Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 5
________________ Published by: Shri Akhil Bharat S. S. Jain Shastroddhara Samiti, Sthanakvasi Jain Upasraya, Outside Nikoli gate, Sarashpur, AHMEDABAD-18. ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां, जानन्ति ते किमपि तान् प्रति नैष यत्नः। उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा, कालोह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी ॥ १ ॥ 卐 हरिगीतच्छन्दः करते अवज्ञा जो हमारी यत्न ना उनके लिये। जो जानते हैं तत्व कुछ फिर यत्न ना उनके लिये ॥ जनमेगा मुझसा व्यक्ति कोइ तत्व इससे पायगा। है काल निरवधि विपुलपृथ्वी ध्यान में यह लायगा ॥१॥ 5 भूक्ष्य ३. ४०-00 भुद्र : यतिमा मणिलाल , નવપ્રભાત પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ઘીકાંટા રોડ, અમદાવાદ-૧ शन: २००१८ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧

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