Book Title: Anekant 1949 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 9
________________ किरण १] अनेकान्त-रस-लहरी रामानन्दको सबसे अधिक निकृष्ट, नीचे दरजेका और न समान फलके अभोक्ता होनेसे ही उन्हें तथा अधम दानी समझना चाहिये। बड़ा-छोटा कहा जा सकता है। इस दृष्टिसे उक्त _ अध्यापक-शाबास ! मालूम होता है अब तुम दस-दस हजारके चारों दानियोंमेंसे किसीके बड़े और छोटेके तत्त्वको बहुत कुछ समझ गये हो। विषयमें भी यह कहना सहज नहीं है कि उनमें हाँ, इतना और बतलाओ कि जिन चार दानियोंको ___ कौन बड़ा और कौन छोटा दानी है । चारोंके अलगतुमने पाँच-पाँच लाखके दानियोंसे बड़े दानी बत लाल हानियोंसे बडे टानी बत- अलग दानका विषय बहुत उपयोगी है और उन लाया है वे क्या दस-दस हजारकी समान रकम- सबका अपने अपने दान-विषयमें पूरी दिलचस्पी के दानसे परस्परमें समानदानी हैं, समान पाई जाती है ।'फलके भोक्ता होंगे और उनमें कोई परस्परमें बड़ा- अध्यापक वीरभद्रजीकी व्याख्या चल ही रही छोटा दानी नहीं है ? थी, कि इतनेमें घंटा बज गया और वे यह कहते विद्यार्थी उत्तरकी खोजमें मन-ही-मन कुछ हुए उठ खड़े हुए कि 'दान और दानीके बड़े-छोटेसोचने लगा, इतनेमें अध्यापकजी बोल उठे- पनक विषयमें आज बहुत कुछ विवेचन दूसरी 'इसमें अधिक सोचनेकी बात नहीं, इतना तो स्पष्ट कक्षामें किया जा चुका है। उसे तुम मोहनलाल ही है कि जब अधिक द्रव्यके दानी भी अल्प द्रव्य- विद्यार्थीसे मलूम कर लेना, उससे रही-सही कचाई के दानीसे छोटे होजाते हैं और दानद्रव्यकी संख्या कर तुम्हारा इस विषयका ज्ञान और भी पर ही दान तथा दानीका बड़ा-छोटापन निर्भर परिपुष्ट हो जायगा और तुम एकान्ताऽभिनेवेशके नहीं है तब समान द्रव्यके दानी परस्परमें समान चक्करमें न पड़ सकोगे । अध्यापकजीको उठते और एक ही दर्जेके होंगे ऐसा कोई नियम नहीं हो देखकर सब विद्यार्थी खड़े हो गये और बड़े विनीतसकता-वे समान भी हो सकते हैं और असमान भी। भावसे कहने लगे कि 'आज आपने हमारा बहुत इस तरह उनमें भी बड़े द संभव है ' बड़ा अज्ञानभाव दूर किया है। अभी तक हम बड़े औ वह भेद तभी स्पष्ट हो सकता है जबकि सारी परि- छोटके तत्त्वको पूरी तरहसे नहीं समझे थे. स्थिति सामने हो अर्थात् यह पूरी तौरसे मालूम हो लाइनोंद्वारा-सूत्ररूपमें ही कुछ थोड़ा-सा जान्न पाये कि दानके · समय दातारकी कौटुम्बिक तथा थ, अब आपने व्यवहारशास्त्रको सामने रखकर आर्थिक आदि स्थिति कैसी थी, किन भावोंकी हमें उसके ठीक मार्गपर लगाया है, जिससे अनेक भूलें दूर होंगी और कितनी ही उलझनें सुलझेगी। इस भारी प्रेरणासे दान किया गया है, किस उद्देश्यको लेकर घर उपकारके लिये हम आपका आभार किन शब्दोंमें तथा किस विधि-व्यवस्थाके साथ दिया गया है और व्यक्त करें वह कुछ भी समझमें नहीं आता । हम जिन्हें लक्ष्य करके दिया गया है वे सब पात्र हैं, कुपात्र हैं या अपात्र अथवा उस दानकी कितनी आपके आगे सदा नतमस्तक रहेंगे। उपयोगिता है । इन सबकी तर-तमतापर ही दान वीरसेवामन्दिर कैम्प, 1 तथा उसके फलकी तर-तमता निर्भर है और देहली उसीके आधारपर किसी प्रशस्त दानको प्रशस्ततर ता० १५-६-१६ | जुगलकिशोर मुख्तार ! या प्रशस्ततम अथवा छोटा-बड़ा कहा जा सकता है। जिनके दानोंका विषय ही एक-दूसरेसे भिन्न होता १ देखो, लेख नं० ३ 'बड़ा दानी कौन 'अनेकान्त वर्ष है. उनके दानी प्रायः समान फलके भोक्ता नहीं होते ६, कि० ४ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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