Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Author(s): Kheemvijay
Publisher: Mehta Family Trust

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Page 130
________________ F REEMPERHश्रीकल्पसूत्रम् HREFERREFHIKESHES जय जय नंदा! जय जय भद्दा! भदंते, अभग्गेहिं नाण-दसण-चरित्तेहिं अजि आइंजिणाहि इंदियाई, जिअं च पालेहि समणधम्मं, जियविग्यो वि य वसाहि तं देव! सिद्धिमज्झे, निहणाहि राग-दोसमल्ले तवेणं, धिइधणिअबद्धकच्छे मुद्दाहि अट्ठ कम्मसूत्त झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च वीरं! तेलुक्करंगमज्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलवरनाणं, गच्छं मुक्खं परं पयं जियवरोवइटेण मग्गेण अकुडिलेण हंता परीसहचमुंजय जय खत्तियवरवसहा! बहुइं दिवसाइं बहूई पक्खाई हुई मासाई बहूई उऊइं बहूई अयणाई बहूई संवच्छराइं अभीए परीसहो-वसग्गाणं, खंतिखमे भय-भेरवाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ ति कटु जयजयसदं पउंजन्ति ॥ ५।१८।११४॥ (जय जय नंदा) : समृद्धिवान्! तमे ४५ पामो ४५ ५।भो, (जय जय भद्दा!) हे प्रत्या15t२४! तमे ४५ पामो ०४५ पामो, (भदं ते) मारु ल्याए। थामी, (अभग्गेहिं नाण-दंसण-चरितेहिं अजिवाइं जिणाहि इंदियाई) ती ન શકાય એટલે વશ ન થઇ શકે એવી ઇન્દ્રિયોને અગ્નિ એટલે અતિચારહિત એવાં જ્ઞાન, દર્શન અને ચરિત્ર વડે १२ ४२), (जिअंच पालेहि समणधम्म) भने छतेला भेटले वश रेखi aiति विगेरे ६श प्रा२ना श्रमायनुतमे पालन रो, (जियविग्धो वि य वसाहि तं देव! सिद्धिमज्ञ) वजी हे प्रभु! विघ्नोने तना। तमे सिद्धिमा यसो. અહીં સિદ્ધિમાં શબ્દ વડે ‘શ્રમણધર્મને વશ કરવો’ એવો અર્થ સમજવો, એટલે લક્ષણા વડે તેના પ્રકર્ષમાં, અર્થાત્ સિદ્ધિમાં એટલે શ્રમણધર્મને વશ કરવાના પ્રકર્ષમાં તમે અંતરાય રહિત રહો. (निहणाहि राग-दोसमल्ले तवेणं) मा सने सल्यंतर त५ वडे तमे २॥ अनेद्वेष३पी भदोनो विनाश रो, (पिइधणिअबद्धकछे मद्दाहि अट्ठ कम्मसत्तु झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं) धा२५५मा अतिशय भ२ सी-अत्यंत दृढ बनी उत्तम शुलध्यान 43 06 : ३पी शत्रुमार्नु भईन रो, (अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च वीर! तेलुक्करंगमज्ञ) वणी हे वीर! अप्रमाही यात तमे एसो३पी रंगमंडपनी मध्यमा भेटले मल्लयुद्ध ४२वाना અખાડામાં આરાધના રૂપી પતાકાને ગ્રહણ કરો; અર્થાત્ જેમ કોઈ મલ્લ સામા મલ્લને જીતી જયપતાકા મેળવે છે तेम तमे ५९ भ३पी शत्रुओने ती माराधना ३पी पता भेजव्यो (पावट वितिमिरणुत्तरं केवलवरनाणं) मा१२९॥ २हित अने अनुपम मे प्रधान वशान प्रात ४२, (गच्छ य मुक्रवं परं पद्यं जिणवरोवइठेण मग्गेण अकुडिलेणहंता परीसहचमुं) महेवाहिनेिश्वरोमे प्र३पेला शान र्शन भने यारित्र३५ जुटिर मेटले सरण भार्गवडे ५शेषडोनेसेनानीने ५२५५६३५ भोक्षमा मो, (जय जय रवत्तियवरसहा!) क्षत्रियोने विर्षे उत्तम वृषम समान! तभे ४५ पाभो ४५ पामो, (बहूई दिवसाई) पहिसो सुधा (बहूपिक्रवाई) ५५ ५५वायां सुधा (बहूई मासाइं) ए। मलिना सुधी, (बहूइं उऊइ) पणे भास. अमाए। उभंती तुमओ सुधी, (बहूइं अयणाई) ७-७ भास प्रभाए। क्षिएायन में उत्तराय लक्ष घi अयनो सुधी, (बहूइं संवच्छराई) तथा १२स सुधा (अभीए परीसहो-वसग्गाणं) परीषहो भने ७५सर्गोथी निर्भय २६॥छतi (रवंतिरवमे भट-भेरवाणं) तथा वीजी, सिंह, प्रभुपना भयो भने भैरवाने क्षमापूर्व सहन २ छतi तमे ४५ पामो. (धम्मं ते अविग्धं भवउत्तिक१) संयम ३५ धर्ममा तमोने निर्विव५j थामी, मा प्रोटीने पुणना १३८ विगैरे २१४नो (जयजयसदं पउंजन्ति) જય જય શબ્દ બોલે છે. ૧૧૪. ___ तए मं समणे भगवं महावीरे नयणमाला सहस्सेहिं पिच्छिन्नमाणे, पिच्छिन्नमाणे, वयणमालासहस्सेहिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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