Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 5
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ आगमवाचनाना दाता श्रीआगमोद्धारकश्रीए मालवादि प्रदेशमा विचरतां सं० १९७६ लगभग ( एटले आजथी लगभग ६० वर्ष पूर्व ) श्रीआगमो पर आगमविषयक ५२ जुदा जुदा विषयोनी तारवणी करवानां निशानो कर्यां. ते समये दीर्गद्रष्टा पूज्य सूरिजीए आगमोना ज्ञान माटे अत्यंत उपयोगी मार्गदर्शकनी गरज सारता "श्रीआगमकोष" नी पण सकलना फूलनु निशान करीने करी हती. जे आजे "श्रीअल्पपरिचितसैदान्तिकशब्दकोष" ना नामाभिधान साथे अपना करकमलमां शोभी रहेल छे. पू० आगमोद्धारकश्रीए ज्यारे "श्रीआगकोष" नी संकलना करी त्यारे जे निशानीओ करी हती तेना तेना आधारे पूज्यश्रीनी सलाहने अनुसार लहीआए एक एक आगम लइने ते ते शब्दोने जुदी जुदी कापलीओ उतारवी शरु करी. बावन विषयोना कागलो अने शब्दकोषनी कापलीओ एरीते तैयार थई. आ शब्दोनी कापलीओनी भरेली पेटीओने सं० १९८९ मां सुरतना चातुर्मासमा गति मली वर्तमानगच्छाधिपतिमादिना समुहे तेनो अकादिक्रम को अने कागलो पर अकारादिक्रमे ते चोडी. पछी ते उपरथी प्रेसकोपी नवेसरथी लखावाइ. आ रीते तैयार थयेला "आगमकोष" ने मुद्रण कराववानी भावना गुरुदेवने हती-कारणके तेओश्री तेनी अतीव उपयोगीता समाजता हता. पण समये ते कार्यने तारकालिक गति न आपी. भवितव्यताने योगे तेमां त्रण दशका वीती गया. अने सं० २००४ मां शे० दे० ला० ६० तरफथी छपाववानु शरु थयु. त्यारे पुनः तेने ग्रन्थो साथे मेलववानु कार्य वर्तमान पं० श्रीसौभाग्यसागरजी म. ने सुपरत थयु. स्वरसुधीनो भाग तेओश्रीए तैयार कार्यो. संपादन कार्य गुरुदेवनी आज्ञाथी वर्तमान पं० श्रीकंचनसागर मुनिश्रीक्षेमकरसागरजीने सोंपायु अने तेमने संपावन शरु कयु. कोषना शब्दो मेलववानो मार्ग गुरुदेवश्री पासेथी श्रीमान् सौभाग्यसागरजी म. मेलव्यो हतो पण संपादकने ते मार्गनो अनुभव न हतो पण चालता संपादन कार्य मेलववानी जवाबदारी पण संपादकोने माथे आवी. संपादकोने शब्दों मेलवतां नीचेना ग्रंथोना शब्दो नथी आवता तेम समजायु. ते ग्रन्थो-१ रायपसेणि, २ उपासकदसा, ३ निरयावलिका, ४ नंदी अने ५ नायाधम्मकहा हता. तेमां नायाधम्मकहा सिवायनां प्रन्थो तो गुरुश्रीना निशानोवाला मल्या. आथी आगमोना शब्द सहेज उतारी शकाया पण आगमोद्वारकश्रीना निशानवाली नायाधम्मकहानी प्रतनि प्राप्ति न यतां संपादकश्रीने गुरुमहाराज स्वर्गे सीधाग्या हता एटले स्वबुद्धि अनुसार शब्द तो लेवाज ए सिद्धान्त पर आववु पड्य, ने तेमने ते प्रयत्न कर्यो ने शब्दो ते आगमना उतारीने कोषमां मेलव्या. आ रीते आ कोष आगमोवारकश्रीनी रचना रूपे नहि पण संकलना रुपे थयो. आ कोषनु नाम “अल्पपरिचितसैवातिकशब्दकोष" राखवानु कारण ए छे के आ प्रन्थमां श्रीआगमना अतीव उपयोगी एटले अल्पपरिचित शब्दोने ज स्थान आपवामां आवेल छे. जोके पाकृत शब्दो माटे श्रीअभिधानराजेन्द्रकोष" तथा "पाइयसहमहण्णवो" वगेरे छे छतां पण या ग्रन्थमा आगमिकशब्दोनी टीकाकारे करेली व्यख्या छे, एथी आगमिक शब्दो माटे तेना अर्थने समजवा माटे अति उपयोगी थशे. ए निःशंशय बाबत छे. आगमिक अवबोधमा दीपकनी गरज सारतो आ ग्रन्थ पांच विभागमां वहेंचायेल छे. ते ते मागो नीचे प्रमाणे छे, प्रथम भागमा "अथी औ" सुधीना शब्दो द्वितीय भागमा "कथी झ" सुधीना शब्दो ( १० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 316