Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 10
________________ गंथसमप्पणं दुइओ जीए पुत्तो देहेणं चेव तह य धम्मेणं । नामेण पुण्णविजओ अहयं सगसद्विवारिसिओ ॥१॥ रयणत्तयइद्धाए समणीरयणेसु पत्तलेहाए । सिरिरयणसिरीवरणामिगाएँ समणीऍ जणणीए ॥२॥ तेसीईवरिसाए तीए करकमलकोसगन्मम्मि । किंची धम्मुवयारं सुमरंतो किंचि रागजुओ ॥३॥ किंची बालयभावं अणुहवमाणो य किंचि निरवेक्खो। सावेक्खो वि य किंची किंची किंची तहा बहुहा ॥४॥ अक्खाणयमणिकोसं अप्पेऊणं अणप्पमोयजुओ। अप्पाणंदणिमग्गो कयत्ययं किंचि मोमि ॥ ५॥ तं जयउ जए जणणीपयं पयासं पयामपयरिसओ । जस्स पहावं च इमे महपुरिसा पायडंति फुडं ॥६॥धम्मजणणि त्ति काउं महतरियं जाइणि न पम्हुट्टो । सिरिहरिभदो सूरी पर पए नामगाहेणं ॥७॥ देहजणणीऍ वच्छल्लयं कलेऊण गेहवासम्मि । जा जणणी ताव ठिओ सिरिवीरो चरमतित्थयरो॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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