Book Title: Amurtta Chintan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ अमूर्त चिन्तन चश्मा लगा लेता है और बाद में देखता है। यदि वह ठीक नहीं जंचता है तो वह उसे तोड़ने-मरोड़ने का प्रयत्न करता है। अनुप्रेक्षा का सिद्धांत सत्य के लिए समर्पित हो जाने का सिद्धांत है। सत्य के लिए पूर्णरूपेण समर्पित हो जाओ। अपनी किसी भी धारणा को महत्त्व मत दो। जो सचाई है उसे ग्रहण करो, स्वीकार करो यह है अनुप्रेक्षा। सुना होगा, हिमालय की बर्फ पर साधक नग्न होकर बैठा है। चारों ओर बर्फ ही बर्फ है। वह गर्मी का प्रयोग आरम्भ करता है। घण्टा बीतता है और साधक के शरीर से पसीना चूने लगता है। बर्फ पर पसीना चूने लग जाता है । यह प्राकृतिक घटना नहीं है। यह प्राकृतिक घटना होती तो एक ही आदमी के शरीर से पसीना नहीं चूता। वहां जितने आदमी होंगे, सबके शरीर से पसीना चूएगा। पर एक ही आदमी के शरीर से पसीना चूता है और बाकी सारे सर्दी में ठिठुरते हैं। यह ध्वनि का प्रयोग है, संकल्प और भावना का प्रयोग है। यह भावनात्मक परिवर्तन है, प्राकृतिक परिवर्तन नहीं है। गर्मी के दिन हैं। भयंकर गर्मी पड़ रही है। लूएं चल रही हैं। साधक सर्दी की भावना करता है, सर्दी का संकल्प करता है और उसके शरीर में सर्दी व्याप्त हो जाती है। वह ठिठुरने लगता है। वह कंबल ओढ़ता है, फिर भी ठिठुरना समाप्त नहीं होती। यह प्राकृतिक नहीं है, भावनात्मक परिवर्तन है। एक आदमी आज भी जीवित है जो प्रति शुक्रवार को क्रॉस पर चढ़ता है। उसके दोनों हाथ में घाव हो जाते हैं। रक्त बहने लग जाता है। हृदय से भी रक्त बहने लगता है। शुक्रवार को ऐसा होता है। यह भावनात्मक परिवर्तन है। वह व्यक्ति ईसामसीह का संकल्प करता है और ऐसा घटित हो जाता है। भावना 'कंटकात् कंटकमुद्धरेत्'-कांटे से कांटा निकालने की नीति साधना के क्षेत्र में भी लागू होती है। चित्त को वासनाओं से मुक्त करना साधक का लक्ष्य होता है, पर पहले ही चरण में दीर्घकालीन वासनाओं को एक साथ निर्मूल नहीं किया जा सकता। उन्हें निरस्त करने के लिए नई वासनाओं की सृष्टि करनी होती है। वे नई वासनाएं यथार्थपरक होती हैं, इसलिए उनका असत् से सम्बन्धित वासनाओं पर दबाव पड़ता है और वे उनसे अभिभूत हो जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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