Book Title: Agam 41 1  Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' का उद्धार - आत्मशुद्धि न करने से होता है । शस्त्र आदि के दुःख से ज्यादा से ज्यादा तो एक भव की ही मौत हो, जब कि आत्मशुद्धि नहीं करने से दुर्लभ - बोधिपन और अनन्त संसारीपन यह दो भयानक नुकसान होते हैं । इसलिए साधु ने सर्व अकार्य पाप की आलोचना करके आत्मशुद्धि करनी चाहिए । गारव रहितपन से आलोचना करने से मुनि भवसंसार समान लता की जड़ का छेदन कर देते हैं, एवं मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यादर्शन शल्य को दूर करते हैं । जिस प्रकार मजदूर को सिर पर रखे हुए बोझ को नीचे रखने से अच्छा लगता है, उसी प्रकार साधु गुरु के पास शल्य रहित पाप की आलोचना, निंदा, गर्दा करने से कर्मरूपी बोझ हलका होता है । सभी शल्य से शुद्ध बना साधु भक्त प्रत्याख्यान अनशन में काफी उपयोगवाला होकर मरणांतिक आराधना करते हुए राधा वेध की साधना करता है। इसलिए समाधिपूर्वक काल करके अपने उत्तमार्थ की साधना कर सकता है। सूत्र - ११६२ आराधना मेंजुडा साधु अच्छी साधना करके, समाधिपूर्वक काल करे तो तीसरे भव में निश्चय मोक्ष पाता है सूत्र - ११६३ संयम की वृद्धि के लिए धीर पुरुष ने यह सामाचारी बताई है। चरणकरण में आयुक्त साधु, इस प्रकार सामाचारी का पालन करते हुए कईं भव में बाँधे हुए अनन्ता कर्म को खपाते हैं। ४१/१ मुनि दीपरत्नसागर कृत् ओघनियुक्ति-मूलसूत्र-२/१-हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 47

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48