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कवि पद्मसुंदर और दि० श्राक्क रायमल्ल
[ लेखक - श्री अगरचन्द नाहटा ]
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कवि पद्मसुन्दरका परिचय मैंने अनेकान्तके वर्ष ४ ०८ में दिया था। उसके पश्चात् अनेकान्त वर्ष ७ अं० ५-६ में श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी का एक लेख "पं० पद्मसुन्दरके दो ग्रन्थ " शीर्षक प्रकाशित हुआ' है । इस लेख में आपने भविष्यदत्त चरित्र और रायमल्लाभ्युदय ग्रन्थ का परिचय देनेके साथ साथ इन ग्रन्थों का निमोण जिन उदार चरित्र विद्याप्रेमी दि० श्रावक अग्रवाल - गोइलगोत्रीय चौधरी रायमलके अनुरोधसे हुआ है उनके वंशका भी परिचय, जो कि इन ग्रन्थों की प्रशस्तियों में पाया जाता है दिया है। पर प्रेमीजीको प्राप्त भविष्यदत्त चरित्र प्रतिका अंतिम पत्र नहीं मिलनेसे उक्त
प्रशस्ति अधूरी रह गई थी। कुछ दिन हुए मुझे तीर्थयात्राके प्रवासमें पालणपुरके श्वेताम्बर जैनभंडार के अवलोकन का सुअवसर प्राप्त हुआ था । वहाँ पद्मसुन्दरकी पार्श्वनाथ चरित्र की प्रति उपलब्ध हुई थी, जिसके अंत में भी वही प्रशस्ति पूर्ण प्राप्त हुई है। अतः इस लेख में उसे प्रकाशित किया जारहा
१ - प्रस्तुत लेखमें आपने पद्मसुन्दरजीके दि० पांडे होनेकी कल्पना की थी पर यह लिखते समय उन्हें मेरा लेख स्मरण नहीं रहा इसीलिये की थी । जब मैंने आपको अपने लेख पढ़ने को सूचित किया तो उत्तरमें आपने उसका संशोधन कर लिया ।
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२ – इसका रचना काल अभीतक निश्चित नहीं था, विन्टर नीजने Indian Literature V. II. P. ५१६ में इसका समय १६२२ लिखा था पर मुझे इसकी १६१६ की लिखित प्रति उपलब्ध होनेसे मैंने इसका उल्लेख अपने पूर्व लेखमें किया था पर पालणपुरकी प्रतिसे वह सं० १६१२ निश्चित हो जाता है ।
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है । प्रेमीजी द्वारा प्रकाशित प्रशस्तिमें भट्टारक परम्पराके कुछ नाम छूट गए हैं एवं कहीं २ पाठ भी अशुद्ध छपा है । उसका भी इस प्रशस्तिसे संशोधन हो जाता है एवं पार्श्वनाथचरित्रका रचना काल मी जो अभी तक अज्ञात था, निश्चित हो जाता है । लेखन प्रशस्तिसे एक और भी महत्वपूर्ण बातका पता चलता है वह यह है कि प्रेमीजीका प्रकाशित पुष्पिका लेख सं० १६१५ के फाल्गुन सुदी ७ बुधवारका है उसमें रायमल्लके ३ पुत्रों का उल्लेख है. और यह प्रशस्ति सं० १६१७ चैत्र वदी १० की लिखित है उसमें आपके ५ पुत्रोंका उल्लेख है अर्थात् इन २ वर्षोंमें उनके २ और पुत्र भी हो चुके थे । इन पुत्रोंमें से प्रथम पुत्रकी पत्नीका ही इसमें उल्लेख हैं अतः अन्यं पुत्र अवस्था में छोटे थे, जान पड़ता है। प्राप्त पुष्पिका लेखके अनुसार भट्टारक परंपरा एवं रायमल्लकी वंशपरम्पराकी तालिका इस प्रकार ज्ञात होती है ।
काष्ठा संघ, माथुरान्वय पुष्करगण भट्टारक — उद्धरसेन
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