Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगंढसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाइयदसाओ.पण्हावापरणाई.विवागसूर्य AVANAVAVI VAVAVALAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAS वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निगंथं पावयणं अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोववाइयदसाओ . पण्हावागरणाई विवागसुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक: श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस) पृष्ठांक ! ६२५ मूल्य : ८० मुद्रक :एस. नारायण एण्ड संस (प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO. UWASAGADASÃO ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Vāćanā PRAMUKHA ĀCĀRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kārtic Kțishna 13 2500th Nirvana Day Pages 925 Rs. 80/ Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणयुटवं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्माण - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पणिहाणपुध्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लोन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभुओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुथ्वं ॥ जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं । संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक: सहयोगी : पाठ-संशोधन : मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी ( उटकमण्ट) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनूं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० श्री के दर्शन प्राप्त हुए । कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे। आचार्यश्री मुग्ध हुए मुनिधी नथमलजी ने फरमाया – “ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है ।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम- सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही को चैत्र शुक्ला त्रयोदशी २०१३ में लाडनूं में आचार्य दशवैकालिक सूत्र के अपने १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत आगम ग्रन्थमाला आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में - ( १ ) दसवेआलियं तह उत्तरज्भयणाणि, (२) आयारो तह आधारचूला, (३) निसीभवणं, (४) उबवाइयं और (५) समयाओ प्रकाशित हुए। रायपसेणइयं एवं सूयगडो ( प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर बे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में - (१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्भयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए समवायांग का मुद्रण कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया । तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं: (१) दशर्वकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन | Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)। उक्त प्रकाशन कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त आ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गंज रहे हैं.. "धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय--ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चूना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सून्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व भारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध--- आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं.–अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं। उनकी संख्या बारह है-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अंतकृतदशा ६. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग। प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है। इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणु सरोदवाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं-इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है । विस्तृत भूमिका और शब्द-सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द-सूची होगी। प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ-संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं। लेखनकार्य में कुछ ऋटियां हई हैं। कुछ त्रटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं। वे कब हुई यह निश्चय-पूर्वक नहीं कहा जा सकता। पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हई हैं, यह संभावना की जा सकती है। 'नायाधम्मकहाओ' १११५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है। स्थानांग ४११३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है। बाईस तीर्थकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है. पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता । ऐसा प्रतीत होता है कि अगार-विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है। इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति रायपसेणइय सूत्र के आधार Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें-नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकहाओ १।१२:३६, १।१६।२१, १।१६।४६ में भी मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र १०।४ में 'कायवर' पाठ मिलता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर'-प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है। लिपि-दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया। निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सुत्र १) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है। काँचपात्र और वज्रपात्र-दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं। इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है। लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण-विपर्यय अन्यत्र भी हआ है। 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा पचंकमण' के स्थान पर एवंकमण' पाठ मिलता है। पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं। उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है। प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओक. ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मूलपाठ यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है। यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है। ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित यह प्रति गर्वया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं। प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इथर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए। प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं। उनमें अन्तिम श्लोक एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥१॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्मप्रदेशटीकेति ॥छ।। ४२५५ ग्रंथानं ।। वत्ति । एवं सूत्र वृत्ति १७५५ ग्रंथाग्रं ॥१॥छ।। ग. नायाधम्मकहाओ (मूलपाठ) यह प्रति गर्धया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं ।प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं। प्रति जीर्ण-सी है। बीच में वावड़ी है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिपि संवत् १५५४ है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है-संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण वदि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायकश्रीसमतिसाधरि । तत्पट्टे श्रीहेम विमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन । साह श्री सूरा लिखापितं ॥ जोसी पोपा लिखितं ॥ भ्राति उज्जल संजुक्त घीआ लिखापितं छाछ॥१॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं। घ. टब्बा यह प्रति १२वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है। २. उवासगदसाओक. उवासगदसाओ----मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है। पत्र क्रमांक संख्या १८२ से २०२ तक है । फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है । इसकी लम्बाई १४ इंच, चौड़ाई इंच है। प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीव अक्षर हैं। प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ है। अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है। ख. उवासगदसाओ--टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित)-- __यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है। प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४९ इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २०३ से २२२ तक। विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी ११८६ से पहले की होनी चाहिए। ख. हस्तलिखित-गधया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति (उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय-देखें अणुत्तरोववाइय 'ख' प्रति-लेखन. संवत् १४६५ है। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग. हस्तलिखित~-गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच तथा चौड़ाई ४३ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं। प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है। केवल इतना लिखा है--॥छ।। ग्रंया ८६० 1100 1100 पुण्यत्नसूरीणा।। यह प्रति मात्रैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है। पत्र की लम्बाई १० इंच व चो०४५ इंच है। प्रति के अंत में तीन दोहे लिखे हुए हैं। थली हमारौ देश है, रिणी हमारो ग्राम । गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारो नाम ॥१॥ गणेश हमारा है पिता, मैं सुत मुन्नीलाल । अड़ो गच्छ है खरतरो, उजियागर पोसाल ॥२॥ बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां नाम । जंगलधर बादस्या, गंगासिंहजी नाम ॥३॥ श्रीरस्तु ॥छ।। कल्याणमस्तु ॥छ।। ४. अणुत्तरोववाइयदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है। अतः क्रमानुसार यह प्रति ११८६ से पहले की है। ख. गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की (उपासकदमा, अन्तक्रत और अनूतरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पत्र १३१ इंच लम्बा तथा ५१ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं। प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यग्रुचिरजायत ॥२१॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ॥३॥ तदंगजन्माजनि वाहडास्यः सद्धर्मकर्मार्जिन बद्धकक्ष: 1 वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंच का राजमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तदुवंशविशालकेतुः कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्र कलावानपि यः प्रकामं बुधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ||५|| तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥ ६ ॥ तस्यार्हदंह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य । आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभूवुरभितोप्युद्योतयंतः कुलं, चत्वारस्तनया नयार्जितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तातयस्त्रिभुवाभिवस्तदपरो गेलाह्वयोमा भुवि ॥८॥ चत्वारोपि व्यधुरघरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातनुधनभृतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहृदयास्तीह जैनांहिलीना ॥ ६ ॥ तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा | द्वाप्यभूतां गुरुदेवभक्तौ मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥ १० ॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्री यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण सारेण सहिता शुभा । गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पौ ॥ १२ ॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरंतरं । एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षतः ||१३|| विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण' निधि' 'वादु' मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे || १४ || गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांग पुस्तकं । दत्तेस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ॥१५॥ ॥ छ ॥ श्रीः ॥ ग. हस्तलिखित प्रति नधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त। इसके पत्र ६ तथा पृष्ठ १८ हैं । प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं । प्रति Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख. ५. पण्हावागरणाई क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ ---- पत्र संख्या २२० से २५६ ग. घ. च. क्व. की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है | अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं छ। अणुत्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्तं छ । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः छ छः प्रति का अनुमानित समय १६०० है । १८ पंचपाठी हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तराधे । यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८ हैं। प्रत्येक पत्र १० X ४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा वीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति की जगह-ग्रंथा १२५० शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ लिखा है। लेखन कर्ता तथा लिपि संवत् का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए । त्रिपाठी (हस्तलिखित ) -- ↓ गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त इसके पत्र १११ हैं प्रत्येक पत्र १०४ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ सेप तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वृत्ति तथा बीच में कलात्मक बावड़ी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच चीन के कई पन्ने लुप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथाग्र १२५० छ।। श्री ।। छ|| || लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए । 1 मूलपाठ (सचित्र) - पूनमचंद दुधोड़िया, छापर द्वारा प्राप्त। इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं । बीच में बावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र है। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानतः १५७० के लगभग की होनी चाहिए। अशुद्धि बहुत है। मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति मध्या पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ८३ । यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ है । बालावबोध पंचपाठी । पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं । अक्षर २८ से ३५ तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है। ६. विवागसुयंक. मदनचन्दजी मोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मुलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है । लेखन संवत् ११८६ आश्विन मुदि ३ सोमवार। पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है। प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में लिखी हुई है ! मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं। पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हआ है। प्रति प्राय: शुद्ध है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं ।छ।।। मूलपाठ-- ___ यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी गानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पष्ठ ७० हैं। प्रत्येक पत्र १११ इंच लम्बा तथा ४६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-- एक्कारसयं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथान १२१६ ।। टीका ६०० एतस्या ॥ लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। ७. एम. सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १६३५, 'विवागसय। सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण तटस्थ - दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आवार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ । हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है । हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है । मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊं, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू । प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं । प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है। इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट ) ने तैयार किया है। कार्य निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ | आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता । आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं | अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुताण' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ के कार्यकर्त्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है । अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस । मुनि नथमल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मक हाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का छठा अंग है । इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है । दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओं' बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है । प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित - दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं ।' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' (नाथधर्मकथा) मिलता है | नाथ का अर्थ है स्वामी । नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा । कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है । आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है।' आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है । उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म - कथाएं' । दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्घीकरण का उल्लेख किया है। ' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान् महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार 'ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पणगसमवाश्रो, सूत्र ६४ २. तवार्थवार्तिक १२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा | ३. (क) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि - उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथम श्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरादित्वात्पूर्वपदस्य दीर्घान्तता । (स्व) समवायांगवृत्ति, पत्न १०८ : ज्ञातानि -- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घत्वं संज्ञात्वाद् अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिधायकत्वात् ज्ञातानि द्वितीयस्तु तथैव धम्मंकथाः । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है--भगवान् महावीर की धर्म कथा'। वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त है उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा --यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्म कथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञान) है। इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल-शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप-मंदूक की कया बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परिवाजिका चोखा जितशत्र के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है--'तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्त:पुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा---'तुम कूप-मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप-मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा। चोखा ने कहा--'कुएं में एक मेंढक था । वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कृप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समदी मेंढक उस कूप में आ गया । कूप-मंडुक ने कहा--तुम कौन हो ? कहां से आए हो? उसने कहा--- मैं समद्र का मेंढक हैं, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा--वह समुद्र कितना बड़ा है ? समद्री मेंढक ने कहा----वह बहुत बड़ा है । कूप-मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा--क्या समद्र इतना बडा है ? सुमद्री मेंढक ने कहा---इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फूदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा--इससे भी बहत बड़ा है। कूप-मडूक इस पर विश्वास नहीं कर सका । इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों को दष्टि से प्रस्तुत आगम वहत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं। १.जन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका, पत्र ६६० । २. Stories From the Dharma of NAYA ई० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३.(क) समवरो, पइग्ण गसमवायो, सून ६४ (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. तायाधम्मकहाओ मा१५४, पृ० १५६,१८७ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ उवासगदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। धमण-परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे। उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं। TOTAद . विषय-वस्तु भगवान महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म---इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मनि के लिए पांच महावतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमगोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है। व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है। इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तर तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मनि का आचार-धर्म अनेक आगमों में मिलता है कि गृहस्थ का आचार-धर्म मुख्यत: इसी आगम में मिलता है। इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है। इसकी रचना का मख्य प्रयोजन ही गृहस्थ के आचार का वर्णन करना है। प्रसंगवश इममें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सन्दर चर्चा हुई है। उपासको की धामिक कसोटी को घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखने थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है। उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं -दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति रात्रिबोजन विरति ग्रहाचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था। व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा-ये दो पद्धतिया हैं। समवायांग और नन्दी सूत्र में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमा का उल्लेख है। १. कसायपाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सूत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्देशनकालो के अन्तर का आशय हो ज्ञात नहा । नासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' है । चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं---एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे नाम, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र'। तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सदर्शन, यमलीक, बलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवायो, पइण्णगसमवाओ, सून ६६ :.... 'दस अज्झयणा सत्त दगा। २. नंदी, सूत्र ८६."अट्ठ वगा। ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयेव पटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त बग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पत्र ११२ : ततो भणित-अठ्ठ उद्दसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः ।। ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पु० ६५: पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृतिसहित पृ०६३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकद्दशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ०६८: दस त्ति-अवस्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०, पृ०७३ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५. तीर्थकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता है। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं। इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्विमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्णु । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है। कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है । - 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं--अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है । विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासुदेवकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है । छठे वर्ग में अर्जुनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य वनताबिगड़ता है— इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनुष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं । अतिमुक्तक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं भगवान् महावीर ने उपवास और ध्यान — दोनों को स्थान दिया था । तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं । भगवान् महावीर ने अपने साधना काल में उपवास और व्यान -- दोनों का प्रयोग किया था यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बस क्यों दिया गया ? विस्मृति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है । १. सत्यार्थयातिक १२० ० ७३ इत्येते दन वर्धमानती करतीर्थ एवमुवमादीनां द्वयोविस्तीर्थं ध्वन्येऽन्ये च दश दशाननारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य फूलनकर्मपादाः दम अस्यां वयंग्ये इवि अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहुड भाग १ पृ० १३० : अंतयडदसा नाम अंगं चउव्विहोवसों दारुणे सहिऊण पाठिहर लढण जिम्वाणं गदे सुदंसणादि-दस-दस - साहू तित्यं पठि वण्णेदि । २.४३तो वाचनान्तरापेक्षाणीयानीति सम्भावयामः । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोदवाइयदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवा अंग है। इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओं' है। नंदी सत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्थानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवातिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मनियों का वर्णन है। समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग-दोनों का उल्लेख है। उसमें दस अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं। (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। (२) राजवार्तिक के अनुसार-- ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे--यह तत्त्वार्थवार्तिककार का मत है। धवला में कार्तिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसूरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है। उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य. १. नंदी, सून ८९ :....."तिण्णि वरगा। २. ठाणं १०१५१४ ३. (क) तत्त्वार्थवातिक ११२०, प०७३ । ...इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य विजयाद्यनुतरेषुत्पन्ना इत्येवमनुत्तरोपपादिक: दशास्या वय॑न्त इत्यनुत्तरोप पादिकदशा । (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंमं च उब्दिहोवसम्मे दारुणे सहिपूण चउवीसहं तित्थयराणं तित्थेसु अणुत्तर विमाण गदे दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । ४. समवाओ, पइण्णगस मवाओ ९७ । ...."दस अज्झयणा तिणि बागा......! ५. ठाणं १०१११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०१०७३ । ७. षट्खण्डागम ११२ ८. स्थानांगवृत्ति पन ४८३ : तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्त्तो न पूनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास- ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय -- ये दो अध्ययन प्राप्त हैं, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं । विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है। धन्य अनगार के सपोमय जीवन और तप से कुश बने हुए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पहा वागरणाई नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का दसवां अंग है । समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पन्हा वागरणवसाओ' है' समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग निदिष्ट नाम भी सम्मत है जयधवला में 'पण्हवावरणं' और तत्त्वार्थदाशिक में प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए हैं— उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित महावीर-भाषित, क्षौमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी मे इनके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है। स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, (ख) नंदी, सूत्र पइण्णग समवाओ ६० । सूत्र ६८ । २. ठाणं १०।