Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 4
________________ * हिंसा-वाणी माननीय श्री फूलचन्द्र जी गाँधी, मन्त्री शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग, हैदराबाद (दक्षिण) - सरकार - <s . अधिवेशन की सफलता के लिए शुभ कामनाएँ भेजते हैं ।" वयोवृद्ध जैन-बन्धु श्री हरबर्ट बैरिन, लन्दन "मैं अधिवेशन के साफल्य की कामना करता हूँ । ... हरेक को यह जानना चाहिए कि हिंसा ही धर्म है ।" श्री हेनरी फ्रांसिस नेटहेस (नगर), फ्रांस " श्राजकल हिंसा सिद्धान्त की शिक्षा दी जाना आवश्यक है । श्राश्चर्य जनक बाहुबलि मूर्ति की साया फ्रान्स पर ऐसी पड़े कि वह सब जीवों से प्रेम करना सीखे । श्रापका प्रायोजन सफल हो ।” श्री लोथर वेण्डेल, जरमनी " श्राज मनोविज्ञान की प्रगति में जैन धर्म की अहिंसा सक्रिय भाग ले, यही कामना है । कान्फ्रेन्स की सफलता के लिए भी शुभ कामनायें लीजिए ।” श्री डेविड वुड, गोल्ड कोस्ट, पश्चिमी अफ्रीका - 1 "राग द्वेष, युद्ध-विशेह से मानव जरजरित है । उसे सुख-शान्ति की कुँजी चाहिए। वह कुंजी जैनधर्म का हिंसा सिद्धान्त है । उसका प्रचार कीजिए ! सम्मेलन की सफलता चाहता हूँ ।" कवि फ्रन्क मैन्सिल, इङ्गलैंड ""पूज्य तीर्थंकरों का आदर्श हम सबको उत्साहित करे और सुख-शान्ति का प्रसार करने को हमारा सद्प्रयास सफल हो । " डॉ० एम० हफीज सैय्यद, एम० ए०, डी० लिट्, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग pas "मैं जैन सिद्धान्त की अलौकिकता, उसके न्याय शास्त्र की स्पष्टता और श्राचार-शास्त्र की व्यवहारिकता से प्रभावित हूँ। मैं मानता हूँ, जैनधर्मं निवृत्ति मार्ग की ओर ले जाने वाला धर्म है । किन्तु मुझे यह जानकर विस्मय है कि यद्यपि जैनी बन्धु सज्जन, शान्ति प्रिय और सेवाभावी हैं, परन्तु वे अपने पूर्व तत्वज्ञान और आचार शास्त्र की महत्ता का गौरव अनुभव नहीं करते । वे रुपया कमाने में ऐसे लगे हैं कि अपने अलौकिक सिद्धान्त के सौंदर्य को समझने के लिए उनको अवकाश नहीं है । आज लोक को इस सिद्धान्त की अतीव आवश्यकता है। धनवान जैनों का कर्तव्य है कि जैन सिद्धान्त के प्रचार के लिए पर्याप्त धन प्रदान करें । एक 1

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