Book Title: Agam 34 Nisiha Chheysutt 01 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin उद्देसो-३ वा सातिजति ।४१1-41 (१५९) जे भिक्खू अप्पणो दीहाई जंघ-रोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्त या संठवेतं या सातिज्नति ।४२१-42 (१६०) जे भिक्खू अप्पणो दीहाई वत्यि-रोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेतं वा सातिजति।४।-43 (१६) जे भिक्खू अप्पणो दीह-रोमाई कप्पेल्न वा संठवेज वा कतं या संठवेंतं या सातिजति ॥४४॥44 (१६२) जे भिक्खू अप्पणो दीहई कखाण-रोमाई कप्पेज या संठवेज या कप्तं वा संठवें वा सातिजति।४५/-45 (१६३) जे भिक्खू अप्पणो दीहाई मंसु-रोमाई कप्पेन वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ।४६1-48 (१६४) जे भिक्खू अप्पणो दंते आघंसेज वा पधंसेज या आघसंतं वा या पसंतं था सातिन्जति ।४७1-47 (१६५) जे मिक्ख अप्पणो दंते उछोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं वा पधोयेंतं वा सातिजति ।४८1-48 (१६६) जे भिक्खू अप्पणो दंते फुमेज वा रएज वा फुतं वा रएतं वा सातिझति ।४९:49 (१६७) जेभिक्खूअप्पणोउट्टे आमजेज वा पमजेल वा आमअंतं वापमचंतं वा०/५०|-50 (१६८) जे भिक्खू अप्पणो उद्धे संवाहेन वा पलिमद्देन वा संवाहेंतं वा पलिसद्देतं वा सातिजति ।५१151 (१६१) जे भिक्खू अप्पणो उढे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा अअंगेज या मस्खेन वा अन्मंगेंतं वा मोतं या सातिजति |५२-53 (१७०) जे भिक्खू अप्पणो उडे लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज वा उबट्टेज वा उल्लोलेंतं वा उबढ़ेतं वा सातिजति ५३1-53 (१७१) जे भिक्खू अप्पणो उट्टे सीओदग-विपडेण या उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज वा पयोवेज वा उच्छोलेंत धा पधोवेंतं सातिजति 1५11-54 {१७२)जे भिक्खू अप्पणो उट्टे फुमेज वा एएन वा फुतं वा रएतं वा सातिञ्जति ।५५|55 (१७३) जे भिक्खू अप्पणोदीहाइं उत्तरोट्ठ-रोमाई कप्पेल्न वा संठवेज वा कप्त वा संठवेंतं या सातिञ्जति, जे भिक्खू अप्पणो दीहाई नासा-रोमाई कप्पेज वा संठवेन वा कप्तं या संठवेंतं वा सातिजति ५६1-58 (९७४) जेि भिक्खू अप्पणो दीहाई अच्छि-पत्ताई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंत वा सात्तिाति] १५७४-57 (१७५) जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि आमज्जेज वा [पमजेन या आमजंतं वा पमजंतं या सातिजति] 1५८1-58 (१७६) जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि संवाहेज वा पलिमद्देज वा संवाहेंतं वा पलिम तं वा सातिजति ।५९।-59 (१७७) जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा अभंगेज For Private And Personal Use Only

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