११० । ३. (क) कसा पाहुड, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंगं । (ख) तत्त्वार्थवार्तिक १।२० : ```प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पावरपदमा दक्ष असा पत्ता जहा उनमा संथा दक्षिभाविवाद, आवरियमानियाई, महावीर भासियाई, खोमगपसिणाई, कोमलप सिणाई, अद्दागपरिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुप सिणाई । ५. (क) समवाओ, पण समवाओ सूत्र ६५: पहायागरणे अद्भुतरं परिगसवं असरं अपसियत अट्टतरं पविणावणियं विन्जाइया सिद्धि दिव्यादायानिति । (ख) नंदी, सूत्र ६० । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षौम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वर्णित हैं । इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्दे शनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है । तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है । जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी-इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख, जीवन और मरण वा वर्णन करता है । उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं है। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नंदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है । समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नंदी में प्रस्तुत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नदी में उनका उल्लेख मिलता है। यह संभव है कि पूर्णिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविनाधितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम्। दथिल्लोफिनदिकानानां वियः । २. कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२: परमावरणं गाम अंगं परवेणी-विशेवणी-संवेणी-पिन्वेवीणामाश्रो चव्विहं कहाओ पहादो मुकि चिता-लाहालाह- सुखदुक्ख जीवियमरणाणि च वष्णेदि । ३. नंदी सूत्र, चूर्णि सहित पू० ६९ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૯ विवागसुयं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकत और दुष्कत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं है। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते हैं। वे अपनी र मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं। दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, यह भी जानने को मिलता है। दसरे विभाग में सुकत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे कर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं । अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है। स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं-मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी' ! ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है। इस आधार पर यह अनमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की। भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है। १. (क) समबाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १६ । (ब) नंदी, सूत्र ६१ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १२०॥ (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ. १३२ 1 २. ठाणं १०११०1 ३. ठाणं १०११११॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NĀYĀ DHAMMAKAHÃO The title The present Āgama is the sixth Anga of Dwādaśāngi. It has two Śrutaskandhas. The first is called as 'NĀYA' and the second as 'DHAMMAKAHĀO'. On combining both the Śrutaskandhas, the present Āgama has the title as 'NÄYĀDHAMMAKAHĀO'. 'NĀYĀ' (Jnāta) means examples and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables.? In the Jayadhawalā the title of this Āgama is found as 'Nähadhammakahā' (Nāthadharma-kathā). “Natha' means the Lord. 'Nāthadhamma kahā' i.e, the dharmakathā expounded by the Tirthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Inātsidharmakatha'. Acharya Akalanka too has given the title of this Agama as 'Inātadharmakatha'. Acharya Malayagiri and Abhayadeva Süri give the title of 'Jnātadharmakathā. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Śrutasakandha has illustrations and the second Śrutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word Jnāta'.: The family name of lord Mahavīra has been given as 'Jnāta' and 'Natha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahavira. They hold that *Jnātadharmakathā' or 'Nātha-dharmakathā' means the 'Dharmakathā by lord Mahāvira'. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnātriwansi Mahāvira, is titled as NĀYADHAMMAKAHĀ. But, on the account found in the Samwāyanga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, painnaga samawao, Sutra 94. 2. Tatwartha Vartika, 120. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. $. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakatha of Jnátriwanst Mahavira' does not seem to be appropriate. It has been told there that in the 'Jnätadharmakatha', the cities and gardens. etc. of the 'Inatas' (the persons cited) have been described. The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanaye' (Utkshiptajņāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations and fables in the present Agama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also. While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her-You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said-You are like a Küpa-Mandika. Who is that Küpa Mandeka? Chokha said-There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered-I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him-Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered-Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said-Is the ocean so big? The ocean-frog answered-It is far more bigger than this too. The well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well. 1. (a) Samwao, pa innagasamawao, Sutra 94. (b) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Agama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWASAGADASÃO The title The present Agama is the seventh Anga of the Dwadasängi. It has the biographies of ten Upasakas (lay devotees), therefore, it is called as "Upāsagadasão". In the Sramano order the laymen serving the Sramapas are called Śramanopisakas or Upasakas. Lord Mahāvira had large number of Upasakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upasakas. The Content Lord Mahavira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upäsakas. Five Mahāvratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upasaka. Sramaṇopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidently, Niyatiwada has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upisakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahavira took care of the accomplishment of the Upasakas, and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawala the present Agama narrates eleven-fold practices of the 'Upasakas'. They are-Darsan, Vrat, Sämayika, Pauṣadhopawa, Saćitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati, Anumati-Virati, and Uddista Virati. The Śrawakas, beginning from 1. Kasyapahuda, part i, pages 129-30. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 Ananda, had practised above said eleven Pratimas. The Vratas are practised indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimás also. These Vratās and Pratimās are the two religious codes for an Upāsaka. In the Samawāyānga and the Nandi Sütra, Vrata and Pratimă both are mentioned. The Jayadhawalā gives an account of Pratimäs only. ANTAGADADASÃO The title The present Agama is the eighth of the Dwādaśāngi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasão". The Samwāyānga tells us that it contained ten Adhyayanas and scven Vargast. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sūri has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawāyānga Sūtra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives cight Vargas only with no mention of Adhyayanas'. But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawāyanga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kālas) of this Agama and the Nandi Sūtra gives only eight. Sri Abhayadeva Suri admits that he does not understand the purpose behind the differcnce in the number of the Uddesankälas. Thc Chūrnikār of the Nandisātra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikär, Sri Haribhadra Sūri also write that the present Āgama is given the title 'Antagadadasão as it has ton Adhyayanas in the first Vargas. The Churņikār takes the meaning of 'Daśā' as 'Awastha' (condition) also. Threc traditions are found to narrate the present Agama : firstly, that of the sa mawāyānga; secondly, that of the Tatwārtha Vārtika, and thirdly, that of the Nandi Sütra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96. 2. Nandi Sotra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35 According to the first tradition, the present Āgama has ten Adhyayanas. The Sthānānga Sūtra supports it. The Sthānānga mentions the tco Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mātanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamäti, Bhagāli, Kimkașa, Cilawaka, Pāla, and the Ambashthaputtra. These headings are fou d in the Tatwārthavartika aiso with some variance, such as, Nami, Mātang, Somila, Ramaguptā, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pāla and Ambaşthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Āgama gives an account of the Antaksīta Kcwalis, in groups of ten contemporaries of cach Tirthankara. The Jayadhawala, too. supports this statement of the Tatwārthavrāt.ka. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayabas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawāyanga and the Tatwārthavartika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the abovc- said headings. i.c., Gautama, Samudra, Sāgara, Gambhira, Stanita, Acala Kāmpilya, Aksetra, Prasenjit and Vişnu. In the 'Sthänăngavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vācna. This shows that the Vaena' of the 'Nandi' is different from the 'Vāónā 'found in the 'Samawāyānga'. The word 'Antagada' has two Sanskrit forms.Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but 'gāda' goes more with the Sanskrit version Ksita' so far as morphology is concerned. tent The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Krisna and his family. The Diksā (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krişna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Ariuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Agama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both--the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mahavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWAIYA-DASÃO The title This Agama is the ninth Anga of the Dwādaśangi. As it contaisten Adhyayanas regarding the Munis born in the Aruttara Swarga class, its title is given as Anuttarowawāiya-Dasāo'. The Nandi Sūtra mentions only three Vargas? The Sthānānga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavärttika groups of ten Anuttaropapātika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it.* The Samawāyanga mentions the ten Adhyayanās and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyavanas have not been given in it. According to the Sthānänga and the Tattwärtha vårttika they read as, Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Karttika. Swastban, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśārnabhadra and Atimuktas, and as Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Kärttika, Nandanandana, Sätibhadra, Abhaya, Warişeņa, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporarics of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tatta wārtha värttika." In the Dhawala we find Kartikeya instead of Kärttika and Anand instead of Nanda?. The present form of the Agama is different from the 'Vaćna' of the Sthânāga and the Samawāyānga. Abhayadeva Süri holds that it is a different Vacna'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tatiawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130. 4. Samawao, painnaga samawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tatiwarthvarttjka 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Risidasa, are found. In the first Varga, only two Adhyayanas, named as Wārisrena and Abhaya, are seen. The contents This Agama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagära and his body emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHAWĀGARANĀIN The title The present Āgama is the tenth Anga of the Dwādaśāngi. Its title has been mentioned as 'Panhāwāgaraņāin' in the Samawāyanga Sūtra and the Nandi. Its name is found as 'Paṇhāwägaradasão" in the Sthānānga and the same reads as 'Panhāwāgaranadasásu' in the Samawāyānga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthānānga is also in concurrence with the Samawāyānga. The Jayadhawala and the Tattwärthavarttika note it as Panhäwayaraña or Praśna-Vyakaraņā. The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Agama. The Sthānanga citcs its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Risibhāsita, Ācāryabhāsitä, Mahavira-bhăşitā, Kșaumaka-Praśna, Komala-Praśna, ĀdarśaPraśna. Angustha-Praśna and Bahu-Praśna.* The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawāyānga and the Nandi, the present Āgama has various types of queries, sciences (vidyās) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthānanga. The Samawāyānga makes no mention of its Adhyayanas. 1. (a) Samawao painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi. Sutra 90, 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapanuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thadam 10/116. 5. (a) Samawao, pa innagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Panhāwāgaranadasāsu paragraph, it may be inferred that the Samawāyanga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama, The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāsita, Atāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhäşita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Prašna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Kșauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakarana-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The tcaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärtha vārttika many queries have been expoucded in this Agama , depending on cause and inference by 'Āksepa' and Viksepa'. Also the Laukika (sccular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalá notes that this Agama narrates the Naşta, Musti, Cintā, Labha, Aläbha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Marana with the help of the four kinds of fables, ic, Aksepani, Prakṣepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. The contents of the Āgama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsă, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmatarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawäyānga mentions the Adhyayanas beginning from Acārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Āgama formerly were in the form of the queries and subsequently, the Icarning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The Vacna' of this Agama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Curni of the Nandi does it. Likely it is that the Cürnikära did it on the basis of the present form of the Agama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapa huda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 VIVĀGASUYAM The title The present Āgama is the 11th Anga of the Dwādaśāngi. The Vipāka (fruit) of the Suksita and Duşkļita deeds has been dealt with in it. therefore the title "Vivāgasuyam." The Sthānānnga gives its title as "Kāmma Vivāgadasa." The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipäka and the Sukha Vipāka. The first division contains the topics on the lives of the individuals doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affcct their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthānānga Sūtra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipaka such as, Mrigāputra, Gotrāsa, Anda, Sakata, Māhan, Nandişeņa, Saurika Udumbara, Sahasoddāha-Amaraka, and Kumar Licchavī. These headings have been taken from some other Vaćna'. The account of the Anga-Sūtras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred that the obtained form of the Agama Sutras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the Anga. Sūtra is ancient and how much modern, as well as who of the Āćaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. 2. Thanam 10/110. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Āgama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ पढमो वरगो सू० १-२६ उक्खेव-पदं १, गोयम-पदं ८, निक्खेव-पदं २५, समुद्दादि-पदं २६ । पृ० ५४१-५४५ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० बीओ वग्गो सू० १-३ उक्खेव-पदं १, अक्खोभादि-पदं ३। पृ०५४५ तइओ वग्गो सू० १-११८ पृ० ५४६-५६६ उक्खेव-पदं १, अणीयसादि-पदं ४, सारण-पदं १६, उक्खेव-पदं १७, छण्हं अणगाराणं तव-संकप्प-पदं १६, छण्हं पि देवईए गिहे पवेस-पदं २२, देवईए पुणरागमणसंका-पदं २६, संकासमाधाण-पदं ३०, पुत्त-बोह-पदं ३१, देवईए हरिस-पदं ४२, देवईए पुत्ताभिलासा-पदं ४३, कण्हस्स चिताकारणपुच्छा-पदं ४४, देवईए चिताकारणनिवेदण-पदं ४६, कण्हस्स देवाराहण-पदं ४७, कण्हेण देवईए आसासण-पदं ५१, गयसुकुममालस्य जम्म-पदं ५२, सोमिलधूयाए कण्णतेउर-पक्खेव-पदं ५५, धम्मदेसणा-पदं ६२, गयसुकुमालस्स पन्वज्जासंकप्पपद ६३. गयसुकुमालस्स अम्मापिऊण निवेदण-पदं ६४, देवईए सोगाकुलदसा-पदं ६७, देवईए गयसुकुमालस्स य परिसंवाद-पदं ६८, मयसुकुमालस्स एकदिवस-रज्ज-पदं ७७, गयसूकुमालस्स पव्वज्जा-पदं ८४, गयसुकुमालस्स महापडिमा-पदं ८८, सोमिलकय-उवसन्गपद ८६, गयसुकुमालस्स सिद्धि-पदं ६०, कण्हेण बुट्टस्स साहिज्जकरण-पदं ६४ कण्हस्स गयसूकुमाल-दसणाभिलासा-पद ६८, गयसुकुमालस्स सिद्धि-सूयणा-पदं ६६, सोमिलस्स अकालमच्चू-पदं १०८, निक्लेव-पदं १११, उक्खेव-पदं ११२, सुमुहादि-पदं ११३ । . पृ० ५७०,५७१ चउत्थो वग्गो उक्खेव-पदं १, जालिपभित्ति-पदं ४, निक्खेव-पदं ७। पंचमो वग्गो सू० १-४३ पृ० ५७२-५७८ उक्खेव-पदं १, पउमावई-पदं ४, गोरिपभित्ति-पदं ३३, मूलसिरी-मूलदत्ता-पदं ३६ । छट्ठो वग्गो सू० १-१०२ पृ० ५७८-५६३ १,२ अज्झयणाणि उक्खेव-पदं १, मकाइ-किंकम-पदं ४, अज्जुण-मालागार-पदं १०, अज्जुणस्स जवखपज्जवासणा-पदं १६, गोठ्ठीए अणाचार-पदं १७, अज्जुणस्स पडिसोध-पदं २५, रायगिहे आतंकपदं २८, भगवओ समवसरण-पदं ३३, सुदंसणस्स वंदणटुं गमण-पदं ३५, सुदंसणस्स अज्जूणकय-उवसग्ग-पदं ४०, उवसग्गनिवारण-पदं ४३, सुदंसणस्स अज्जुणस्स य भगवओ पज्जुवासणा-पदं ४६, अज्जुणस्स पव्वज्जा-पदं ५१, अज्जुणअणगारस्स तितिक्खा-पदं ५३, अज्जुणअणगारस्स सिद्धि-पदं ५६, कासवादि-पदं ६०, अइमुत्त कुमार-पदं ७१, गोयमस्स भिक्खायरिया-पदं ७५, गोयम अइमुत्तकुमार-संवाद-पदं ७७, अइमुत्तकुमारस्स पव्वज्जा. पदं ५५, अलक्क-पदं ६७, निक्खेव-पदं १०२ । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वग्गो उख्खेव-पदं १, नंदादि-पदं ४। सू० १-७ पृ० ५६४ अट्ठमो वग्गो सू०१-३८ पृ० ५४६-६१२ उक्लेव-पदं १, कालीए रयणावलितव-पदं ४, सूकालीए कणगावलितव-पदं १८, महाकालीए खुडागसीहनिक्कीलियतव-पदं २१, कण्हाए महालयसीहनिक्कीलियतव-पदं २२, सुकण्हाए भिक्खपडिमा-पदं २३, महाकण्हाए खुड्डागसबओभद्द-पदं २७, वीरकण्हाए महालयसओभद्दपडिमा-पदं २६, रामकण्हाए भद्दोत्तरपडिमा-पदं ३०, पिउसेणकण्हाए मुत्तावलितवप, ३१. महासेणकण्हाए आयंबिलवड्ढमाणतव-पदं ३२, निक्खेव-पदं ३८, परिसेसो। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o [?] कोष्ठक्रवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें - पृष्ठ ३. सूत्र ७ । ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४ । 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूर्ति स्थल का निर्देश है। देखें - पृष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८ ㄨ संकेत निर्देशिका ये दोनों विन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपुत्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [ [ और उसके समापन में रिक्त बिन्दु [0] रखा गया है । देखें- पृष्ठ २ सू ६ । ० काश [X] पाठ न होने का द्योतक है । देखें-- पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [0] अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें- पृ० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५ । 'जहा' 'तहेव' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं | देखें-- पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० । क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-- सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'च्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें - पृष्ठ ३९६ टिप्पण १ । 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श | सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें - पृष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति सम्मत पाठान्तर । देखें- पृष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें- पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यम् । देखें - पृष्ठ ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ । अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ । उवा उवास गदसाओ 1 ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ । भ०, भग०, भगवई । राय० रायपसेणइयं । पण्हा पण्हावागरणाई । वि० विवागसूर्य । सू० सूयगडो । जंबु० जंबूदीवपणत्ति | Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसानो Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो पढम अभयणं गोयमे उक्खव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम' नयरी । पुष्णभद्दे चेइए' ---वण्णो ' ।। २. तेण कालेणं तेणं समएणं अज्जमुहम्मे समोसरिए। परिसा निग्गया। धम्मो कहियो । परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि ° पडिगया ।। ३, तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू जाव' पज्जुवास माणे एवं बयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण आदिकरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अयमढे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते ! अंगस्स अंतगडदसाणं समजेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्तेणं के अटे पण्णते? ४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता ।। ५. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाण समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्भयणा पण्णत्ता ? १. नाम (क, ख)। २. चेतिते (क); चेतिए वणसंडे (ख)। ३. ओ० सू०२-१३ । ४. सं० पा०-निग्मया जाव पडिगया। ५. ना० ११११६, ७ । ६. पज्जुवासइ (क, ख, ग); ना० १.१७ सूत्रानुसारेण अयं पाठः स्वीकृतः । ७. १।१७। ८,९. ना० १११७॥ ५४१ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ अंतगडदसाओ ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. गोयम २. समुद्द ३. सागर, ४. गंभीरे चेव होइ ५. थिमिए य । ६. अयले ७. कंपिल्ले खलु, ८. अक्खोभ है. पसेणई १०. विण्ह ।।१।। ७. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्तेणं के अदे पण्णते? गोयम-पदं ८. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नाम नयरी होत्था-दुवालस जोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा धणवति-मई-णिम्मया चामीकर-पागारा नाणामणि-पंचवण्ण-कविसीसगमंडिया सुरम्मा अलकापुरि-संकासा' पमुदियपक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडि रूवा ॥ है. तीसे णं वारवईए" णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ' णं रेवयए नामं पव्वए होत्था–वण्णो " || १०. तत्थ णं रेवयए पन्वए नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था - वण्णो । ११. [तस्स णं उज्जाणस्स बहुमझदेसभाए ?] सुरप्पिए नाम जक्खायतणे होत्था - [चिराइए पुवपुरिस-पण्णत्ते ? ] पोराणे ॥ १२. से णं एगेणं वणसंडेणं [सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ? ।। १३. [तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे ? ] असोगवरपायवे ।। १४. तत्थ णं वारवईए णयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ-महयाराय वण्णओ। से गं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराण, पज्जुण्णपामोक्खाणं अद्भुट्ठाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं १,२. ना० १११६७। ३. ४ (क)। ४. समा (क)। ५. बारवती (क)। ६. तत्थ (ख)। ७. ना. शश। ८. ना० १।५।४। ६. ओ० सू० १४ । १०. पामुक्खाणं (ख)। ११. नायाधम्मकहानो ११श६ सूत्रात् अस्य क्रमो भिन्नोस्ति । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढयो वग्गो-पढम अज्झरणं (गोयमे) सट्ठीए दुइंतसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं' छप्पणाए' बलवगसाहस्सीण', वीरसेणपामोक्खाणं एगवीसाए वीरसाहस्सीणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं रायसाहस्सोणं, रुप्पिणीपामोक्खाणं 'सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं" अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीण', अण्णेसिं च बहूणं, ईसर- तलवरमार्डविय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्रि-सेणावइ-सत्थवाहाणं बारवईए नयरीए अद्धभरहस्स य समंतस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा. ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।। १५. तत्थ णं बारवईए नयरीए अंधगवण्ही नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णो ।।। १६. तस्स णं अंधगवहिस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था–वण्णो॥ १७. तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जावर नियगवयणम इवयंत सोहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । एवं जहा" महब्बले", नवरं - गोयमो नामेणं । अढण्हं रायवरकण्णाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेति । अट्टो दायो॥ १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी आदिकरे जाव" संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ! चउविवहा देवा आगया । कण्हे वि निग्गए ।। १६. तए णं तस्स गोयमस्स कुमारस्स" 'तं महाजणसई च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था । जहा मेहे" तहा णिग्गए। धम्म सोच्चा" •निसम्म हट्ठतु? ° जं १. महसेण ° (क, ख)। २. छप्पण्णाय (ग)। ३. बलवय (व)। ४. बतीसाए महिना साहस्सीणं (ना०१।५।६)। ५. गणिता० (ख)। ६. सं० पा० -ईसर जाव सत्यवाहाणं । ७. समत्थस्स (क्व)। ८. सं० पा०—आहेवच्छ जाव विहरई । ६. ° पिण्हू (घ)। १०. ओ० सू० १४१ ११. मो० सू० १५ । १२. भ० ११११३३ । १३. भ० ११११३३-१६१ । १४. अतोग्रे संग्रहणीमाथा लभ्यते - सुमिणइंसण-कहा, जम्म बालत्तणं कलाओ य । जोवण-पाणिगहणं, कण्णा पासाय भोगा य ।। (क, ख, ग, घ)। अस्याः संग्रहणः-गाथायाः केचिद् विषया मूलपाठे एव समायाताः, तेन पुनरुक्तेनिवारणाय नासौ मूले गृहोता। १५. ना० ११॥१०॥ १६. सं० पा०-कुमारस्स । १७. ना० ११११६५-६६ । १८, सं० पा०-सोच्चा । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ अंतगडदसाओ नवरं- देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वयामि ।। २०. तए णं से गोयमे कुमारे एवं जहा मेहे जाव' अणगारे जाए–इरियासमिए' जाव इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरसो काउं विहरइ ।। २१. तए णं से गोयमे अण्णया कयाइ अरहयो अरिट्ठनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिम सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइ अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहुहि च उत्थ- छठुट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासम्खमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं ० भावेमाणे विहरइ ।। २२. 'तए णं' अरहा' अरिद्वनेमी अण्णया कयाइ बारवईयो नयरीमो नंदणवणाओ पडिणिक्खमइ, वहिया जणवयविहारं विहरइ ।। २३. तए णं से गोयमे अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव उवा गच्छद, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी इच्छामि गं भंते ! तुम्भेहिं अत्भणुग्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा खंदनों तहा वारस भिक्खपडिमानो फासेइ। गुणरयणं पि तवोकम्म तहेव' फासेइ निरवसेसं । जहा“ खंदनो तहा" चितेइ। तहा यापुच्छइ । तहा थेरेहि सद्धि सेत्तुंज" दुरूह ।। २४. •तए णं से गोयमे अणगारे वारस वासाइं" सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासि याए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सढि भत्ताइ अणसणाए छेदित्ता जाव' केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तो पच्छा ° सिद्धे ।। निक्खेव-पदं २५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स ___ अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ।। १. सं० पा०-आपुन्छामि देवाणुपियाणं। ६. भग० २।५७-६८1 २. ना० १.१३१४६-१५१ । १०. जधा (ख)। ३. रियासपिए (क); इरियासमिते (ख); ११. तधा (ख, ग)! रियासमिए (ग)। १२. सेत्तुज्ज (क, ख, ग)। ४. ना० १।१।१६४। १३. सं० पा० --मासियाए संलेहणाए बारस. ५. अहिज्जेइ (ख, ग)। वासाई परियाए जाब सिद्धे । ६. सं. पा०-च उत्थ जाव भावेमाणे। १४. वरिसाई (ख); वरिसा य (ग)। ७. ता (क); ते (ख)। १५. भ. ६१५१ । ८. अरिहा (ख, ग)। १६. ना० १११। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमो वग्गो- १-८ अभयणाणि २- १० श्रज्कयणाणि समुद्दादि-पदं २६. एवं जहा गोयमो' तहा सेसा । अंधगवण्ही' पिया, धारिणी माया । समुद्दे, सागरे, थिमिए, गंभीरे, अयले, कंपिल्ले, श्रक्खोभे, पसेणई, विण्हू एए एगगमा ॥ बीओ वग्गो १८ अज्झयणाणि उक्खेव पदं १. जइ' णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसागं पढ़मस्स वग्गस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स श्रंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अट्ट अभयणा पण्णत्ता, तं जहा - संग्रहणी-गाहा ५४५ १. अक्खोभ २. सागरे खलु, ३. समुद्द ४. हिमवंत ५. प्रचलनामे य । ६. धरणे य ७. पूरणे य ८. अभिचंदे चेव अट्ठमए ॥ १ ॥ प्रक्खोभादि-पदं ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं 'बारवई नाम नयरी होत्या " | अंधगवण्ही पिया | धारिणी माया । जहा पढमे वग्गे तहा सव्वे ग्रट्ट ग्रज्भयणा । गुणरयणं तवोकम्मं । सोलस वासाइं परिया । सेत्तुजे मासियाए संलेहणाए सिद्धा ॥ १. अं० १।६-२५ । २. वह (क, ख, ग ); अंधगविण्डु (घ) 1 ३. सं० पा० - जइ दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ । ४. तृतीयवर्ग पतोऽसौ गाथा 'तेणं कालेणं तेणं समएण' इति सुत्रात् प्राग् गृहीता । श्रादर्शषु असौ गाथा 'धारिणी माया' इति पाठानन्तरमुल्लिखितमस्ति । ५. बारवईए नयरीए ( क, ख, ग, घ ) । अस्य पाठ्य परिवर्तन १८ श्राधारेणकृतम् । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो पढमं अज्झयणं अणीयसे उक्खेव-पदं १. जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अदमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते तच्चस्स णं भते ! वग्गरस अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते? ' २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा--१. अणीयसे २. अणंतसेणे अजियसेणे ४. अणिहयरिऊ ५. देवसेणे ६. सत्तुसेणे ७. सारणे ८. गए ६. समुद्दे १०. दुम्मुहे ११. कूवए १२. दारुए १३. अणाहिट्ठी ॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के प्र? पण्णत्ते ? अणीयसादि-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे नाम नगरे होत्था वण्णो ॥ ५. तस्स णं भद्दिलपुरस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए सिरिवणे नामं उज्जाणे होत्था--- वण्णो ' 1 जियसत्तू राया ॥ १. स. पा.--जतच्चस्स उक्खेवओ। ४. ओ० सू० १॥ २. देवजसे (क)। ५. ना० १५४॥ ३. अणाहिट (क)। ५४६ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो--पढमं अज्झयणं (अणीयसे) ६. तत्थ णं भद्दिल पुरे नयरे नागे नाम गाहावई होत्था–अड्ढे जाव' अपरिभूए ।। ७. तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा नाम भारिया होत्था--सूमाला जाव' सुरूवा। ८. तस्स णं नागरस गाहावइस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयसे' नाम कुमारे होत्था--सूमाले जाव' सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा दढपइण्णे जाव' गिरिकंदरमल्लीणे विव चंपगवरपायवे णिव्वाधायंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ ।। ६. तए णं तं अणीयसं कुमारं सातिरेगअट्ठवासजायं [जाणित्ता ? ] अम्मापियरो कलायरियस्स उवणेति जाव भोगसमत्थे जाए यावि होत्था ।। १०. तए णं तं अणीयसं कुमार उम्मुक्कबालभावं जाणित्ता अम्मापियरो सरिसि याणं "सरिव्वयाणं सरित्तयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोवण्ण-गुणोववेयाणं सरिसएहितो इन्भकुलोहितो आणिल्लियाणं बत्तीसाए इब्भवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेंति ॥ ११. तए णं से नागे गाहावई अणीयसस्स कुमारस्स इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं जहा - बत्तीस हिरण्णकोडीओ जहा महब्बलस्स जाव' उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहि मुइंगमत्थएहि भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ ।। १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी' 'जेणेव भद्दिलपुरे नयरे जेणेव सिरिवणे उज्जाणे लेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ । परिसा निग्गया । १३. तए णं तस्स अणीयसस्स कुमारस्स तं महा जणसदं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पारोत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणो गए संकप्पे समुप्पज्जित्था । जहा गोयमे" तहा अणगारे जाए , नवरं-सामाइयमाइयाइं चोइसपुव्वाइं अहिज्जइ । वीसं बासाइं परियायो। सेसं तहेव जाव सेत्तुंजे पव्वए मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरणाणदसणं समुप्पाडेत्ता तो पच्छा सिद्धे ।। १. ना० १५७ 1 २. ओ० सू० १५॥ ३. अणीयसेणे (क)। ४. ओ० सू० १४३ । ५, राय० सू० ८०४। ६. राय सू०८०६-८०६ । ७. सं. पा०-सरिसियाणं जाव बत्तीसाए। ८. भ० ११.१५६-१६१ । है. सं० पा०--समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाव विहरइ । पू०-ना० ११५।१०। १०. सं० पा०--तं महा जहा गोयमे तहा । ११. अं० १११६, २० । १२. अं० ११२१-२४ । १३. सं० पा०--संलेहणाए जाव सिद्धे। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ अंतगडदाश्रो १४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण प्रदुमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स ग्रज्भयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते || २-६ ग्रज्भयणाणि १५. एवं जहा प्रणीयसे । एवं सेसा वि । ग्रज्भयणा एक्कगमा । बत्तीस दाओ । ari वासा परियो । चोट्स पुव्वा । सेत्तुजे सिद्धा । सत्तमं श्रज्भयणं सारणे सारण-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे, नवरं वसुदेवे राया । धारिणी देवी । सीहो सुमिणे | सारणे कुमारे। पण्णासो दाश्रो । चोद्दस पुत्रा | वीस वासा परियाश्रो । सेसं जहा गोयमस्स जाव' सेत्तुं सिद्धे | श्रट्ठमं अज्झयणं गए उवखेव पदं १७. जइ णं भंते! समणेण भगवया महावीरेण अट्ठमस्स ग्रंगस्स तच्चस्स वग्गस्स सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । प्रदुमस्स णं भंते ! ग्रयणस्स अंतगदसाण के श्रट्टे पण्णत्ते ? ० १८. एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव' अरहा रिनेमी समोसढे ॥ छह अणगाराणं तव-संकल्प-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं रहो परिट्टणेमिस्स अंतेवासी छ अणगारा भायरों सहोदरा होत्था -- सरिसया सरितया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय १. पुब्बी ( ग ) । २. ऋ० ११२१-२४ । ३. सं० पा०-- जइ उपखेवओ अट्ठमस्स । ४. अं० ३३१२ ॥ ५. भायरा (क, ख, ग ) । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-- अट्ठमं अज्झयणं (गए) प्रयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम'- कुंडलभद्दलया नलकूवर' समाणा।। २०. तए णं ते छ अणगारा जं चेव दिवस मुंडा भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिटुणेमि वंदंति णमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामो णं भंते ! तुब्भेहि अभणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छद्रंछट्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेण' तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरित्तए । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।। २१. तए णं ते छ अणगारा अरहया' अरि?णेमिणा अभणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं' 'अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति !! छव्ह पि देवईए गिहे पवेस-पदं २२. तए णं ते छ अणगारा अण्णया कयाई छ?क्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंति, "बीयाए पोरिसीए झाणं झियायंति, तइयाए पोरिसीए अतरियमचवलमसंभंता मुहपोत्तियं पडिलेहंति, पडिलेहिता भायणवत्थाई पडिलेहंति, पडिलेहिता भायणाई पमज्जति, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेंति उग्गाहेत्ता जेणेव अरहा अरिहने मी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अरहं अरिटुनेमि वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामोण भंते ! छटुक्खमणस्त पारणए तुभेहि अब्भणुण्णाया समाणा तिहिं संघाडएहिं बारवईए नयरीए' 'उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खाय रियाए ° अडित्तए । २३. तए णं ते छ अणगारा अरहया अरिट्ठणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा अरहं अरिट्टनेमि वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता अरहो अरिटुनेमिस्स अंतियानो सहसंबवणाम्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता तिहि संघाडएहि अतरियम "चवलमसंभंता जुरांतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरो रियं सोहेमाणा-सोहेमाणा जेणेव वारवई नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बारवईए नयरी उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडंति ।। २४. तत्थ णं एगे संघाडए बारवईए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कलाई १. दब्भकुसुम (वृक्षा)। २. नलकुन्बर (क, ख, गे)। ३. ४ (ख, ग)। ४. अरहा ख, ग)। ५. सं० पा०-छट्ठछट्टेणं जाव विहरति । ६. सं० पा०-जहा गोयमो जाव इच्छामो। ७. स. पा.--नयरीए जाव अडित्तए। ८. सं० पा०-अतुरियं जाव अडति । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ घरसमुदाणस्स' भिक्खायरियाए अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए गेहे अणुप्पवितु ॥ २५. तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ट तुटु चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसबस-विसप्पमाण हियया आसणाओ अब्भुटेइ, अब्भोत्ता सत्तट्ट पदाइं अणुगच्छइ, तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव भतघरए तेणेव उवागया सीहकेसराणं मोयगाणं थाल भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ ।। २६. तयाणतर च णं दोच्चे संघाडए बारवईए" 'नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए गेहे अणुप्पवितु ॥ २७. तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुटा पासणाप्रो अब्भटेइ, अब्भुटेत्ता सत्तट्ठ पदाई अणुगच्छइ, तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव भत्तधरए तेणेव उवागया सीहकेसराण मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ ॥ २८. तयाणंतरं च णं तच्चे संघाडए बारवईए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए मेहे अणुप्पविट्ठ॥ देवईए पुणरागमणसंका-पदं २६. तए ण सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हतुवा पासणाम्रो अब्भटेइ, अब्भुटेत्ता सत्तट्ठ पदाई अणुगच्छइ, तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागया सीहकेस राणं मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे ० पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एव वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव पच्चक्खं देवलोगभूयाए समणा निग्गंथा उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ° अडमाणा १. समुद्दाणस्स (ख, ग, घ)। २. अडमाणे २ (क)। ३. गिहं (ख, ग)। ४. सं० पा०-हट्ट जाब हियया । ५. सं० पा०-वारवईए उच्च जाव पडिवि सज्जेइ। ६. सं० पा०--उच्च जाव पडिलाभेइ । ७. अं० १।। ८. सं० पा०-उच्च जाव अडमाणा। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो---अट्ठमं अज्झयणं (गए) ५५१ भतपाणं नो लभंति, जण' ताई चेव कुलाई भत्तपाणाए भुज्जो-भुज्जो अणुप्पविसंति ? संका-समाधाण-पदं ३०. तए णं ते अणगारा देवई देवि एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिए ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरीए जाव' देवलोगभूयाए समणा निग्गथा उच्च-नीय मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणा भत्तपाणं णो लभंति, णो चेव ण ताइ' चेव कुलाई दोच्चं पि तच्च पि भत्तपाणाए अणुपविसंति ! एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हे भद्दिलपुरे नगरे नागस्स गाहावइस्स पुत्ता सुलसाए भारियाए अत्तया छ भायरो सहोदरा सरिसया 'सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पलगवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम-कुंडलभद्दलया. नलकवर-समाणा अरहो अरिटुनेमिस्स अतिए धम्म सोच्चा संसारभविग्गा भीया जम्मणमरणाणं मुंडा' भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइया। तए णं अम्हे जं चेव दिवसं पव्वइया तं चेव दिवसं अरह अरिट्टनेमि वंदामो नमसामो, इमं एयारूवं अभिग्गहं प्रोगिण्हामो ---इच्छामो णं भंते ! तुन्भेहि अब्भणुण्णाया समाणा' जावज्जीवाए छटुंछट्ठणं अणिक्खत्तेणं तवोकम्रेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरित्तए । ग्रहासुहं। तए णं अम्हे अरहया अरिट्ठणेमिणा अभणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं जाव' विहरामो। तं अम्हे अज्ज छट्टक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए 'सज्झाय करेत्ता, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइत्ता, तइयाए पोरिसीए" अरहया अरिट्ठनेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा तिहि संघाडएहि बारवईए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणा तव गेहं अणुप्पविट्ठा । तं णो खलु देवाणुप्पिए ! ते चेव णं अम्हे । अम्हे णं अण्णे-देवई देवि एवं वदंति, वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। १. तेणं (घ)। ७. गिण्हामो (क)। २. ग्रं० ११०। ८. सं० पा०-समाणा जाव अहासुहं । ३. सं० पा० -उच्च जाव अडमाणा। ____६. अं० ३।२०। ४. ताई ताई (क)। १०. सं० पा०--पोरिसीए जाव अडमाणा। ५. सं० पा०-सरिसया जाव नलकूबरसमाणा। ११. पू०-अं० ३।२२ । ६. सं० पा०-मुंडा जाव पव्वइया। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ अंतगडदसाओ पुत्त-बोह-पदं ३१. तए णं तीसे देवईए देवीए अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे अतिमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिमा-तुमण्णं देवाणुप्पिए ! अट्ठ पुत्ते पयाइस्ससि सरिसए जाव नलकूबर-समाणे, नो चेव णं भरहे वासे अण्णाओ अम्मयानो तारिसए पुत्ते पयाइस्सति । तं णं मिच्छा। इमं णं पच्चक्खमेव दिस्सइ---भरहे वासे अण्णाओ वि अम्मयामो खलु एरिसए' पुत्ते पयायाओ। तं गच्छामि पं अरहं अरिटुणेमि वंदामि, वंदित्ता इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामीत्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्टवेह । ते वि तहेव ° उववेति । जहा देवाणंदा जाव' पज्जुवासइ ।। ३२. तए णं अरहा अरिट्ठणेमी देवई देवि एवं वयासी-से नूणं तव देवई ! इमे छ अणगारे पासित्ता अयमेयारूबे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे अइमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिया तं चेव जाव' निग्गच्छित्ता मम अंतियं हव्वमागया । से नूणं देवई ! अट्ठ सम? ? हंता अस्थि ।। ३३. एवं खलु देवाणुप्पिए ! तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे नयरे नागे नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे ॥ ३४. तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा नाम भारिया होत्था ।। ३५. तए णं सा सुलसा गाहावइणी बालत्तणे चेव नेमित्तिएणं वागरिया--एस णं दारिया णि भविस्सइ । ३६. तए णं सा सुलसा बालप्पभिई चेव" हरि-णेगमेसिस्स पडिमं करेइ, करेत्ता कल्लाकल्लि हाया" कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल °-पायच्छित्ता उल्लपडसाडया महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, करेत्ता जपणुपायपडिया पणाम करेइ, करेत्ता तो पच्छा आहारेइ वा नीहारेइ वा चरइ" वा ।। १. पयाइसिसि (घ)। ६. अं० ३।३१ । २. अं० ३।१६। ९. जेणेव मम (क, ख, ग, घ)। ३. भारहे. (ख, ग, घ)। १०. चेव हरिणेगमेसी देवभत्ता यावि होत्था ४. ४ (क)। (ग, घ)। ५. एदिसए जाव (क, ख, ग, घ)। ११. सं० पा०-हाया जाव पायच्छित्ता। ६. संपा०-लहुकरणजाणपवरं जाव उवटुवैति । १२. पुप्फचणियं (क)। ७. भ० ६।१४४, १४६ । १३. वरइ (क्व)। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो---अट्टम अज्झयणं (गए) ३७. तए णं तीसे सुलसाए गाहावइणीए भत्तिबहुमाणसुस्सूसाए हरि-णेगमेसी देवे आराहिए यावि होत्था ।। ३८. तए णं से हरि-णेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्ठयाए सुलसं गाहावइणि तुमं च' दो वि समउउयानो' करेइ।। ३६. तए णं तुब्भे दो वि समामेव' गब्भे गिण्हह, समामेव गम्भे परिवहह, समामेव दारए पयायह॥ ४०. तए ण सा सुलसा गाहावइणी विणिहायमावण्णे दारए पयायइ ॥ ४१. तए णं से हरि-णेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्ठयाए' विणिहाय मावणे दारए करयल-सपुडेणं गेण्हइ, गेण्हित्ता तव अंतियं साहरइ । तं समयं च णं तुमं पि नवण्हं मासाणं सुकुमालदारए पसवसि । जे 'वि य णं" देवाणुप्पिए ! तव पुत्ता ते वि य तव अंतिमानो करयल-संपुडेणं गेहइ, गेण्हित्ता सुलसाए गाहावइणी ए अंतिए साहरइ। तं तव चेव णं देवई ! एए पुत्ता। णो सुलसाए गाहावइणीए । देवईए-हरिस-पदं ४२. तए णं सा देवई देवी अरहो अरिट्ठणेमिस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हद्वत?". चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण ०. हियया अरहं अरिढणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते छप्पि अणगारे वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता आगयपण्हया" पप्पुयलोयणा" कंचुयपरिक्खित्तया" दरियवलय-बाहा धाराहय-कलंब"-पुप्फगं विव समूससिय-रोमकूवा ते छप्पि अणगारे" अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणी-पेहमाणी सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता वंदइ नमसाइ, १. च णं (ग, घ)। १०. निसम्मा (क, ख, ग)। २. समुयायो (क); समामेव समगब्भाओ ११. सं० पा०-हवत जाव हियया। (ख); सगब्भयाओ (ग, घ)। १२. अणगारा (ख, ग, घ)। ३. सममेव (ख)। १३. पण्हया(क, ख); पण्डपाए (ग); पण्हवा(ध)। ४. पयाह (क)। १४. पप्फुल्ल ° (घ)। ५. पयाति (क, ख)। १५. पडिविखत्तिया (क, ख, ग);पडिणिक्खि. ६. ° कंपणट्ठाए (क, ख, ग)। तिया (घ)। ७. मावण्णए (क)। १६. कयंब (वृ)। ८. अंतियाओ (क)। १७. समूसविय (क, ख, ग)। ९. वि अण्णे (क, ख, ग)। १८. अणगारा (ख, ग, घ)। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ अंतगडदसाओ वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव अरहा' अरिटणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठणेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ', दुरहित्ता जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई नार अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागया, धम्मियानो जाणप्पवरानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव सए वासघरे' जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागया सयंसि सयणिज्जसि निसीयइ !! देवईए पुत्ताभिलासा-पदं ४३. तए णं तीसे देवईए देवीए अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं सरिसए जाव नलकूबर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणए समणुभूए । एस वि य णं कण्हे वासुदेवे छह-छह मासाणं ममं अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छ। तंधण्णाग्रो ण ताग्री अम्मयाओ, पुण्णाम्रो ण तानो अम्मयानो, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयानो, कयलक्खणानो ण ताओ अम्मयानो, जासि मण्णे णियग-कुच्छि-संभूयाई थणदुद्ध-लुद्धयाइं महुर-समुल्लावयाई मम्मण-पजंपियाई 'यण-मूला" कक्खदेसभाग अभिसरमाणाई" मुद्धयाई" पुणो य कोमलकमलोवमेहि हत्थेहिं गिहिऊण उच्छंगे" णिवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पणिए । अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुग्णा अकयलक्खणा एत्तो एक्कत रमवि ण पत्ता प्रोहय" "मणसंकप्पा" करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियायइ ।। कण्हस्स चिताकारणपुच्छा-पदं ४४. इमं च णं कण्हे वासुदेवे ण्हाए१५ 'कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सवालंकार विभूसिए देवईए देवोए पायवंदए हव्वमागच्छइ ।। ४५. तए णं से कण्हे वासुदेवे देवइं देवि पास इ, पासित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं ___ करेइ, करेत्ता देवइं देवि एवं वयासी-- अण्णया णं अम्मो ! तुब्भे ममं पासेत्ता १. अरिहा (क)। १०. अतिसरमाणाई (क, ख, ग, घ)। २. द्रुहति (क)। ११. भवन्तीति गम्यते (वृ); मुद्धयाई थणियं ३. वासघरए (ख, ग)। पियंति (ना० ११२।१२); पण्हयं पियंति ४. अं० ३।१६। (उ०४।६०)। ५. बालत्तए (ख)। १२. उच्छंग (ख, ग)। ६. समुन्भूए (ख, ग, घ)। १३. सं० पा०-ओहय जाव झियायाइ । ७. संभूययाई (ख, ग)। १४. संकप्पा भूमिगयदिट्ठीया (वृ)। ८. पपिराई (क)। १५. सं० पा०- हाए जाव विभूसिए। ६. थणमूल (क, ग, घ)। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइप्रो वग्गो-अट्ठमं अज्झयणं (गए) हतुवा जाव' भवह, किण्णं अम्मो ! अज्ज तुब्भे अोयमणसंकप्पा जाव' झियायह ? देवईए चिताकारण-निवेदण-पदं ४६. तएणं सा देवई देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु अहं पुत्ता ! सरिसए जाव' नलकूबर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणे अणुब्भूए । तुम पि य णं पुत्ता ! छह-छह मासाणं ममं अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छसि । तं धण्णाम्रो णं तानो अम्मयामो जाव' झियामि। कण्हस्स देवाराहण-पदं ४७. तए णं से कण्हे वासुदेवे देवई देवि एवं वयासी–भा णं तुब्भे अम्मो ! प्रोयमणसंकप्पा जाव' झियायह । अहण्णं तहा घत्तिस्सामि' जहा णं मम सहोदरे कणीयसे भाउए भविस्सति त्ति कटु देवइं देवि ताहिं इट्टाहिवग्गहिं समासासेइ । तो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' 'पोसहसाल पमज्जइ, उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, दबभसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्त पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी हरि-णेगमेसि देवं मणसीकरमाणे-मणसी करेमाणे चिट्ठइ ।। ४८. तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे हरि-णेगमेसिस्स देवस्स पासणं चलइ जाव" अहं इहं हबमागए । संदिसाहि णं देवाणुप्पिया ! कि करेमि ? कि दलयामि ? कि पयच्छामि ? किं वा ते हियइच्छियं ? ४६. तए णं से कण्हे वासूदेवे तं हरि-णेगमेसि देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हतुट्रे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए ° अंजलि कटद एवं वयासी- इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सहोदरं कणोयस भाउयं विदिण्ण ।। ५०. तए णं से हरि-णेगमेसी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-होहिइ णं देवाणुप्पिया ! तव देवलोयचुए सहोदरे कणीयसे भाउए । से णं उम्मुक्क" 'बालभावे विण्णय १. अं० ३१२५ । ७. पू०-अ० ३.५१ । २. ग्रं० ३।४३ ॥ ८. सं० पा०-जहा अभओ। नवरं हरिणेगमे३. अं० ३.१६ सिस्स अट्ठमभतं पगेण्हइ जाव अंजलि । ४. अं० ३१४३ । ६. पू०-ना० ११११५३ । ५. अं० ३१४३ । १०. ना० ११११५५.५७ । ६. जतिस्सामि (ग); बत्तिस्सामि (घ); घइ. ११. सं० पा०-उम्मुक्क जाव अणप्पत्ते । स्सामि (मुद्रित )। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५६ अंतगडदसाओ परिणयमेत्ते जोव्वणग मणुप्पत्ते अरहो अरिट्टणेमिस्स अंतियं मुंडे' भवित्ता गाओ अणगारयं पव्वइस्सइ - कण्हं वासुदेवं दोच्च पि तच्चं पि एवं des, वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। ० कण्हेण देवईए प्रासासण-पदं ५१. तए णं से कहे वासुदेवे पोसहसाला पडिणिवत्तइ, पडिणिवत्तित्ता जेणेव देवई' देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी – होहिइ णं अम्मो ! मम सहोदरे कणीयसे भाउए त्ति कट्टु देव देवि ताहि इट्ठाहि कंताई पियाहि मण्णुणाहि मणामाहि वम्मूहि आसासे, प्रासासेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए || गयसुकुमालस्स जम्म-पदं ५२. तए णं सा देवई देवी अण्णया कयाई तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाव' सीहं सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा जाव' गब्भं परिवहइ || ५३. तए णं सा देवई देवी नवहं मासाणं जासुमण-रत्तबंधुजीवय-लक्खा रससरसपारिजातक - तरुण दिवायर - समप्पभं सव्वणयणकंत - सुकुमालपाणिपाय" जाव' सुरूवं गयतालुसमाणं दारयं पयाया । जम्मणं जहा मेहकुमारे जाव जम्हा अहं इमे दारए गयतालुसमाणे, तं होउ णं म्हं एयस्स दारगस्स नामधेज्जे गयसुकुमाले ॥ ५४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नाम कथं - गयसुकुमालो ति । सेसं जहा मेहे जाव" अलंभोगसमत्ये जाए यावि होत्था || सोमलधूयाए कण्णते उर-पवखेव-पदं ५५. तत्थ णं बारवईए नयरीए सोमिले नाम माहणे परिवसइ - अड्ढे । रिउव्वेय जाव" बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्टिए यावि होत्या || ५६. तस्स सोमिल - माहणस्स सोमसिरी नामं माहणी होत्था -- सूमालपाणिपाया || ५७. तस्स गं सोमिलस्स धूया सोमसिरीए माहणीए ऋत्तया सोमा नाम दारिया १. सं० पा० - मुंडे जाव पव्वइस्सइ । २. देवती (क, ख ) 1 ३. जावपाढया ( क ) । भ० ११।१३३ । ४. भ० ११११३३-१४५ । ५. सूमाल (वृ) । ६. ओ० सू० १४३ । ७. ना० ११११७४-८१ । ८. गयतालुय ( क ) 1 ६. गयसुकुमाले, गयसुकुमाले ( क, ख ) । १०. ना० १।११८२-६८ । ११. ० सू० ६७ । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-अट्ठमं अज्झयणं (गए) होत्था-सूमालपाणिपाया जाव' सुरूवा, रूवेणं' •जोव्वणेणं लावण्णेणं उक्किट्ठा उक्किट्टसरीरा यावि होत्था । ५८. तए णं सा सोमा दारिया अण्णया कयाइ पहाया जाव' विभूसिया, बहूहिं खुज्जाहि जाव' महत्तरविंद-परिक्खित्ता सयानो गिहाम्रो पडिमिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायमगंसि कणगतिदुसएण कीलमाणी चिट्ठइ ।। ५९. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी समोसढे । परिसा निम्गया ।। ६०. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठ समाणे पहाए जाव' विभूसिए गयसुकुमालेणं कुमारणं सद्धि हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उद्दुव्वमाणीहिं बारवईए नयरीए मझमझेणं अरहनो अरिटणेमिस्स पायवंदए निग्गच्छमाणे सोमं दारियं पासइ, पासित्ता सोमाए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णण य जायविम्हए' कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सोमिलं माहणं जायित्ता सोमं दारियं गेण्हह, गेण्हित्ता कण्णतेउरंसि पक्खिवह। तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ । तए णं कोडुबिय पुरिसा तहेव पक्खिवंति ।। ६१. तए णं से कण्हे वासुदेवे वारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिटुनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेंत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अरहयो अरिटनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं° पज्जुवासइ ।।। धम्मदेसणा-पदं ६२. तए णं अरहा अरि?