Book Title: Agam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 7
________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' डरपोक हो उसे सेवा के लिए न रखे । लेकिन वहाँ निर्भय को रखे । जहाँ देवता का उपद्रव हो वहाँ गोचरी के लिए न जाए । यदि ऐसे घर न मिले तो गोचरी देनेवाले के साथ नजर न मिलाए । अशिव न हो यानि निरुपद्रव स्थिति में जो अभिग्रह - तप ग्रहण किए हो उसमें वृद्धि करे | यदि सेवा करनेवाले को जाना पड़े तो अन्य समान सामाचारीवाले को वो उपद्रव युक्त साधु के पास रख के जाए । साधु न हो तो दूसरों को भी सौंपकर अन्यत्र जाए। शायद उस उपद्रववाले साधु आक्रोश करे तो समर्थ साधु वहाँ रहना चाहे तो उसे कहकर जल्द नीकल जाना। यदि न चाहे तो उस दिन रहकर समय मिलते ही छिद्र ढूँढ़कर सभी को आधे को या अन्त में एक-एक करके भी नीकले सूत्र - ३३-३४ विहार करते समय संकेत करके सभी नीकले और जहाँ इकटे हो वहाँ जो गीतार्थ को उसके पास आलोचना करे । यदि सौम्यमुखी देवता हो तो उसी क्षेत्र में उपद्रव करे इसलिए दूसरे क्षेत्र में जाना चाहिए । कालमुखी देवता हो तो चारों दिशा के दूसरे क्षेत्र में भी उपद्रव करे तो तीसरे क्षेत्र में जाना चाहिए । रक्ताक्षी देव चारों दिशा के तीसरे क्षेत्र में भी उपद्रव करे तो चौथे क्षेत्र में जाना चाहिए । यहाँ जो अशिव यानि देव उपद्रव के लिए कहा । (अशिवकारण पूरा हुआ) वो ही विधि दुर्भक्ष के लिए भी जाननी चाहिए । जैसे गाय के समूह को थोड़े से घास में तृप्ति न हो तो अलग अलग जाए ऐसे अकाल में अकेले साधु को अलग-अलग नीकल जाना चाहिए। (दुर्भिक्ष कारण पूरा हुआ ।) सूत्र- ३५-३७ राज्य की ओर से चार प्रकार से भय हो, वसति न दे, आहार पानी न दे, वस्त्र-पात्र छीन ले, मार डाले, उसमें अन्तिम दो भेद वर्तते हो तब राज्य में से नीकल जाए। यह राज्य भय के कारण बताता है कि यदि कोई साधु के लिबास में प्रवेश करके किसी को मार डाला हो, राजा साधु के दर्शन अमंगल मानता हो, कोई राजा को चड़ाए कि साधु तुम्हारा अहित करनेवाले हैं । राजा के निषेध के बावजूद भी किसी को दीक्षा दी हो । राजा के अंतःपुर में प्रवेश करके अकृत्य सेवन किया हो, किसी वादी साधुने राजा का पराभव किया हो । (इस कारण से राज्यभय पाते हुए साधु विहार करे और चारित्र या जीवित नाश का भय हो तो एकाकी बने ।) सूत्र-३८ क्षोभ से एकाकी बने । - भय या त्रास । जैसे कि उज्जैनी नगरी में चोर आकर मानव आदि का हरण कर लेते थे । किसी दिन रेंट की माला कुए में गिर पड़ी तब कोई बोला कि, 'माला पतिता'' दूसरे समझे कि 'मालवा पतिता'' मालवा के चोर आए । डर के मारे लोगोंने भागना शुरू किया । इस प्रकार से साधु भय या त्रास से अकेला हो जाए। सूत्र-३९ अनशन से एकाकी बने । अनशन गृही साधु को कोई निर्यामणा करवानेवाला न मिले या संघाटक न मिले और उसे सूत्र-अर्थ पूछना हो तो अकेला जाए । सूत्र-४० स्फिटित - रास्ते में दो मार्ग आते हैं। वहाँ गलती से मंदगति से चलने से या पर्वत आदि न चड़ सकने से फिर से आने के कारण से साधु एकाकी बने ग्लान – बिमार साधु निमित्त से औषध आदि लाने के लिए या अन्य जगह पर बिमार साधु की सेवा करनेवाला कोई न हो और जाना पडे तब एकाकी बने । सूत्र-४१ कोई अतिशय सम्पन्न जाने या नवदीक्षित को उसके परिवारजन घर ले जाने के लिए आते हैं तब संघाटक की कमी से अकेले विहार करवाए, देवता के कहने से विहार करे तब एकाकी बने जिसके लिए कलिंग में देवी के रूदन का अवसर बताया है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 7Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48