिकारीके परामर्शसे पाँचलाख रुपये लक्षण दिया है और उन विशेषताओंका भी उल्लेख 'गांधी मीमोरियल फंड' को दान दिये हैं और इससे किया है जिनके कारण दानके फलमें विशेषता उनकी सारी आपत्ति टल गई है । (३) तीसरे सेठ आती है और उस विशेषताकी दृष्टिसे दानमें भेद रामानन्द हैं, जो एक बड़ी मिलके मालिक हैं जिसमें उत्पन्न होता है अर्थात् किसी दानको उत्तम-मध्यम 'वनस्पति-घी' भी प्रचुर परिमाणमें तय्यार होता है । जघन्य अथवा बड़ा-छोटा आदि कहा जा सकता उन्होंने एक उच्चाधिकारीको गुप्तदानके रूपमें पाँच है। उसमें बतलाया है कि 'अनुग्रहके लिये स्व-पर लाख रुपये इसलिये भेंट किये हैं कि वनस्पतिघीका उपकारके वास्ते-जो अपने धनादिकका त्याग किया चलन बन्द न किया जाय और न उसमें किसी जाता है उसे 'दान' कहते हैं और उस दान में विधि. रंगके मिलानेका आयोजन ही किया जाय । (४) चौथे सेठ विनोदीराम हैं, जिन्हें 'रायबहादुर' तथा द्रव्य, दाता तथा पात्रके विशेषसे विशेषता श्राती है-दानके ढंग, दान में दिये जानेवाले पदार्थ, दातार 'आनरेरी मजिस्ट्रट' बननेकी प्रबल इच्छा थी । की तत्कालीन स्थिति और उसके परिणाम तथा अनुग्रहार्थ स्वस्याऽतिसर्गो दानम् ॥३८॥ पानेवालेमें गुणसंयोगके भेदसे दानके फलमें कमी- विधि-द्रव्य दातृ-पात्र-विशेषात्तद्विशेषः ।। ३६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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