Book Title: Agam 41 1  Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 33
________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' आदि की गवेषणा करनी चाहिए । दोषित आहार पानी आदि का त्याग करना चाहिए । क्योंकि निर्दोष आहार आदि के ग्रहण से संसार का शीघ्र अन्त होता है। सूत्र - ७२४-७२८ ग्रहण एषणा चार प्रकार से - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। द्रव्य ग्रहण एषणा एक जंगल में कुछ बंदर रहते थे । एक दिन गर्मी में उस जंगल के फल, पान आदि सूखे हुए देखकर बड़े बंदरने सोचा कि, दूसरे जंगल में जाए । दूसरे अच्छे जंगल की जाँच करने के लिए अलग-अलग दिशा में कुछ बंदरों को भेजा । वो बंदर जाँच करके आए फिर एक सुन्दर जंगल में सभी बंदर गए । उस जंगल में एक बड़ा द्रह था । यह देखकर सभी बंदर खुश हो गए । बड़े बंदर ने उस द्रह की चारों और जाँच की, तो उस द्रह में जाने के पाँव के निशान थे, लेकिन आने के पाँव के निशान दिखते न थे । इसलिए बड़े बंदर ने सभी बंदरों को इकट्ठा करके कहा कि, इस द्रह से सावध रहना, किनारे पर या उसमें जाकर पानी मत पीना लेकिन पोली नली के द्वारा पानी पीना । जीन बंदर ने बड़े बंदर के कहने के अनुसार किया वो सुखी हुए और जो द्रह में जाकर पानी पीने लगे वो मर गए । इस प्रकार आचार्य भगवंत महोत्सव आदि में आधाकर्मी उद्देशिक आदि दोषवाले आहार आदि का त्याग करवाते हैं और शुद्ध आहार ग्रहण करवाते हैं । जो साधु आचार्य भगवंत के कहने के अनुसार व्यवहार करते हैं वो थोड़े ही समय में सारे कर्मों का हैं । जो आचार्य भगवंत के वचन के अनुसार नहीं रहते वो कईं भव में जन्म, जरा, मरण के दुःख पाते हैं सूत्र- ७२९-७८२ भावग्रहण एषणा के ११ द्वार बताए हैं-स्थान, दायक, गमन, ग्रहण, आगमन, प्राप्त, वशवृत, पतित, गुरुक, त्रिविध भाव । स्थान तीन प्रकार के - १. आत्म-उपघातिक, २. प्रवचन उपघातिक, ३. संयम उपघातिक । आत्म उपघातिक स्थान – गाय, भैंस आदि जहाँ हो, वहीं खड़े रहकर भिक्षा ग्रहण करने में वो गाय, भैंस आदि शींग या लात मारे, तो गिर जाए, लगे या पात्र तूट जाए । इससे छ काय जीव की विराधना हो इसलिए ऐसी जगह एवं जहाँ जीर्ण दीवार, काँटा, बील आदि हो वहाँ भी खड़े रहकर भिक्षा ग्रहण न करनी । प्रवचन उपघातिक स्थान - ठल्ला मात्रा के स्थान, गृहस्थ को स्नान करने के स्थान, खाल आदि अशुचिवाले स्थान ऐसे स्थान पर खड़े रहकर भिक्षा ग्रहण करने से प्रवचन की हीलना होती है इसलिए ऐसे स्थान पर खडे रहकर भिक्षा ग्रहण नहीं करना। दायक - आँठ साल से कम उम्र का बच्चा, नौकर, वृद्ध, नपुंसक, मत्त, पागल, क्रोधीत, भूत आदि के वळगणवाला, बिना हाथ के, बिना पाँव के, अंधा, बेड़ीवाला, कोढ़वाला, गर्भवाली स्त्री, खंडन करती, चक्की में पीसती, रूई बनाती आदि से भिक्षा ग्रहण नहीं करना । अपवाद में कोई दोष न हो तो उपयोगपूर्वक भिक्षा ग्रहण करे । गमन -भिक्षा देनेवाला, भिक्षा लेने के लिए भीतर जाए तो उस पर नीचे की जमीं और आसपास भी न देखे यदि वो जाते हुए पृथ्वी, पानी, अग्नि आदि का संघट्टो करते हो तो भिक्षा ग्रहण न करे । क्योंकि ऐसी भिक्षा ग्रहण करने में संयमविराधना हो या देनेवाले को भीतर जाते शायद साँप इँस ले, तो गृहस्थ आदि का मिथ्यात्व हो। ग्रहण - छोटा-नीचा द्वार हो, जहाँ अच्छी प्रकार से देख न सकते हो, अलमारी बन्द हो, दरवज्जा बंध हो, कईं लोग आते-जाते हो, गाड़ा आदि पड़े हो, वहाँ भिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए । यदि अच्छी प्रकार से उपयोग रह सके ऐसा हो तो भिक्षा ग्रहण करनी चाहिए । आगमन - भिक्षा लेकर आनेवाले गृहस्थ पृथ्वी आदि की विराधना करते हुए आ रहा हो तो भिक्षा ग्रहण नहीं करना। प्राप्त -देनेवाले का हाथ कच्चे पानीवाला है कि नहीं? वो देखना चाहिए । आहार आदि संसक्त है क्या ? वो देखे । भाजन गीला है क्या ? वो देखे । कच्चा पानी संसक्त या गीला हो तो भिक्षा ग्रहण नहीं करना। परावर्त -आहार पात्रमें ग्रहण करने के बाद जाँचे । योगवाला पिंड़ है या स्वाभाविक वो देखे । यदि योगवाला या बनावटी मिलावट आदि लगे तो तोड़कर देखे । न देखे तो शायद उसमें झहर मिलाया हो या कुछ कामण किया हो, या सुवर्ण आदि डाला हो, काँटा आदि हो तो संयमविराधना और आत्मविराधना होती है मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 33

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