Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 06
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ अमय-दिनचर्या कल्पेन येन मिधा, चैत्यगमनं च ततस्तदन्यानि / __अर्याणि नैव कुर्याद् द्वो स्त्रमयो ततो मणितो / / 19 / / ध्यानार्थमनलसेवा-तृणग्रहणवारणार्थमुपकारि / / __ ग्लानाय कल्पग्रहणं, मृतस्य परिधापनार्थं च // 20 // ऊर्मामये च कल्पे, बहिष्कृते शीतरक्षणं भवति / यूका-पनकावश्यायरक्षणं भूषणत्यागः // 21 // साधों करोतु दैर्येऽष्टाविंशत्य गुलानि विस्तारे / , उत्तरपटसंस्तरको, विनोत्तरपटं तु दोषः स्यात् / / 22 / / साळ्याः पुनरुपकरणान्यवग्रहानन्तकं तथा पट्टः / अर्घोरुम्वरणिका, तदुपरि चान्तर्निवसनी स्यात् / / 23 / / पष्ठं बहिर्निवसनी, कञ्चुक उपकक्षिकाऽष्टमं कथितम् / __ वैकश्चिका च नवम, संघाटी स्कन्धकरणी च // 24 // तत्रावग्रहवसनं, नौसंस्थानं वराङ्गरक्षार्थम् / एकं प्रमाणतस्तद् , घनमसृणं देहमाश्रित्य / 25 / / पट्टोऽपि भवेदेको, भजनीयो निजशरीरमानेन / ' छादयति गुह्यवसनं, प्रतिबद्धो मल्लकक्षेव // 26 // अद्धारुकोऽपि ते द्वे, गृह्णानश्छादयेत्कटीदेशम् / .... जानुप्रमाण चरणिकाऽपि लसिकाया इवास्यूता // 27 // निजजवाद्वयसी लीनेतरान्तर्गता निवसनी स्यात् / .. बाया त्वात्मप्रमाणा, दवरकबद्धा कटीदेशे // 28 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.Se in Gun Aaradhak Trust ned by CamScanner

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