Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ भागमोद्धारक कृति सन्दोहे अस्यूतः कञ्चुककः, स्तनौ यथाऽनुद्धत्तौ समावृणुते / - उपकक्षिका तु समचतुरस्रा सार्धकरमानैव // 29 / / वक्षोदेश पृष्ठ दक्षिणपाच स्थिता समावृत्य / वामस्कन्धे बीटकप्रतिबद्धा वामपाच // 30 // तद्विपरीता वैकक्षिकाऽपि वा कञ्चुकं च पिदधाति / संवाट्यस्तु चतस्रस्तत्र द्विकरा भवेद्वसतौ / / 31 / / हस्तत्रयायते द्वे एका भिक्षाकृतेऽपरोचारे / तुर्या तु निषण्णाऽऽच्छादनी सभायां चतुर्हस्ता / 32 // स्कन्धकरणी चतुष्करविस्तरदैर्ध्या चतुष्पुटीकृत्य / स्कन्धे ध्रियते प्रावरणस्यानिलघुवनरक्षार्थम् // 33 // कुडभोर्ध्वस्कन्धाधः पृष्ठ संवर्तिता वसनबद्धा / क्रियते कुब्जकरिण्यप्येषैव सुरूपसाध्वीनाम् // 34 // अर्धारुकाश्च कयोः पट्टऽपि च दरिकाश्चरणिकायाम् / पट चोपकक्षिकायां, सर्वेऽष्टाविंशतिर्दवरकाः स्युः / एतद्वन्धविशेषाश्चतुर्दशग्रन्थयोऽभिहिताः // 36 // आवश्यके व तुर्ये, विहिते तिमिरे रविप्रभोपहते / उत्कटिकासनसंस्थो, मौनी प्रेक्षेत मुखवसनम् // 37 // आभ्यन्तरिकी पूर्व प्रेक्ष्य निषद्यां प्रगे ततो वाद्याम् / अपराहणे विपरीत, प्रेक्षत रजोहरणदशिकाः // 38 // P.P. Ac. Gunratnasuri M. Gun Aaradhak Trust ned by CamScanner

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