________________
नामाधिकारनिरूपण
युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है । ६७
विवेचन — पूर्व की तरह इन दो गाथाओं में सोदाहरण शृंगाररस का वर्णन किया गया है। पहली गाथा में शृंगार रस की संभव चेष्टाओं का और दूसरी में उन चेष्टाओं से युक्त व्यक्ति (नायिका) को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
गाथोक्त कतिपय शब्दों की व्याख्या- - रतिसंजोगाभिलाससंजणणो रति — सुरतक्रीडा के कारणभूत ललना आदि के साथ संगम की इच्छा को उत्पन्न करने वाला। मंडण - अलंकार - आभूषणों आदि से शरीर को अलंकृत करना—सजाना । विलास कामोत्तेजक नेत्रादि की चेष्टायें । विब्बोय — विकारोत्तेजक शारीरिक प्रवृत्ति । लीला – गमनादि रूप रमणीय चेष्टा । रमण — क्रीडा करना ।
अद्भुतरस
( ४ )
विम्हयकरो अपुव्वों व भूयपुव्वो व जो रसो होइ । सो हास-विसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुतो नाम ॥ ६८ ॥ अब्भुओ रसो जहा—
अब्भुयतरमिह एत्तो अन्नं किं अत्थि जीवलोगम्मि । जं जिणवयणेणऽत्था तिकालजुत्ता वि णज्जंति ! ॥ ६९ ॥
१८७
[२६२-४] पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारी आश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्भुतरस है । हर्ष और विषाद की उत्पत्ति अद्भुतरस का लक्षण है। जैसे
इस जीवलोक में इससे अधिक अद्भुत और क्या हो सकता है कि जिनवचन द्वारा त्रिकाल सम्बन्धी समस्त पदार्थ जान लिये जाते हैं । ६८, ६९
विवेचन — अद्भुतरस का लक्षण और उदाहरण इन गाथाओं द्वारा बताया गया है।
हर्ष और विषाद की उत्पत्ति को अद्भुतरस के लक्षण बताने का कारण यह है कि आश्चर्यजनक किसी शुभ वस्तु के देखने पर हर्ष और अशुभ वस्तु को देखने पर विषाद की उत्पत्ति होती है।
रौद्ररस
(५)
भयजणणरूव-सद्दंधकारचिंता - कहासमुप्पन्नो ।
सम्मोह - संभम-विसाय - मरणलिंगो रसो रोद्दो ॥ ७० ॥ रोद्दो रसो जहा—
भिउडीविडंबियमुहा ! संदट्ठोट्ठ ! इय रुहिरमोकिण्ण ! । हणसि पसुं असुरणिभा ! भीमरसिय ! अतिरोद्द ! रोद्दोऽसि ॥ ७१ ॥
[२६२-५] भयोत्पादक रूप, शब्द अथवा अंधकार के चिन्तन, कथा, दर्शन आदि से रौद्ररस उत्पन्न होता है
और संमोह, संभ्रम, विषाद एवं मरण उसके लक्षण हैं । ७०, यथा---