Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva Author(s): Vijaymuni Shastri Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 3
________________ लेखक अपने प्रिय पाठकों के पाणि-पद्मों में 'व्यक्तित्व और कृतित्व' का यह सुन्दर, मधुर एवं सुरभित कुसुम समर्पित करके मुझे परम प्रसन्नता है । कुसुम कैसा है ? इसका निर्णय पाठकों की अभिरुचि पर छोड़कर मैं उसकी चिन्ता से सर्वथा विमुक्त हो गया हूँ। पूज्य गुरुदेव के जीवन-सागर के उजले मोती, मैं कितने निकाल पाया हूँ, यह कह सकना मेरे लिए सरल न होगा। महासागर में अग.णित और अमित रत्न होते हैं, गोताखोर उसमें से कितने निकाल पाता है ? बस, यही स्थिति मेरी भी है । पाठक यह सोच सकते हैं, और जैसा कि मुझे विश्वास है, वे वैसा सोचेंगे भी, कि एक शिष्य ने अपने गुरु की कोरी प्रशंसा की है। परन्तु प्रस्तुत पुस्तक के अध्ययन से उनका यह विभ्रम स्वतः ही दूर हो जाएगा। एक साहित्यकार के समक्ष गुरु-शिष्य का सम्बन्ध-भले ही वह कितना भी पवित्र एवं कितना भी मधुर क्यों न हो ? गौण ही रहता है । यही दृष्टिकोण लेकर मैं चला हूँ। फिर भी श्रीहर्ष के शब्दों में, मैं यह स्वीकार करता हूँ। "वाग्जन्म-वैफल्य मसह्य शल्यं, गुणाधिके वस्तुनि मौनिता चेत् ?" प्रस्तुत पुस्तक के लेखन में, पूज्य गुरुदेव के लघु गुरु भ्राता श्री अखिलेश मुनि जी की सतत प्रेरणा रही है । अतः इस सुन्दर-कार्य में उनकी प्रेरणा को कैसे भूल सकता हूँ। प्रस्तुत पुस्तकं के पठन-पाठन से यदि पाठकों को कुछ भी लाभ पहुँचा, तो मैं अपने श्रम को सफल समदूंगा। -विजय सुनिPage Navigation
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