Book Title: Agam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 474
________________ आय निरूपण ४२३ जस्स णं आए त्ति पयं सिक्खितं ठितं जाव अणुवओगो दव्वमिति कटु, जाव जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइया ते दव्वाया, जाव से तं आगमओ दव्वाए । [५६१ प्र.] भगवन् ! आगम से द्रव्य आय का क्या स्वरूप है ? [५६१ उ.] आयुष्मन्! जिसने आय यह पद सीख लिया है, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य है यावत् जितने उपयोग रहित हैं, उतने ही आगम से द्रव्य-आय हैं, यह आगम से द्रव्य-आय का स्वरूप जानना चाहिए। नोआगमद्रव्य-आय ५६२. से किं तं नोआगमओ दव्वाए ? नोआगमओ दव्वाए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—जाणयसरीरदव्वाए भवियसरीरदव्वाए जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए । [५६२ प्र.] भगवन् ! नोआगमद्रव्य-आय का क्या स्वरूप है ? [५६२ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्य-आय के तीन प्रकार हैं। यथा—१. ज्ञायकशरीरद्रव्यआय, २. भव्यशरीरद्रव्य-आय, ३. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-आय। ५६३. से किं तं जाणयसरीरदव्वाए ? जाणयसरीरदव्वाए आयपयत्थाहिकारजाणगस्स जं सरीरगं ववगय-चुत-चतिय-चत्तदेहं सेसं जहा दव्वज्झयणे, जाव से तं जाणयसरीरदव्वाए । [५६३ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्य-आय किसे कहते हैं ? [५६३ उ.] आयुष्मन्! आय पद के अधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित, त्यक्त आदि शरीर द्रव्याध्ययन की वक्तव्यता जैसा ही ज्ञायकशरीरनोआगमद्रव्य-आय का स्वरूप जानना चाहिए। ५६४. से किं तं भवियसरीरदव्वाए ? भवियसरीरदव्वाए जे जीवे जोणीजम्मणणिक्खंते सेसं तहा दव्वज्झयणे, जाव से तं भवियसरीरदव्वाए । [५६४ प्र.] भगवन्! भव्यशरीरद्रव्य-आय का क्या स्वरूप है ? [५६४ उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर योनि से निकलकर जो जन्म को प्राप्त हुआ आदि भव्यशरीरद्रव्यअध्ययन के वर्णन के समान भव्यशरीरद्रव्य-आय का स्वरूप जानना चाहिए। ५६५. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए ? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—लोइए कुप्पावयणिए लोगुत्तरिए । [५६५ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्य आय किसे कहते हैं ? [५६५ उ.] आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्य आय के तीन प्रकार हैं। यथा—१. लौकिक,

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