णेमी कण्हस्स वासुदेवस्स गयसुकुमालस्स कुमारस्स तीसे य मतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जाम धम्म कहेइ, तं जहासव्वाग्रो पाणाइवायाम्रो वेरमणं, सव्वानो मुसावायानो वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाम्रो वेरमणं, सव्वाअो परिग्गहातो वेरमणं ।' कण्हे पडिगए। १. ओ० सू० १५ । २. सं० पा०-रूवेणं जाव लावण्णणं । ३. अं० ३१४४ । ४. ओ० सू० ७०॥ ५. अं० ४४॥ ६. जायविम्हए तएणं कण्हे वासुदेवे (घ)। ७. सं० पा०-उज्जाणे जाव पज्जुवासइ । पू०-ना० १११।१६ । ८, सं० पा०-तीसे य धम्मकहा। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ गयसुकुमालस्स पव्वज्जासंकम्प-पदं 커 तएं णं से गयसुकुमाले र अरिनेमिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा' "निसम्म अहं अरिनेमि तिक्खुत्तो याहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निम्गंथं पावयणं, प्रभुमि णं भंते! निग्गंथ पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छिय मेयं भंते! से जयंतुभे वयह् । नवरि देवाणुप्पिया ! श्रम्मापियरो श्रपुच्छामि । तम्रो पच्छा मुंडे भवित्ता गं श्रगाराम्रो अणगारियं पव्वइस्सामि | ग्रहासु देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ गयसुकुमालस्स ग्रम्मा पिऊणं निवेदण-पदं ६४. तए णं से गय सुकुमाले ग्ररहं अरिनेमिं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणामेव हत्थिरयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधव रगए महयाभड चडगर-पह्करेणं वारवईए नयरीए मज्भंमज्भेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणामेव श्रम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता श्रम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी - एवं खलु अम्मयाओ ! मए अरहो मिस्स प्रति धम्मे निसंते, सेविय मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए || अंतगडताओ ६५. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स सम्मापियरो एवं वयासी - धन्नोसि तुमं जाया ! संपुष्णोसि तुमं जाया ! कयत्थोसि तुमं जाया ! कयलक्खणोसि तुमं जाया ! जणं तुअर अरिने मिस्स अंतिए घम्मे निसते से वियते धम्मे इच्छिए पच्छिए प्रभिरुइए || ६६. तए णं से गयसुकुमाले श्रम्मापियरो दोच्चं पि एवं वयासी – एवं खल अम्मा ! मए अरहओ अरिनेमिस्स अंतिए धम्मे निसंते, से विय में धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं श्रम्मयाश्रो ! तुम्भेहि अब्भण्णाए समाणे अरहो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं श्रगाराम्रो गरियं पव्वइत्तए || १. सं० पा० - सोच्चा जं नवरं श्रम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाब sa | Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो --- प्रट्टमं अभयणं ( गए ) देवईए सोमाकुल वसा-पदं ६७. तए णं सा देवई देवी तं प्रणिट्ठ अकंतं अप्पियं श्रणुष्णं श्रमणामं असुयपुब्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्वेर्ण अभिभूया समाणी सेयागयरोमकूपगलंत - चिलिणगाया सोयभर पवेवियंगी नित्तेया दीण-विमण वयणा करयल-मलिय व्व कमलमाला तक्खणश्रो लुगादुब्बलसरीरलावण्णसुन्न- निच्छाय-गयसिरीया पसिढिलभूसण- पडतखुम्मियसंचण्णियधवलवलय- पब्भट्ट - उत्तरिज्जा सूमालविकिष्ण के सहत्था मुच्छावसagar - गरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलठ्ठी विमुक्कसंधिबंधा कोट्टमस सव्वगेहिं वसत्ति पडिया ॥ देवईए गयसुकुमारस य परिसंवाद-पदं ६८. तए णं सा देवई देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगार मुहविणिग्गय-सीयलजलविमलधाराए परिसिंचमाणनिव्वावियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविट-वीयणगजणिवाणं सकुसिएणं अंतेउर-परिजणेणं प्रासासिया समाणी मुक्तावलि - सन्निगास पवडंत-सुधाराहि सिंचमाणी पोहरे, कलुण-विमण-दीणा रोयमाणीकंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी गयसुकुमालं कुमारं एवं वयासी - तुमं सिणं जाया ! अम्हं एगे' पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए वहुमए श्रणुमए भंडकरंडगसमाणे रणे रणभूए जोविय - उस्सासिए हियय-मंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्ल हे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणभवि विप्पयोगं सहितए । तं भुजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तम्रो पच्छा अम्हेहि कालगएहि परिणयवए वड्ढिय कुलवंसतंतुकज्जम्मि निरावयक्खे रहो अरिनेमिस्स ग्रंतिए मुंडे भवित्ता प्रगाराम्रो गरियं पव्वइस्ससि || ६६. तणं से गयसुकुमाले प्रम्मापिऊहिं एवं वृत्ते समाणे सम्मापियरो एवं वयासीतहेव णं तं अम्मो ! जहेव णं तुभे ममं एवं वयह - "तुमं सिगं जाया ! अहं गेपुते इट्टे कंते पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंङग समाणे रयणे रयणभूए जीविय - उस्सासिए हियय-मंदिजणणे उंबरपुष्कं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पयोगं सहित्तए । तं भुजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तम्रो पच्छा अम्हे हिं तेन 'एगे' इति विशेषणस्थ संगतिर्भविष्यति । १. देवक्या अन्येषां पुत्राणां बालत्वं नानुभूतम् । केवलं गजसुकुमालस्यैव लालन-पालनं कृतम् । ५५६ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० अंतगडदसाओ कालगएहिं परिणयवाए वड्डिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे अरहो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मयायो ! माणुस्सए भवे अधुवे अणितिए असासए वसणसग्रोवदवाभिभूते विज्जुलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे संझभरागसरिसे सुविणदंसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुद्वि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छा मि णं अम्मयाओ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे अरहयो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं पव्व इत्तए । ७०. तए णं तं गयसुकुमालं कुमारं अम्मापिय रो एवं वयासी-इमे य ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कसे य दूसे य मणिमोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसानो पगाम दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहनो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ॥ ७१. तए णं से गयसुकुमाले अम्मापियरं एवं वयासो-तहेव णं तं अम्मयाअो! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह –' इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सूवण्णे य कसे य दुसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-पवाल-रत्तरयणसंतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाप्रो कुलवंसायो पगाम दाउ पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं । तमो पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहो अरिटुनेमिस्स अंतिए मंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खल अम्मयानो ! हिरण्णे य जाव सावएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अग्गिसामण्णे चोरसामण्णे रायसामण्णे दाइयसामण्णे मच्चुसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुष्वि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहनो अरिटुनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए । ७२. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति गयसुकूमालं कुमारं बहहिं विसयाणुलोमाहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो — श्रट्टमं अज्झयणं ( गए ) ५६१ वयासी - एस गं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे प्रणुत्तरे केवलिए पडिपुणे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमगे सव्वदुक्खप्पहीणमगे, ग्रहीव एतदिट्टिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहिं दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुणं लंबेयव्वं, असिधाव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा कीयगडे वा ठविए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा बलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा । तुमं च गं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उन्ह नाल खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए, बावीसं परीसहोवसग्गे उदिष्णे सम्मं ग्रहियासित्तए । भुजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे । तम्रो पच्छा भुक्तभोगी अरहस्रो रिमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अंगाराम्रो प्रणगारियं पव्वइस्ससि || ७३. तणं से गयसुकुमाले कुमारे सम्मापिऊहिं एवं वृत्ते समाणे अम्मापियरं एवं वयासी—तहेव णं तं अम्मयाश्रो ! जं णं तुब्भे मम एवं वयह- "एस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे प्रणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमगे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे अहीव एतदिट्टिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दा इव भुयाहि दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुग्रं लंबेयव्वं, प्रसिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं ग्राहाकम्मिए वा उद्देसिए वा की यगडे वा ठविए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरिय भोयणे वा भोत्तए वा पायए वा । तुमं च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उन्ह नालं खुहं नालं पिवास नालं वाइय-पित्तिय- सिभिय- सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए बावीसं परीसहोवसग्गे उदिष्णे सम्मं श्रहियासित्तए । भुंजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे । तम्रो पच्छा भुक्तभोगी अरहस्रो मिस्स तिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मयाओ ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपबिद्वाणं परलोगनिष्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स, नो चेव णं धीरस्स । निच्छियववसियस्स एत्थ किं दुक्करं करणयाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसायो तुभेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहयो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पब इत्तए । ७४. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठ समाणे जेणेव गयसुकुमाले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालं आलिंगइ, आलिगित्ता उच्छंगे निवेसेइ', निवेसेत्ता एवं वयासी–'तुमं णं ममं" सहोदरे कणीयसे भाया। तं मा गं तुमं देवाणुप्पिया ! इयाणि अरहो' अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ० पव्वाहि। अहह्मणं तुमे वारवईए नयरीए महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिस्सामि ।। ७५. तए णं से गयसुकुमाले कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिद्वइ । ७६. तए णं से गयसुकुमाले कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! माणुस्सया काम भोगा असुई वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुय-उस्सास-नीसासा दुरुय-मुत्तपुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्कसोणियसंभवा अधुवा अणितिया असासया सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। से के णं जाणइ देवाणुपिया ! के पुब्बि गमणाए के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि अभगुषणाए समाणे अरहयो अरिट्टनेमिस्स अंतिए' 'मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं° पव्वइत्तए । गयसुकुमालरस एगदिवस रज्ज-पदं ७७. तए णं तं गयसुकुमालं कण्हे वासुदेवे अम्मापिथरो य जाहे नो संचाएइ बहु याहिं' 'विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य प्राघवणाहि य पण्णवणाहि य सणवणाहि य विण्णवणाहि य° प्राधवित्तए वा पण वित्तए वा सण्णवित्तए वा विष्णवित्तए वा ताहे अकामाई चेव गयसुकुमाल कुमार एवं वयासी तं इच्छामो णं ते जाया! एगदिवसमवि रज्जसिरि पासित्तए । ७८. "तए णं गयसुकुमाले कुमारे कण्हं वासुदेवं अम्मापियरं च अणुवत्तमाणे तुसि पीए संचिट्ठइ।। १. गेहति २ (क)। २. तुम ममं (क, ख)। ३. सं० पा०--अरहो मुंडे जाव पव्वाहि। ४. पव्वयाहि (क्व)। ५. सं० पा०-कामा खेलासवा जाव विप्पजहि- यव्वा । ६. सं० पा० - अतिए जाव पवइत्तए । ७. सं० पा०-बहुयाहिं अणुलोमाहिं जाव आघ वित्तए । ८. सं० पा०-निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजमइ । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओ वग्गोमं अपर्ण ( गए ) ७६. तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीखप्पामेव भो देवापिया ! गयसुकुमालस्स महत्थं महग्वं महरिहं विउलं रायाभिसेयं वदुवेह || το तए णं ते कोडुंबियपुरिसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउ रायाभिसेयं उक्वेंति । ८१. तए णं से कण्हे वासुदेवे' गयसुकुमालं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिचाइ, ग्रभिसिंचित्ता करयलपरिगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अजलि कट्टु एवं वयासी - जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जय-जय नंदा भद्द ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्भे वसाहि, इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मनुयाणं बारवईए नयरीए ग्रण्णेसि च बहूणं गामागर-नगर-खेडकब्वड- दोणमुह-मडंब पट्टण ग्रासम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाण आहेच पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं ग्राणा-ईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महया नट्ट- गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय घण-मुइंग पडुप्पवाइयरवेणं विडलाई भोग भोगाई भुजमाणे विहराहि त्ति कट्टु जय-जय- सद्दं परंजंति ॥ ८२. तए णं से गयसुकुमाले राया जाए जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ || ८३. तए णं तं गयसुकुमाल रायं कण्हे वासुदेवे अम्मापियरो य एवं क्यासीभण जाया ! किं दलयामो ? किं पयच्छामो ? किं वा ते हिय- इच्छिए सामत्थे ? गय सुकुमालस्स पव्वज्जा-पदं ८४. तए णं से गयसुकुमाले राया कण्हं वासुदेवं सम्मापियरो य एवं वयासीइच्छामि णं देवाणुप्पिया ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च प्राणियं कासवियं च सद्दावियं । निक्खमणं जहा महव्वलस्स ॥ ८५. तए णं से गयसुकुमाले कुमारे अरहओ अरिनेमिस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएस सम्मं पडिवज्जइ-तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठा, तह निसीय, तह तुट्ट, तह भुंजइ, तह भासइ, तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहि भूपहि जीवेहि सत्तेहि संजमेणं संजमइ ॥ ५६३ ८६. तए णं से ग्यसुकुमाले अणगारे जाए -- इरियासमिए जाव' गुत्तबंभयारी ॥ ८७. तए णं से गयसुकुमाले जं चैव दिवसं पव्वइए तस्सेव दिवसस्स पच्चाव रहकालसमयसि' जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरह १२. पू० - ना० १।१।११८ । ३. ना० - १११।११६ । ४. भग० ११११६८; ना० १।१।१२२-१५० । ५. ना०-११११६४ | ६. पुब्वावरण्ह० ( ख, ग, घ ) 1 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ अरिट्ठणेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी---इच्छामि गं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे महाकाल सि सुसाणंसि एगराइयं महापडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि । गयसुकुमालस्स महापडिमा-पदं ८८. तए णं से गयसुकुमाले अणगारे अरहया अरिट्ठणेमिणा अभणुण्णाए समाणे अरहं अरिष्टुणेमि बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अरहयो अरिष्टुणेमिस्स अंतिए सहसंबवणाम्रो उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव महाकाले ससाणे तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता थंडिल्ले पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिले हेइ,पडिलेहेत्ता ईसिं पन्भारगएणं कारणं वग्धारियपाणी अणिमिसनयणे सुक्कपोग्गल -निरुद्धदिट्ठी ० दो वि पाए साहट्ट एगराई महापडिम उवसंपज्जित्ता गं विहरइ ।। सोमिलकय-उवसम्ग-पदं ८६. इमं च णं सोमिले माहणे सामिधेयस्स अट्टाए वारवईयो नयरीनो बहिया पुवजिग्गए । समिहायो य दब्भे य कुसे य पत्तामोड य गेण्हइ, गे रिहत्ता तो पडिणियत्तइ', पडिणियत्तित्ता महाकालस्स सुसाणस्स अदूरसामंतेणं वोईवयमाणे-बीईवयमाणे संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि' गयसुकुमालं अणगारं पासइ, पासित्ता तं वेरं सर इ, सरित्ता प्रासुरुत्ते रुद्रु कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयासी-एस णं भो ! से गयसुकुमाले कुमारे अपत्थिय पत्थिए, दुरंत-पंत-लक्खणे, हीण पुण्णचा उद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति -परिवज्जिए, जेणं मम धूयं सोमसिरीए भारियाए अत्तयं सोमं दारियं अदिद्वदोसपत्तियं कालवत्तिणि विप्पज हेत्ता मुंडे जाव पव्वइए । तं सेयं खलु मम गयसुकुमालस्स कुमारस्स वेरनिज्जायणं करेत्तए- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दिसापडिलेहणं करेइ, करेत्ता सरसं मट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव गयसुकुमाले अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता गय सुकुमालस्स" अणगारस्स मत्थए मट्टियाए" पालि १. सं० पा०-काएणं जाव दो वि पाए। २. एग० (भ० ३११०५) । ३. निविट्ठ ० (भ० ३।१०५) । ४. पत्तामोडयं (वृ)। ५. पडिनिक्खमति (क)। 1. °माणूसंसि (क)। ७. सं० पा०-अपत्थिय जाव परिवज्जिए। ८. अं० ३।२० । ६. मत्तियं (ख, म)। १०. ° सूमालस्स (क, ख)। ११. X (क); मट्टिया (ख) । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-अट्टमं अज्झयणं (गए) ५६५ बंधइ, बंधित्ता जलंतीम्रो चिययाओ फुल्लियकिसुयसमाणे खइरिंगाले कहल्लेणं' गेण्हइ, गेण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजाय भए तो खिप्पामेव अवक्कमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए ।। गयसुकुमालस्स सिद्धि-पदं ६०. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूया-उज्जला' _ विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा॥ ६१. तए णं से गयसुकुमाले अणगारे सोमिलस्स माहणस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव' दुरहियासं वेयणं अहियासेइ ।। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थज्भवसाणेणं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुवकरणं अणुप्पविट्ठस्स अणते अणुत्तरे निवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । तनो पच्छा सिद्धे 'बुद्धे मुत्ते अंतयडे परिनिव्वुए सव्वदुक्ख ०. प्पहीणे ।। तत्थ णं 'अहासंनिहिएहिं देवेहिं सम्मं पाराहिए' त्ति कटु दिव्वे सुरभिगंधोदए बुढे; दसवण्णे कुसुमे निवाडिए; चेलुक्खेवे कए ; दिव्वे य गीयगंधव्वणिणाए कए यावि होत्था!। कण्हेण वुड्ढस्स साहिज्जकरण-पदं ६४. तए णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते व्हाए जाव विभूसिए हथिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धृवमाणीहिं महयाभड-चडगर-पहकरवंद-परिक्खित्ते बारवई नयरिं मज्झमझेणं जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। ६५. तए ण से कण्हे वासुदेवे वारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं-जुण्णं जरा-जज्जरिय-देह 'ग्राउरं झूसियं पिवासियं दुब्बलं° किलंतं १. कभल्लेणं (ख, ग, घ)। २. सं० पा०---उज्जला जाव दुरहियासा । ३. अं० ३।१०। ४. अं० ३।१०। ५. सं० पा०-अणुत्तरे जाव केवल । ६. सं० पा०-सिद्धे जाव पहीणे । ७. ना० १।१।२४ । ८. अं० ३.४४ ६. पुरिसं पासइ (क, ख, ग, घ)। १०. सं० पा०-देहं जाव किलंतं । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ महइमहालयानो इट्टगरासीनो एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाम्रो अंतोगिह अणुप्पविसमाण पासइ ।। तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणु कंपणट्ठाए हत्थिखंधवरगए चेव एग इट्टगं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहिया रत्थापहायो अंतोगिहं अणुप्पवेसेइ ।। ६७. तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं एगाए इट्टगाए गहियाए समाणोए अणेगेहि पुरिससएहिं से महालए इट्टगस्स रासी वहिया रत्थापहाम्रो अंतोघरंसि अणुप्पवेसिए॥ कण्हस्स गयसुकुमाल-दसणाभिलासा-पदं १८. तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव अरहा अरिटुने मी तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता' परहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता गयसुकुमालं अणगारं अपासमाणे अरहं अरिडणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-कहि णं भंते ! से मम सहोदरे कणीयसे भाया गय सुकुमाले अणगारे 'जं ण" अहं वंदामि नमसामि ? गयसुकुमालस्स सिद्धि-सूयणा-पदं ६६. तए णं रहा अरिटुनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -साहिए णं कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं अप्पणो अढे । १००. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्टनेमि एवं वयासी--कहण्ण' भंते ! गयसूमालेणं अणगारेणं साहिए अप्पणो अद्वे ? १०१. तए णं अरहा अरिहनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी –एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं ममं कल्लं पच्चावरण्हकालसमयंसि' वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-इच्छामि गं भंते ! तुब्भेहि अन्भणण्णाए समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए जाव एगराई महापडिम° उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।। तए णं तं गयसुकुमाल अणगारं एगे पुरिसे पासइ, पासित्ता प्रासुरुत्ते गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए मट्टियाए पालि बंधइ, बंधित्ता जलंतीओ १. अणुपविसमाणं (ख, म)। २. अण्णेहिं (क)। ३. सं० पा०-उवागच्छित्ता जाव वंदद। ४. जा पं (क, ख, ग); जेणं (ग)। ५. कह णं (क, ख, ग)। ६. पुव्वावरण्ह ° (ग, घ) । ७. सं० पा०-इच्छामि गं जाव उवसंपज्जित्ता। ८. ग्रं० ३८८ ६. सं० पा० –आसुरुत्ते जाव सिद्धे। पू०-- ३१८९ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो—अट्ठमं अज्झयणं (गए) चिययानो फुल्लियकिंसुयसमाणे खरिंगाले कहल्लेणं गेण्हइ, गेण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए उठिवग्गे संजायभए तो खिप्पामेव अवक्कमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूयाउज्जला विउला कवखडा पगाढा चंडा दुवखा दुरहियासा। तए ण से गयसुकुमाले अणगारे तस्स पुरिसस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं अहियासेइ। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुहियासं वेयणं अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्यज्झवसाणेणं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुवकरणं अणुप्पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए निरावरणे कसिणे पडिपुणे केवलवरणाणदंसणे समुप्पणे । तो पच्छा सिद्धे । तं एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं साहिए अप्पणो अट्ठ। १०२. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटुमि एवं वयासी-कैस' ण भते ! से पूरिसे अपत्थियपत्थिए', 'दुरंत-पंत-लाखण, होणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरिधिइ-कित्ति -परिवज्जिए, जेणं ममं सहोदरं कणीयसं भायरं गयसुकुमाल अणगारं अकाले चेव जीवियानो ववरोवेइ ? तए णं अरहा अरिहने मी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी—मा णं कण्हा ! तुम तस्स पूरिसस्स पदोसमावज्जाहि । एवं खलु कण्हा ! तेण पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्ण। कहणं भंते ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे ? तए णं अरहा अरिनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–से तूण कण्हा ! तुम भमं पायवंदए हव्वमागच्छमाणे वारवईए नयरीए एगं पुरिसं'- जुग्णं जराजजरिय-देहं पाउरं झूसियं पिवासिय दुब्बलं किलंतं महइमहालयायो इट्रगरासीमो एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाम्रो अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पाससि । तए णं तुमं तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्टाए हत्थिखंधवरगए चेव एग इट्टगं गेण्हसि, गेण्हित्ता वहिया रत्थापहाम्रो अंतोगिहं अणुप्पवेससि । तए णं तुमे एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहिं पुरिससएहिं से महलाए इट्रगस्स रासी बहिया रत्थापहायो अंतोघरंसि ° अणुपवेसिए। जहा णं ३. सं० पा०-पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए। १. से के गं (घ)। २. सं०पा०-अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६५ अंतगडदसाओ कण्हा ! तुमे तस्स पुरिसस्स साहिज्जे दिग्णे, एवामेव कण्हा ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणमा रस्स अणेगभव-सयसहस्स-संचियं कम्म उदी रेमाणेणं बहुकम्माणिज्जरत्थं साहिज्जे दिण्णे ।। १०५. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटुनेमि एवं वयासी-से णं भंते ! पूरिसे मए कहं जाणियव्वे ? १०६. तए ण अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - जे णं कण्हा ! तुम बारवईए नयरीए अणुप्पविसमाणं पासेत्ता ठियए' चेव ठिइभेएणं कालं करिस्सइ, तण्णं तु मं जाणिज्जासि ‘एस णं से पुरिसे' । १०७. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्टनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव आभिसेयं हत्थिरयणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थि दुरुहइ', दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमगाए ॥ सोमिलस्स अकालमच्चु-पदं १०८. तए णं तस्स सोमिल माहणस्स कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे --एवं खलु कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटमि पायदए निग्गए । तं नायमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया, सुय मेयं अरहया, सिट्टमेयं अरहया भविस्सइ कण्हस्स वासुदेवस्स । तं न नज्जइ णं कण्हे वासुदेवे ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्सइ त्ति कटु भीए तत्थे तसिए उबिग्गे संजायभए सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ । कण्हस्स वासुदेवस्स बारवई नयरि अणुप्पविसमाणस्स परओ सपक्खि सपडिदिसि हव्वमागए। १०६. तए णं से सोमिले माहणे काहं वासुदेवं सहसा पासेत्ता भीए तत्थे तसिए उन्विग्गे संजायभए ठियए चेव ठिइभेयं कालं करेइ, धरणितलंसि सव्वंगेहि 'धस' त्ति सण्णिवडिए ।। ११०. तए णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं माहणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-एस णं भो ! देवाणुप्पिया ! से सोमिले माहणे अपत्थियपस्थिए जाव सिरि-हिरिधिइ-कित्ति-परिवज्जिए, जेणं ममं सहोयरे कणीयसे भायरे गयसुकुमाले अणगारे प्रकाले चेव जीवियानो ववरोविए त्ति कटु सोमिलं माहणं पाणेहिं कड्ढावेइ, १. ठितते (क, घ)। २. द्रुहति (क)। ३. पू०.ना. १।१।२४ । ४. केणवि (ख, घ)। ५. दिम (क, घ)। ६. ६० सूत्रे 'ठिइभेएणं' इति पाठोस्ति । अत्र सम्भवतः कालस्य विशेषणं कृतं स्यात् ! ७. अं० ३८६। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-६-१३ अझयणाणि कड्ढावेत्ता तं भूमि पाणिएणं अब्भोक्खावेइ, अब्भोक्खावेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए । सयं गिहं अणुप्पविट्ठ ॥ निक्खेव-पदं १११. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।। ६-१३ अज्झयणाणि उक्खेव-पदं ११२. जई णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स __ अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । नवमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्रे पण्णत्ते ? ० सुमुहादि-पदं ११३. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवईए नयरीए कण्हे नाम वासु देवे राया जहा पढमए जाव' विहरइ ॥ ११४. तत्थ णं वारवईए वलदेवे नाम राया होत्था–वणयो । ११५. तस्स णं बलदेवस्स रणो धारिणी नाम देवी होत्था--वण्णओं ॥ ११६. तए णं सा धारिणी' 'देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि जाव' नियगवयणमइवयंत सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा° । जहा गोयमे, नवरं-- सुमुहे कुमारे । पण्णासं कण्णाओ । पण्णासनो दायो । चोद्दस पुवाई अहिज्जइ। वीसं वासाइं परियाओ । सेसं तं चेव जाव' सेत्तुंजे सिद्धे ।। ११७. निक्लेवओ ! ११८. एवं- दुम्मुहे वि । कूवए वि । तिण्णि वि बलदेव-धारिणी-सुया। दारुए वि एवं चेव, नवरं-वसुदेव-धारिणो-सुए ! एवं -प्रणाहिट्ठी वि वसुदेव - धारिणी - सुए।। १. ना० १११।७। २. सं.पा-नवमस्स उक्खेवओ। ३. अं० १.१४ ४. ओ० सू०१४ । ५. प्रो० सू०१५। ६. सं० पा०--धारिणी। सीहं सुमिणे। ७. भ० ११०१३३ । ८. अं० १११७-२४॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो १-१० अज्झयणाणि उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जावसंपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, च उत्थस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा -- संगहणी-गाहा १. जालि २. मयालि ३. उवयालो, ४, पुरिससेणे ५. वारिसेणे य ! ६. पज्जुण्ण ७. संव ८. अणिरुद्ध ६. सच्चणेमि य १०. दढणेमी ॥१॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं च उत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णते ? जालिप भिति-पदं ४. एवं खलु जंवू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवई नयरी। तीसे णं बारवईए नयरीए जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेव आहेवच्च जाव कारेमाणे पालेमाण विहरइ॥ ५. तत्थ णं बारवईए नगरीए वसुदेवे राया। धारिणी देवी--वण्णो जहा गोयमो', नवरं--जालिकुमारे । पण्णासो दानो। बारसंगी। सोलस वासा परियायो । सेसं जहा गोयमस्स जाब सेत्तुंजे सिद्धे॥ १,२,३. ना० ११११७ ! ४. अं० ११६-१४ । ५. अं० १३१४ । ६. ओ० सू०१५ ७. अं० १११७ । ८. अं० १११७.२४॥ ५७० Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो—१-१० अज्झयणं ५७१ ६. एवं-- मयाली उवयाली पुरिससेणे य वारिसेणे य । एवं-पज्जुण्णे वि, नवरं-कण्हे पिया', रुप्पिणी माया। एवं--संबे वि, नवरं-जंबवई माया । एवं-- अणिरुद्धे वि, नवरं--पज्जुण्णे पिया, वेदम्भी माया । एवं-सच्चणेमी, नवरं-समुद्दविजए पिया, सिवा माया । एवं-दढणेमी वि' सव्वे एगगमा ।। निक्खेव-पदं ७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अटुमस्म अंगस्स अंतगडदसाण चउत्थस्स वग्गस्स अयमद्वे पण्णत्ते ।। ३. सं० पा०-चउत्थस्स वगस्स निक्खेवओ। १. से पिया (ख, ग, घ)। २. से माया (ख, ग, घ)। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. जइ णं भंते! समणेण भगवया महावोरे जाव' संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स प्रथम पण्णत्ते, पंचमस्स वगगस्स अंतगडदसाणं समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेर्ण के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस ग्रयणा पण्णत्ता, तं जहा संग्रहणी - गाहा पंचमो वग्गो पढमं भयणं पउमावई १. पउमावई य २. गोरी, ३. गंधारी ४. लक्खणा ५. सुसीमा य । ६. जंववइ ७. सच्चभामा ८. रुप्पिणी . मूलसिरि १०. मूलदत्ता वि ॥ १ ॥ ३. जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! प्रज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? पउमावई-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी । जहा पढमे जाव* कहे वासुदेवे आहेवच्चं जाव' कारेमाणे पालेमाणे विहरइ || ५. तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था - वण्णो ॥ १,२,३. ना० १ १ ७ । ४. प्र ० १३८-१४ ५७२ ५. अं० १।१४ । ६. ओ० सू० १५ । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो बग्गो-पढमं अज्झयणं (पउमावई) ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी समोसढे जाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ ॥ ७. तए णं सा पउमावई देवो इमोसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठा जहा देवई देवी जाव' पज्जुवासइ ॥ ८. तए णं अरहा अरिडणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावईए य' देवीए तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा-सव्वानो पाणाइवायायो वेरमणं, सव्वाप्रो मुसावायाप्रो वेरमणं, सव्वानो अदिण्णा दाणानो वेरमणं, सव्वानो परिग्गहातो वे रमणं ° । परिसा पडिगया । ६. तए णं कण्हे वासुदेवे अरहं अरिष्टुमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- इमोसे णं भंते ! बारवईए नगरीए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव' देवलोगभूयाए कि मूलाए विणासे भविस्सइ ? १०. कण्हाइ ! अरहा अरिट्टणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु कण्हा ! इमीसे वारवईए नयरोए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव' देवलोगभूयाए सुरग्गि दीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ ।। ११. कण्हस्स वासुदेवस्स अरहनो अरिटुणेमिस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-धण्णा णं ते जालिमयालि-उवयालि-पुरिससेण-वारिसेण - पज्जुण्ण-संव-अणिरुद्ध- 'दढणेमि-सच्चणेमि''-प्पभियो कुमारा जेणं चइत्ता हिरणं जाव दाणं दाइयाणं परिभाएत्ता अरहनो अरिदणे मिस्स अंतियं भुंडा' भवित्ता अगारामो अणगारियं° पव्वइया । अहण्णं अधणे अकयपुणे रज्जे य° •रट्टे य कोसे य कोदागारे य बले य वाहणे य पुरे य° अंतेउरे य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववणे नो संचाएमि अरहनो अरिट्ठणेमिस्स" •अंतिए मुडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्व इत्तए ।। १२. कण्हाइ ! अरहा अरिटुणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-से नूणं कण्हा ! तव अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-धण्णा णं ते १. अं० १.१८ । २. अं० ३।६१ । ३. अं० ३।३१। ४. सं० पा०-पउमावईए य धम्मकहा। ५. अं०१८ ६. अं० १।८। ७. चतुर्थवर्ग-प्रथमाध्ययनस्य गाथातश्चात्र द्वयो नम्निो यंत्ययोस्ति । ८. ना० ११५४५। ६. सं० पा०--मडा जाव पव्वइया । १०. सं० पा०-रज्जे य जाव अंतेउरे। ११. सं० पा०—अरिट्रनेमिस्स जाव पवइत्तए। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ अंतगडताओ जालिप्प भइकुमारा जाव पव्वइया । ग्रहणं प्रधणे जाव' तो संचाएमि रिमिस्स श्रंतिए मुंडे भवित्ता प्रगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए । से नू कहा ! त्थे समत्थे ? अर हंता श्रत्थि । तं नो खलु कण्हा ! एतं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जपणं वासुदेवा चत्ता हिरण्णं जाव' पव्वइस्सति ॥ १३. से केणणं भंते ! एवं वुच्चइ 'न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जण वासुदेवा चइत्ता हिरणं जाव पव्वइस्संति ? १४. कण्हाइ ! अरहा रिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु कण्हा ! सव्वे वि य णं वासुदेवा पुग्वभवे निदाणकडा । से एतेणट्टेणं कण्हा ! एवं वुच्चइ 'न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सह वा जण्णं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइस्संति || १५. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठमि एवं क्यासी-ग्रहं णं भंते ! इतो कालमासे कालं किच्चा कहि गमिस्सामि ? कहि उववज्जिस्सामि ? १६. तए णं अरहा अरिटुणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी एवं खलु कण्हा ! तुमं arraईए नए सुरग्गि'-दीवायण कोव निदड्ढाए अम्मापिइ नियग- विप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धि दाहिणवेयालि अभिमुहे जुहिट्ठिल्लपामोक्खाणं पंचन्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पास पंडुमहुरं संपत्थिए कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपावस हे पुढविसिलापट्टए पीयवत्थ- पच्छाइय सरीरे जराकुमारेणं तिक्खेणं कोदंड - विप्पक्केणं उसुणा वामे पादे विद्धे समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उज्जलिए नरए नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि || १७. तए गं से कहे वासुदेवे रहयो ग्ररिट्ठमिस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म श्रोहय" मणसं कप्पे करतलपल्हत्थमुहे श्रट्टज्भाणोवगए भियाइ || १८. कण्हाइ ! अरहा रिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - माणं तुमं देवाणुपिया ! श्रहमणसं कप्पे जाव" कियाह । एवं खलु तुमं देवाणुप्पिया ! तच्चा पुढवीओ उज्जलिया नरयाओ श्रणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भार वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए पंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे १. अं० ५।११ । २. अं० ५।११। ३. ना० ११५१४५ ४. सं० पा०-भूतं वा जाव पव्वइस्संति । ५. सं० पा० - भूतं जाब पन्वइस्संति । ६. सुरदीवायण (क, ख, ग ) 1 o ७. निदद्धाते ( ख, ग ) ! ८. कोसंबकाणणे (क, ख, ग, घ, वृपा ) 1 ६. मुक्केणं ( क ) ! १०. सं० पा० - श्रीहय जाव भियाइ । ११. अं० ५११७ । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी वग्गो-पढम अज्झयण (पउमावई) ५७५ बारसमे अममे नाम परहा भविस्ससि । तत्थ तुमं बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणेता सिज्झिहिसि बुझिहिसि मुच्चिहिसि परिनिब्बाहिसि सव्व दुक्खाणं अंतं काहिसि ॥ १६. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहो अरिटुणेमिस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हतुढे जाव' अप्फोडेइ, अप्फोडेत्ता वग्गइ, वग्गित्ता तिवई छिदइ, छिदित्ता सीहणायं करेइ, करेत्ता अरहं अरिटणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव भाभिसेक्कं हत्थि दुरुहद, दूरुहिता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सा गिहे तेणेव उवागए । प्राभिसेयहत्थिरयणानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेत्र बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए सोहासणे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसोयति, निसीइत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! बारवईए नयरोए सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु हस्थिखंधव रगया महयामहया सद्देणं ° उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह--एवं खलु देवाणुप्पिया ! वारवईए नयरीए नवजोयणविच्छिण्णाए जाव' देवलोगभ्याए सुरमिग-दोवायणमूलाए विणासे भविस्सइ; तं जो णं देवाणुप्पिया ! इच्छइ वारवईए नयरीए राया वा जुवराया' वा ईसरे वा तलबरे वा माइंबिय-कोडुविय-इब्न-सेट्ठी वा देवी' वा कुमारो वा कुमारी वा अरहनो अरिहणेमिस्स अतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइत्तए, तं णं कण्हे वासुदेवे विसज्जेइ । पच्छातुरस्स वि य से अहागवित्तं वित्ति अणुजाणइ । महया इडिसक्कारसमुदएणं य से निक्ख मणं करेइ । दोच्चं पितच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता ममं एयं पच्चप्पिणह ।। २०. तए णं ते कोडविया जाव पच्चप्पिणंति ।। २१. तए णं सा पउमावई देवी अरहयो अरिष्टनेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसुवस-विसप्पमाणहियया अरह अरिष्ट्रणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गथं पावयण", से जहेयं तुब्भे वयह । जं नवरं देवाणप्पिया ! कण्ह वासुदेव आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा" भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पश्यामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। १. अं० ३।२५। २. सं० पा०-सिंघाडग जाव उग्धोसेमाणा। ३. अं०१८ ४. जुगराया (क, ख)। ५. X (क, ख) । ६. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइत्तए । ७. अं० ५।१६। ८. अं० ३।२५। ६. पू--ना० १११।१०१ । १०. सं० पा० -मडा जाव पव्वयामि । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ २२. तए णं सा पउमावई देवी धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवरानो पच्चोरहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल"परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थाए अंजलि कट्ट कण्हं वासुदेवं एवं वयासी --इच्छामि ण देवाणुप्पिया ! तुभेहिं अभणुषणाया समाणा अरहयो अरिटुनेमिस्स अंतिए मुंडा' भवित्ता अगारानो अणगारियं ' पवइत्तए । अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। २३. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडवियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! पउमावईए देवीए महत्थं महग्धं महरिहं निक्खमणाभिसेयं उबट्टवेह, उवद्ववेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। २४. तए णं ते कोडंबियपुरिसा जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणति ।। २५. तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावई देवि पट्टयं दुरुहेइ, अटुसएणं सोवण्णकलसाणं जाव' महाणिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता सवालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सिबियं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता बारवईए नयरीए मझमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए पव्वए जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयं ठवे इ, 'पउमावई देवि'' सीयारो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अरहा अरिढणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परहं अरिटुमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एस णं भंते ! मम अग्गहिसी पउमावई नामं देवी इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणाभिरामा जाव' उंबरपुप्फ पिव दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तण्णं अहं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं दलयामि । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं। अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंध करेह ।। २६. तए णं सा पउमावई उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमइ, प्रवक्कमित्ता सयमेव १. सं० पा०-करयल । प्रतीयते। २. समाणी (घ)। ४. अं० २२३ । ३. सं० पा०---मुंडा जाव पव्वयामि । अत्र ५. पट्टयंसि (घ)। 'पब्वयामि' इति क्रियापदं अशुद्धं प्रतिभाति । ६. राय० मू० २८० । 'इच्छामि' क्रियापदस्य योगे सर्वत्रापि 'पन्च- ७. पउमावई देवी (क, ख, ग, घ)। इत्तए' इति पाठो दृश्यते । अर्थदृष्ट्याप्यसो ८. ना० १११।१४५ । युक्तः । अत्र लिपिदोषेण परिवर्तनं जातमिति Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो-२-८ अझयणाणि ५७७ आभरणालंकारं ओमय इ, प्रोमुयित्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव अरहा अरिटणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिदम वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी--प्रालित्ते णं भंते ! लोए जाव' तं इच्छामि णं देवाणप्पिएहि धम्ममाइक्खिय ॥ २७. तए णं अरहा अरिडणेमी पउमावई देवि सयमेव पवावेइ, पब्वावेत्ता सयमेव जविखणीए अज्जाए सिस्सिणित्ताए दलयइ ।। २८. तए णं सा जविखणी अज्जा पाउमावई देवि सयमेव पवावेइ सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेति धम्ममाइक्खइ-एवं देवाणुप्पिए ! गंतव्वं जाव' संजमेणं ' संजमियव्वं ॥ २६. तए णं सा पउमावई देवी' तमाणाए तह चिटुइ जाव' संजमेणं संजमइ ॥ ३०. तए णं सा पउमावई अज्जा जाया । इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी !। ३१. तए णं सा पउमावई अज्जा जविखणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध मासखमणेहि विविहेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ ।। ३२. तए णं सा पउमावई अज्जा बहुपडिपुण्णाई वीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसेइ, भूसेत्ता सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे जाव' तमटुं पाराहेइ, चरिमुस्सासेहि सिद्धा। २-८ अज्झयणाणि गोरिपभिति-पदं ३३. तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवई नयरी। रेवयए पन्वए । उज्जाणे नंदणवणे ।। ३४. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे ।। ३५. तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी-वण्णो "। ३६. अरहा समोसढे । कण्हे णिग्गए। गोरी जहा पउमावई तहा" निग्गया । धम्म कहा । परिसा पडिगया। कण्हे वि ।। १. ना० १११३१४६। २. पू०-ना० २११४६ । ३. सं० पा०-~पवावेइ जाव संजमियध्वं । ४. पू०-ना० १११११५० । ५. ना० १११११५० । ६. पू०-ना० १२११५१ । ७. ना० १११५१ । ८. ना० १११४१४० । ६. प्रो० सू० १५४ । १०. ओ० सू० १५॥ ११. अ०७१ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ ३७. तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा निक्खंता जाव' सिद्धा॥ ३८. एवं– गन्धारी, लक्खणा, सुसीमा, जंबवई, सच्चभामा, रुप्पिणी। अट्ठ वि पउमावईसरिसायो॥ ६,१० अज्झयणाणि मूलसिरी-मूलदत्ता-पदं ३६. तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए रेवयए पव्वए नंदणवणे उज्जाणे कण्हे वासुदेवे ! ४०. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए अत्तए संबे नाम कुमारे होत्था-अहीणपडिपुण्णपंचेंदियसरीरे ॥ ४१. तस्स णं संबस्स कुमारस्स मुलसिरी नाम भारिया होत्था–वण्णो । ४२. अरहा समोसढे । कण्हे निग्गए। मूलसिरी वि निग्गया, जहा पउमावई । जं नवरं देवाणुप्पिया ! कण्ह वासुदेवं आपुच्छामि जाव सिद्धा। ४३. एवं मूलदत्ता वि ।। ___------ छट्टो वग्गो १,२ अज्झयणाणि उक्खेव-पदं १. जइ •णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पंचमस्स वग्गस्स अयम? पण्णते । छट्ठस्स णं भंते ! वगस्स के अट्टे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छटुस्स वग्गस्स ° सोलस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. मकाइ २. किंकमे चेव, ३. मोग्गरपाणी य ४. कासवे । ५. खेमए' ६. धिइहरे चेव, ७. केलासे ८. हरिचंदणे ॥१॥ १. अं० ५।२१-३२ २. अं० ५।७, २१-३२ । ३. ओ० सू० १५॥ ४. अं. ५२१-३२ । ५. अं० ५.३६-४२। ६. सं० पा० - जइ छट्ठस्स उक्खेवओ नवरं सोलस। ७. खेमे (ग)। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्गो-तइयं अज्झयणं (मोग्गरपाणी) ५७६ ६. वारत्त १०. सुदंसण ११. पुण्णभद्द तह १२. सुमणभद्द १३. सुपइटे । १४. मेहे १५. ऽतिमुत्त १६. अलक्के, अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥२॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स सोलस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अटे पण्णत्ते ? मकाइ-किकम-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया ॥ ५. तत्थ णं मकाई नाम गाहावई परिवसइ -अड्ढे जाव' अपरिभूए । ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिकरे गुणसिलए जाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा निग्गया। ७. तए णं से मकाई गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते' तहेव इमो वि जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठवेत्ता पुरिससहरसवाहिणीए सीयाए निक्खते जाव अणगारे जाए -इरियासमिए । ८. तए णं से मकाई अणगारे समणस्स भगवो महावी रस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए समाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ। सेसं जहा खंदगस्स' गुणरयणं तवोकम्मं । सोल सवासाइं परियायो । तहेव विउले सिद्धे ।। किकमे वि एवं चेव जाव विउले सिद्धे। तइयं अज्झयणं मोग्गरपाणी प्रज्जुण-मालागार-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया । चेल्लणा देवी।। ११. तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुणए नाम मालागारे परिवसइ-अड्ढे जाव' अपरिभूए॥ १२. तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था-सूमाल पाणिपाया । १३. तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नय रस्स बहिया, एत्थ णं १. ना० १११७1 ५. पू०--ना० १११३५-३७ । २. ना० १२०६४ ६. भ० २।५७.६६ । ३. भ० १६।६८-७१ । ७. अं० ६१४-८। ४. ना० १५२६-३५ । ८. ना० ११५७। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसा : महं एगे पुप्फारामे होत्था-किण्हे जाव' महामेहनिउरुंबभुए दसवण्ण कुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ १४. तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुणयस्स मालायारस्स अज्जय पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्ग रपाणिस्स जवखस्स जक्खाययणे होत्था-पोराणे दिव्वे सच्चे जहा पुण्णभद्दे ।। १५. तत्थ णं मोग्गरपाणिस्स पडिमा एगं महं पलसहस्सणिप्फण्णं अनोमयं मोग्गरं गहाय चिट्ठइ ।। प्रज्जुणस्स जक्खपज्जुवासणा-पदं १६. तए णं से अज्जुणए मालागारे वालप्पभिई चेव मोग्गरपाणि-जक्खभत्ते' यावि होत्था । कल्लाकल्लि पच्छियपिडगाई गेण्हइ, मेण्हित्ता रायगिहामो नयरामो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुप्फुच्चयं करेइ, करेत्ता अम्गाइं वराई पुप्फाइं गहाय, जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जवखाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, करेत्ता जण्णुपायपडिए पणामं करेइ, तो पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरइ।। गोट्ठीए प्रणाचार-पदं १७. तत्थ णं रायगिहे नयरे ललिया नामं गोट्ठी परिवसइ-अड्डा जाव अपरिभूता जं कयसुकया यावि होत्था । १८. तए णं रायगिहे नगरे अण्णया कयाइ पमोदे घुटे यावि होत्था । १६. तए णं से अज्जुणए मालागारे कल्लं पभूयत राएहिं पुप्फेहिं कज्ज इति कटु पच्चूसकालसमयंसि बंधुमईए भारियाए सद्धि पच्छियपिडयाइं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं निगच्छइ, निगच्छित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बंधुमईए भारियाए सद्धि पुप्फुच्चयं करेइ ।। २०. तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए छ गोहिल्ला पुरिसा जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागया अभिरममाणा चिट्ठति ।। २१. तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि पुप्फुच्चयं करेइ, १. ओ० सू० ४। २. मो० सू० २। ३. जक्खस्स भत्ते (घ)। ४. पत्थिय° (क्व)। ५. अतोग्रे १२ सूत्रे 'पत्थियं भरेइ, भरेता' इति पाठो लभ्यते। ६. पुप्फच्चणियं (क)। ७. ना० ११५७ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२. छट्ठो वग्गो --तइयं अज्झयणं (मोग्गरपाणी) ५८१ 'पत्थियं भरेइ, भरेत्ता" अग्गाइं वराई पुप्फाइं गहाय जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ ।। तए णं ते छ गोटिल्ला पुरिसा अज्जुणयं मालागारं बंधुमईए भारियाए सद्धि एज्जमाणं पासंति, पासित्ता अण्णमण्णं एवं वयासी--एस गं देवाणुप्पिया ! अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि इहं हव्वमागच्छइ । तं सेयं खलु देवाणप्पिया! अम्हं अज्जणयं मालागारं अवप्रोडय-बंधणयं करेत्ता बंधमईए भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु एयमढे अण्णमण्णस्स पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कवाडंतरेसु निलुक्कंति, निच्चला निप्फंदा तुसिणीया पच्छण्णा चिटुंति ।। २३. तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, आलोए पणामं करेइ, महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, जण्णुपायपडिए पणामं करेइ ।। २४. तए णं छ मोटिल्ला पुरिसा दवदवस्स कवाडंतरेहितो निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता अज्जणयं मालागारं गेहंति, गेण्हित्ता अवोडय' बंधणं करेंति । बंधमईए मालागारीए सद्धि विउलाइं भोग भोगाइं भुजमाणा विहरंति ॥ प्रज्जुणस्स पडिसोध-पदं २५. तए णं तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु अहं बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवो कल्लाकल्लि जाव' पुप्फच्चणं करेमि, जण्णुपायपडिए पणामं करेमि, तम्रो पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरामि । तं जइ णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए होते, से णं किं मम एयारूवं आवई पावेज्जमाणं पासते ? तं नत्थि णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए । सुव्वत्तं णं एस कटे ॥ २६. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव' वियाणेत्ता अज्जुणयस्स मालागाररस सरीरयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तडतडस्स बंधाई छिदइ, छिदित्ता तं पलसहस्सणिफण्णं असोमयं मोग्गरं गेहइ, गेण्हित्ता ते इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएइ ।।। २७. तए णं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइटे समाणे रायगिहस्स नगरस्स परिपेरतेणं कल्लाकल्लि इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे धाएमाणे विहरइ ।। १. ४ (घ)। २. उवउडग (क, ग); अवउड (ख) । ३. अं० ६.१६ । ४. सुबत्ते (ख, ग)। ५. अं० ६॥२५॥ ६. तडतडतडस्स (ख)। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ अंतगडदसामो रायगिहे प्रातंक-पदं २८. तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग'-'तिग-च उक्क-चच्चर-चउम्मुह ° -महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्जुगए मालागारे मोग्गरपाणिणा अण्णाइट्टे समाणे रायगिहे नयरे बहिया इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे घाएमाणे विहर।। २६. तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लढे समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्जुणए मालागारे जाव घाएमाणे-घाएमाणे विहरइ। तं मा गं तुब्भे केइ कट्ठस्स वा तणस्स वा पाणियस्स वा पुप्फफलाणं वा अढाए सइरं निगच्छइ । मा णं तस्स सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ त्ति कटु दोच्च पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता खिप्पामेव ममेयं पच्चप्पिणह ॥ ३०. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव' पच्चप्पिणंति ।। ३१. तत्थ णं रायगिहे नगरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवसइ–अड्ढे 11 ३२. तए णं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था-अभिगयजीवाजोवे जाव' विहरई॥ भगवनो समोसरण-पदं ३३. तेणं कालेणं समएणं समणे भगव' महावीरे पुवाणुपुद्वि चरमाणे गामाणु गामं दूइज्जमाणे सुहसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ३४. तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव' किमंग पुण विपुलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? सुदंसणस्स वंदणठें गमण-पदं ३५. तए णं तस्स सुदंसस्स बहुजणस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे १. सं० पा०-सिंघाडग जाव महापहपहेसु। २. अं० ६२८॥ ३. अं०६।२६। ४. ना० ११५१४७ । ५. सं० पा०-भगवं जाव समोसढे विहरइ । ६. ओ० सू० ५२। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो वग्गो-तइयं अज्झयणं (मोग्गरपाणी) जाव' विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि'—एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल'•परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए ° अंजलि कटु एवं वयासी-एवं खलु अम्मयानो ! समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि नमसामि' 'सक्कारेसि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं. पज्जुवासामि ॥ ३६. तए णं सुदंसणं सेटिं अम्मापियरो एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! अज्जुणए मालागारे' :मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइ8 समाणे रायगिहस्स नयरस्स परिपेरतेणं कल्लाकल्लि बहिया इत्थिसत्तमे छ पुरिसे° धाएमाणे-घाएमाणे विहरइ । तं मा णं तुमं पुत्ता ! समणं भगवं महावीरं वंदए निग्गच्छाहि, मा ण तव सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ ! तुमण्णं इह गए चेव समणं भगवं महावीर वंदाहि ॥ ३७. तए णं से सुदंसणे सेट्ठी अम्मापियरं एवं वयासी-किण्णं अहं अम्मयायो ! समणं भगवं महावीरं इहमागयं इह पत्तं इह समोसढं इह गए चेव वंदिस्सामि ? तं गच्छामि णं अहं अम्मयानो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदए । ३८. तए णं सुदंसणं सेट्ठि अम्मापियरो जाहे नो संचाएति बहूहि आघवणाहिं पण्णवणाहिं सण्णवणाहिं विष्णवणाहिं 'परूवणाहिं आघवेत्तए पण्णवेत्तए सण्णवेत्तए विण्णवेत्तए ° परूवेत्तए ताहे एवं वयासी- अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।। ३६. तए णं से सुदंसणे अम्मापिईहिं अब्भणुण्णाए समाणे पहाए सुद्धप्पावेसाई •मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकिय ° सरीरे सयानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिवखमित्ता पायविहारचारेण रायगिहं नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छिता मोरगरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणस्स अदूरसामंतेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। सुदंसणस्स अज्जुणकय-उवसग्ग-पदं ४०. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं १. ना० ११११९७ । २. द्रष्टव्यः अग्रिमः पाठः। ३. सं० पा० --करयल° । ४. ना० १११।१७। ५. सं० पा०-नमंसामि जाव पज्जुवासामि । ६. सं० पा०-मालागारे जाव घाएमाणे । ७. सं० पा०-विण्णवणाहिं जाव परूवेत्तए । ८. 'सुद्धप' त्ति शुद्धात्मा यावत्करणात् वेसियाई पवर वस्थाई परिहिए° (वृ); सं० पा०-सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ अंतगडदसाओ वीयमाणं पास, पासित्ता आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तं सहस्स णिफण्णं श्रोमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे - उल्लालेमाणे जेणेंव सुदंसणे समणोवासए तेणेव पहारेत्थ गमगाए || o ४१. तए णं से सुदंसणे समणोवासए मोगरपाणि जक्खं एज्जमाणं पासइ, पासिता तत् विग्गे अक्खुभिए अचलिए असंभंते वत्थतेणं भूमि पमज्जइ, पमज्जित्ता करयल' परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं अरहंताणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवन महावीरस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स । पुव्वि पिणं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए मुसावाए [ पच्चक्खाए जावज्जीवाए ? ], थूलए प्रदिण्णादाणे [ पच्चक्खाए जावज्जीवाए ? ], सदार संतोसे कए जावज्जीवाए, इच्छापरिमाणे कए जावज्जीवाए । तं इदाणि पिणं तस्सेव अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, मुसावायं प्रदत्तादाणं मेहुणं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं कोहं जाव' मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइम साइमं चउव्विहं पि ग्राहारं पच्चक्खामि जावज्जोवाए । जइ णं एत्तो उवसग्गा मुच्चिस्सामि तो मे कप्पइ पारेत्तए । ग्रहणं एत्तो उवसग्गाओ न मुच्चिस्सामि 'तो मे तहा" पच्चक्खाए चेव त्ति कट्टु सागारं पडिम पडिवज्जइ ॥ ४२. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे तं पलसहस्स णिप्फण्णं श्रोमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे - उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव उवागए । नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए || उवसग्गनिवारण-पदं ४३. