Book Title: Agam 13 Rajprashniya Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 21
________________ आगम सूत्र १३, उपांगसूत्र-२, 'राजप्रश्चिय' तथा विविध प्रकार की मणियों से निर्मित स्तम्भों के ऊपर अच्छी तरह बंधे हैं यावत् पद्म-कमलों के झूमकों-गुच्छों से उपशोभित हैं । उन तोरणों में से प्रत्येक के आगे दो-दो पुतलियाँ स्थित हैं । पुतलियों का वर्णन पूर्ववत् । उन तोरणों के आगे दो-दो नागदन्त हैं । मुक्तादाम पर्यन्त इनका वर्णन पूर्ववर्णित नागदन्तों के समान जानना । उन तोरणों के आगे दो-दो अश्व, गज, नर, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व और वृषभ संघाट हैं । ये सभी रत्नमय, निर्मल यावत् असाधारण रूप-सौन्दर्य वाले हैं । इसी प्रकार से इनकी पंक्ति वीथि और मिथुन स्थित हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो पद्मलताएं यावत् श्यामलताएं हैं । वे सभी लताएं पुष्पों से व्याप्त और रत्नमय, निर्मल यावत् असाधारण मनोहर हैं । उन तोरणों के अग्रभाग में दो-दो दिशा-स्वस्तिक रखे हैं, जो सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो चन्दनकलश कहे हैं । ये चन्दनकलश श्रेष्ठ कमलों पर स्थापित हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत । उन तोरणों के आगे दो-दो भंगार हैं । ये भंगार भी उत्तम कमलों पर रखे हए हैं यावत हे आयुष्मन श्रमणों ! मत्त गजराज की मुखाकति के समान विशाल आकार वाले हैं । उन दो-दो आदर्श-दर्पण रखे हैं । इनकी पादपीठ सोने की है, प्रतिबिम्ब मण्डल अंकरत्न के हैं और अनघिसे होने पर भी ये दर्पण अपनी स्वाभाविक निर्मल प्रभा से युक्त हैं । चन्द्रमण्डल सरीखे ये निर्मल दर्पण ऊंचाई में कायार्ध जितने बड़े-बड़े हैं। उन तोरणों के आगे वज्रभय नाभि वाले दो-दो थाल रखे हैं । ये सभी थाल मुशल आदि से तीन बार छाँटे गये, शोध गये, अतीव स्वच्छ निर्मल अखण्ड तंदुलों-चावलों से परिपूर्ण-भरे हुए से प्रतिभासित होते हैं । हे आयुष्मन् श्रमणों ! ये थाल जम्बूनद-स्वर्णविशेष-से बने हुए यावत् अतिशय रमणीय और रथ के पहिये जितने विशाल गोल आकार के हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पात्रियाँ रखी हैं । ये पात्रियाँ स्वच्छ निर्मल जल से भरी हुई हैं और विविध प्रकार के सद्य-ताजे हरे फलों से भरी हुई-सी प्रतिभासित होती हैं । हे आयुष्मन् श्रमणों ! ये सभी पात्रियाँ रत्नमयी, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं और इनका आकार बड़े-बड़े गोकलिंजरों के समान गोल हैं । तोरणों के आगे दो दो सुप्रतिष्ठकपात्र विशेष रखे हैं । प्रसाधन-शृंगार की साधनभूत औषधियों आदि से भरे हुए भांडों से सुशोभित हैं और सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिकाएं हैं । इन पर अनेक सोने और चाँदी के पाटिये जडे हए हैं और उन पर वज्र रत्नमय नागदन्त लगे हैं एवं उन नागदन्तों के ऊपर वज्ररत्नमय छीके टंगे हैं । उन छींकों पर काले, नीले, लाल, पीले और सफेद सूत के जालीदार वस्त्र खण्ड से ढंके हुए वातकरक रखे हैं। ये सभी वातकरक वज्ररत्नमय, स्वच्छ यावत् अतिशय सुन्दर हैं । उन तोरणों के आगे चित्रामों से युक्त दो-दो (रत्नकरंडक) रखे हैं । जिस तरह चातुरंत चक्रवर्ती राजा का वैडूर्यमणि से बना एवं स्फटिक मणि के पटल से आच्छादित अदभूत-आश्चर्यजनक रत्नकरंडक अपनी प्रभा से उस प्रदेश को पूरी तरह से प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करता है, उसी प्रकार ये रत्नकरंडक भी अपनी प्रभा से अपने निकटवर्ती प्रदेश को सर्वात्मना प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करते हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो अश्वकंठ, गजकंठ, नरकंठ, किन्नरकंठ, किंपुरुषकंठ, महोरगकंठ, गंधर्वकंठ और वृषभकंठ रखे हैं । ये सब सर्वथा रत्नमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् असाधारण सुन्दर हैं । उन तोरणों के आगे दोदो पुष्प-चंगेरिकाएं माल्यचंगेरिकाएं, चूर्ण चंगेरिकाएं, गन्ध चंगेरिकाएं, वस्त्र चंगेरिकाएं, आभरण चंगेरिकाएं, सिद्धार्थ की चंगेरिकाएं एवं लोमहस्त चंगेरिकाएं रखीं हैं । ये सभी रत्नों से बनी हुई, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्पपटलक यावत् मयूर पिच्छपटलक रखे हैं । ये सब भी पटलक रत्नमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो सिंहासन हैं । इन सिंहासनों का वर्णन मुक्तादामपर्यन्त पूर्ववत् । उन तोरणों के आगे रजतमय दो-दो छत्र हैं । इन छत्रों के दण्ड विमल वैडर्यमणियों के हैं. कर्णिकाएं सोने की हैं, संधियाँ वज्र की हैं, मोती पिरोई हुई आठ हजार सोने की सलाइर्यां हैं तथा दद्दर चन्दन और सभी ऋतुओं के पुष्पों की सुरभि से मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (राजप्रश्चिय)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 21

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