Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ लेखक के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकाशन अब तक प्रकाशित प्रतियाँ ५६ हजार ५०० ८५ हजार ४९ हजार २३ हजार मौलिक कृतियाँ ०१. संस्कार (हिन्दी, मराठी, गुजराती) ०२. विदाई की बेला (हिन्दी, मराठी, गुजराती) ०३. इन भावों का फल क्या होगा ( हि. म. ०४. सुखी जीवन (हिन्दी) ( नवीनतम कृति ०५. णमोकार महामंत्र (हि., म., गु., क.) ०६. जिनपूजन रहस्य (हि., म., गु., क.) ०७. सामान्य श्रावकाचार (हि., म., गु.क.) ०८. पर से कुछ भी संबंध नहीं (हिन्दी) ०९. बालबोध पाठमाला भाग-१ (हि.म.गु.क.त.अं.) १०. क्षत्रचूड़ामणि परिशीलन (नवीनतम ) ११. समयसार मनीषियों की दृष्टि में (हिन्दी) : १२. द्रव्यदृष्टि (नवीन संस्करण) १३. हरिवंश कथा ( दो संस्करण) १४. षट्कारक अनुशीलन १५. शलाका पुरुष पूर्वार्द्ध (दो संस्करण) १६. शलाका पुरुष उत्तरार्द्ध (प्रथम संस्करण) १७. ऐसे क्या पाप किए (दो संस्करण) १८. नींव का पत्थर १९. पंचास्तिकाय (पद्यानुवाद) २०. तीर्थंकर स्तवन २१. साधना-समाधि और सिद्धि गु.) ) ६७ हजार ५०० १ लाख ७९ हजार २०० ७१ हजार २०० ८ हजार ३ लाख ५२ हजार ८ हजार ३ हजार ५ हजार १० हजार ३ हजार ७ हजार ५ हजार ८ हजार ५ हजार ५ हजार ५ हजार २ हजार सम्पादित एवं अनूदित कृतियाँ (गुजराती से हिन्दी ) २२ से ३२. प्रवचनरत्नाकर भाग १ से ११ तक (सम्पूर्ण सेट) ३३. सम्यग्दर्शन प्रवचन ३७. गागर में सागर (प्रवचन) ३८. अहिंसा : महावीर की दृष्टि में ३९. गुणस्थान- विवेचन ४०. अहिंसा के पथ पर (कहानी संग्रह) ४१. विचित्र महोत्सव (कहानी संग्रह) ३४. भक्तामर प्रवचन ३५. समाधिशतक प्रवचन ३६. पदार्थ विज्ञान (प्रवचनसार गाथा ९९ से १०२) कीमत १८.०० १२.०० १८.०० १६.०० ६.०० ४.०० ६.०० ७.०० २.०० ३.०० ४.०० ४.०० ३०.०० ४.०० २५.०० ३०.०० १५.०० १०.०० ३.०० १.०० ४.०० १६०.०० १५.०० १२.०० २०.०० ३.०० ७.०० ३.०० १८.०० १०.०० ११.०० (5) १ ऐसे क्या पाप किये? यद्यपि बात पैंतालीस वर्ष पुरानी है; परन्तु ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो। हमारा एक पड़ौसी मित्र था उसका नाम था लक्ष्मीनन्दन । लक्ष्मीनन्दन पहले कभी वास्तविक लक्ष्मीनन्दन रहा होगा, अभी तो वह लक्ष्मीवन्दन नाम को सार्थक कर रहा था । प्रतिदिन लक्ष्मी की देवी को अगरबत्ती लगाता; दीपक की ज्योति जलाता; पर हाथ कुछ नहीं लगता । हमारा और उसका घर एक ही मकान के दो हिस्सों में बटा था । दोनों घरों के बीच एक पतली सी टीन की चद्दर का पार्टीसन था । इस कारण हम दोनों एक-दूसरे की किसी भी बात से अनभिज्ञ नहीं रह पाते थे; क्योंकि एक तो पार्टीशन ही ऐसा था जो उनकी या हमारी धीमी से धीमी ध्वनि को रोकने में समर्थ नहीं था। दूसरे, परस्पर एक दूसरे के दिल ऐसे मिल गये थे कि छोटी से छोटी बातें भी हमसे कहे बिना उसे चैन नहीं पड़ती थी। वह प्रतिदिन अपने दिल की और दुखदर्द की बातें हमसे कहकर अपना जी हल्का कर लिया करता था । यद्यपि वह स्वभाव से सज्जन था, धर्म के प्रति प्रेम भी था, नास्तिक नहीं था; पर उसे धर्म की समझ बिल्कुल नहीं थी । यद्यपि वह पत्नी आदि को प्रवचन सुनने एवं स्वाध्याय करने में बाधक नहीं बनता; पर स्वयं में प्रवचन सुनने व स्वाध्याय करने की रुचि बिल्कुल नहीं थी । अकेला कमानेवाला था और सात-सात व्यक्तियों के खर्चे का बोझ था उसपर । धंधा भी हाट-बाजारों में जाकर धूप में खड़े रहकर हाथ ठेले पर दुकान लगाकर हल्दी, मिर्च मसाले और अगरबत्ती आदि जैसी छोटीमोटी वस्तुएँ बेचने का था । पूँजी के अभाव में बिचारा और करता भी क्या ? जब कोई सहानुभूति में उसकी गरीबी की बात छेड़कर उसकी दुखती नस छू लेता तो उसे शूल सा चुभ जाता था और वह अपने स्वाभिमान -

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