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं सव्वश्रो समंता' परिघोलेमाणे- परिघोलेमाणे जाहे नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए, ताहे सुदंसणस्स समणोवासयस्स पुरनो सपक्खि सपडिदिसि ठिच्चा सुदंसणं समणोवासयं प्रणिमिसाए दिट्ठीए सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता तं पलसहस्सणिष्कण्णं १. सं० पा०करयल | २. ओ० सू० २१ । ३. ओ० सू० ११७ । ४. तओ मे ( क ) | ५. प्रयोमयं ( ख ) | ६. सम्मताओं (क, ख ) । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्गो-तयं अपणं (मोग्गरपाणी) अोमयं मोग्गरं गहाय जामेव दिसं' पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए || ४४. तए णं से प्रज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं विप्पमुक्के समाणे 'धस' ति धरणियसि सव्वगेहि निवडिए || ४५. तए णं से सुदंसणे समणोवासए 'निरुवसग्ग' मिति कट्टुपडिमं पारे || सुदंसणस्स श्रज्जुणस्स य भगवम्रो पज्जुवासणा-पदं ४६. तए णं से अज्जुणए मालागारे तत्तो मुहुत्तंतरेणं श्रासत्ये समाणे उट्ठेश, उट्ठेत्ता सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! के कहि वा संपत्थिया ? ४७. तए णं से सुदंसणे समणोवासए ग्रज्जुणयं मालागारं एवं वयासी - एवं खलु देवाप्पिया ! ग्रहं सुदंसणे नामं समणोवासए - - प्रभिगयजीवाजीवे' गुणसिलए इए सम भगव महावीरं वंदए संपत्थिए । ४८. तए णं से प्रज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी - तं इच्छामि' णं देवाप्पिया ! अहमवि तुमए सद्धि समणं भगवं महावीरं वंदितए जाव' पज्जुवासित्तए । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि || ४६. तए णं सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेण सद्धि जेणेव गुण सिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेण सद्धि समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ जाव' पज्जुवासइ ॥ ५०. तए णं समणे भगवं महावारे सुदंसणस्स समणोवासगस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ • । सुदंसणे पडिगए || ५८५ श्रज्जुणस्स पव्वज्जा-पदं ५१. तए णं से अज्जुणए मालागारे समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिर धम्मं सोच्चा निसम्म हदु तुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदिता नमसित्ता एवं वयासी सद्दहामि गं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथ पावयणं, रोएमि णं १. दिसिं ( ख, ग ) 1 २. संनिवडिए ( क ) ! ३. पु० ना० ११५१४७ ४. गच्छामि ( क ) । ५. प्र० ६ ३५ । ६. ग्रं० ६।३५ । ७. सं० पा० तीसे य धम्मकहा । पू- ओ० सू० ७१-७७ । ८. सं० पा०-हट्टु । ६. सं० पा० पावयणं जाव अब्भुमि । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ अंतगडदसायो भंते ! निग्गंथं पावयणं °, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।। ५२. तए णं से अज्जुणए मालागारे उत्तर पुरथिमं दिसीभागं अवक्कमइ, प्रवक्क मित्ता° सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जाव' अणगारे जाए', 'से णं वासीचंदणकप्पे समतिणमणि-लेट्ठकंचणे समसुहदुक्खे इहलोग-परलोग-अप्पडिबद्धे जीविय-मरण-निरवकखे संसारपारगामी कम्मनिग्घायणट्ठाए एवं च णं° विहरइ ।। अज्जुणअणगारस्स तितिवखा-पदं ५३. तए णं से अज्जुणए अणगारे जं चेव दिवसं मुंडे' 'भवित्ता अगाराप्रो अणगा रियं पव्वइए तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं ओगेण्हइ - कप्पइ मे जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं तबोकम्मेण अप्पाण भावमाणस्स बिहरित्तए त्ति कटु अयमेयारूवं अभिग्गह', प्रोगेण्हइ प्रोगेण्हित्ता जावज्जीवाए 'छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ।। ५४. तए णं से अज्जुणए अणगारे छटुक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ", •बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए जहा गोयमसामी जाव" रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खाय रियं अडइ ।। ५५. तए ण तं अज्जुणयं अणगारं रायगिहे नवरे उच्च" नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणं वहवे इत्थीयो य पुरिसा य डहरा य महल्ला य जुवाणा य एवं वयासी- इमेण मे पिता मारिए। इमेण मे माता मारिया । इमेण मे भाया भगिणी भज्जा पुत्ते धूया सुण्हा मारिया । इमेण मे अण्णायरे सयण-संवधि-परियणे मारिए त्ति कटट अप्पेगइया प्रक्कोसंति. अप्पे गइना होलंति निदंति खिसंति गरिहति तज्जति तालति ।। --...-...- ..-- -- -- - १. सं० पा०-उत्तर । ८. 'अभिग्नहं ओगेण्हेइ' इति द्विरुक्त: पाठोस्ति। २. ना० ११५.३४, ३५ । है. सं पा० --जावज्जीवाए जाव विहरइ । ३. सं० पा०-अणगारे जाए जाव विहर।। १०. X(घ)। पू०-ना० ११५१३५,३६ । ११. सं० पा-करेइ जहा गोयमसामी जाव ४. सं० पा०-मुंडे जाब पव्वइए । अड। ५. ओगहं (क, ख, ग)। १२. भ० २.१०७ १०५ । ६. X (क, ख, ग}1 १३. सं० पा०-उच्च जाव अडमागं । ७. ओग्गहं (क, ख, ग)। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छुट्टो वग्गो-४-१४ अज्झयणाणि ५८७ ५६. तए णं से अज्जुणए अणगारे तेहिं बहहिं इत्थीहि य पुरिसेहि य डहरेहि य महल्लेहि य जुवाणएहि य प्रायोसिज्जमाणे जाव' तालेज्जमाणे तेसिं मणसा वि अपउस्समाणे सम्म सहइ सम्म खमइ सम्म तितिक्खाइ सम्म अहियासेइ, सम्म सहमाणे सम्म खममाणे सम्म तितिक्खमाणे सम्म अहियासेमाणे रायगिहे नयरे उच्च-णीय-मज्झिम-कुलाइं अडमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं न लभइ, ग्रह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ ।।। ५७. तए णं से अज्जुणए अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अणाइले अविसादी अपरितंतजोगी अडइ, अडित्ता रायगिहाओ नगरायो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवनो महावीरस्स अदरसामते गमणागमणाए पडिक्कमेइ, पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं पालोएइ, अालोएत्ता भत्तपाणं ° पडिदंसेइ, पडिदसेत्ता समजेणं भगवया महावीरेणं अभणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं तमा हारं आहारे। ५८. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया रायगिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। अज्जुणप्रणगारस्स सिद्धि-पदं ५६. तए णं से अज्जुणए अणगारे तेणं अोरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं महाणु भागेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए सलेहणाए अप्पाण भूसेइ, झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्टाए कोरइ नम्गभावे जाव सिद्धे ।। ४-१४ अज्झयणाणि कासवादि-पदं ६०. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। कासवे नाम गाहावई परिवसइ । जहा मकाई। सोलस वासा परियायो। विपुले सिद्धे ।। गोयमसामी १. आतोसिज्जमाणे (क, ख, ग,)। २. अं० ६१५५ । ३. जोती (क, ख, ग,)। ४. स० पा० --जहा पडिदंसेइ। ५. ओ० सू० १५४ ६. पं०६५-८ । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ अंतगडदसामो ६१. एवं'-खेमए वि गाहावई, नवरं--कायंदी नयरी। सोलस वासा परियारो। विपुले पव्वए सिद्धे ।। ६२. एवं'-धिइहरे वि गाहावई कायंदीए नयरीए। सोलस वासा परियायो । विपुले सिद्ध ॥ ६३. एवं-केलासे विगाहावई, नवरं-साएए नयरे । बारस वासाई परियायो। विपुले सिद्धे ॥ ६४. एवं-हरिचंदणे वि गाहावई साएए नयरे । बारस वासा परियायो। विपुले सिद्धे ।। ६५. एवं-वारत्तए वि गाहावई, नवरं--रायगिहे नगरे । वारस वासा परियायो । विपुले सिद्धे ।। ६६. एवं – सुदंसणे वि गाहावई, नवरं - वाणियग्गामे नयरे। दूइपलासए चेइए। पच वासा परियाओ! विपुले सिद्धे ।। ६७. एवं' –पुण्णभद्दे वि गाहावई वाणियग्गामे नयरे । पंचवासा परियायो । विपुले सिद्धे ।। ६८. एव--सुमणभद्दे वि गाहावई सावत्थीए नयरोए। बहुवासाइं परियायो । विपुले सिद्धे ॥ ६६. एवं -सुघइडे विगाहावई सावत्थीए नयरीए । सत्तावीसं वासा परियाप्रो । विपुले सिद्धे ।। ७०. एवं - मेहे वि गाहावई रायगिहे नयरे । बहूई वासाइ परियायो। विपुले सिद्धे ॥ १-१०. अं० ६।४८1 . Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणरसमं अज्मयणं अइमुत्ते प्रइमुत्तकुमार-पदं ७१. तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे नगरे । सिरिवणे उज्जाणे ।। ७२. तत्थ णं पोलासपुरे नयरे विजये नामं राया होत्था ।। ७३. तस्स णं विजयस्स रण्णो सिरि नामं देवी होत्था--वण्णओ ।। ७४. तस्स णं विजयस्स रण्णो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अतिमुत्ते नाम कुमारे होत्था--सूमालपाणिपाए। गोयमस्स भिक्खायरिया-पदं ७५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' सिरिवणे •उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिछिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ७६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवरो महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूती अणगारे जहा पण्णत्तीए जाव' पोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं° अडइ ।। गोयम-अइमुत्तकुमार-संवाद-पदं ७७. इमं च णं अइमुत्ते कुमारे पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए बहहिं दारएहि य दारिया हि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि १. ओ० सू० १५। २. पू०-ओ० सू० १४३ । ३. अं० ६.३३ । ४. सं० पा०–सिरिवणे विहरई । ५. भ० २११०६-१०६ । ६. सं० पा०-उच्च जाव अडइ । ७. ग्रं० ३१४४ । ५८३ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० अंतगडद साओ संपरिवडे सानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इंदट्टाणे तेणेव उवागए । तेहि बहूहि दारएहि य संपरिवुडे अभिरममाणे श्रभिरममाणे विहरइ || o ७८. तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे नयरे उच्च'- नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदास भिखारियाए ग्रडमाणे इंदद्वाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ || ७६. तणं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं प्रदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए, भगवं गोयमं एवं वयासी के गं भंते ! तुब्भे ? किंवा अडह ? ८०. तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी- अम्हे णं देवाणुप्पिया ! समणा निम्गंथा इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारी उच्च'- नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए • ग्रामो !! ८१. तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी - एह णं भंते ! तुभे जाणं * ग्रहं तुभं भिक्खं दवावेमी त्ति कट्टु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, गेव्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए || ८२. तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हतुट्टा ग्रासणाम्रो अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्टेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया । भगवं गोयमं तिक्त प्रायाहिण -पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता विउलेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिविसज्जेइ || ८३. तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी - कहिं णं भंते ! तुन्भे परिवसह ? ८४. तए गं से भगवं गोयमे ग्रइमुत्तं कुमारं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम धम्मारिए धम्मोवएसए' समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे अहापडिरूवं श्रहं गिहित्ता संजमेणं" "तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तत्थ णं हे परिवसामो || श्रइमुत्तकुमारस्स पव्वज्जा-पदं ८५. तए णं से श्रइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी -- गच्छामि णं भंते ! श्रहं भेहिं सद्धि समणं भगवं महावीरं पायवंदए । हासु देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि || १. सं० पा० - उच्च जाव अडमाणे । २. ना० १।१।१६४ । ३. सं० पा– उच्च जाव अडामो । ४. जेणेव (ख, घ) । ५. धम्मोवएसए नेतारी (ख, घ) । ६. ओ० सू० १६ । ७. सं० पा० - संजमेणं जाव भावेमाणे । धम्मतेवरी ( क ) ; धम्मे Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८. छट्ठो वग्गो-पारसमं अज्झयणं (अइमुत्ते) ८६. तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवया गोयमेणं सद्धि जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महाबोरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ जाव' पज्जुवासइ ।। ८७. तए णं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए, •उवागच्छित्ता समणस्स भगवनो महावीरस्म अदरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमेइ. पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं पालोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं • पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स तीसे य' •महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्म माइक्खइ° । ८६. तए णं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतुट्टे एवं वथासी सहामि णं भंते ! निग्गथं पाबयणं जाव' जं नवरं-देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो ग्रापुच्छामि तए णं ग्रहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। ६०. तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए जाव' इच्छामि णं अम्मयानो ! तुम्भेहिं अभणुण्णाए समाणे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए । ६१. तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-वाले सि ताव तुमं पुत्ता ! असंबुद्धे, कि णं तुमं जाणसि धम्म ? १२. तए णं से अइमत्ते कमारे अम्मापियरो एवं वयासी- एवं खल अहं अम्मयानो! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि ।। ६३. तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी- कह णं तुमं पुत्ता ! जं चेव जाणसि तं चेव न जाणसि ? जं चेव न जाणसि तं चेव जाणसि ? ६४. तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-जाणामि अहं अम्म यानो! जहा जाएणं अवस्स मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाओ ! काहे वा कहिं वा कहं वा कियच्चिरेण वा ? न जाणामि णं अम्मयामो ! केहि कम्माययणेहि" जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेसु उववज्जति, १. अं०६॥३५॥ २. सं० पा०-उवागए जाव पडिदंसेइ । ३. सं० पा०--तीसे य धम्मकहा । ४. पू०-अं० ६१५१ । ५. ना० १११।१०१ ६. अ०५।२१ । ७. अं० ३१६४-६६। ८. X(क)। ६. जाणासि (ख, ग)। १०. केवचिरेण (क, ख, ग, घ,)। ११. कम्मायारेहिं (क); कम्मायाणेहि (ख, ग); कम्मावयणेहिं (वृपा)। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ अंतगडदसामओ जाणामि णं' अम्मयानो ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेसु° उववज्जति । एवं खलु अहं अम्मयानो ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि । तं इच्छामि णं अम्मयानो! तुभेहिं अभणुण्णाए जाव' पव्व इत्तए ।। ६५. तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियो जाहे नो संचाएंति बर्हि आघवणाहि' 'य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामकाई चेव अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी ०-तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रायसिरिं पासेत्तए। १६. तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ । अभिसेप्रो जहा महब्बलस्स' निक्खमणं जाव' सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ । बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, गुणरयणं तवोकम्म जाब विपुले सिद्धे । - --- सोलसमं अज्झयणं अलक्के अलक्क-पदं ६७. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नयरी, काममहावणे चेइए॥ १८. तत्थ णं वाणारसीए अलक्के नाम राया होत्था । ६६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' विहरइ। परिसा निग्गया । १००. तए णं अलक्के राया इमोसे कहाए लट्ठे हट्टतुटे जहा कोणिए जाव" पज्जुवा सइ । धम्मकहा ॥ १. हं (ख)। २. सं० पा०-नेरइय जाव उववज्जति । ३. अं०६।१०। ४. सं० पा०-आघवणाहि । ५. महाबलस्स (क, घ)। भ० ११११६८! ६. भ० ११११६८,१६६। ७. X (क, ख, ग,)। ८. अं० १२३,२४। ६. अं०६।३३। १०. ओ० सू० ५४-६६ । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्गो-सोतसमं अज्झयणं (अलक्के) १०१. तए णं से अलक्के राया समणस्स भगवनो महावीरस्स अतिए जहा उद्दायण' तहा निक्खंते, नवरं...-जेट्टपुत्तं रज्ज अभिसिंचइ । एक्कारस अगाई। बहू वासा परियाओ जाव विपुल सिद्ध । निक्खेव-पदं १०२. एवं खलु जंवू ! समणणं भगवया महाबोरेण अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं' छट्ठमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्तं ।। ३. स० पा०-समणेणं जाव छट्स्स ! १. भग०१३।१०८-११६ । २. अं० ६६६ । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वग्गो १-१३ अज्झयणाणि उक्खे व-पदं १. जइ णं भंते' ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं अटुमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं __ छट्ठस्स वग्गस्स अयम? पण्णते, सत्तमस्स वग्गस्स के 8 पणते ? २. एव खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. नदा तह २. नंदबई, ३. नंदुत्तर ४. नंदिसेणिया चेव ५. ममता ६. सुमरुता ७. महमरुत्ता ८. मरुदेवा य अट्ठमा ।।१।। ६. भद्दा य १०. सुभद्दा य, ११. सुजाया १२. सुमणाइया १३. भूयदिण्णा य वोधवा, सेणियभज्जाण नामाइं ।।२।। ३. जइ ण भते' 'समणेणं भगवया महावीरेणं अमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स० तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्सणं भंते ! अझयणस्स अंतगडदसाणं के अट्टे पण्णत्ते ? नंदादि-पदं ४. एवं खलु जवू ! तेण काल ग तेणं समएण रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया--वण्णो ' ।। ५. तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नाम देवी होत्था---वण्णों । सामी समोसढे । परिसा निग्गया ।। ६. ता णं सा नंदा देवी इमीसे कहाए लट्ठा हट्टतुट्ठा कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता जाणं दुम्हइ, जहा पउमावई जाव' एक्कारस अगाई अहिज्जित्ता वीसं वासाई परियायो जात्र सिद्धा।। ७. एवं तेरम वि देवीयो नंदागमण नेयव्वाग्रो ।। --. १. म० पा० जइ ण भंते ! मत्तमम्स वग्गरस उवखेवओ जाव तेरस। २. नदमती (क); नंदसती (ख)। ३. सं० पा०---जइणं भंते ! तेस । ४. ग्रो० मू०१५। ५. ओ० मू०१५। ६. अ० ५।२१-३१॥ ७. पं० ५१३२ ८. अं. ॥३-६। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो वग्गो पढमं अज्झयणं कालो उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! *समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्त, अट्टमस्स वग्गस्स के अट्टे पाणत ? २. एवं खलु जंबू ! समर्श गं भगवया महाबारेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठमस्स वग्गस्स ° दम अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - संगहणी-गाहा १. काली २. सुकाली ३. महाकाली, ४. कण्हा ५. सुकण्हा ६. महाकण्हा । ७. वीरकण्हाय वोधव्वा, ८. रामकण्हा तहेव य । ६. पिउसेणकण्हा नवमी, दसमी १०. महासे णकण्हा य ॥१॥ ३. जइ •ण भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अटे पण्णते? कालीए रयणावलितव-पदं ४. एवं खलु जबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए ॥ ५. तत्थ णं चपाए नयरीए कोणिए राया-वण्णो ' ।। ६. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रणो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया, १. सं० पा० -जइ णं भते ! अट्ट मस्स वग्गस्स उखेवओ जाव दस । २. सं० पा० - इ दस । ३. ओ० सू०१४ । ५६५ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंत गडदसाओ · कालो नापं देवी होत्था - वण्णो । जहा नंदा जाव' सामाइयमाइयाई एक्कारस श्रंगाई श्रहिज्जइ । बहूहि चउत्थ छट्टट्ठम- दसम दुवालसेहि मासमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ || ७. तए णं सा काली प्रज्जा अण्णया कयाइ जेणेव श्रज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं ग्रज्जायो ! तुम्भेहिं अब्भणुष्णाया समाणी रयणावलिं तवं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । ग्रहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबधं करेहि || ८. तए णं सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अन्भणुष्णाया समाणी रयणावलि तवं उवसंपज्जित्ताणं विहरण, तं जहा चउत्थं छट्ठ अट्टमं अट्ट छट्टाई चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ | करेड़, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ | करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेंड, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । बावीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे । चवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ | छव्वीस मं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । अट्ठावीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । तीस मं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ | चोत्तीस छुट्टाई करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । बत्तीसइमं चोत्तीसइमं ५६६ छट्टु अमं दसमं दुवालसमं चोदसमं सोलसमं ग्रहारसमं वीसइम १. ओ० सू० १५ । २. अं० ७।५,६ । ३. सं० पा० - चउत्थ जाव प्रमाण ४. भावे माणा ( ग ) । ५. अट्ठारसं ( क ) । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो वग्गो-पढ मं अज्झयणं (काली) ५.६७ चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्व कामगुणियं पारेइ । बत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । तीसइम करेइ, करेत्ता सव्व कामगुणियं पारे । अट्ठावीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । छन्वीसइमं करेइ, करेत्ता सबकामगुणियं पारेइ। चउवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । बावीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । अटारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । चोदसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । वारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । दसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे।। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठ छट्ठाई करेइ, करेत्ता सब्दकामगुणिय पारेइ । अट्टम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । एवं खलु एसा रयणावलीए तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी एगेणं संवच्छरेणं तिहिं मासेहि बावीसाए य अहोरत्तेहि अहासुत्तं ग्रहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तोरिया किट्टिया प्राराहिया भवइ ।। तयाणंतरं च णं दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेइ, करेता विगइवज्जं पारे । छटुं करेइ, करेत्ता विगइवज्ज पारेइ। एवं जहा पढमाए परिवाडीए तहा बीयाए वि, नवरं-सव्वपारणए' विगइवज्ज पारेइ। एवं खलु एसा रयणावलीए तवोकम्मस्स बिइया परिवाडी एगेणं संवच्छरेणं तिहि मासेहिं बावीसाए य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव ° पाराहिया भवई ।। १. सं० पा०---अहासुत्तं जाव आराहिया । २. सव्वस्थपारणए (ख, ग, घ)। ३. सं० पा०...पारेइ जाव आराहिया ! ४. अं० ८८! Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ प्रतगडदसाम्रो १०. तयाणंतरं च णं तच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेइ, करेत्ता अलेवार्ड पारेइ । सेसं तहेव । नवरं अलेवाडं पारेइ ।। ११. एवं च उत्था परिवाडी। नवरं सव्वपारणए आयंबिलं पारेइ । सेसं तं चेव ।। संगहणी-गाहा 'पढममि सब्वकामं, पारणय" विइयए विगइवज्ज । तइयंमि अलेवाडं, आयंबिलमो चउत्थम्मि ।।१।। १२. तए णं सा काली अज्जा रयणावली-तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहि दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव पाराहेत्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्ज वंदई नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूर्हि चउत्थ जाव' अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ।। १३. तए णं सा कालो अज्जा तेणं योरालेणं' विउलणं पयत्तेणं पम्गहिएणं कल्लाणणं सिवेणं घण्णणं मंगल्लेणं सस्सि रोएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारणं महाभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्टिचम्मावणद्धा किडिकिडियाभूया किसा• धमणिसंतया जाया यावि होत्था 'जीवंजीवेण गच्छइ जाव सुहुयहुयासणे" इव भासरासिपलिच्छण्णा तवेणं, तेएणं, तवतेय सिरीए अईव-अईव उवसोहेमाणी-उवसोहेमाणी चिट्ठइ ।। १४. तए ण तीसे कालीए प्रज्जाए अण्णया कयाइ पुब्बरत्तावरत्तकाले अयमज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, जहा खंदयस्स चिंता जाव' अस्थि उट्ठाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणाए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अज्जचंदणं अज्ज प्रापुच्छित्ता अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णायाए समाणीए सलेहणा-झूसणा-झूसियाए भत्तपाण-पडियाइक्खियाए कालं अणवकंखमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागाच्छत्ता अज्जचंदण अज्ज वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-इच्छामि णं अज्जो ! तुभेहि अब्भणुण्णाया समाणी संलहणा-झूसणा-झूसियाए भत्तपाण-पडियाइविखयाए कालं अणवकंखमाणीए° विहरित्तए। अहासुहं ।। १. पढ़मंसि सव्वकामपारणयंसि (क); पढ़मंसि ६. से जहा इंगाल जाव सहयहयासणे (क, ख, सब्वगुणिए पारणकं (वृपा)। ___ग, घ.)। २. अं० ८८ ७. भ० २०६६ ३. अं० ८।६। ८. ना० १.१॥२४॥ ४. सं० पा०-उरालेणं जाव धम्मणिसंतया। ६. सं० पा०-संलेहणा जाव विहरित्तए। ५. भ० २०६४1 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमो वग्गो बीयं ग्रज्भवणं ( सुकाली) १५. तए णं सा काली ग्रज्जा ग्रज्जचंदणाए अब्भणुष्णाया समाणा संलेहणा-भूसणाभूसिया जाव' विहरइ || १६. तए णं सा काली ग्रज्जा श्रज्जचंदणाए ऋतिए सामाइयमाइवाई एक्कारस गाई जित्ता हुडपुण्णाई श्रट्ठ संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए ग्रत्ताणं सित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव चरिमुस्सासेहिं सिद्धा ।। १७. निक्खवओ ।। वीयं यणं सुकाली सुकालीए कणगावलितव-पदं १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्यभद्दे चेइए । कोणिए राया ।। १६. तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया, सुकाली नाम देवी होत्था । जहा काली तहा सुकाली व निवखता जाव' यहूहि जाव तोकस्मेहिं पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ १. प्र० ८।१४ । २. ओ० सू० १५४ ३. चरिमुसासनिस्सासहि (ख, ग ) 1 ४,५. ० ६।६ । २०. तए णं सा सुकाली ग्रज्जा अण्णया कयाइ जेणेव प्रज्जचंदणा अज्जा' "तेशेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी । इच्छामि गं ग्रज्जाओ ! तुब्भेहि अभगुणाया समाणी कणगावली-तबोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरितए । एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं: -तिसु ठाणेसु श्रट्टमाई करेड़, जहि रयणावलीए छट्टाई ! एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा वारस य ग्रहोरता । चउण्ं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा । सेसं तहेव" । नव वासा परियाप्रो जाव' सिद्धा ॥ ५६६ ६. सं० पा० - प्रज्जा जाव इच्च्छामि । ७. प्र० ८।१२-१६ । ८. ०२११६ । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० महाकालीए खड्डागसीहनिक्कीलियतव-पदं २१. एवं - महाकाली वि, नवरं - खुड्डागं सीनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा - चउत्थ छट्ठ चउत्थ मं छट्ठ दसम अट्टमं दुवालसमं दसमं चोदसमं दुवालसं सोलसमं बारसमं चोदसमं दसम १. अं० ८१६-८ । तइयं यणं महाकाली करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेता करेत्ता करेत्ता करेइ, करेड़, करेइ, करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेता करेइ, करेता करेइ, करता चोदसमं करेइ, करेत्ता अट्ठारसमं करेंइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेता वीसइमं करेइ, करेत्ता अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता वीसइमं करेइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेत्ता अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता चोहसमं करेइ, करेता सोलसमं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेता करेइ, करेता सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं यंत गडदसाओ पारेइ ! पारे । पारेइ | पारेइ | पारे । पारेइ | पारे । पारेइ । पारेइ | पारेइ । पारेइ ! पारे । पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारे । पारे । पारे । पारेइ । पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारे । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करेइ, अट्ठमो वगो-पंचमं अज्झयणं (सुकण्हा) ६०१ वारसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे।। अट्टमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अनुमं करेइ, करेत्ता सम्बकामगणिय पारे। चउत्थं करेड, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । छटुं करेइ, करेत्ता सब्बकामगुणियं पारे । