Book Title: Anekant 1949 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 11
________________ गौरव-गाथा श्री पंडितप्रवर दौलतरामजी और उनकी साहित्यिक रचनाएँ [ लेखक-पण्डित परमानन्द जैन शास्त्री ] @@@@@@@ न्दी साहित्यिके जैन विद्वानोंमें जाना हुआ। आगरा में उस समय आध्यात्मिक ® ® पं० दौलतरामजीका नाम भी विद्वान पं० भूधरदासजीकी, जिन्हें पं० दौलतरामजी छ ® उल्लेखनीय है। आप 5 वीं ने भूधरमल' नामसे सम्बोधित किया है अध्यात्मEnload शताब्दीके उत्तरार्ध और १६वीं शलीका प्रचार था । पं० भूधरदासजी आगरा में @ शताब्दीके प्रारम्भके प्रतिभा- स्याहगंजमें रहते थे। और श्रावकोचित षटकों में सम्पन्न विद्वान थे । संस्कृत प्रवीण थे। तथा स्याहगंजके मन्दिरमें ही वे शास्त्र भाषापर आपका अच्छा अधि २ इनका अधिक प्रचलित नाम पंडित भूधरदास था, . कार था। खासकर जैन पुराण यह १८वीं शताब्दीके प्रतिभा सम्पन्न कवि थे । इन्होंने ग्रन्थोंके विशिष्ट अभ्यासी और टीकाकार थे। इनके सम्वत् १७८१ में जिनशतक और सं० १७८६ में पार्श्वपिताका नाम आनन्दराम था। और यह जयपुर पराण की रचना की है। इन दोनों रचनाअोंकि अतिरिक्त स्टेटके वसवा' नामक ग्रामके रहने वाले थे । इनकी जाति खंडेलवाल और गोत्र काशलीवाल था। पंडित आध्यात्मिक पदसंग्रह भी इन्हींका बनाया हुआ है जो प्रकाशित हो चुका है। ये तीनों ही कृतियाँ बड़ी सुन्दर जीके मकानके सामने जिन मन्दिर था और आस और सरल हैं। इनकी कविता भावपूर्ण सरल तथा मनमोहक पास प्रायः जैनियोंका ही निवास था । और वे जिन है। इनके सिवाय 'कलियुगचरित' नामके ग्रन्थका और पूजन, शास्त्रस्वाध्याय, सामायिक तथा तत्त्वचर्चादि भी पता चला है जो सं० १७५७ मेंआलमगीर (श्रीरङ्गधार्मिक कार्योंमें संलग्न रहते थे । परन्तु रामचन्द्र जेब) के राज्यमें लिखा गया है। जैसा कि उस पुस्तकके मुमुक्षके संस्कृत 'पुण्यास्रव कथाकोष'की टीका प्रशस्ति निम्न पद्यों से प्रकट है:के अनुसार पं० दौलतरामजीको अपनी प्रारम्भिक अवस्थामें जैनधर्मका विशेष परिज्ञान न था और न सम्वत् सत्तरहसै सत्तावन जेठ मास उजियारा । उस समय उनकी विशेष रुचि ही जैनधर्मके प्रति थी तिथि मावस अरुणाम प्रथम ही वारजु मंगलवारा ॥ "किन्तु उस समय उनका झुकाव मिथ्यात्वकी ओर हो रहा किसी बीच उनका कारणवश आगरा कही कथा भूधर सुकवि आलमगीरके राज। पर स्लेश का एक कस्वा है जो आज भी नगर मुलकपुर पर बसे दया धर्मके काज ॥ उसी न र है। यह देहली से अहमदाबाद जाने पर इस समय उस ग्रन्थकी प्रति सामने न होनेसे यह वाली एण्ड सी० आई० आर० रेलवेका स्टेशन निश्चय करना कठिन है कि उन ग्रन्थ इन्हीं पं. भूधरदास शास्त्रमण्डार भी है जो देखने योग्य है। की कृति है या अन्य किसी दूसरे भूधरदासकी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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