Book Title: Anekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 15
________________ अनेकान्त [वर्ष २ अक्रमकी व्यवस्था कैम बन सकती है अर्थात मुक्त होना चाहते हैं तो वे अपने इस इष्टको अनकान्त द्रव्यके अभावमें जिमप्रकार गुणपर्यायकी और का विरोध कर के बाधा पहुंचाते हैं, और इस तरह भी वृत्तकं अभाव में शीशीम, जामन, नीम अाम्रा दकी अपनको म्व-पर-वैरी सिद्ध करते हैं । काइ व्यवस्था नहीं बन मकती उसी प्रकार अनेकान्त वस्तुनः अनकान्न, भाव-अभाव, नित्य-अनित्य, के अभावमें क्रम-अक्रमकी भी व्यवस्था नहीं बन भेद-अभेद आदि एकान्तनयोंके विरोधको मिटाकर, मकती । क्रम-अक्रमकी व्यवस्था न बननस अर्थक्रिया- वस्तुतत्त्वकी मम्यग्वम्था करने वाला है; इमीमें लोकका निषेध हो जाता है; क्यों,क अर्थक्रियाकी क्रम- व्यवहारका मम्यक प्रवर्तक है-बिना अनेकान्तका अक्रमके माथ व्याप्ति है। और अर्थक्रियाक अभाव आश्रय लिय लोकका व्यवहार ठीक बनता ही नहीं, में कर्मादिक नहीं बन सकत-कर्मादिकको अर्थक्रिया और न परम्परका वैर-विरोध ही मिट सकता है। के माथ व्याप्ति है। जब शुभ-अशुभकर्म ही नहीं बन इसीलिय अनेकान्तको परमागमका बीज और लोक मकते तब उनका फल सुख-दुग्य, फलभोगका क्षेत्र का अद्वितीय गुरु कहा गया है-वह मबांके लिये जन्म-जन्मान्तर (लाक-परलोक) और कर्मों में बँधनं सन्मार्ग प्रदर्शक है * । जैनी नीनिका भी वही मूलातथा छूटनकी बान ता कैसे बन मकती है ? मागंश धार है। जो लोग अनकान्तका आश्रय लेते हैं वे यह कि अनकान्तकं आश्रय बिना ये मब शुभाशुभ कभी म्व-पर-वैरी नही हात, उनमें पाप नहीं बनने, कर्मादिक निगश्रित होजाते हैं, और इमलिय मर्वथा उन्हें आपदाएँ नहीं मनाती. और व लोकमे मदा ही नित्यादि एकान्त वादियोंके मनमें इनकी काई ठीक उन्नत, उदार तथा जयशील बने रहते हैं। व्यवस्था नहीं बन मकी। वे यदि इन्हें मानते हैं वीरसवामन्दिर, मग्मावा, वीरसवामन्दिर, मम्मावा, ता०५५१९४१ और तपश्चरणादि अनुष्ठान-द्वाग मत्कर्मोंका अर्जन * नौनि-विरोध-ध्वमी लोकव्यवहारवर्तकः मम्यक् । करके उनका मत्फल लेना चाहते हैं अथवा कमोम परमागमम्य बीजं भवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्त ॥ अावश्यकता वीरमेवामन्दिरको 'जैनलक्षणावली' के हिन्दीमार तथा अनुवाद और प्रेमकापी अादि कार्यों के लिये दोएक रोग विद्वानोंकी शीघ्र आवश्यकता है जो संवाभावी हों और अपने कार्यको मुस्तैदी तथा प्रामाणिकताके साथ करने वाले हों। वेतन योग्यतानुसार दीजाण्गी । जो सज्जन श्राना चाहं वे अपनी योग्यता और कृतकार्यके परिचयादिसहित नीचे लिखे पते पर शीघ्र पत्रव्यवहार करें, और साथ ही यह स्पष्ट लिखनकी कृपा करें कि वे कमसे कम किम वेतन पर प्रामकेंगे, जिससे चुनाव में सुविधा रहे और अधिक पत्रव्यवहारकी नौबत न आए। जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाना 'वीम्मेवामन्दिर' मग्मावा जि महारनपुर

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