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । तहेव चत्तारि परिवाडीयो। एक्काए परिवाडीए छम्मासा सत्त य दिवसा । चउण्हं दो वरिसा अट्ठावीसा य दिवसा जाव' सिद्धा ।। चउत्थं अज्झयणं कण्हा कण्हाए महालयसीहनिक्कीलियतव-पदं २२. एवं'-कण्हा वि, नवरं---महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्म जहेव खड्डागं, नवरं- चोत्तीस इमं जाव नेयव्वं । 'तहेव प्रोसारेयव्वं । एक्काए परिसं छम्मासा अट्ठारस य दिवसा । चउण्हं छव्वरिसा दो मासा बारस य अहोरत्ता। सेसं जहा कालीए जाव' सिद्धा!! पंचमं अज्झयणं सुकण्हा सुकण्हाए भिक्खुपडिमा-पदं २३. एवं सुकण्हा वि, नवरं--सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। १. अं० ८।१२-१६ । २. अं० ८।६-८। ३. X (क)। ४. यं०८।१२-१६ । ५. अं० १६-८॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ अतगडदसाओ पढमे सत्तए एक्कक्कं भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स । दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ । तच्चे सत्तए तिषिण-तिणि दत्तीग्रो भोयणस्स, तिष्णि-तिणि दत्तीयो पाणयस्स। च उत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीग्रो भोयणस्स, चत्तारि-चतारि दत्तीयो पाणयस्स। पंचमे सत्तए गंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीयो पाणयस्स । छट्टे सत्तए छ-छ दत्तीयो भोयणस्स, छ-छ दत्तीअो पाणयस्स । सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीग्रो भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ। एवं खलु एवं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं एगूणपण्णाए रातिदिह एगेण य छण्ण उएण भिक्खासएणं ग्रहासुत्तं जाव पाराहेत्ता जेणेव मज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्जं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासो-इच्छामि णं अज्जायो ! तुहि अब्भण्ण्णाया समाणी अमिय भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरेत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेहि ॥ २४. तए ण सा सुकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी अमिय भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ--- पढम अदए एक्के क्कं भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केवकं पाणयस्स जाव अट्टमे अट्ठए अट्ठ भोयणस्स पडिगाहेइ, अट्ठ पाणयस्स । एवं खलु एयं अट्ठमियं भिवखुपडिमं च उसट्ठीए रातिदिएहि दोहि य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहि अहासुतं' आराहेत्ता जाव' नवनवमियं भिवखुडिम उपसंपज्जित्ता णं विहरइपढमे नवए एक्केवक भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केवक पाणयस्स" जाव नवमे नवए नव-नव दत्तीग्रो भोयणस्स पडिगाहेइ, नव-नव पाणयस्स । एवं खलु एयं नवनवमयं भिवखुपडिम एक्कासीतिए राइदिएहि चउहि य पंचत्तरहि भिवखासएहि अहासुत्त' आराहेत्ता जाव' दसदसमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ--- पढमे दसए एक्केवक भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव १. यं० ८।८ ! २. पू०.-० ८.२३ । ३. अं. ८१२३। ४. पाणस्स (क, ख, ग, घ)। ५. पू०--अ० ८१२३ । ६. ३० का२३ । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो वग्गो-टुं अज्झयणं (महाकण्हा) दसमे दसए दस-दस दत्तीपो भोयणस्स पडिगाहेइ, दस-दस पाणयस्स। एवं खलु एयं दस दस मियं भिक्खपडिम एक्केणं राइंदियसएणं अद्धछडेहि य भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव' आराहेइ, नाराहेत्ता बहूहिं च उत्थ-छट्टट्ठम-दसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि विविहेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।। २५. तए णं सा सूकण्हा अज्जा तेणं योरालेणं तवोकम्मेणं जाव' सिद्धा !! २६. निक्खेवप्रो ।। छठें अज्झयणं महाकण्हा महाकण्हाए खुड्डागसव्वग्रोभद्द-पदं २७. एवं ---महाकण्हा वि, नवरं-खुड्डागं सब्बो भद्दे पडिम' उवसंपज्जित्ता ण विहरइ-- चउत्थं करे, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे।। छटुं करेइ, करेड, करेत्ता सव्वकामगणियं पारे । अट्ठमं करेइ, करेत्ता सम्वकामगणियं पारेइ । दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सम्वकामगणियं सव्वकामगुणियं पारे। अट्रमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ । दसमं करे, करेत्ता सव पारे। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । च उत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेता सव्वकामगणियं पारेइ । दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वका पारे। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ। य १. अं०८।। २. पू०-अं० ८।१३ । ३. अं० ८.१३-१६ । ४. अं०१६-८ । ५. X (क, ख, ग, घ)। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ अतगड दसामो छटुं पारे। पारे। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं दसमं करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेड. करेत्ता सव्व कामगुणियं पारेइ । चउत्थं करेद, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । दसम करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । दुवालसमं करेइ, करेत्ता सवकामगुणियं पारेइ । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । अद्वमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। एवं खलु एयं खुड्डागसव्वोभद्दस्स तवोकम्मस्स पढमं परिवाडि तिहिं मासेहि दसहि य दिवसेहि अहासुत्तं जाव पाराहेत्ता दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेइ, करेत्ता विगइवज्ज पारेइ, पारेत्ता जहा रयणावलीए तहा एत्थ वि चत्तारि परिवाडीग्रो। पारणा तहेव । चउण्हं कालो संवच्छरो मासो दस य दिवसा। सेसं तहेव जाव सिद्धा॥ २८. निवखेवओ।। सत्तमं अज्झयणं वीरकण्हा वीरकण्हाए महालयसवओभद्दपडिमा-पदं २६. एवं-वीरकण्हा वि, नवरं–महालयं सव्वोभई तवोकम्म उवसंपज्जित्ता ण विहरइ, तं जहाचउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । अट्ठभं करेइ, करेत्ता पारे। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । सव्वक ३. अं० ८।६-८ । १. अं० ८।८। २. अं०८।१२-१६ । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमो बग्गो-सत्तमं अज्झयणं (वीरकण्हा) ६०५ करेइ, करेइ, करेइ, करेइ, करेइ, करेइ, करेइ, दुवालसमं करेइ, चोद्दसमं करेइ, सोलसमं करेइ, दसम दुवालसम चोदसम करेइ, सोलसम चउत्थं करेइ, अट्टम सोलसम करेइ, चउत्थं करेइ, छटुं अट्टम दसम करेइ, दुवालसम करेइ, चोइसम करेइ, दसम करेइ, दुवालसमं चोद्दसमं सोलसम चउत्थं करइ, करेइ, चोद्दसमं करेइ, सोलसम चउत्थ छ8 करेइ, करेइ, दसम दुवालसम छट्टै करेइ, अट्ठमं करेइ, दसम __ करेइ, करेत्ता करेत्ता। करेता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करत्ता करत्ता करत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सब्वकामगुणियं सव्वकामगणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सब्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्व कामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं पारे । पारेइ । पारे । पारेइ । पारेइ ! पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारे। पारेइ । पारे। पारेइ। पारे। पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारे । पारेइ । पारेइ । पारे। पारे। पारे। पारे। पारेइ । पारेइ। पारेइ। पारे । पारेइ । पारेइ। पारेइ । पारेइ । पारे। अट्टम करेत्ता अट्टम करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करता करेत्ता Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ दुवालसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ। चोद्दसम करेइ. करेत्ता सब्दकामगुणिय पारइ। सोलसम करेइ, करेता सबकामगुणियं पारे। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारई। दुवालसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोद्दसम करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे। सोलसम करेइ, करेत्ता सम्वकामगुणिय पारेइ। चउत्थं करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे। करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्टमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसम करेइ, करेत्ता पारे। एक्काए कालो भट्ट मासा पंच य दिवसा। चउण्हं दो वासा अट्ठ मासा वीस य दिवसा । सेस तहेव जाव' सिद्धा।। करेइ, करेइ, छ? अट्ठम अज्झयणं रामकण्हा रामकण्हाए भद्दोत्तरपडिमा-पदं ३०. एवं'-रामकण्हा वि, नवरं-भद्दोत्तरपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा-- दुवालसमं करेइ, करेत्ता सम्बकामगुणिय पारे। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ । सोलसम करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे । अट्ठारसम करइ, करेत्ता पारे। वीसइम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । सोलसम करेइ, सबकामगुणियं पारे । अट्ठारसम करेइ, करेत्ता पारे। वीसइम करेइ, करेत्ता पारेइ। दुवालसम करेत्ता पारेइ । चोद्दसमं करेइ, करेता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेत्ता सव सव्व १. अं० ८।१२-१६ २. अ० ८६-८ । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो वग्गो--नवम अज्झयणं (पिउसेणकण्हा) करेइ, वोसइम करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता । सब्वकामगुणिय पारे। चोद्दसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं सारेद। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सन्चकामगुणियं पारेइ । चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । सोलसम करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठारसम करेइ, करेत्ता सब पारे। वीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारे । दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । ग्रवारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । वीसइमं करेइ, करेता सव्वकामगुणियं पारे । दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोदसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारइ । सोलसम करेइ, करेत्ता स पारे। एक्काए कालो छम्मासा बोस य दिवसा। च उण्हं काला दा वारसा दा मासा वोस य दिवसा । सेसं तहेव जहा कालो जाव' सिद्धा ।। नवमं अज्झयणं पिउसेणकण्हा पिउसेणकण्हार मुत्तावलितव-पदं ३१. एवं' –पि उसेणकण्हा वि, नवरं-मुत्तावलि तवो कम्म उवसंपज्जिता गं विहरह, त जहा--- १. 'दिवसा' शब्दस्य पश्चात् वाचनान्तरे प्रतिमात्रयस्य लक्षण-गाया उपलभ्यते, यथा आई दोन्ह चउत्थं, पाई भद्दोत्तराए वारसमं । बारराम सोलसम, वीस इमं चेव चरिमाइ॥१॥ पढम तइय तो जाव, चरिमय ऊणमाइओ पूरे । पचय परिवाडीओ, खुडग-भदुत्तराए य ॥२॥ पढगं तु चउत्थं, जाव चरिमयं ऊणमाइओ पूरे । सत्त य परिवाडीओ, महालए सवओभद्दे ॥३॥ २. अं० ८.१२.१६ । ३. यं० ८१६-८। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ करेइ, करता करेइ, करेइ, अट्ठ करेइ, करता चउत्थं करेइ, करेता दसमं करेंइ, करेत्ता चउत्थं करेइ, करता दुवालसमं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेत्ता चउत्थं छट्टु च उत्थं चउत्थ चोसम चउत्थ सोलसमं करेत्ता करेत्ता करई, करंइ, करेत्ता चउत्थ करेइ, करेत्ता अट्ठारसमं करेइ, करेता चउत्थ करेइ, करेता वोसइम करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ, करेत्ता बावोसइमं करेइ, करेता चउत्थं करेइ, करेत्ता चवीसइमं करेइ, करेत्ता च उत्थं करेइ, करेत्ता छवीसइमं करेइ, करेता चउत्थं करेइ, करेत्ता against करेइ, करेता चउत्थ करेइ, करेत्ता तीसइमं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ, करेत्ता बत्तीस करेइ, करेत्ता च उत्थ करेइ, करेता चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ, करेत्ता बत्तीसइमं करेइ, करेता सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणयं सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं अंत गडद साओ पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारे । पारे । पारे३ | पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारे । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारे | पारे । पारे | पारेइ | पारे । पारेइ । पारेइ । पाइ | पारेइ | पारे । पारेइ पारेइ | Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदमो वग्गो ---दसमं अज्झयणं (महासेण कण्हा) एवं तहेव ओसारेइ जाव च उत्यं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । एक्काए कालो एक्कारस मासा पण्णरस य दिवसा। च उण्हं तिणि वरिसा दस य मासा । सेसं जाव' सिद्धा ।। करे । करेइ । दसमं अज्झयणं महासेणकण्हा महासेणकण्हाए आयंबिलवड्ढमाणतव-पदं ३२. एव'-महासेणकण्हा वि, नवरं --प्रायबिलवड्डमाणं तवोकम्म उवसंपज्जिता णं विहरइ, तं जहा आयबिलं करेइ, करेत्ता चउत्थं बे आयंबिलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करे। तिणि आयंबिलाइं करेइ, करेता चउत्थ चत्तारि प्रायबिलाई करेइ, करेता चउत्थं करेइ । पंच प्रायविलाई करेइ, करेत्ता च उत्थं करे। छ आयंविलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ । एवं एक्कुत्तरियाए वड्डोए प्रायंबिलाई वड्दति च उत्थंतरियाइं जाव आयंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ ॥ ३३. तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्डमाणं तवोकम्मं चोदसहिं वासे हिं तिहि य मासेहि वोसहि य अहोरत्तेहिं 'अहासुत्तं जाव' पाराहेत्ता" जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता वंदइ नमसाइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं च उत्थ- छट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि विविहेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं ° भावेमाणो विहरइ ।। ३४. तए णं सा महासेणकण्हा' अज्जा तेणं अोरालेणं जाव' तवेणं तेएणं तवतेय सिरीए अईव-अईव उवसोहेमाणी चिट्ठइ ॥ १. अं० ८।१२-१६ ॥ २. अ० ८१६-८ ३. अं० था। '४. अहासुत्तं जाव सम्म' कारणं फासेइ जाव आराहेत्ता (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा० ---च उत्थ जाव भावेमाणी। ६. महसेणकण्हा (क, ख,) । ७. अं० ८।१३। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० अंतगडदसाओ ३५. तए णं तोसे महासेणकण्हाए अज्जाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्ताव रत्तकाले चिता जहा खंदयस्स जाव' अज्जचंदणं अज्ज आपुच्छइ ॥ ३६. "तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा-झूसणा-झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया' कालं प्रणव कंख माणी विहरइ॥ ३७. तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्ज्चंदणाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइं सत्तरस वासाइं परियायं पाल इत्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं' झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव तमटुं पाराहेइ, अाराहेत्ता चरिम उस्सासनिस्सासेहि सिद्धा ।। संगहणी-गाहा अट्ठ य वासा पाई, एक्कोत्तरयाए जाव सत्तरस । एसो खलु परियाओ, सेणियभज्जाण नायव्वो ॥१॥ निक्खेव-पदं ३८. एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमद्वे पण्णत्ते ।। परिसेसो अंतगडदसाण अंगस्स एगो सुयखंधो । अट्ठ वग्गा । अवसु चेव दिवसेसु उद्दिस्सति । तत्थ पढमविइयवग्गे दस-दस उद्देसगा । तइयवग्गे तेरस उद्देसगा । चउत्थपंचमवग्गे दस-दस उद्देसगा । छठ्ठवग्गे सोलस उद्देसगा! सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा । अट्ठमवग्गे दस उद्देमगा । सेसं जहा नायाधम्मकहाणं ।। ग्रन्थ परिमाण कूल अक्षर---४००५१ अनुष्टुप् श्लोक-१२५१ अ० १६ १. भ० २१६६ । २. पू.....० ८.१४ । ३. सं० पा०-जाव संलेहणा कालं । ४. प्रत्ताणं (क)। ५. ओ० सू० १५४ । ६. चरिम उस्सासेहि (ख, ग)। ७. ना० ११२७ २. उद्दिस्सिज्जति (क्व)। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकहाओ संक्षिप्त-पाठ पूर्त-स्थल पूर्ति आधार-स्थल अंतिए जाव पव्वयामि २११०२५ १११।१०१ अंतेउरे य जाव अज्झोववणे ११६।४१ १२१६२८ अगडे वा जाव सागरे १८१५४ शक्षा१५४ अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे ११११११ १।१।१११ अग्घेणं जाव आसणेणं श१६१६७ १११६:१८६ अच्चणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे ११२१७६ ओ० सू०२ अज्जग जाव परिभाएत्तए । १।६।५ १।१।११० अज्जाओ तहेव भणंति तहेव साविया जाया तहेब चिंता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति । १५१६।६८-१०४ १।१४।४४-५० अज्झथिए० ११८७९ ११११४८ अज्झथिए किमण्णे जाव वियंभइ १।१६।२७२ १।१६।२७२ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था १।११५३,५६,१५४,१५५,१६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,११५।११८,१२४;११७२५; १।१६११८,२८५,२।११३८ शश४८ अज्झत्थिय जाव जाणित्ता ११६।२८६ ११११४८ अट्टदुहट्टवसट्टमाणसगए जाव रयणि १११११५५ १११११५४ अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि २।८।१,२ २।२।१,२ अद्वाई जाव नो वागरेइ शश६६ १५६९ अट्ठाई जाव वागरेइ ११५२६६ प्रदायिं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए शक्षा२२६ शमा२२४ अड्डा जाव अपरिभूया ११५७ ओ० सू० १४१ अड्डा जाव भत्तपाणा ११३८ ओ० सू० १४१ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनंते जाव समुपणे अणते गाणे समुपणे जाव सिद्धा अणगारवण्णओ भाणियन्वो अणगारे जाव इहमागए अणगारे जाव पज्जवासमाणे अतिराए चैव जान गंघेणं अणिट्ठा जाव अमणामा अणिट्टा जाय दंसणं अनिद्रा जाव परिभोगं अणुतरे पुरवितं चैव जावत या भुक्तभोगी समणस्स भगवओ जाब पन्यदस्ससि अण्णं च तं विलं अण्णगण्णं जाव समणे अण्णाए जाव निंबोलियाए अब्भणुण्णाए जाव पव्वइत्तए अम्भुज्जरणं जान विहरितए अम्मुट्ठेत जावंदसि अभिसिंचs जाव पडिगए अभिचि जाव राया जाए विहरइ अमध्ये जाव सिजीए १।१।११३ १६/२०७ १०१३/३८ अथत्विया जाव ताहि इद्वाहि जाद अणवर १।१।१४३ अत्थामा जाव अधारणिज्ज • १११६।२५३ १८१२८ अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया अम्मदाओ जाव पव्वद्दत्तए अम्मयाओ जाव सुद्धे अयमेयारूचे जाव समुपज्जित्था अरहृष्णय जाव वाणियगाणं अरहणग संञ्जलगा अरिनेमि जाव गमित्तए अरिने मिस्स जाव पब्बइतए अवगुणे जाव पडिगए १२२५ १।१६।३२४ १।१।१९४ शश६८ २।११४ १।१२।३ १।१६ १७ १११४/४३ १०१४१५० १।५।१२२ १८७४ १.१६/२५ १।१२।३९ ११५ ११५१।१६।२८ ११५२६७ १।१६।२८० ११५/६३-६५ १।१२।१५ १।१।१०१ १।१।१२ १५१६५ १२८६७ शायर १।१६।३२० ११५/२० १।१६६५ वृत्ति ११५२८४ ओ० सू० १६४ १० सू० ५२ 21219 १६४२ ११११४६ ११४।३६ १।१४/३६ ओ० १।१।११२ १८२०५ १/५२५३ जो० सू० ६८ १।१६।२१ १।५।१२२ उवा ०।२।२२ १।५।१२२ १।१६१८ १।१।१०४ १।५।१२४ ११५६६ १।१।१६१ १।१।११७-११९ १८१२४७ १११।१०७ १।१।३३ १।१।४८ १२६६४ १२६६६ १।१६।३३४ १|१|१०६ १।१६।६१ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१६१२७६ ११०९६-१०१ १।१८।१२ १११६२२० ११मा१६६ १.१६।२४६ ११८१७२ १।२।१२ २१४१३६ शरा२० ११२२५२,५३ १०१२।४ १।१६।२६२ १५॥३४-३८ १११८८ १११६।२१६ १११६१२१ १।१६।२४५ ११८१५६ १।२।१२ १२१४१३८ १२।१४ ११२।३७,३८ १।२।१४ ११७२२ १।१६।१५२ ११७६ १४१६४१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज असक्का रिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परि जे मागी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणिद्वतराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहर आइपण वेदो १।१६:५२ १।१६३४ ११५१७६ १५७६ वृत्ति श१६१३३ १३५१७६ १३७६ १९५१२४ १।१८।१६ १६१८१६ १।१२०१ १११।१७११६११ ११।११६ १।१।२०१ १॥५॥११७,११८ वृत्ति १११८।१६ ११११११८ ११४ ११।११५ १११११६८ ११८४२ ११११६ १।१२।१६ २श२० ११७१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १२१२११३ ११११९५ वत्ति Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आएहि य जाव परिणामेमाणा आउक्खएणं जाव चइता आढति जाव पज्जुवासंति आढाइ जाव तुसिणीए आढाइ जाव तुसिणीया आढाइ जाव नो पज्जुवासड़ आढाइ जाव भोगं ढाई जाव संचि आढायंति आढायंति जाव संल वेति आपुच्छर जाव पडिगए आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं आपुच्छामि जाव पव्वयामि आपुच्छामि तरणं जाव पव्वयामि आरोग्गट्टी जाव दिट्ठे आलंबे वा जाव भविस्सइ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु आलोएहि जाव पडिवज्जाहि आसयति वा जाव तुयट्ठेति आसाएइ जाव अपरियट्टिस्सइ आसाएमाणीओ जाव परिभुजेमाणीओ आसाएमाणी जाव विहरह आसाएमाणे जाव विहरइ आसायणिज्जं जाव सव्विदिय ० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय० आसिय जाव गंधवट्टिभूयं आसिय जाव परिगीयं आसुरुता जाव मिसिमिसेमाणा आसुरुते जाव तिवलियं आसुरुते जाव तिवलियं एवं आसुरुते जाव पउमनाभं आसु जाव मिसिमिसेमाणे आहारे वा जाव पव्वयामो आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था आहेवच्च जाव पालेमाणे ४ १८१०४ १।१६।१२३ ११६१८८ १|१२|७१।१६ १५ २१३६ १११६ ११० १।१४/६१ १/१६/३० ११.१५५ १।१।१५४ १३१६१२०० १७१४२ १।१२।३८ १११६/१२ ११११२६ १।१६।३१२ १।३।१६ १।१६।११५ १।१७/२२ ११६४२ १।२।१७ १।२।१४ १११२/२२ १।१२।२० १।१२।१६ ११५२६७ १११३७६ १।१६।२८ ५८१५६ १।१६।२८६ १।१६२८० १।५।१२२ ११८/१३ १।१।१६७ ११५१६ ११५१६८ १।१।२१२ १।१६।१८६ १८१७० १३८ । १७० १।१६।१८६ १११४।६० १८१७० १११।१५४ १।१।१५४ १।१।१६१ ११७/६ १।१।१०१ १।१।१०१ १।१।२० १२८११८६ वृत्ति वृत्ति १।१७ २२ १६४४ १।१८१ १११८१ १।१८१ १।१२/४ १।१२४ १।१३३३ वृत्ति १।१।१६१ १८१०६ १८१०६ १८३१०६ १।१।१६१ १२५६० १।१।१५७ १।१।११८ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहेवच्चं जाव विहरइ आहेवच्च जाव विहरs आहेवच्च जाव विहरसि इट्ठा जाव मणामा इट्ठा तं चैव वाहिं जाव आसाइ इट्टाहि जाव एवं जाहि इट्ठाहिं जाव समासासेइ इट्ठे जाव से गं ईसर जाव नीहरणं ईसर जाव पभितीणं ईहामिय जाव भत्तिचित्तं उक्किट्ठे जाव समुद्दरवभूयं उक्किट्ठाए जाव देवगईए afrage जाए विज्जाहरगईए उक्कट्ठाe tफ कुम्माईए उक्खेवओ तइयवग्गस्स उक्खेवओ पढमज्झयणस्स उज्जलंजाव दुरहियासं उज्जला जाव दाहवक्कंतीए उज्जला जाव दुरहियासा उज्जाणे जाव विहरइ इड्ढी जाव परक्कमे इमे वे जाव समुपज्जित्या इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १ । १४४० इहमागए जाव विहरइ १।५।५३ १। १४ । ५६ ११७१६ ११११८६; १८१४६ १११८४० उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरताओ उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १।३३८ १।१८।२० १।१।१५७ १।१६।७० १।१६:४८ १।१६ । १३१ १८२०३ १८६७ १११।५० ११५ २० १८६१७६६१।१६।२६५ ११७।६२।१।१२ १।१६।२०४,२०६ १।१६।१६० १।४।२१ २।३।१ २५/३ १।१।१६३ १।१।१८७ १/५/१०६१।१६।२०;१११६/४५ १।१६।३२१ १५८० १८१७६ ११८/१७८ १८१५१ १।२।१४ १।१६।१२८ १|८|३८;१।१६।३७ १।१।११८ ११५४६ ११५५६ १११:४६ १११६/४७ १११।४६ ११११४६ ११११४८ ११११४६ १|१|१४५ उवा० २१४० १।११४८ १।१।१६४ १|१|६७ ११५१५२ १।५।६; १।२।३४ ११५५६ ११११२५ ११८६७ राय० सू० १० १।४।२१ वृत्ति २२१ २/२/३ १।१।१६२ १११।१६२ १।१।१६२ १।१६।३१६ भ० २।५२:१।५।५२ १८१७७ १/८/१७७ १८१४१ राय० सू० ६७ १।१६।३७ वि० ११४ ३६ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्मुकबालभावे जाव जोव्वणग० उरालस्स के सिध मं जाव सुमिणस्स उरालाई जाव भुंजमाणा उरालाई जाव विहरइ उरालाई जाव विहरिज्जामि उरालाई जाव विहरिस्सइ उराले जाव तेयलेस्से उराले तहेव जाव भासं उववेए जाव फासेणं उव्वत्तिज्जभरणे जाव टिट्टियावेज्जमाणे उब्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ उब्वेतेति जाव दंतेहि निक्खुडेंति जाव करेत्तए उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए एगदिसि जाव वाणियगा एगयओ जहा अरहन्तए जाव लवणसमुद्द एज्जमाणि जाव निवे सेह एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहिं परियणेणं एवं कुलत्था वि भाणियश्वा । नवरं इम नाणत्तं - इत्थिकुलत्था य धन्नकुलत्था य । इत्यिकुलत्था तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- कुलबहुयाइ य कुल माउयाइ व कुलधूयाइ या धन्नकुलत्था तहेव एवं जहा मल्लिणाए एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं एवं जहेव तेलिणाए सुव्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणुपविट्टे तव जाव सूमालिया एवं जहेब राई तहेव रयणी वि एवं जाव घोसस्स एवं जाव सागरदत्तस्स एवं पत्तियामि गं रोएमि गं एवं पाएहि सीसे पोट्ट कार्यसि एवं पायंगुलियाओ पायंगुए वि horeaकुलीओ वि नासापुडाई ६ १।१४१२२ ११११६ १११२/४० १११४१२० १/१६/११३ १।१६ २०४ १।१६/१२ ११११२०४ १।१२४ १।३।२२ १।३।२६ १४११६ १।४।१२ १/८/६७ १/१७/५ १८१७१ १।१४।७७ ११५२७४ १।१६।२०० १११८१३१,३२ २।१।१५ ११६१६४-६७ २ १/५७-६० २।३।११ १।१६।८८- ६१ १।१।१०१ १।१।१५३ १०१४/२१ १११।२० ११/१६ १।१६।११३ १।१२/४० १।१६।११३ १।१६।११३ १।१/६ १।१ २०२ १/१२/३ १।३।२१ १।३।२१ १४१११ ११४।११ ११८/६२ ११८६६ १|१|४८; १।१६।१३१ ११४।७७ १।५।७३ १/८/१५४ १११८१२०, २२ राय० सू० ६६८ १११४१४०-४३ २१११४७-५० ठाणं २१३५६-३६२ १।१६/६३-६६ ११११०१ १।१।१५३ १।१४।२१ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।११७ १११११७ ११५॥७५ १२५७३; भ० १८।२१५-२१६ एवं पासत्थे कुसीले पमते एवं भासा वि । नवरं इमं नाणत----मास। तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कालमासा य अस्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा---सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया। अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल्लए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरइ ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओयमण जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणि ओहयमणसंकप्पा० ओहयमणसंकप्पा जाब झियाइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओयमणसंकप्पा जाव झियायह ओहयमणसंकप्पा जाव झियायामि ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ ओयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायसि कंडरीए उट्टाए उट्टेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कत्ता जाव भवेज्जामि कते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कटु जाव पडिसहेइ कट्ठस्स य जाब भरेति ११८८ १।१८८ २७६ २।७।२ २।८६ २१८२ १।१६२२५ १।१६:१६५ शश१२५ १६५।११७ १1८1१७१ ११११३४ १।३।२३ ११३४ १।१४।३८,१।१६।२०५ १११।३४ १११४१३८ ११११३४ श१३४ वृत्ति १३१४॥३७,१३१६६६२,८७,२०७ ११११३४ १शक्षा१५ ११११३४ १शमा१७३ १।११३४ १११६२६५ १५१०३४ १।१६.६४,६२,२०८ १।११३४ १।१७१० ११॥३४ ११११६८,१२१४१७७,१११७१८ ११।३४ १।१६।३२ १६१२३४ १।१७।६ १११।३४ १।१६।१२ १११०१ १११६३९७ १०१४।४३ १।१।१४५ १।१।१०६ १११११६२ वृत्ति १७.४२ ११५१० १११६।२५५ १११६१२५१,२५२ ११७२८ १।१७।२२ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणंग जाव दलय कणग जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्ज कणग जाव सिलप्पवाले कयकोउय जाव सव्वालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवलिकम्म जाव सव्वालंकारविभूसियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव विपुलाइं जाव विहरइ । कयवलिकम्मे जाव रायगिह कयवलिकम्मे जाव सरीरे कयबलिकम्मे जाव सब्वालंकार १११११ १८.४१ १११११ १११।११ शरा२६ १३१३१२५ १६१८१ १२११३३ १२०६६ १।१२८१ १३११२७ ११११८१ करयल० १५११६ करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं १६१६६१६८ १८.१०० १६१८१३८ १११८१३३ १।१०८१ १११३१२५ १२१६७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२।५८ ११११६६ शश४७ १२५२६८,१२३;१।८1७३,८१,६८, १५८,१६०,११९३१११४।३१,५० १८।२०३,२०४।१।१६:१३७,१६१, २१६,२६४।१।१७।११ १११६१२४६ श१६५८,६० १।१।३०:१।१६।१७०,२६२; १।१६।१३,४६,२।११२० १९:१७१११४।२७,२८,१११६:४३ ११११११८,१११६।१३३:२।११११ १११६।१४२ १११६.१३८ १८।१६६ १।।१६५ १।१५।१८ १।१६।२३६ १।१७।२६ १२८१३१,१११६।२४४ १८.१०७ १।१६१३४ १११४११३ १२१२१ श१२६ १११।३६ १११११६ करयल जाव एवं करयल जाव कटु करयल जाव कटू तहेव जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पिणंति करयल जाव पडिसुणेइ करयल जाव वद्धावेइ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेत्ता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चेव जाव समासोरह करयल तहत्ति जेणेव करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि १।१।२६ ११११२१ ११।२६ १।१६.१३२ १।१६।१३७ १९१६५ १।१२६ २११४८ श०४८ ११११३६ ११११४८ ११।४८ १६१६६१३२ ११५:१३ १११४ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२६ ११११४८ ११११४८ ११११४८ १।१३६ वृत्ति करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल बद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव मेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंवभूया कभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोटामारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाब एडेह ११११३६ ११८१२६ १५५१२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १।१४१४१,४२ १शक्षा१५ १११८।२७ १।१६।२८८ ।१।१२ १८४० शक्षा५१ १९५१२४ १।२।३३ १६२।६७ १२।४५ ११५।१० १११६।३२२ १२।६७ श१६।३० १११७१२२ १।१३।२० १७११३ १।८।१७४ ११७११७,१८ १११११११ १११७१२२ श७२५ १२।१४ ११९४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ ११८५१ ११।२४ ११५१२४ १॥२॥३३ १४२१३३ १२२।३३ १११११६ ११२८४ वृत्ति १।१३।२८ १।१७।२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ १।८१७३ १६७।१५,१६ १११११०७ २७७ ११८।५२ १११५७ ११११११७ १३१६६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८१५१ १११॥६ ११११११६ १।१२३ १.