Book Title: Agam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' कोढ़ की बीमारी। उपर के अनुसार दोष न हो उसके लिए हो सके तब तक सुबह में जाए । उपाश्रय न मिले तो शून्यगृह, देवकुलिका या फिर उद्यान में रहे । शून्यगृह आदि में गृहस्थ आते हों तो बीच में परदा करके रहे।
कोष्ठक गाय-भेंस आदि को रखने की जगह या गौशाल सभा आदि मिला हो तो वहाँ कालभूमि देखकर वहाँ काल ग्रहण करे और ठल्ला मात्रा की जगह देखकर आए । अपवादे - विकाले प्रवेश करे । शायद आने में रात हो जाए तो रात को भी प्रवेश करे । रास्ते में पहरेदार आदि मिले तो कहे कि, 'हम साधु हैं, चोर नहीं ।' वसति में प्रवेश करने से यदि वो शून्यगृह हो तो वृषभ साधु दंड ऊपर से नीचे मारे, शायद भीतर सर्प आदि हो तो चले जाए या दूसरा कुछ भीतर हो तो पता चले । उसके बाद गच्छ प्रवेश करे । आचार्य के लिए तीन संथारा भूमि रखे । एक पवनवाली, दूसरी पवन रहित और तीसरी संथारा के लिए । वसति बड़ी हो तो दूसरे साधु के लिए दूर-दूर संथारा करना, जिससे गृहस्थ के लिए जगह न रहे । वसति छोटी हो तो पंक्ति के अनुसार संथारा करके बीच में पात्रा आदि रखे । स्थविर साधु दूसरे साधुओं को संथारा की जगह बाँट दे । यदि आने में रात हो गई हो तो कालग्रहण न करे, लेकिन नियुक्ति संग्रहणी आदि गाथा धीरे स्वर से गिने | पहली पोरिसी करके गुरु के पास जाकर तीन बार सामायिक के पाठ उच्चारण पूर्वक संथारा पोरिसी पढ़ाए । लेकिन मात्रा आदि की शंका टालकर संथारा पर उत्तरपटो रखकर, पूरा शरीर पडिलेहकर गुरु महाराज के पास संथारा की आज्ञा माँगे, हाथ का तकिया बनाकर, पाँव ऊपर करके सोए । पाँव ऊपर न रख सके तो पाँव संथारा पर रखकर सो जाए । पाँव लम्बे-टँके करने से या बगल बदलते कायप्रमार्जन करे । रात को मात्रा आदि के कारण से उठे तो, उठकर पहले द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का उपयोग करे । द्रव्य से मैं कौन हूँ ? दीक्षित हूँ या अदीक्षित ? क्षेत्र से नीचा हूँ या मजले पर ? काल से रात है या दिन ? भाव से कायिकादि की शंका है कि क्या ? आँख में नींद हो तो श्वासोच्छ्वास में तकलीफ उत्पन्न हो, नींद उड़ जाए इसलिए संथारा में खड़े होकर प्रमार्जना करते हुए दरवज्जे के पास आए । बाहर चोर आदि का भय हो तो एक साधु को उठाए, एक साधु द्वार के पास खड़ा रहे और खुद कायिकादि शंका टालकर आए । कूत्ते आदि जानवर का भय हो तो दो साधु को जगाए, एक साधु दरवज्जे के पास खड़ा रहे, खुद कायिकादि वोसिरावे, तीसरा रक्षा करे । फिर वापस आकर इरियावही करके खुद सूक्ष्म आनप्राण लब्धि हो तो चौदह पूर्व याद करे । लब्धियुक्त न हो तो कम होते-होते स्वाध्याय करते हुए यावत् अन्त में जघन्य से तीन गाथा गिनकर वापस सो जाए । इस प्रकार विधि करने से निद्रा के प्रमाद का दोष दूर हो जाता है।
उत्सर्ग से शरीर पर वस्त्र ओढ़े बिना सोए । ठंड़ आदि लग रहा हो तो एक, दो या तीन कपड़े ओढ़ ले उससे भी ठंड़ दूर न हो तो बाहर जाकर काऊसग्ग करे, फिर भीतर आए, फिर भी ठंड़ लग रही हो तो सभी कपडे उतार दे । फिर एक-एक वस्त्र ओढ़े। इसके लिए गधे का दृष्टांत जानना । अपवाद से जैसे समाधि रहे ऐसा करना। सूत्र- ३१९-३३१
संज्ञी-इस प्रकार विहार करते-करते बीच में कोई गाँव आए । वो गाँव साधु के विहारवाला हो या विहार बगैर हो उसमें साधु के घर भी हो या न भी हो । यदि वो गाँव संविज्ञ साधु के विहारवाला हो तो गाँव में प्रवेश करे । पार्श्वस्थ आदि का हो तो प्रवेश न करे । जिनचैत्य हो तो दर्शन करने जाए । गाँव में सांभोगिक साधु हो तो उसके लिए आनेवाले लोगों के लिए जबरदस्ती करे तो वहाँ रहे एक साधु के साथ नए आए हुए साधु को भेजे । उपाश्रय छोटा हो तो नए आए हुए साधु दूसरे स्थान में ठहरे, वहाँ गाँव में रहे साधु उनको गोचरी लाकर दे । सांभोगिक साधु न हो तो आए हए साधु गोचरी लाकर आचार्य आदि को प्रायोग्य देकर दूसरों का दूसरे उपयोग करे।। सूत्र- ३३२-३३६
साधर्मिक - आहार आदि का काम पूरा करके और ठल्ला मात्र की शंका टालकर शाम के समय साधर्मिक साधु के पास जाए, क्योंकि शाम को जाने से वहाँ रहे साधु को भिक्षा आदि काम के लिए आकुलपन न हो । साधु को आते देखकर वहाँ रहे साधु खड़े हो जाए और सामने जाकर दंड-पात्रादि ले ले । वो न दे तो खींच ले। ऐसा करते हुए शायद पात्र नष्ट हो । जिस गाँव में रहे हैं वो गाँव छोटा हो तो, भिक्षा मिल सके ऐसा न हो और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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