Book Title: Agam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' पिंड की एषणा तीन प्रकार से- १. गवेषणा, २. ग्रहण एषणा, ३. ग्रास एषणा।
पिंड चार प्रकार से - नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव । नाम और स्थापना का अर्थ सुगम है, द्रव्य पिंड तीन प्रकार से - सचित्त, अचित्त और मिश्र, उसमें अचित्त पिंड दश प्रकार से -
१. पृथ्वीकाय पिंड़, २. अप्काय पिंड़, ३. तेजस्काय पिंड़, ४. वायुकाय पिंड़, ५. वनस्पतिकाय पिंड़, ६. बेइन्द्रिय पिंड़, ७. तेइन्द्रिय पिंड़, ८. चऊरिन्द्रिय पिंड़, ९. पंचेन्द्रिय पिंड़ और १०. पात्र के लिए लेप पिंड़ । सचित्त पिंड और मिश्र पिंड-लेप पिंड के अलावा नौ-नौ प्रकार से । पृथ्वीकाय से पंचेन्द्रिय तक पिंड़ तीन प्रकार से। सचित्त जीववाला, मिश्र जीवसहित और जीवरहित, अचित्त जीव रहित । सूत्र - ५५४-५५९
पृथ्वीकाय पिंड-सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से सचित्त और व्यवहार से सचित्त, निश्चय से सचित्त, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि व्यवहार से सचित्त । जहाँ गोमय - गोबर आदि न पड़े हो सूर्य की गर्मी या मानव आदि का आना-जाना न हो ऐसा जंगल आदि । मिश्र पृथ्वीकाय-क्षीरवृक्ष, वड़, उदुम्बर आदि पेड़ के नीचे का हिस्सा, यानि पेड़ के नीचे छाँववाला बैठने का हिस्सा मिश्र पृथ्वीकाय होता है । हल से खेड़ी हुई जमी आर्द्र हो तब तक गीली मिट्टी एक, दो, तीन प्रहर तक मिश्र होती है । ईंधण ज्यादा हो पृथ्वी कम हो तो एक प्रहर तक मिश्र । ईंधन कम हो पृथ्वी ज्यादा हो तो तीन प्रहर तक मिश्र दोनों समान हो तो दो प्रहर तक मिश्र । अचित्त पृथ्वीकाय - शीतशस्त्र, उष्णशस्त्र, तेल, क्षार, बकरी की लींडी, अग्नि, लवण, कांजी, घी आदि से वध की हुई पथ्वी अचित्त होती है। अचित्त पथ्वीकाय का उपयोग - लता स्फोट से हए दाह के शमन के लिए शेक करने लिए, सर्पदंश पर शेक आदि करने के लिए अचत्त नमक का और बीमारी आदि में और काऊस्सग्ग करने के लिए, बैठने में, उठने में, चलने में आदि काम में उसका उपयोग होता है। सूत्र-५६०-५७४
अपकाय पिंड़ - सचित्त, मिश्र, अचित्त । सचित्त दो प्रकार से - निश्चय से और व्यवहार से, निश्चय से सचित्त - घनोदधि आदि करा. दह सागर के बीच का हिस्सा आदि का पानी । व्यवहार से सचित्त - बारिस आदि का पानी । मिश्र अप्काय - अच्छी प्रकार न ऊबाला हुआ पानी जब तक तीन ऊंबाल न आए तब तक मिश्र, बारिस का पानी पहली बार भूमि पर गिरने से मिश्र होता है । अचित्त अप्काय - तीन ऊंबाल आया हआ पानी पहली बार भूमि पर गिरने से मिश्र होता है। अचित्त अपकाय-तीन ऊंबाल आया हआ पानी एवं दूसरे शस्त्र आदि से वध किया गया पानी, चावल का धोवाण आदि अचित्त हो जाता है । अचित्त अप्काय का उपयोग - शेक करना । तुषा छिपाना । हाथ, पाँव, वस्त्र, पात्र आदि धोने आदि में उपयोग होता है । वर्षा की शुरूआत में वस्त्र का काप नीकालना चाहिए । उसके अलावा शर्दी और गर्मी में वस्त्र का लेप नीकाले तो बकुश चारित्रवाला, विभूषणशील और उससे ब्रह्मचर्य का विनाश होता है । लोगों को शक होता है कि, उजले वस्त्र ओढ़ते हैं, इसलिए यकीनन कामी होंगे । कपड़े धोने में संपातित जीव एवं वायुकाय जीव की विराधना हो । (शंका) यदि वस्त्र का काप नीकालने में दोष रहे हैं तो फिर वस्त्र का काप ही क्यों नीकाले ? वर्षाकाल के पहले काप नीकालना चाहिए न नीकाले तो दोष । कपड़े मैले होने से भारी बने । लील, फूग बने, आदि पड़े, मैले कपड़े ओढ़ने से अजीर्ण आदि हो उससे बीमारी आए । इसलिए बारिस की मौसम की शुरूआत हो उसके पंद्रह दिन के पहले कपड़ों का काप नीकालना चाहिए । पानी ज्यादा न हो तो अन्त में झोली पड़ला का अवश्य काप नीकालना चाहिए, जिससे गृहस्थ में जुगुप्सा न हो । (शंका) तो क्या सब का बार महिने के बाद काप नीकाले ? नहीं । आचार्य और ग्लान आदि के मैले वस्त्र धो डालना जिससे नींदा या ग्लान आदि को अजीर्ण आदि न हो । कपड़ों का काप किस प्रकार नीकाले ? कपड़े में जूं आदि की परीक्षा करने के बाद । नँ आदि हो तो उसे जयणापूर्वक दूर करके फिर काप नीकालना । सबसे पहले गुरु की उपधि, फिर अनशन किए साधु की उपधि, फिर ग्लान की उपधि, फिर नव दीक्षित साधु की उपधि, उसके बाद अपनी उपधि का काप नीकालना । धोबी की प्रकार कपड़े पटककर न धोना,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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