Book Title: Agam 13 Rajprashniya Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १३, उपांगसूत्र-२, 'राजप्रश्चिय'
सोपानों आदि की रचना करने के अनन्तर उस आभियोगिक देव ने उस दिव्यविमान के अन्दर एकदम समतल भूमिभाग की विक्रिया की । वह भूभाग आलिंगपुष्कर मृदंग पुष्कर, पूर्ण रूप से भरे हुए सरोवर के ऊपरी भाग, करतल, चन्द्रमंडल, सूर्यमंडल, दर्पण मंडल अथवा शंकु जैसे बड़े-बड़े खीलों को ठोक और खींचकर चारों
ओर से सम किये गये भेड़, बैल, सुअर, सिंह, व्याघ्र, बकरी और भेड़िये के चमड़े के समान अत्यन्त रमणीय एवं सम था । वह सम भूमिभाग अनेक प्रकार के वर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, पुष्पमाणव, शरावसंपुट, मतस्यांड, मकराण्ड जार, मार आदि शुभलक्षणों और कृष्ण, नील, लाल, पीले और श्वेत इन पाँच वर्गों की मणियों से उपशोभित था और उनमें कितनी ही मणियों में पुष्पलताओं, कमलपत्रों, समुद्रतरंगों, वसंतलताओं, पद्मलताओं आदि के चित्राम बने हुए थे तथा वे सभी मणियाँ निर्मल, चमकदार किरणों वाली उद्योत-शीतल प्रकाश वाली थी।
उन मणियों में कष्णवर्ण वाली मणियाँ क्या सचमच में सघन मेघ घटाओं, अंजनसरमा, खंजन काजल, काली स्याही, काली स्याही की गोली, भैंसे के सींग की गोली, भ्रमर, भ्रमर पंक्ति, भ्रमर पंख, जामुन, कच्चे अरीठे के बीज अथवा कौए के बच्चे कोयल, हाथी, हाथी के बच्चे, कृष्ण सर्प, कृष्ण बकुल, शरद ऋतु के मेघरहित आकाश, कृष्ण अशोक वृक्ष, कृष्ण कनेर, कृष्ण बंधुजीवक जैसी काली थीं? हे आयुष्मन् श्रमणों ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-वे काली मणियाँ तो इन सभी उपमाओं से भी अधिक इष्टतर कांततर मनोज्ञतर और अतीव मनोहर कृष्ण वर्ण वाली थीं।
उनमें की नील वर्ण की मणियाँ क्या भंगकीट, भंग के पंख, शुक, शुकपंख, चाष पक्षी, चाष पंख, नील, नील के अंदर का भाग, नील गुटिका, सांवा, उच्चन्तक, वनराजि, बलदेव के पहनने के वस्त्र, मोर की गर्दन, कबूतर की गर्दन, अलसी के फूल, बाणपुष्प, अंजनकेशी के फूल, नीलकमल, नीले अशोक, नीले कनेर और बंधुजीवक जैसी नीली थीं? यह अर्थ समर्थ नहीं है । वे नीली मणियाँ तो इन उपमेय पदार्थों से भी अधिक इष्टतर यावत् अतीव मनोहर नील वर्ण वाली थीं।
उन मणियों में लोहित रंग की मणियों का रंग सचमुच में क्या शशक के खून, भेड़ के रक्त, सुअर के रक्त, मनुष्य के रक्त, भैंस के रक्त, बाल इन्द्रगोप, प्रातः-कालीन सूर्य, संध्या राग, गुंजाफल के आधे भाग, जपापुष्प, किंशुक पुष्प, परिजातकुसुम, शुद्ध हिंगलुक, प्रवाल, प्रवाल के अंकुर, लोहिताक्ष मणि, लाख के रंग, कृमिराग से रंगे कंबल, चीणा के आटे, लाल कमल, लाल अशोक, लाल कनेर अथवा रक्त बंधुजीवक जैसा लाल था ? ये बोध समर्थ नहीं है। वे मणियाँ तो इनसे भी अधिक इष्ट यावत अत्यन्त मनोहर रक्त वर्ण की थीं।
उन मणियों में पीले रंग की मणियों का पीतरंग क्या सचमुच में स्वर्ण चंपा, स्वर्ण चंपा की छाल, स्वर्ण चंपा के अंदर का भाग, हल्दी-हल्दी के अंदर का भाग, हल्दी की गोली हरताल, हरताल के अंदर का भाग, हरताल की गोली, चिकुर, चिकुर के रंग से रंगे वस्त्र, शुद्ध स्वर्ण की कसौटी पर खींची गई रेखा, वासुदेव के वस्त्रों, अल्लकी के फूल, चंपाकुसुम, कूष्मांड के फूल, कोरंटक पुष्प की माला, तडवडा के फूल, घोषातिकि पुष्प, सुवर्णयूथिका, सुहिरण्य के फूल, बीजक फूल, पीले अशोक, पीले कनेर अथवा पीले बंधुजीवक जैसा पीला था ? आयुष्मन् श्रमणों ! ये अर्थ समर्थ नहीं है । वे पीली मणियाँ तो इन से भी इष्टतर यावत् पीले वर्ण वाली थीं।
हे भगवन् ! उन मणियों में जो श्वेत वर्ण की मणियाँ थीं क्या वे अंक रत्न, शंख, चन्द्रमा, कुमुद, शुद्ध जल, ओस बिन्दु, दही, दूध, दूध के फेन, क्रोंच पक्षी की पंक्ति, मोतियों के हार, हंस पंक्ति, बलाका पंक्ति, चन्द्रमा की पंक्ति, शरद ऋतु के मेघ, अग्नि में तपाकर धोये गए चाँदी के पतरे, चावल के आटे, कुन्दपुष्प-समूह, कुमुद पुष्प के समूह, सूखी सिम्बा फली, मयूरपिच्छ का सफेद मध्य भाग, विस-मृणाल, मृणालिका, हाथी के दाँत, लोंग के फूल, पुंडरीक कमल, श्वेत अशोक, श्वेत कनेर अथवा श्वेत बंधुजीवक जैसी श्वेत वर्ण की थीं ? आयुष्मन् श्रमणों ! ऐसा नहीं है । वे श्वेत मणियाँ तो इनसे भी अधिक इष्टतर यावत् सरस, मनोहर आदि मनोज्ञ श्वेत वर्ण वाली थीं । उस दिव्य यान विमान के अन्तर्वर्ती सम भूभाग में खचित मणियाँ क्या वैसी ही सुरभिगंध वाली थीं जैसी कोष्ठ तगर, इलाइची, चोया, चंपा, दमनक, कुंकुम, चंदन, उशीर, मरुआ, जाई पुष्प, जूही, मल्लिका, स्नान-मल्लिका, केतकी,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (राजप्रश्चिय)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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