Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 16
________________ ଅକses s°24°es, se diss ses & 4°4444°45°4444°444°°4°4°4 किसी के अभिप्राय को समझना और समझकर उसके अनुकूल प्रयत्न करना उपक्रम है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव-इन छह द्वारों से उपक्रम की अनेक प्रकार की व्याख्याएँ की गई हैं और अन्त में प्रशस्त भावोपक्रम को उपादेय बताया है। इसके अनुसार शिष्य गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले गुरु को विनय आदि से प्रसन्न करे, उनके भाव-इंगित संकेत आदि को समझकर शास्त्र पढ़ने में प्रवृत्त हो। उपक्रम के भी आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्य, अर्थाधिकार, पाँच भेद बताकर विभिन्न प्रकारों से उपक्रम को समझाया है। दूसरे निक्षेप द्वार में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव चार निक्षेप के आधार पर तत्त्व को समझने की विधि बताई है। तीसरा द्वार है अनुगम और चौथा द्वार है नय। अनुगम के मुख्य दो भेद बताकर उसके उपभेदों का वर्णन है। इसके बाद नयद्वार में सात नयों की व्याख्या है। इस प्रकार अनुयोग द्वार सूत्र में चार द्वारों द्वारा शास्त्र का अर्थ समझने, उसकी व्याख्या करने की तर्क व युक्ति संगत शैली का वर्णन है। प्रासंगिक सामग्री : प्राचीन ग्रन्थों का उल्लेख ____ अनुयोगद्वार में चार द्वारों के वर्णन में अनेक प्रकार की रोचक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है। इसके अध्ययन से प्राचीन भारत की धार्मिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा सांस्कृतिक सामग्री विविध रूप में मिलती है। धार्मिक और दार्शनिक सामग्री में षड्द्रव्य का विचार, जीव के गुण, शरीर, शरीर की आकृतियाँ, संस्थान, जीवों की आयु आदि विविध प्रकार के विषयों की संयोजना है। ___इस सूत्र में जैनेतर साहित्य के १९ प्रसिद्ध ग्रन्थों के नाम भी हैं। (सूत्र ४९) जैसे रामायण, महाभारत, कौटिल्य, वैशेषिक दर्शन, बुद्ध वचन, लोकायत, पुराण, व्याकरण आदि। महाभारत और रामायण के पठन व वाचन के समय की परम्परा का भी उल्लेख है, किन्तु आश्चर्य है, रामायण, महाभारत का उल्लेख करने के बाद भागवत का उल्लेख कहीं नहीं है। इससे यह ध्वनित होता है कि अनुयोग द्वार सूत्र की रचना के पश्चात् भागवत की रचना हुई है। संगीत-स्वरमंडल ___ सात स्वरों का सुन्दर और ललित वर्णन इस सूत्र (सूत्र २६०) की एक अपनी विशेषता है। सामवेद में संगीत का वर्णन है। उसी प्रकार इस सूत्र में भी संगीत के स्वर उत्पत्ति स्थान आदि का विस्तृत और उपयोगी वर्णन है। वर्णन की शैली अपनी स्वतंत्र है। व्याकरण अष्ट नाम में व्याकरण की आठ विभक्तियों का तथा सात समासों का वर्णन व्याकरण शास्त्र के अभ्यासियों के लिए उपयोगी है। (सूत्र २२८-३१) (१०) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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