Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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विवागसुयं नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकत और दुष्कत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं है। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है। विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते हैं। वे अपनी र मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं। दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, यह भी जानने को मिलता है। दसरे विभाग में सुकत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे कर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं । अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है।
स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं-मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी' ! ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं।
उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है। इस आधार पर यह अनमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की। भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है।
१. (क) समबाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १६ । (ब) नंदी, सूत्र ६१ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १२०॥
(घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ. १३२ 1 २. ठाणं १०११०1 ३. ठाणं १०११११॥
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