Book Title: Agam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' यहाँ दृष्टांत है
एक राजा नीकला । सिपाई को कहा कि, अमुक गाँव में मुकाम करेंगे । वहाँ एक आवास करवाओ । सिपाई गया और कहा कि - राजा के लिए एक आवास तैयार करवाओ । यह बात सुनकर मुखीने भी गाँववालों को कहा कि, मेरे लिए भी एक आवास बनवाओ । गाँव के लोगों ने सोचा कि, 'राजा एक दिन रहकर चले जाएंगे, मुखी हमेशा यहाँ रहेंगे, इसलिए राजा के लिए सामान्य मकान और मुखी के लिए सुन्दर महल जैसा मकान बनवाए । राजा के लिए घास के मंडप जैसा मकान बनवाया, जब मुखी के लिए खूबसूरत मकान राजा के देखने में आने से पूछा कि, "यह मकान किसका है ?'' लोगोंने कहा कि, मुखीया का । सुनते ही राजा गुस्सा हो गया और मुखीया को नीकाल देने के बाद गाँव लोगों को सज़ा की । यहाँ मुखीया की जगह आचार्य है, राजा की जगह तीर्थंकर भगवंत । गाँव लोगों की जगह साध | श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा का लोप करने से आचार्य और साध को संसार समान सजा होती है। दूसरे गाँव के लोगों ने सोचा कि- 'राजा के लिए सबसे सुन्दर महल जैसा बनाए, क्योंकि राजा के चले जाने के बाद मुखीया के काम में आएगा।' राजा आया, वो मकान देखकर खुश-खुश हो गया
और गाँव के लोगों का कर माफ किया और मुखीया की पदवी बढ़ाकर, दूसरे गाँव का भी स्वामी बनाया । इस प्रकार जो श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा के अनुसार व्यवहार करता है वो सागर पार कर लेता है । तीर्थंकर की आज्ञा में आचार्य की आज्ञा आ जाती है। सूत्र-१३७-१५४
श्रावकद्वार-ग्लान के लिए रास्ते में ठहरे, लेकिन भिक्षा के लिए विहार में विलम्ब न करना । उसके द्वारगोकुल, गाँव, संखड़ी, संज्ञी, दान, भद्रक, महानिनाद । इन सबके कारण से जाने में विलम्ब हो । गोकुल-रास्ते में जाते समय गोकुल आए तब दूध आदि का इस्तमाल करके तुरन्त चलना पडे तो रास्ते में ठल्ला आदि बने इसलिए संयम विराधना हो और शंका रोक ले तो मरण हो । इसलिए गोकुल में भिक्षा के लिए न जाना । गाँव-गाँव समृद्ध हो उसमें भिक्षा का समय न हुआ हो, इसलिए दूध आदि ग्रहण करे तो ठल्ला आदि के दोष हो ।
संखडी-समय न हो तो इन्तजार न करे उसमें स्त्री आदि के संघट्टादि दोष हो, समय होने पर आहार लाकर काफी उपयोग करे तो बीमारी आए । ठल्ला आदि हो उसमें आत्म विराधना-संयम विराधना हो । विहार में देर लगे। संज्ञी-(श्रावक) जबरदस्ती करे, गोचरी का समय न हुआ हो तो दूध आदि ग्रहण करे, उसमें ठल्ला आदि के दोष हो । दान श्रावक-घी आदि ज्यादा वहोराए, यदि उपयोग करे तो बीमारी, ठल्ला आदि के दोष हो । परठवे तो संयमविराधना । भद्रक-कोई स्वभाव से साधु को और भाववाला भद्रक हो, उसके पास जाने में देर करे, फिर वो लड्डु आदि वहोराए, वो खाए तो बीमारी ठल्ला आदि दोष हो । परठवे तो संयम विराधना । महानिनाद(वसतिवाले, प्रसिद्ध घर) वहाँ जाने के लिए गोचरी का समय न हुआ हो तो इन्तजार करे । समय होने पर ऐसे घर में जाए, वहाँ से स्निग्ध आहार मिले तो खाए, उसमें ऊपर के अनुसार दोष हो । उसी प्रकार मार्ग में अनुकूल गोकुल, गाँव, जमण, उत्सव, रिश्तेदार आदि श्रावक घरों में भिक्षा के लिए घूमने से होनेवाला गमन-विघात आदि दोष बताए, वहाँ से स्निग्ध अच्छा अच्छा लाकर ज्यादा आहार लिया हो तो नींद आए । सो जाए तो सूत्र और अर्थ का पाठ न हो सके, इससे सूत्र और अर्थ, विस्मरण हो जाए, सोए नहीं तो अजीर्ण हो, बीमारी आए।
इन सभी दोष से बचने के लिए रास्ते में आनेवाले गोकुल आदि में से छांछ, चावल ग्रहण करे । तो ऊपर के ग्लानत्वादि और आज्ञा भंग आदि दोष का त्याग माना जाता है। खुद, जिस गाँव के पास आया, उस गाँव में भिक्षा का समय न हआ हो और दूसरा गाँव दूर हो या पास ही में रहा गाँव नया बसाया हो, खा सिपाही आए हो, प्रत्यनीक हो - तो इस कारण से गाँव के बाहर भी इन्तजार करे । भिक्षा का समय होने पर ऊपर बताए गाँव गोकुल-संखडी श्रावक आदि के वहाँ जाकर दूध आदि लाकर रखकर आगे विहार करे । तपे हुए लोहे पर जैसे पानी आदि का क्षय हो जाता है उसी प्रकार साधु का रूक्ष स्वभाव होने से उनकी तासीर में घी-दूध आदि क्षीण हो जाते हैं । इसके अनुसार कारण से दोष गुण समान होते हैं । अब गाँव में जाने के बाद पता चलता है कि,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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