________________ चौदहवें गुणस्थान में प्राप्त होता है। ऐसा साधक नूतन कर्मों का बन्ध नहीं करता वरन् पूर्वसंचित कर्मों को क्षय करता है। 5. सद्भाव-प्रत्याख्यान'.-सभी प्रकार की प्रवृत्तियों का परित्याग कर वीतराग अवस्था को प्राप्त करना / इससे जीव सभी प्रकार के कर्मों से मुक्त हो जाता है। 6. शरीर-प्रत्याख्यान'' इससे अशरीरी सिद्धावस्था प्राप्त होती है। 7. सहाय-प्रत्याख्यान'१३--अपने कार्य में किसी का भी सहयोग न लेना। इससे जीव एकत्वभाब को प्राप्त करता है। एकत्वभाव प्राप्त होने से वह शब्दविहीन, कलहविहीन, संयमबहुल तथा समाधिबहुल हो जाता है। 8. कषाय-प्रत्याख्यान'२३– सामान्य रूप से कषाय को संयमी साधक जीतता ही है, जिससे साधक कर्मों का बन्ध नहीं करता। कषायों पर विजय प्राप्त करने से उसे मनोज्ञ और अमनोज्ञ विषयों के प्रति ममत्व या द्वेष नहीं होता। इस प्रकार उत्तराध्ययन में प्रत्याख्यानों के प्रकार व उसके फल निरूपित किये हैं। प्रत्याख्यान से भविष्य में होने वाले पापकृत्य रुक जाते हैं और साधक का जीवन संयम के सुहाक्ने आलोक से जगमगाने लगता है। इस प्रकार पडावश्यक साधक के लिये अवश्य करणीय हैं। साधक चाहे श्रावक हो अथवा श्रमण, वह इन क्रियाओं को करता ही है। हाँ, इन दोनों की गहराई और अनुभूति में तीव्रता, मंदता हो सकती है और होती है। श्रावक की अपेक्षा श्रमण इन क्रियाओं को अधिक तल्लीनता के साथ कर सकता है क्योंकि वह संसार-त्यागी है, प्रारम्भ-समारम्भ से सर्वथा विरत है। इसी कारण उसकी साधना में श्रावक की अपेक्षा अधिक तेजस्विता होती है। षडावश्यकों का साधक के जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। आवश्यक से जहाँ आध्यात्मिक शुद्धि होती है, वहां लौकिक जीवन में भी समता, नम्रता, क्षमाभाव' आदि सद्गुणों की वृद्धि होने से अानन्द के निर्मल निर्भर बहने लगते हैं। व्याख्यासाहित्य आवश्यकसूत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि उस पर सबसे अधिक व्याख्याएँ लिखी गयी हैं। इसके मुख्य व्याख्याग्रन्थ ये हैं नियुक्ति, भाष्य, चूणि, वृत्ति, स्तबक (टब्बा) और हिन्दी विवेचन / आगमों पर दस नियुक्तियां प्राप्त हैं। उन दस नियुक्तियों में प्रथम नियुक्ति का नाम आवश्यकनियुक्ति है। आवश्यकनियुक्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। उसके पश्चात् की नियुक्तियों में उन विषयों की चर्चाएं न कर आवश्यकनियुक्ति को देखने का संकेत किया गया है। अन्य नियुक्तियों को समझने के लिये आवश्यकनियुक्ति को समझनो आवश्यक है। इसमें सर्वप्रथम उपोद्घात है, जो भूमिका के रूप में हैं। उसमें 880 गाथाएं हैं। प्रथम पाँच ज्ञानों का विस्तार से निरूपण है। 120. उत्तराध्ययन 29 / 41 121. उत्तराध्ययन 29 / 38 122. उत्तराध्ययन 29 // 39 123. उत्तराध्ययन 22036 [53 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org