Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna View full book textPage 9
________________ ( ४ ) सन् १९७३ में आचार्य श्री का नागपुर चातुर्मास हुआ, वहाँ महाराष्ट्र के स्थानकवासी जैन संघ की विशाल सभा हुई, कार्यकर्ताओं ने यह निश्चय किया कि अगले वर्ष आचार्यप्रवर का अमृत महोत्सव अत्यन्त समारोह के साथ मनाया जावेगा। इस प्रसंग पर आचार्य श्री को एक विशाल अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करने का भी निश्चय हुआ। अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्पादन का भार सुप्रसिद्ध लेखक और सम्पादक श्रीयुत श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' को सोंपा गया। श्री सुराना जी ने अथक परिश्रम और उत्साह के साथ इस कार्य को सुन्दर रूप में संपन्न किया है यह हम सबके लिए प्रसन्नता का विषय है। अमृत महोत्सव के उपलक्ष में अनेक स्थानों पर विद्यालय, चिकित्सालय एवं वाचनालय आदि प्रारम्भ किये गये हैं । क्योंकि साहित्यिक कार्य के साथ ही जन सेवा का कार्य भी हो यह आचार्य प्रवर की विशेष अभिरुचि रहती है और प्रेरणा भी। इसी प्रेरणा का बल पाकर हमने सेवा क्षेत्र में अनेक योजनाएं प्रारम्भ की है, हम विश्वास करते हैं कि हमारे वे कार्यक्रम भी सुन्दर रूप से चलते रहेंगे। अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन में जिन सज्जनों ने उदा अर्थ सहयोग किया है, मैं उनको हृदय से धन्यवाद देता हूँ। साथ ही उन विद्वानों, मुनिवरों एवं शुभेच्छु सज्जनों का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने आचार्य प्रवर के प्रति श्रद्धा सुमन के रूप में अपनी रचनाएँ तथा संदेश भेजकर श्रद्धाभिव्यक्ति की है। सबके प्रति कृतज्ञता की भावना के साथ -संचालाल बाफना संयोजक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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