Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna View full book textPage 8
________________ भगवान श्री महावीर की २५वीं निर्वाण शताब्दी का यह ऐतिहासिक अवसर संपूर्ण मानव जाति के लिए एक परम सौभाग्य-प्रसंग है। विशेषकर भगवान महावीर के अनुयायी जैन समाज के लिए तो अत्यन्त गौरवमय अवसर है। भगवान महावीर के जन कल्याणकारी संदेश आज चारों ओर मुखरित हो रहे हैं तथा जन-जीवन में सत्य-अहिंसा और विश्वमैत्री के भाव स्फूरित हो रहे हैं यह अत्यन्त हर्ष का विषय है। इसी ऐतिहासिक प्रसंग पर भगवान महावीर की परम्परा के प्रभावक सूत्रधार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी म० का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। यह सोने में सुगन्ध जैमा अवसर हमारे हाथों में आया है । आचार्य श्री का हृदय बड़ा विशाल है, वे सरलता की मूर्ति हैं, त्याग वैराग्य की धारा उनके जीवन में प्रवाहित हो रही है। मानवता के प्रचार हेतु उन्होंने अपना ७५ वर्ष का मूल्यवान जीवन समर्पित किया है। सत्य-अहिंसा और विश्वमैत्री के प्रचारार्थ उन्होंने हजारों मील की पद यात्राएं कर जन-जीवन को उद्बोधित किया है। महाराष्ट्र में शिक्षा का प्रचार कर यहाँ की सीधी-सादी धर्मप्रिय जनता को पुरानी रूढ़ियों से मुक्त कर एकता और समाज सेवा के क्षेत्र में बढ़ाने का श्रेय आचार्य प्रवर के गौरवमय कृतित्व को ही है। आज से लगभग ५ वर्ष पूर्व जब आचार्यप्रवर राजस्थान के अंचल में विहार कर रहे थे तब मैंने, मेरे परम सहयोगी श्री चन्द्रभान जी डाकलिया तथा महाराष्ट्र संघ के अनेक प्रमुख कार्यकर्ताओं ने आचार्य देव को महाराष्ट्र में पुन: पधारने की प्रार्थना की थी। क्योंकि आचार्य प्रवर का ७५ वां जन्म दिन ५ वर्ष बाद आनेवाला था और उस अवसर को हम 'अमत महोत्सव' के रूप में मनाने को उत्सुक थे। लगातार दो वर्ष के भक्ति भरे आग्रह के पश्चात महाराष्ट्र की प्रार्थना स्वीकृत हुई और हम लोगों ने अमृत महोत्सव मनाने की योजना बनाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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