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स्कन्धनिरूपण
यह है कि सेना सचेतन और अचेतन इन दोनों का मिश्रण (संयोग) रूप अवस्था है। हाथी, घोड़े, मनुष्य आदि सचेतन तथा तलवार, धनुष, कवच, भाला आदि अचेतन वस्तुओं के समुदाय का नाम सेना है। इसीलिए इसे मिश्रद्रव्यस्कन्ध कहा है। . ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध का प्रकारान्तर से प्ररूपण
६५. अहवा जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—कसिणखंधे १ अकसिणखंधे २ अणेगदवियखंधे ३ ।
[६५] अथवा ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध के तीन प्रकार हैं। जैसे—१. कृत्स्नस्कन्ध, २. अकृत्स्नस्कन्ध, ३. अनेकद्रव्यस्कन्ध।
विवेचन- यहां उभयव्यतिरिक्त द्रव्यस्कन्ध के प्रकारान्तर से कृत्स्न (संपूर्ण), अकृत्स्न (अपूर्ण) और अनेक (एक से अधिक द्रव्यों का समुदाय), इन तीन भेदों के नाम बताये हैं। अब क्रम से उनका स्पष्टीकरण करते
कृत्स्नस्कन्ध
६६. से किं तं कसिणखंधे ? कसिणखंधे से चेव हयक्खंधे गयक्खंधे जाव उसभखंधे । से तं कसिणखंधे । [६६ प्र.] भगवन् ! कृत्स्नस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[६६ उ.] आयुष्मन् ! हयस्कन्ध, गजस्कन्ध यावत् वृषभस्कन्ध जो पूर्व में कहे, वही कृत्स्नस्कन्ध हैं । यही कृत्स्नस्कन्ध का स्वरूप है।
विवेचन- यहां कृत्स्नस्कन्ध का स्वरूप बतलाया गया है।
यद्यपि इस कृत्स्नस्कन्ध के उदाहरणों में भी सचित्तद्रव्यस्कन्ध के उदाहरण हयस्कन्ध आदि का उल्लेख किया है, लेकिन दोनों में अन्तर यह है कि सचित्तद्रव्यस्कन्ध में तो हय (अश्व) आदि जीवों की विवक्षा की है, उनके शरीर की नहीं और कृत्स्नस्कन्ध के प्रसंग में जीव और जीवाधिष्ठित शरीरावयव इन दोनों के समुदाय की विवक्षा है। इस तरह अभिधेय-भिन्नता से सचित्तद्रव्यस्कन्ध और कृत्स्नस्कन्ध में भेद (अन्तर) है। अर्थात् कृत्स्नस्कन्ध में जीव और जीवाधिष्ठित शरीरावयवों के समुदाय को और सचित्तद्रव्यस्कन्ध में मात्र असंख्यातप्रदेशी जीव को ग्रहण किया है। इस प्रकार उदाहरण एक होने पर भी दोनों में अन्तर है।
___ हयस्कन्ध, गजस्कन्ध आदि के आकार-प्रकार में जो छोटापन, बड़ापन है, वह पौद्गलिक प्रदेशों की अपेक्षा है, लेकिन प्रत्येक जीव असंख्यातप्रदेशी है और उस शरीर में सभी प्रदेशों के सर्वात्मना तदाकार रूप से रहने के कारण असंख्यात प्रदेश सर्वत्र तुल्य हैं, हीनाधिकता नहीं है। पुद्गल प्रदेशों में वृद्धि-हानि होने पर भी आत्मप्रदेशों में वृद्धि-हानि नहीं होती है।