Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ कवि जी का सामाजिक कृतित्व वर्तमान युग के प्रज्ञा- स्कन्ध : श्रद्धेय कवि श्री जी देश, काल एवं क्षेत्र की अपेक्षा से एक सीमा में रहे हैं । वे भारत के एक प्रान्त में जन्मे और एक सम्प्रदाय विशेष में दीक्षित हुए । क्षेत्र की दृष्टि से उनका शरीर भारतीय है और वे भारत में ही रह रहे हैं । उनके साधना - जीवन का उदय एक सम्प्रदाय में हुआ । परन्तु उनकी साधना का प्रभाव एक राष्ट्र और एक प्रान्त के घेरे में आबद्ध नहीं रहा और न साम्प्रदायिकता की छोटी-सी कारा में ही बन्द रहा। उनका मन-मस्तिष्क कभी किसी दायरे में बंध कर नहीं रहा। वे जब भी सोचते - विचारते हैं, बाड़े-बन्दियों से ऊपर उठकर सोचते हैं। उनका ज्ञान, उनका चिन्तन, उनका उपदेश और उनका कर्म सीमित क्षेत्र में होते हुए भी ससीम नहीं है। वह किसी प्रान्त, जाति या सम्प्रदाय विशेष के लिए नहीं, प्रत्युत मानव मात्र के हित के लिए है। मानव ही नहीं प्राणी जगत के हित के लिए, कल्याण के लिए और अभ्युदय के लिए है। उनका यह वज्रआघोष रहा है, कि प्राणी मात्र के अभ्युदय की कामना एवं उनके लिए किया जाने वाला प्रयत्न ही मानव का अपना उदय है। जो दूसरे का हित नहीं चाहता, विकास नहीं चाहता, अभ्युदय और उसके लिए प्रयत्न भी नहीं करता, उसका अपना विकास एवं उदय भी नहीं होता । कविजी का चिन्तन केवल अपने कल्याण के लिए नहीं, विश्व के हित के लिए भी है । वे मानव मन के आशा केन्द्र हैं । मानव जाति के लिए ज्योति स्तम्भ हैं, प्रज्ञा- स्कन्ध हैं । मानव जीवन की विशेषता है, उसकी मनन शक्ति, चिन्तन शक्ति । जिसे हम प्रज्ञा कहते हैं, ज्ञान कहते हैं, ज्योति कहते हैं। स्कन्ध का अर्थ 1 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 186