Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana Publisher: Padma PrakashanPage 14
________________ प्रस्तावना : स्वकीयम् राज व्यवस्था या शासन तंत्र में जो महत्त्व 'शस्त्र' का है, आत्म-शासन या अध्यात्म क्षेत्र में वही महत्त्व 'शास्त्र' का है। शस्त्र के बिना राज व्यवस्था नहीं चल सकती, शास्त्र के बिना आत्म-ज्ञान या संयम-साधना नहीं हो सकती। शरीर में जो महत्त्व आँख का है आत्म-कल्याण के लिए वही महत्त्व शास्त्र का है। इसलिए शास्त्र को आत्मा की आँख कहा गया है-सुयं तइयं चक्छु। शास्त्र का अर्थ है जो आत्मा पर, मन पर तथा इन्द्रियों पर शासन करता है या शासन करना सिखाता है। अर्थात् इन पर संयम करके अपना अधिकार या स्वामित्व स्थापित करने का उपाय बताता है वह है शास्त्र। जैसे कहा है-शासनाच्छास्त्रमिदम्-आचार्य मलयगिरि का यह कथन वास्तव में शास्त्र को आत्मा पर शासन करने वाला 'शासक' सिद्ध करता है। वीतराग सर्वज्ञ भगवान की वाणी या उपदेश को 'शास्त्र' कहा जाता है। उन शास्त्रों का स्वाध्याय, अध्ययन, पठन-श्रवण आत्मा को कल्याण के मार्ग पर प्रेरित करता है, आगे बढ़ाता है। जैन परम्परा में 'शास्त्र' के लिए ‘आगम' शब्द अधिक प्रचलित है। वर्तमान समय में जो आगम उपलब्ध हैं, उनकी गणना ४५ या ३२ आगमों के रूप में की जाती है। श्वेताम्बर मूर्ति पूजक आनाय में ४५ तथा स्थानकवासी तेरापंथी आम्नाय में ३२ आगम की मान्यता प्रचलित है। बत्तीस आगम इस प्रकार हैं-११ अंग, १२ उपांग, चार छेद, चार मूल और आवश्यक ये ३२ । प्रस्तुत अनुयोगद्वार मूल सूत्रों की गणना में आता है। चार मूल सूत्रों में उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी और अनुयोगद्वार का नाम है। जिनेश्वर भगवान ने मोक्ष के चार मार्ग बताये हैं नाणं च दंसण चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गु त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिंहिं। -उत्तराध्ययन ३० ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप मोक्ष के चार मार्ग हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार नन्दी सूत्र में ज्ञान, अनुयोद्वार में दर्शन, दशवैकालिक में चारित्र तथा उत्तराध्ययन में तप का वर्णन मुख्य रूप में है। यों तो अनुयोगद्वार में दर्शन के साथ श्रुतज्ञान तथा आवश्यक के रूप में पाँच चारित्र का वर्णन भी उपलब्ध है, किन्तु यह सब उपक्रम दर्शन की सम्यक् दर्शन के रूप में शुद्धि के लिए होने से 'दर्शन' को इसका मुख्य विषय माना है। अनुयोग का अर्थ ___ 'अनुयोग द्वार' सूत्र को समझने के लिए सर्वप्रथम 'अनुयोग' शब्द का अर्थ समझ लेना जरूरी है। ‘अनुयोग' का अर्थ है, शब्द के साथ उसके अनुकूल या उपयुक्त अर्थ का सम्बन्ध जोड़ना। अर्थ के भाषक अरिहंत भगवान होते हैं, अरिहंतों या तीर्थंकरों द्वारा कथित अर्थ या शब्द रूप शास्त्र को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 520