Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिवुडे
हयगय ०
हयगय जाव पच्चपिणंति
हयगय जाव परिवुडा
हयगय जाव रवेण
हयगय जाव हथिणाउराओ
हयगय संपरिवुडे
हयगया जाव अप्पेगइया
हय जाव सेणं
महिय जाव नो पडिसेहिए
महिय जाव पडिसेहिए
महिय जाव पडिसेहित्ता महिय जाव पडिमेहिया
महिय जाव पडिसेइ
महिय जाव पडिसे हैंति
हरिसवस०
fore जाव पfsys
हियाए जाव आणुगामियत्ताए
हिरण्णं जाव वरं
हिरण्णागरे य जाव बहवे
हील पिज्जे ०
हीलणिज्जे संसारो भाणियव्वो
हीलिज्ज माणीए जाव निवारिज्जमाणीए
हीलेंति जाव परिभवंति
होत्था जाव सेणियस्स रण्णो
इट्ठा जाव विहर
अंतक्खिपविणे एवं वयासी अंतियं जाव असि
Jain Education International
२७
१।१।१६८
१११११५८
१।१६।२४८
१।१६।१३६
१११६११५६
११११६६
१।१६३०३
१।१६।१७४
१।१६।१३८
११५१६२
१।१६।२८५
१।८।१६६१।१६।२५६
१।१६।२८६
१११८१४२
१११८१२४
१११८१४१
११११६१
१११।१२६
१।१३।३८
१।१७।१६
१/१७/१८
११४।१८
१।५।१२५
१।१६।११८
१।१६।११७
११११७
उवासगदसाओ
७१७
५/२,२१
For Private & Personal Use Only
१।१।१५७
१११/१५७
१८५७
ओ०सु० ५६
१८५७
१।११६७
१८५७
१४८।५७
१।५।१५
१८५७
१३८ । १६५
१८१६५
१/८/१६५
१८१६५
११८१६५
११८१६५
वृत्ति
ओ०सू० ५६
ओ०सू० ५२
१/१७/१६
१।१७।१४
१/३/२४
१।३।२४
१।६।११७
१।३।२४
वृत्ति
७|१० ३।२०,२१
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168