Book Title: Agam 41 1  Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 29
________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' स्त्रियों की प्रकार धोके मारकर न धोना, लेकिन जयणापूर्वक दो हाथ से मसलकर काप नीकालना | काप नीकालने के बाद कपड़े छाँव में सूखाना लेकिन गर्मी में न सूखाना । एक बार काँप नीकालने का एक कल्याणक प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-५७५-५७८ अग्निकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - ईंट के नीभाड़े के बीच का हिस्सा एवं बिजली आदि का अग्नि । व्यवहार से सचित्त - अंगारे आदि का अग्नि । मिश्र - तणखा । मुर्मुरादि का अग्नि । अचित्त अग्नि - चावल, कूर, सब्जी, ओसामण, ऊंबाला हुआ पानी आदि अग्नि से परिपक्व । अचित्त अग्निकाय का इस्तमाल - ईंट के टुकड़े, भस्म आदि का इस्तमाल होता है, एवं आहार पानी आदि में उपयोग किया जाता है। अग्निकाय के शरीर दो प्रकार के होते हैं । बद्धेलक और मुक्केलक। बद्धेलक- यानि अग्नि के साथ सम्बन्धित । मुक्केलक - अग्नि रूप बनकर अलग हो गए हो ऐसे आहार आदि । उसका उपयोग उपभोग में किया जाता है। सूत्र - ५७९ वायुकायपिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त रत्नप्रभादि पृथ्वी के नीचे वलयाकार रहा घनवात, तनुवात, काफी शर्दी में जो पवन लगे वो काफी दुर्दिन में लगनेवाला वायु आदि । व्यवहार से सचित्त - पूरब आदि दिशा का पवन काफी शर्दी और अति दुर्दिन रहित लगनेवाला पवन । मिश्र- दति आदि में भरा पवन कुछ समय के बाद मिश्र, अचित्त - पाँच प्रकार से आक्रान्त - दलदल आदि दबाने से नीकलता हुआ पवन | धंत-मसक आदि का वायु । पीलात धमण आदि का वायु । देह अनुगत-श्वासोच्छ्वास-शरीर में रहा वायु । समुर्छिम-पंखे आदि का वायु । मिश्र वायु-कुछ समय के बाद मिश्र फिर सचित्त, अचित्त वायुकाय का उपयोग भरी हुई मशक तैरने में उपयोग की जाती है एवं ग्लान आदि के उपयोग में ली जाती है । अचित्त वायु भरी मशक, क्षेत्र से सो हाथ तक तैरते समय अचित्त । दूसरे सौ हाथ तक यानि एक सौ एक हाथ से दो सौ हाथ तक मिश्र, दो सौ हाथ के बाद वायु सचित्त हो जाता है। सूत्र-५८०-५८१ वनस्पतिकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय और व्यवहार से । निश्चय से सचित्त - अनन्तकाय वनस्पति । व्यवहार से सचित्त - प्रत्येक वनस्पति । मिश्र - मुझाये हुए फल, पत्र, पुष्प आदि बिना साफ किया आँटा, खंड़ित की हुई डांगर आदि । अचित्त - शस्त्र आदि से परिणत वनस्पति, अचित्त वनस्पति का उपयोग - संथारो, कपड़े, औषध आदि में उपयोग होता है। सूत्र-५८२-५८७ दो इन्द्रियपिंड़, तेइन्द्रियपिंड़, चऊरिन्द्रियपिंड़ यह सभी एक साथ अपने-अपने समूह समान हो तब पिंड़ कहलाते हैं । वो भी सचित्त, मिश्र और अचित्त तीन प्रकार से होते हैं । बेइन्द्रिय-चंदनक, शंख, छीप आदि औषध आदि कार्य में । तेइन्द्रिय - उधेही की मिट्टी आदि । चऊरिन्द्रिय - देह सेहत के लिए उल्टी आदि काम में मक्खी की अघार आदि । पंचेन्द्रिय पिंड - चार प्रकार से नारकी, तिर्यंच, मानव, देवता । नारकी का - व्यवहार किसी भी प्रकार नहीं हो सकता । तिर्यंच - पंचेन्द्रिय का उपयोग - चमड़ा, हड्डीयाँ, बाल, दाँत, नाखून, रोम, शींग, विष्टा, मूत्र आदि का अवसर पर उपयोग किया जाता है । एवं वस्त्र, दूध, दही, घी आदि का उपयोग किया जाता है । मानव का उपयोग - सचित्त मानव का उपयोग दीक्षा देने में एवं मार्ग पूछने के लिए होता है । अचित्त मानव की खोपरी लिबास परिवर्तन आदि करने के लिए और घिसकर उपद्रव शान्त करने के लिए मिश्र मानव का उपयोग । रास्ता आदि पूछने के लिए एवं शुभाशुभ पूछने के लिए या संघ सम्बन्धी किसी कार्य के लिए देव का उपयोग करे । इस प्रकार सचित्त - अचित्त - मिश्र । नौ प्रकार के पिंड की हकीकत हई। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 29

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