Book Title: Agam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' सूत्र-४२-४५ अन्तिम पोरिसी में आचार्य ने कहा कि तुम्हें अमुक जगह जाना चाहिए । ओघ आशय से मात्रक लाने के लिए कहा उसके लिए ग्रन्थि दी कि तुम्हें भय न हो । यहाँ उसको अपने गण की परीक्षा लेनी थी इसलिए सभी को बुलाया । मुझे कुछ गमन कार्य है । कौन जाएगा ? सभी जाने के लिए तैयार हुए तब आचार्य ने कहा कोई यह समर्थ है इसके लिए उसे जाना चाहिए तब साधु ने कहा कि आपने मुझ पर अनुग्रह किया। उस कार्य के लिए साधु को जल्दी जाना हो तो स्वाध्याय करके या बिना किए सोते समय आचार्य को बोले कि आपने बताए हए काम के लिए मैं सुबह को जाऊंगा, ऐसा न बोले तो दोष लगे । पूछे तो शायद आचार्य को स्मरण हो कि मुझे तो दूसरा काम बताना था या जिसके लिए भेजना या वो साधु आदि तो कहीं गए हैं । या संघाटक कहकर जाए कि यह साधु तो गच्छ छोड़कर चला जाएगा । तब आचार्य समयोचित्त विनती करे । सुबह में जानेवाले साधु गुरु वंदन के लिए पाँव को छूए और आचार्य जगे या ध्यान में हो तो ध्यान पूरा हो तब कहे कि आपने बताए हुए काम के लिए मैं जाता हूँ। सूत्र-४६-४८ अनुज्ञा प्राप्त साधु विहार करे तब नीकलते समय अंधेरा हो तो उजाला हो तब तक दूसरा साधु साथ में जाए । मल-मूत्र की शंका हो तो गाँव के नजदीक शंका के समय यदि शर्दी, चोर, कुत्ते, शेर आदि का भय हो, नगर के द्वार बन्द हो, अनजान रास्ता हो तो सुबह तक इन्तजार करे । यदि जानेवाले साधु को भोजन करके जाना हो तो गीतार्थ साधु संखडी या स्थापना कुल में से उचित दूध के सिवा घी आदि आहार लाकर दे । उसे खा ले । यदि वसति में न खाना हो तो साथ में लेकर विहार करे और दो कोश में खा ले। सूत्र- ४९ ___गाँव की हद पूरी होती हो रजोहरण से पाँव की प्रमार्जना करे । पाँव प्रमार्जन करते समय वहाँ रहे किसी गृहस्थ चल रहा हो, अन्य कार्य में चित्तवाला हो, साधु की ओर नजर न हो तो पाँव प्रमार्जन करे, यदि वो गृहस्थ देख रहा हो तो पाँव प्रमार्जन न करे, निषद्या-आसन से प्रमार्जन करे । सूत्र-५०-५७ पुरुष-स्त्री-नपुंसक इन तीनों के बुढ़े मध्यम और युवान ऐसे तीन भेद हैं । उसमें दो साधर्मिक या दो गृहस्थ को रास्ता पूछे । तीसरा खुद तय करे । साधर्मिक या अन्यधर्मी मध्यम वय को प्रीतिपूर्वक रास्ता पूछे । दूसरों को पूछने में कईं दोष की संभावना है । जैसे कि - वृद्ध नहीं जानते । बच्चे प्रपंच से झूठा रास्ता दिखाए, मध्यम वयस्क स्त्री या नपुंसक को पूछने से शक हो कि 'साधु' इनके साथ क्या बात कर रहे हैं ? वृद्ध-नपुंसक या स्त्री, बच्चे-नपुंसक या स्त्री चारो मार्ग से अनजान हो ऐसा हो सकता है । पास में रहनेवालेको पास जाकर रास्ता पूछे । कुछ पगले उनके पीछे जाकर पूछे और यदि चूप रहे तो रास्ता न पूछे । रास्ते में नजदीक रहे गोपाल आदि को पूछे लेकिन दूर हो उसे न पूछे । क्योंकि उस प्रकार से पूछने से शक आदि दोष एवं विराधना का दोष लगे । यदि मध्यम वयस्क पुरुष न हो तो दृढ़ स्मृतिवाले वृद्ध को और वो न हो तो भद्रिक तरुण को रास्ता पूछे ? उस प्रकार से क्रमश: प्राप्त स्त्री वर्ग को नपुंसक को स्थिति अनुसार पूछे । ऐसे कईं भेद हैं । सूत्र-५८-६२ रास्ते में छ काय की जयणा के लिए कहते हैं-पृथ्वीकाय तीन भेद से है। सचित्त, अचित्त और मिश्र, इन तीनों के भी - काला-नीला आदि वर्ण भेद से पाँच-पाँच पेटा पद, उसमें अचित्त पृथ्वी में विचरण करना । अचित्त पृथ्वी में भी गीली और सूखी दोनों हो तो गीले में जाने से विराधना होती है। श्रम लगना और गंदकी चिपकती है। सूखे में भी मिट्टीवाला और मिट्टी रहित मार्ग होता है । मिट्टीवाले मार्ग में दोष लगे उसके लिए मिट्टी रहित मार्ग में जाना चाहिए । गीला मार्ग भी तीन प्रकार से है । 'मधुसिक्थ' - पाँव का तलवा तक दलदल पिंडक' पाँव में भोजे पहने हो उतना दलदल और चिक्खिल्ल' गरक जाए उतना कीचड़ और फिर सूखे रास्ते में भी 'प्रत्यपाय'' नाम मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 8Page Navigation
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