Book Title: Agam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 478
________________ क्षपणा निरूपण ४२७ क्षपणा निरूपण ५८०. से किं तं झवणा ? झवणा चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा नामज्झवणा ठवणज्झवणा दव्वज्झवणा भावज्झवणा। [५८० प्र.] भगवन् ! क्षपणा का क्या स्वरूप है ? [५८० उ.] आयुष्मन् ! क्षपणा के भी चार प्रकार जानना चाहिए। यथा—१. नामक्षपणा, २. स्थापनाक्षपणा, ३. द्रव्यक्षपणा, ४. भावक्षपणा। विवेचन कर्मनिर्जरा, क्षय या अपचय को क्षपणा कहते हैं। आगे नाम आदि चारों प्रकार की क्षपणा का वर्णन करते हैं। नाम-स्थापनाक्षपणा ५८१. नाम-ठवणाओ पुव्वभणियाओ। [५८१] नाम और स्थापनाक्षपणा का वर्णन पूर्ववत् (नाम और स्थापना आवश्यक के अनुरूप) जानना चाहिए। द्रव्यक्षपणा ५८२. से किं तं दव्वझवणा ? ... दव्वझवणा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा—आगमतो य नोआगमतो य । [५८२ प्र.] भगवन् ! द्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [५८२ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यक्षपणा दो प्रकार की है। यथा—१. आगम से और २. नोआगम से। ५८३. से किं तं आगमतो दव्वज्झवणा ? आगमतो दव्वज्झवणा जस्स णं झवणेति पदं सिक्खियं ठितं जितं मितं परिजियं, सेसं जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव से तं आगमतो दव्वज्झवणा । [५८३ प्र.] भगवन् ! आगमद्रव्यक्षपणा किसे कहते हैं ? [५८३ उ.] आयुष्मन् ! जिसने 'क्षपणा' यह पद सीख लिया है, स्थिर, जित, मित और परिजित कर लिया है, इत्यादि वर्णन द्रव्याध्ययन के समान यावत् यह आगम से द्रव्यक्षपणा है तक जानना चाहिए। ५८४. से किं तं नोआगमओ दव्वज्झवणा ? .. नोआगमओ दव्वझवणा तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—जाणयसरीरदव्वज्झवणा भवियसरीरदव्वज्झवणा जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा । [५८४ प्र.] भगवन् ! नोआगमद्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [५८४ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्यक्षपणा के तीन भेद हैं। यथा—१. ज्ञायकशरीद्रव्यक्षपणा, २. भव्यशरीरद्रव्यक्षपणा, ३. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा।

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