Book Title: Agam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 452
________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ४०१ ५१८. उक्कोसयं जुत्ताणंतयं केत्तियं होति ? जहण्णएणं जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिता अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ, अहवा जहण्णयं अणंताणतयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ। [५१८ प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट युक्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? [५१८ उ.] आयुष्मन्! जघन्य युक्तानन्त राशि के साथ अभवसिद्धिक राशि का परस्पर अभ्यास रूप गुणाकार करके प्राप्त संख्या में से एक रूप को न्यून करने पर प्राप्त राशि उत्कृष्ट युक्तानन्त की संख्या है। अथवा एक रूप न्यून जघन्य अनन्तानन्त उत्कृष्ट युक्तानन्त है। विवेचन— यहां युक्तानन्त के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेदों का स्वरूप बताया है। सूत्रार्थ सुगम है। शास्त्रों में जहां भी अभव्य जीव राशि की अनन्तता का उल्लेख है, उसका निश्चित प्रमाण जघन्य युक्तानन्तराशि जितना समझना चाहिए। अनन्तानन्त निरूपण ५१९. जहण्णयं अणंताणतयं केत्तियं होति ? जहण्णएणं जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं अणंताणतयं होइ, अहवा उक्कोसए जुत्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं अणंताणतयं होति, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई । से तं गणणासंखा । [५१९ प्र.] भगवन् ! जघन्य अनन्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? [५१९ उ.] आयुष्मन् ! जघन्य युक्तानन्त के साथ अभवसिद्धि जीवों (जघन्य युक्तानन्त) को परस्पर अभ्यास रूप से गुणित करने पर प्राप्त पूर्ण संख्या जघन्य अनन्तानन्त का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट युक्तानन्त में एक रूप का प्रक्षेप करने से जघन्य अनन्तानन्त होता है। तत्पश्चात् (जघन्य अनन्तानन्त के बाद) सभी स्थान अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम) अनन्तानन्त के होते हैं । (क्योंकि उत्कृष्ट अनन्तानन्त राशि नहीं होती है)। इस प्रकार गणनासंख्या का निरूपण पूर्ण हुआ। विवेचन– प्रस्तुत सूत्र में अनन्तानन्त संख्या के जघन्य और मध्यम इन दो भेदों का प्रमाण बतलाया है, किन्तु उत्कृष्ट अनन्तानन्त संख्या संभव नहीं होने से उसका निरूपण नहीं किया गया है। उक्त कथन सैद्धान्तिक आचार्यों का है, लेकिन अन्य आचार्यों ने उत्कृष्ट अनन्तानन्त संख्या का भी निरूपण किया है। उनका मत हैजघन्य अनन्तानन्त का तीन बार वर्ग करके फिर उसमें निम्नलिखित छह अनन्तों का प्रक्षेप करना चाहिए सिद्धा निगोयजीवा वणस्सई काल पुग्गला चेव ।। सव्वमलोगागासं छप्पेतेऽणंतपक्खेवा ॥ अर्थात्- १. सिद्ध जीव, २. निगोद के जीव, ३. वनस्पतिकायिक, ४. तीनों कालों (भूत, वर्तमान, भविष्यत् १. यह छह क्षेपक टीका तथा त्रिलोकसार गाथा ४९ में वर्णित है।

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