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करण १]
पण्डित श्रीविशालकीत्ति और आर्यिका त्रिभुवनश्री तथा उनकी शिष्यणी पूर्णश्री एवं धनश्री ये सब सदा प्रणाम करते हैं ।
( नं० ३२ )
मृत्तिके आसनके अतिरिक्त बाकी हिस्सा नहीं है। चिह्न बैलका है । करीब १ || फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण काला है । पालिश चमकदार है ।
अहार क्षेत्र के प्राचीन मूर्ति-लेख
लेख – सम्वत् १२०२ चैत्रसुदी १३ गोलापूर्वान्दये नायक श्रीरतन तस्य सुत नाल्ह - पोल्ह-सामदेव - भामदेव प्रणमन्ति नित्यम् |
भावार्थ:----गोला पूर्व वंशोत्पन्न नायक श्रीरतन उनके पुत्र बल्ह पाल्ह - सामदेव भामदेव सम्वत १२०२ के चैत्र सुदी १३ को बिम्बप्रतिष्ठा कराके प्रति दिन नमस्कार करते हैं ।
( नं० ३३ )
मूत्तिका सिर्फ शिर नहीं है। पाङ्ग उपलब्ध हैं । चिह्न वगैरह १|| फुट ऊँची पद्मासन है । - पालिश चमकदार है।
बाकी सर्व आङ्गोकुछ नहीं है । करीब पाषाण काला है ।
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लेख – संवत् १२१० वैशाख सुदी १३ मेड़तव.लवंशे साहु प्रयणराम तत्सुख हरसू एतौ नित्यं प्रणमन्तः ।
भावार्थ:- सं० १२१० वैताख सुदी १३ को मेड़तवालवंश में पैदा हुए साहु प्रयणराम उनके पुत्र हरसू ये दोनों बिम्बप्रतिष्ठा कराके प्रणाम करते हैं । ( नं ३४ )
मूर्त्तिके दोनों तरफ इन्द्र खड़े हैं। घुटनों तक पैरोंके अतिरिक्त बाकी हिस्सा नहीं है । चिह्न दो हिरणोंका है। करीब ३ फुट ऊँचाई है। मूर्त्ति खड्गासन है । पाषाण काला है। पालिश चमकदार है ।
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लेख – सम्वत् १२०६ गोलापूर्वान्वये साहु महिदीन तस्य पुत्र स्युपस्यु तथा श्रर्हमामक प्रणमन्तः ।
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भावार्थ:- गोला पूर्व वंशोत्पन्न साहु महिदीन उनके पुत्र स्युपस्यु तथा मामक, संवत् १२०६ में प्रतिष्ठा कराके प्रणाम करते हैं ।
( नं० ३५ )
चिन्ह शेरका है । करीब १||| फुट ऊँची है। पद्मासन मूत्तिका शिर नहीं है । बाकी सबाङ्ग सुन्दर हैं । है । पाषाण काला है। पालिश चमकदार है।
लेख - संवत् १२१६ माहसुदी १३ श्रीमत्कुटकान्वये पण्डित लक्ष्मण देवस्तस्य शिष्यार्यदेव श्रार्थिका लक्ष्मश्री तवेल्लिका चारित्र श्री रुद्भ्राता लिम्बदेव एते श्रीमद्वद्धमानस्य बिम्बं श्रहिनिशि प्रणमन्ति ।
भावाथ. - सं० १२१६ माघ सुदी १३ के शुभ दिनमें कुटकवशमें पैदा होनेवाले पण्डित लक्ष्मणदेव उनके शिष्य आर्यदेव तथा आर्यिका लक्ष्मश्री उनकी सहचरी चारित्रश्री उनके भाई लिम्बदेव श्रीवर्द्धमान भगवानकी प्रतिमाको प्रतिष्ठापित कराके प्रतिदिन नमस्कार करते हैं ।
( नं० ३६ )
मूत्तिका आसन तथा कुहिनियों तक हाथ अवशिष्ट है। बाकी हिस्सा नहीं है । चिन्ह सिंहका प्रतीत होता है । करीब २ फुट ऊंची पद्मासन है । पाषाण काला है । पालिश चमकदार है ।
लेख - सम्वत् १२२५ जेठ सुदी १५ गुरुदिने पंडितश्रीजसकी तशील दिवाकरनीपद्मश्रीरतनश्री प्रणमन्तिनित्यम् ।
भावार्थः – सम्वत् १२२५ जेठ सुदी १५ गुरुवारको पण्डित श्रीयशकीत्ति तथा शीलदिवाकरनी पद्मश्री और रतनश्रीने बिम्ब-प्रतिष्ठा कराई । ( नं० ३७ )
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आसन और आधे हाथोंके अतिरिक्त मूर्त्तिका बाकी हिस्सा खण्डित है । श्रासन चौड़ा और मनोहर है । चिह्न बैलका है। करीब दो फुटकी ऊँची पद्मासन है । पाषाण काला है। आसन टूट गया है और इसलिये लेख अधूरा है ।
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