१६७४ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं खिज्जणाहि य जाव एयमटुं खीरधाईए जाव गिरिकंदरमल्लीणा गंध जाव उस्सुक्कं गंध जाव पडिविसज्जेइ गंध जाव सक्कारेत्ता गंधब्वेहि य जाव विहरंति गज्जियं जाव थणियसद्दे गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउम्विहभंडगस्स गब्भस्स जाव विणेति गय० गवलगुलिय जाव खुरधारेणं गवल जाव एडेमि गहाय जाब पडिगए गामघा वा जाव पंथकोट्टि गामागर जाव अणुपबिस सि गामागर जाव आहिंडह गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं गुणे० किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ धडएसु जाव संबसावेइ चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थ जाव विहरइ चउत्थ जाव विहरंति चउत्थस्स उक्खेवओ चंपगपायवे० चच्चर जाव महापहपहेसु चरगा वा जाव पच्चप्पिणंति चरमाणा जाव जेणेद चरमाणे जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरह चवलं नहेहि चारगसोहणं जाव ठिइपडियं ११०१५ १।१८।१४ ११६३६ १८८४ १।१६।१६९ ११७१६ १११६:१५२ १२९६ १1१1८१ श६६ २०१७ शमा६३ श६।१६ १९६३७ १११८१३६ १११८१२४ १४१६१२२६ १२१४१४३१११७११७ १।२।२६ १८७६ १।१२।१६ ११८१६ १२५२१०१,२।११३३ ११८।१७,२५ २४११ १।१८।४६ १६११६७ १११५७ १२।६६ १५१० १।१०३ १।१८।१० आयारचूला १५११४ २११३० ११८१६० १११२३० १११६३१५० १९७१ १।१२४ १९६६ १।२१७ ११६७ उवा० २०२२ १।९।१६ १४१८१३८ १।१८२२ १८१५८ ११८५८ १।२।२७,२६ ११८७४ १।१२।१६ ११।१६५ १।१।१६५ १११११६५ २।२।१ १२१२१०५ १११३३ १११५६६ १३१४ १।१४ २५११०८ १।४।१७ १११४१३३,३४ १११४ १।४।१४ १११७६-७४ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ११।१७ ११८७६ १।१।१५० १।१।१५१ ११११२३ ११११४ २११४ १।११४ २२११४ १११८१२१ १।१८।२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ १११११६५ श१८१२२ चारवेसा जाव पडिरूवा રાક चालितए जाव विप्परिणामित्तए १८७६ चिट्ठइ जाव उट्टाए १११।१५१ चिट्ठइ जाव संजमेणं १११।१६३ चित्तेह जाव पच्चप्पिणह ११८११७ चेइए जाव अहापडिरूवं श२०६६ चेइए जाव विहरइ ११११६४ चेइए जाव संजमेणं २।११३ चोक्खा जाव सुहासणवरगया १६१६:१५२ चोरनायगं जाव कुडंगे १११८१३० चोरविज्जाओ य जाब सिक्खाविए १।१८।२८ छटुंछट्टेणं जाव विहरइ १।१३६३६ छटुंछटेणं जाब विहरइ १।१६।१०८ छ छट्रेणं जाव विहरित्तए १२१६११०७ छट्ठट्ठम जाव विहरइ १४१६४१०५ जणवयं जाव नित्थाणं ११८।३२ जहा पोट्ठिला जाव परिभाएमाणी १।१६।६२ जहा मंडुए से लगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १:१६२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा १११७११ जहा महब्बले जाव परिवड्डिया १शक्षा३७ जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १।१७।६ जहा बद्धमाणसामी नवरं नवहत्थुस्सेहे० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए ११:४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १११६२० जायं च जाव अणुवड्ढेमि १।२।१४ जाया जाब पडिलाभेमाणी १११४१४६ जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे श१२।२३ जाव जहा २४१२२ जाव पज्जुवासइ शश१७ जाव सणियं १४.१६ जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे शश६३,६४ जाव हावभावं शमा१२१ २०११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ १९18 आ० सू० १६;वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ ११५.१०६ १२।१२ ११४७ १।१२।२२ ११२।७६ १।१।६६ ११४११३ राय० सू० ६६३११५२४७ ११।११७ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२११४ ११८।१० १११११२ ११७५२२ १।२।२५ ११११२७ १।१६।२६४ १११११२४ १।१४.१८ ११२७ श८१७६ ११२७ १७।६ २।११४६ २१११६३ जिमिय जाव सूइभूया ११२।१४ जिमियभुत्तुत्तरागयं जाव सुहासण. ११६।२१६ जोव्वर्णण य जाव नो खलु शा१५४ झोडा जाव मिलायमाणा १११११४ ठवेंति जाव चिटुंति १।१७।२२ डिभएहि य जाव कुमारियाहि १।२।२७ पहाए जाव पायच्छित्ते १११४१६४ ग्रहाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १२१६१२६५ बहाए जाव सुद्धप्पावेसाई । १२।७१ व्हायं जाव पुरिससहस्सवाहिणीयं १।१४।५३ व्हाया जाव पायच्छित्ता शरा६६,शा१७६ व्हाया जाव बहूहि ११८।१६८ व्हाया जाव सरीरा ११३।११ हायाणं जाव सुहासण. १।१६।८ तइयज्झयणस्स उक्खेवओ २१११५६ सइयवग्गस्स निक्खेवओ २।३।१२ तएणं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव १४१६११४३,१४४ तं इक्छामि गंजाव पव्वइत्तए १०१०१११ तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पश्वइस्ससि १११११०७ तं चेव सब्वं भणइ जाव अत्थस्स ११८५२ तं रणि च णं चोद्दस महासुमिणा वण्णओ १८२६ तक्करे जाव गिद्धे विव आमिसभक्खी १।२।३३ तच्च दुयं चंपं नयार। तत्थ णं तुम कण्णं अंगरायं सल्लं नंदिराय करयल तहेव जाव समोसरह। चउत्थं दूयं सोत्तिमई नयरिं । तत्थ णं तुम सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं करयल तहेब जाव समोसरह । पंचम दुयं हथिसीसं नयरिं। तत्थ णं दुर्म दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । छठें दूयं महुरं नरि । तत्थ णं तुम १।१६।१३४-१४१ १२१२१०४ १।१।१०६ ११८५१ कल्पसूत्र ४ १२।११ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ धरं रायं करयल जाव समोसरह । सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं । तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । अट्रमं दुयं कोडिपणं नयरं। तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह । नवमं दूयं विराटं नार। तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव समोसरह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरेसु अणेगाइं रायहस्साइं जाव.समोसरह । तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्चं पि जाव संचिट्ठ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे० तत्थे जाव संजाय भए तयावर ईहापूह जाव सण्णिजाइसरणे तलवर जाव पभितओ तलवर जाव सत्थवाह तहत्ति जाव पडिसुणेति तहारूवेहिं जाव विपुलं तहेव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया तं चेव सर्व जाव अंतं तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ जाव अरहो अरिटुने मिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडाग पासइ २ त्ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंतं तिक्खुत्तो जाव एवं तिग जाव पहेसु तिग जाव बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे तुट्ठी वा जाव आणंदो तुभण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेश्य १६१६.१४५ ११४३५ १।१२।३१ १२१४।७७ १११६८ १८१८१ १११४१६५ १।५।६ ११५४१३ १२१२२१५ शा१३६,१३७ ११६।१३२-१३४ श१६३५ १।१२।१६ २१४१७६ ११११६० १६११६० १।२६ ओ० सू० ५२ ११११२६ १।१२०६ १८१६६,१०० २२११५१-५४ २१११३२-४४ १२।२५,२६ १११६१३२६ श१९३४ ११५।२६ १११६२६ १६४ १२।६४ १।१२।४३ १८१६६ ११११२६,१४४,६६ १।१।२१२ १।१९२६ ११११३३ १॥५॥५३ ११२।६३ १६१११०४ १।४।१४ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभयं श१६।१५५ तेसि जाव बहूणि १1१७१६ थलय ११मा४६ थलय जाव दसद्धवणं १८१३१ थलय जाव मल्लेणं ११८१३२ थावच्चापुत्ते जाव मुंडे ११५१८० थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा १८८ थेरा जाव आलिते १५१६३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ ११३१२४ दसमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २।१०।१,२ दाणधम्मच जाव विहरइ १८.१४११५२ दारियं जाव झियायमाणि १।१६।६४ दासचेडियाहिं जाव गरहिज्ज माणी शमा१४७ दाहिणड्डभरहस्स जाव दिसं १२१६।२६६ दिट्टे जाव आरोग्य १।१२० दित्ते जाब विउल भत्तपाणे १।२।७ दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ १२२१७६ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ ११८१२६ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ १।१७४१३ दुरुहंति जाव कालं १।१६।३२३ दुरूढा जाव पाउन्भवति १८।१४ दूइज्जमाणा जाव जेणेव १४१६३२१ दुइज्जमाणे जाव विहर १११६४३२० देवकन्ना शा१५४ देवकन्ना वा जाव जारिसिया शा८६,१११ देवयभूयाए जाव निव्वत्तिए १२८१२८ देवलोगाओ जाव महाविदेहे १।१६।२४ देवाणुप्पिया जाव कालगए १।१६३२३ देवाणु प्पिया जाव जीवियफले ११८७६ देवाणुप्पिया जाव नाइ १२१६२६५ देवाणु प्पिया जाव पव्वतिए १११६४३४ देवाणु प्पिया जाव साहराहि श१६।२४२ देवाणुपिया जाव सुलद्धे १९१६२६ देवी जाव पंडुस्स १।१६।३०१ १२२२ ११८७१ १८.३० १८.३० १३० ११५१३४ १८।१२ १११११४६ सूय० २६२१७८ ११३१२४ २।२।१,२ ११८१४० १।१६६२ १४८.१४६ १।१६।२६७ ११०२० वृत्ति १।२।६७ ११८.११६ ११११०२ १११६६३२३ १९५६१ ११११४ ११।४।१।१६।३१६ शा८६ वृत्ति ११८१२६ १११२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० ११५१२३ १११६२६ ११६२४० १११६२६ १।१६।२६२ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी जाव पउमनाभ देवी जाव साहिया देवेण वा जाव निग्गंथाओ देवेण वा जाव मल्लीए दोवस्त वग्गस्स उस्सेवयो aण कणग जाव परिभाएउं पण जाव सावएजस्त धण जाव सावज्जे घण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ धम्मं सोच्चा जं नवरं धम्मं सोच्चा जहा णं देवाणुप्पियाणं. अतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइता हिरणं बाद पव्यदया तहा णं अहं णो संचाएमि पव्वदए धम्मका भाणियच्चा धम्मोति वा जाव विजयस्स धोवस जाव आसयसि धोवेड जाव आसयइ पोवेद जान एड धोवेसि जाव चेएसि नंदीस अठ्ठाहियं करेति जाव पडिया नगरगिहाणि नगर जान सण्णिवेसाणं आहेबच्च जाव विहराहि नच्चासन्ते जाव पज्जुवासड़ नद्रा व जाव दिन्न० नमईए जाव अहिए नयर अनुपविसह नवमस्स उक्लेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ नवरं तस्स नाई० नाइ० १।१६।२३६ १।१६।२४० १५ ११८७५ १२६१२५ २२११ १११ १२ १।७।३४ १।१६.६ १।१३।१५ ११५८७ १२२४४५ १२५७८ ११२७५ २१/३५ २|१|३८ १।१६ ११९ १।१६।११५ १८१२२४ ११८६७ १।१।११५ १।१४।८५ १।१३।२० १।१७।१० १।१६।२१६ २२६१,२ ११७/२८, २६ १०५०२६:१७१६, ६,२२,२६,४२, १११५ ११, ११६०५०, ५४; १।१८,५१,५६ १२१४११६१।१५।१९ १।१६:२३३ १११६/२०८ उवा० २।४५ १२८७५ २११६ ११.६१ १।१।३१ २२११९१ १।१।३३ १।१।१०१ राय० सू० ६६५ १।५।६३ १।२६४ २।१।३४ २।११३४ १।१६ ११४ १११६ ११४ जंबू० वक्ष० ५ 215145 ओ० सू० ६० १|१|६६ ओ० सू० १ १२।१७/८ ११६२१५ २१२१,२ १७८,२५,२६ ११११८१ १।५।२० Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १७६ ११७६ १२।१२ १६१८१ १। ११ १।५।२० १।५।२० २१४३६ १।१४।३६ नाइ चउण्ह य कुल जाव विहराहि १७।२५ नाइ जाव आमंतेइ १।१४१५३ नाइ जाव नगरमहिलाओ १२११६ नाइ जाव परियणं १।१४।१६ नाइ जाव परियणेण शा४८ नाइ जाव परिबुडे १।१६।५० नाइ जाव संपरिवुडे १।१३।१५:१।१४।५३ नाम वा जाव परिभोग १।१६।६७ नाम जाव परिभोग १११४१३७ नासानीसासवायवोझ जाव हंसलक्खणं ११।१२८ निक्लेवओ २।४।६ निक्खेवओ अज्झयगस्स રારા निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स २।४18 निक्खेवओ दसमवग्गस्स २११०७ निक्खेवओ पढमज्झयणस्स २०३८ निक्खेकओ बिइयवग्गस्स २।।१० निग्गंथा जाव पडिसुणेति १।१६।२३ निगंथाणं जाव विहरित्तए शश१२४ निगंथी वा १११८१६१ निग्गंयो वा जाव पव्वइए श७२७,१११०१३,१११११३,५ निग्गंथे वा जाव पव्वइए १२।७६ निग्गंथो वा १।१७।२५,३६ निग्गंथी वा जाव पंचसु २१५।१४ निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ १।५।१२६ निद्वियं जाव विज्झायं श११८४ निप्पाणे जाव जीवविप्पजढे १११८१५४ नियग० १९७६ निव्वत्तियनामधेजे जाव चाउदंते १११।१६७ निवाघायंसि जाव परिवा निसंते जाव अब्भणु ण्णाया १।१४।५० निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमार रज्जे ठावेमि १२८८ निसीयइ जाव कुसलोदंतं १।१६।१६८ आयारचूला १५०२८ २।११४५ २।११४५ २।१२६३ २०१६६३ २।११४५ २॥१॥६३ शश२६ ११५११४ शश६८ श२।६८ १।२।६५ १।२।६८ २३६२४ ११२१७६ श११८३ ११२।३२ १श८१ ११११५६ राय० सू० ८०४ ११११०४ १८७ १११६१८७ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८।१७२ १११८१४६ १।१४।७३ १५१४१७७ १।१६।२८७ १८.१६७ १९।१६ १९१६ १११४।७३ १।१६।२८५ १३५११२७,१२८ ११५८३,८४ २१५.१,२ ११७३३ १।१६।२७६ २।२।१,२ १७२५६ १।१६।२७५ निस्संचारं जाव चिटुंति नीलुप्पल नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाय खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियब्वं पंचयण्णं जाव पूरियं पंचाण ब्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं पंडवा. पंथएणं जाव बिहरह पगइभद्दए जाव विणीए पच्चक्खाए जाव आलोइय० पच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पम्वइस्ससि पच्चप्पिणह जाव पच्च प्पिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पड़ागे जाव दिसोदिसिं पडिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल. पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुणेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्लेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कुवं पण्णत्ते जाव सग्गं ११२४५-४७ ११६१३१३ ११५४१२६ ११११२०६:११६।२४ १।१६।४६ १.१३।४२ वृत्ति; ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १॥५॥१२४ ओ०सू०११६ ११।२०६ १०१२०६ १११११११ १११७७ १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८१३६ १८।४७ ११५।५६ १।१६।२३ २।७।३२८1३;२०६३ २।१०।३ १।१६।२४४ १५।६० ११११२३ राय सू० ६६४ वृत्ति १११६१६२ १।८।२७ १।११३६ ११५।५२ १।५।११३ २।२।३ २।३ १।१६।२४३ ११५१५५ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतिवया जाव अपास माणी पत्तिए जाव सल्लइयपत्त इए पतिया जाय चिट्ठति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छर जाव वीईवइस्सइ परिहिए जाय परिवसितए परिणमति तं चैव परिणममाणा जाव वबरोवेंति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावर णिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेते जाव चिट्ठेति परियागए जाव पासित्ता परिया जाव मत्ययंसि पल्लंसि जाव विहरति पवर जाव पडिसेहित्या पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उवसंपज्जित्ता पथ्यावेद जाव जायामायाउत्तियं पसन्दोहला जाव विहरइ पाणावाए जावमिच्छदंसणसणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाषाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए वामक्या जाव वाणिया ● पामोक्खे जाब वाणियगे पायसंघट्टणानि व जाव रखरेण गुंडणाणि पाव जायपव्यइए पावयण जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो बंदसि पियं जान विवा १५ १।१६।६२ १७ १५ १।११।२ १।१६।१७१ १।५।३३ १।१५।१४ १२८१३१ १।१२।१७ १।१५।१५ १।१३४३५ १।१४/६३ १।१३।३१ १।१७।२२ १।३।१९ ११११४८ ११७/२० १।१६/२५६ १२१८२४४ १.१६।२५३ १।५।१०४, १०५ २।१।३०,२१ ११/१६२ १८३३ ११६/४ १।१।१८६ १।१।१८२ ११ ११८८३ १।१।१८६ १।२४७३ १।१२।३५ ११२८१ १।५।६७ १।१।२०६ १।१६।५९ १७११४ १।११।२ १।१६।१४६ १।१।१४६ १।२०७६ ११८१०७ ११२४६ १।१५।११ १०१११० ११११६० १।४।१९ १।१७।२२ १।३।५ ११११४८ १२७११६ १८१६५ १।१८४२ ११६५ ११५२८३, ८४ १।१।१५०,१५१ १।१।१५० १२१२६८,६९ १।१।२०६ १।१।१८१ १।१।१८१ १२८१६६ ११८६६ १।१।१५३ १।१।१०१.२० १ १५०,१५१ १।१।१०१ १. ११५१ १.५।६६ भ० २१५२ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११३० १।१।१६ १६५।११० १२१२२०६ श२०४० १०२११२ १११११२ वृत्ति पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया २०१०११ पीढ़ ११।११७ पुच्छणाए जाव एमहालियं १११।१५४,१५५ पुढवि जाव पाओवगमणं ११५१८३ पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स १।२१५६,६४ पुप्फ जाव मल्लालंकार श२।१४ पुफिया जाव उवसोभेमाहा श१३११६ पुरापोराणं जाव पच्चणुब्भवमाणी १२१६१६२ पुरापोराण जाव विहरइ १।१६१११३ पुश्वभवपुच्छा एवं २।११५० पोखरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ १११३११५ पोसहसाल जाव पुव्वसंगइयं १।१६।२०१-२०३ पोसहसालाए जाव विहरइ १११३।१४ फलिया जाव उवसोभेमाणा १।११।४ फासुएस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं १२५२११४ फासुयं पीढ़ जाव विहरह ११।११३ बंधित्ता जाव रज्जू १११४१७७ बहिया जाव खणावेत्तए १११३११५ बहिया जाव विहरंति ११५।११८ वहिया जाव विहरित्तए १५।११७ बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे १।१६।६७ बहूई जाव पडिगयाई १११६।१८२ वहूणि गामाणि जाव गिहाई १।१६।१६६ बहहिं जाव चउत्थ विहरइ २५/३८ बहूसु जाव विहरेज्जाह शहा२० बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणति पंडुस्स जहा १।१६।२२३,२२४ बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगसमत्थे १।१६।३०८,३०६ बासष्ट्रिं जाव उत्तरइ १६१६१२८७ बासदि जाव उत्तिण्णा १।१६।२७ बिइयज्झयणस्स निक्लेवओ २॥१॥५५ बुज्झिहिइ जाव अतं २१३१४४ १२१६।१२ २।१।१५ रायसू० १७४ १।१६:२३७-२३६ १।११५३ १।११।२ १११११० १।५।११० १११४।७३ १११३३१५ १११११६६ १११३१६६ १।१४।४३ शमा१६१ ११८१५८ १२११६५ ११९२० श१६।२१३,२१४ ११११८४,८५ १४१६।२८५ १११६।२८५ २।१।४५ १।११२१२ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० भगवओ जाव पव्वइत्तए भड० भवणवइ० तित्थयर० भवित्ता जाव दोद्दसपुवाई भवित्ता जाव पवइत्तए भवित्ता जाव पव्वइस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणियवाओ जाव महाधोसस्स भारहाओ जाव हथिणारं भाव जाव चित्ते भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजायभए भीया जाव संजायभया भीया वा भीया सजायभया भुंजावेंति जाव आपुच्छति भुतुत्तरागए जाव सुइभूए भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छ भोगभोगाई जाव विहरई भोगभोगाई जाब विहरति भोगभोगाइं जाव विहरा हि मइविकप्पणाहि जाव उवणेति मज्झमझेणं जाव सयं मट्टियाए जाव अविग्घेणं मट्टियालेवे जाव उप्पतित्ता मणपणे तं वेव जाब पल्हायणिज्जे मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए मयूरपोयग जाव नदुल्लग महत्थं० महत्थं जाव उवणेति महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं महत्थं जाव निक्खमणाभिसेय महत्थं जाव पडिच्छइ ११११११३ १३१४१०४ ११९:१४ ११८५७ १९३६ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण ११५८० ११८२०४;२१११२७ ११११०४ १११२४० १११११०१ ११८१८६११६६३१० २१४१५ ठाणं० २:३५५-३६२ १।१६।२४० १।१६।२५४ ११।११८ ११८११७ ११।३५-३७ वृत्ति १२१२१३६ ११५१२१ १११४१६६ १११११६० १६२५,२७ १११११६० ११८७६ ११८७३ ११८७२ ४११६० ११८६६ १८६६ १।१२।४ १२।१४ १६१६२२ ११५।११० ११११६६ १।१।१७ १११६१८३ १।१६।२०० ११११३२ १११६।२४७ ओ० सू० ५७ १।१६।१६६ १२१६२१८ ११८१४३ ११५४६० ११६४ १६६४ १११२स १५१२६४ ११८४१,४२ ११८।४१ ११३१२८ ११३१२७ शा८१ १९८१ १८.८४ ११८८१ १८ा२०५ शश११६ ११५६८ १११७११७ दा८२ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महत्वं जाव पाहू महत्यं जाव पाहुडं रायारिहं महत्वं जाव रायाभिसेय महरालाउयं जाव नेहावागाद माणुसगाई जाव विहरइ माया इ वा जाव सुहा मासाणं जाव दारियं माहव जाद वणीमगाण माहणी जाव निसिरद मित मित्त जाव चउत्थ मित्त जाव बहवे मित्रा जाव संपरिवुडा मित्तनाइ गणनायग जाव सद्धि महत्वले जाव महा १८१६ मध्याह्य जाव विहरद २|१|१० महालियं जावबंधिता अत्याह जान उदगंसि १ । १४७७ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि १।१।११० महिदीए जाव महासोक्से मित्तपक्खं जाव भरहो मुडावियं जाव सयमेव मुंडे जाव पव्वयाहि मुछिए जाव अभोववणे मेहे जाव सवणाए य गं जाव परमसुइभूए रज्जद जाव नो विष्पविषाय० रज्जं च जाव अंतेउरं रज्जे जाव अंतेउरे रज्जे य जाव अंतेउरे रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ रज्जेय जावियलेड रणो जायतहति रणो वा जाव एरिसए रयण जाव आभावी २१ १।१७/१६ १।१३।१५ १.५।१२:१।१२।३७ १।१।१३ २०१६/० ११५ १६ રાજા १।१६।१२४ १।१४:३६ १।१६/२४ १७।२२ १.७/१० ११७/३८ १/५/२० ११११८१ १।१।११८ १।१।१९१ १।१९।१४ ११६२६ १।१।१५४ १।१२।२२ १०१९०४६ PIREIRE १।१४।६० १८१५१:१।१६।१८७१।१२।२६ १/१४/२२ १।१४/२२ १।१६।३०३ १२६१५३ १।१८५६ १५:२० १५:२० १।१०११६ १।५।३४ राय० सू० द १११४।७५ १|१|१०६ सू०२।२/७३ १।१६३८ १।११६७ सूय० २२/७ १।२।२० आधारचूला १।१६ १।१६।१४ १२१३८१ ११७६ १७२५.११ १।२।१२ १०१२८१ वृत्ति १।१।१४९ १।१।१०१ १।१२।२६ १।१।१०६ १।१।८१ १।१७।२५ १।१।१६ १।१४।२१ १।१।१६ १६१४१२१ १।१४/२१ १२६११०४ १२८१७ ११११६१: १।१८१५१ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रहमया १११६.१४७ राईसर जाव गहाई १।१४।४३ राईसर जाव विहरइ १८।१४६ रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा श१४१५६ रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया श८।१३६ रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी १२।५७ रूवेण य जाव उक्किटुसरीरा १।१६।२०० रूवेण य जाव लावण्णेण १।१६।१६० रूवेण य जाव सरीरा १६१४।११ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण १.१८।१३ रोयमाणि जाव नावयक्खसि १।४० रोयमाणे जाव विलवमाणे १२।३४ रोयमाणे जाव विलवमाणे १।६।४७ लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए १।१७।१३ लवण जाव ओगाहित्तए ११६६ लवण जाव ओगाहेह १५ लवणसमुद्दे जाव एडेमि शा२० लोइयाई जाव विगयसोए ११८।५७ वंदामो जाव पज्जुवासामो १११३।३८ वंदित्तए जाव पज्जवासित्तए २।१।१२ वण्णहेडं वा जाव आहारेइ १११८१४८ वण्णेणं जाव अहिए ११०१४ वण्णणं जाव फासेणं १।१२।३ वत्थ जाव पडिविसज्जेइ १२१४/१६ वत्थ जाव सम्माणेत्ता १।१६:५४ वत्थस्स जाव सुद्धेण ११५४६१ वत्थे जाव तिसं १७.३३ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि १६१२१४५ वयासी जाव तुसिणीए १११६४१६,१७ बरतरुणी जाव सुरूवा १११३७ ववरोवेह जाव आभागी १११८१५३ वाइय जाव रवेणं १शमा२०२ वाणियगाणं जाव परियणा शक्षा६७ बाबाह वा जाव छविच्छेयं १।४।२० १८।५७ ११८०५८ १८।१४० १।१४।५६ ओ० सू०६७ ११।१६१ शमा ११८३८ ११८/१० १११८18 १४६४० १।२।२६ १।९।४० १।१७।१२ ११।४ १।६।४ ११६१६ ११९०४८ ओ० सू० ५२ रायः सू० ६ वृत्ति १।१८६१ १११००२ १११२११२ १८११६० ११७६ ११५॥६१ ११७६ ११५१० १३१६१४,१५ १११११३४ श१८५२ १.११११८ शक्षा६६ १।४।११ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणाए जाव धम्माणओगचिताए १३१२१८६ वाराओ तं चेव जाव नियघरं १६।४ वावीस य जाव विहरेज्जाह १९२० वासाई जाव दति १।२।१२ वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए २१६६१७७ वासुदेवे धणुं परामुसइ वेढो १।१६।२५८ वासे जाव असीइंच सयसहस्सा दल इत्तए शक्षा१६४ विउला पगाढा जाव दुरहियासा १।१६।४० विगोवइत्ता जाव पब्वइए १।१६।२६ विजया जाव अवक्कमामो १।२।४७ विणिम्मुयमाणी २ एवं श५।३३ वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता १।१३१३० सई वा जाव अलभमाणा १९२२,२४ सई वा जाव जेणेव १।६।२३ संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं शा८४ संकिए जाव कलुससमावणे १३।२४ संगयगयहसिय० ११३१८ संचाएइ जाव वित्तिए संचाएंति० करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति २४।१४,१५ संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ १८८२ संता जाव भावा १२१२१३२ संताणं जाव सब्भूयाणं १।१२।२६ संते जाव निविणे १८७६ संते जाव भावे १।१२।२६ संपरिबुडे एवं जाव विहरइ १०८।१४७ संभग्गं जाव पासित्ता १।१६।२६३ संभग्गं जाव सण्णिवइया १३१६१२७८ संभागं तोरण जाव पासह १।१६।२७८ संसारभउविम्गा जाव पब्वइत्तए १.१४१५३ संसारभउब्विग्गे जाव पव्वयामि १३५१ सकोरेट जाव सेयवर० शपा५७ सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवरचामराहि महया १८११६१ सकोरेंट सेयचामर हयगयरहमहयाभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता १।१६।१५३ १।१।१५३ १२३४ १९२० १।२।१२ १२१६१७६ वृत्ति ११८१६४ १११११६२ ओ० सू० ५२ ११२।४४ १।१।१४८ १।१३।२४ १।६।२१ १६२१ ११८८१ ११३।२१ १११११३४ ११५११७ ११४:११,१२ १८८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १२४।१२ १।१२।१६ १२१६११७८ १२१६।२६२ १११६१२६२ १२१६।२६२ १११११४५ १११११४५ ११८५७ १८५७ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउस सिरी सज्जइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण जाव गहिया समद्ध जाव पहरणा सणद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तद्रु जाव उप्पयद सततलाई जान अरहन्तगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्सेय एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अजम्मरस सत्यवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधा सफरिसर सद्दहति जाव रोएंति सहावे जाय जेणेव सहावे जाव तं सदावेद जान तब पहारेत्य सदावेद जाव पहारेत्य सहावेह जाव सहावेति सद्देणं जाव अम्हे गंधे जाव भुजमाणे समणस्स जाव पव्वइस ए समणस्स जान पयस्स समणाउसो जाय पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाब माणूस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं सगणाणं जाव बीईवइस्सइ सममाणं जाव साबियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जड समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २४ १।१६।१५७ १।५।२५ १८२०३ १।१२६४ १।१५/१६ १।१६।२४८ |१|१६|१३४; १।१८/३५ १।१६।२५१ १।१६:२३६. १२६।३७ ११८२७७ २७ १,२ ११११६ १।१६०३१ ४१।१७/२ १५२६ १।१५।१३ १८१६,१०० ११७१० १२६/११२,११३ १८१५५,१५६ १।१:१३९ १:३।१९ १।१।१०७ १|१|१०८, ११२ ११७/३५,४३ १|१०|५; १।१८/४८ १।१९।४२,४७ १।६।५३ ११५।११८ १।२३३३४ १२/१७/३६ १/८/२०० १।१६।१४० १८५७ १।५।२४ १२८७६ १२१५६ १/३/२४ १२।३२ ११२/३२ १२/३२ १।२/३२ १२६ ३६ १२८/७३ २।२।१,२ ओ० सू० ८२ १।१६:३१ १।१७/२२ ओ० सू० १५ १।१।१०१ ११८६२,६३ 81019,0,€ १८६६,१०० ११८१६,१०० १।१।१३८ १२३१६ १।१।१०४ १।१।१०६ ११७/२७ १।३।२४ tien १।५।११७ १२२७६ १।२२७६ १८/१९६, १६७ ओ० सू० ६३ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाणा जाव चिट्ठति समाणी जाव विहरितए समोवइए जान निसीइसा समोसरणं सम्मज्जिवलितं जाव सुगंध वरगंधियं सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलिये सम्माड जान पडिविसज्जेइ सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्ख इ सरिसगं जाव गुणोवत्रेयं सरिसियाओ जाव सगणस्स पव्वइस्ससि सब्वओ जाय करेमाणा सव्वं तं चैव आभरणं सम्बन्ईए जान निग्धोसनाइयरवेणं सासु जाव रज्जपुराचितए सहइ बाब अहियासेद सहजायया जाय समेच्या सहियाणं जाव पुण्वरता० साइमं जाव परिभाएमाणी सामदंड० साल पूर्ण जाव नेहावगाढेणं सालय जान आहारेसि सालइयं जाव गोबेड सालइयं जाव नेहावगाढं सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स सालइयस्स जाव एगंभि साहरह जब बोलत सिंगारा जाव कुसला सिंगारागारनारूबेसाओ जाव कुसलाओ सिंघाडग० सिंघाड जान पहे तिचा जाब बहुजणो सिघाडा जान महया सिक्लावइए जान पडिवण्ण सिम्झिहिर जान मंत २५ १।१५।१० १२ १७ १।१६:२२७,२२८ १२५६५ १।१।३३ १।३।६ ११६.३०० १।१।१५० ११६१२० ११.१०६ १।१६।२३ १२५/३०-३२ १/१/३३ १।१४।५६ १।११:३ ११०३१०,११ १।५।११८ १०१६/६३ १८:४५ १|१४|४ १/१६/२५,२६ १।१६०१६ १।१६०८ १०१६ १६,१९,२० १।१६।२२ १।१६ १९ १५१२ १।१।१३६ १।१:१३५ १।५।५३ १।३।३३:१/१३/२६; १।१६।१५३:१।१८१६ ११७१४१; १८६/२००; १।१३ २६ १।१।१५ १.१३/३६ १।१५।२१ १४१५६ १।२।१७ १११६१६७,११८ १ १/४ '१।१।२२ १।११२२ १।१४।१६ १।१।१४६ ११६१४१ १११११०८ १।१६।२३ १०१।१४५-१४० ओ० सू० ६७ १।१४५६ १।१।१६ १।१११५ १२३४६,७ १।३।७ १।१६/६२ १११।१६ १/१६/५ १११६/१६ १।१६।८ १/१६/८ १११६१८ १।१६।१६ १८४८ १।१।१३४ १।१।१३४ १:१।३३ १।१।३३ १।५१५३ ओ० सू० ५२ उवा० ११४५ १।१।२१२ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।४६ ११५१८४ १८.७४ ११८७७,७८ शक्षा६७ श१८३५ १।९।३७ श१६।२१५ १११६।२२१ १४१६२२६ ११५८ १।१५।१३ १।८।२६ सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण. सिद्धे जाव पहीणे सीलब्वय जाव न परिच्चयसि सीलब्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीहनाय जाव रवेणं सोहनाय जाव समुद्दरवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाव लभामि सुई वा जाव उवल द्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे सुभरूवत्ताए सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ सुमिणा जाव भुज्जो २ अणुवहति सुरं च जाब पसन्न सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ सुरूवा जाव वामहत्थेणं सुमाल निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जाब गए से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा पब्वइत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोगियासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स हए जाव पडिसेहिए हट्ट जाव हियया हट्ठतु? जाव पच्चप्पिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हट्टतुटु जाव हियए हत्थाओ जाव पडिनिज्जाएज्जासि हत्थिखंध जाव परिवुडे हत्थिखंधवरगए जाव सेयवरचामराहिं हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए १११२१२ ठाणं ११२४६ शपा७४ ११८।७४,७५ ओ०सू० ५२ श८।६७ ११२१२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६२१२ ओ०० १४३ १११५।११ १११:३२ १।१०२६ १२१६११४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६।३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ ११८५७ १।१८।३३ १११६१३१६ १।१६।१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१६।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १९१८१६१ १९१८।४८ १।१६।२५७ २।१२०,२१,२४,२५ ११११२३ १५१३ १।१।२०७१।१६३१३५ ११७।६ १४१६४१४६ ११८१६३ ११६।२०३ १।१।१८५ १११।१०६ १।१।१०६ शबा१६५ ११।१६ १६१६१६,२२ १६१।२६ १११११६ ११६ १११६३१४६ ११८५७ १४१६१२०० १११११५७ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिवुडे हयगय ० हयगय जाव पच्चपिणंति हयगय जाव परिवुडा हयगय जाव रवेण हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगइया हय जाव सेणं महिय जाव नो पडिसेहिए महिय जाव पडिसेहिए महिय जाव पडिसेहित्ता महिय जाव पडिमेहिया महिय जाव पडिसेइ महिय जाव पडिसे हैंति हरिसवस० fore जाव पfsys हियाए जाव आणुगामियत्ताए हिरण्णं जाव वरं हिरण्णागरे य जाव बहवे हील पिज्जे ० हीलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्ज माणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवंति होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्ठा जाव विहर अंतक्खिपविणे एवं वयासी अंतियं जाव असि २७ १।१।१६८ १११११५८ १।१६।२४८ १।१६।१३६ १११६११५६ ११११६६ १।१६३०३ १।१६।१७४ १।१६।१३८ ११५१६२ १।१६।२८५ १।८।१६६१।१६।२५६ १।१६।२८६ १११८१४२ १११८१२४ १११८१४१ ११११६१ १११।१२६ १।१३।३८ १।१७।१६ १/१७/१८ ११४।१८ १।५।१२५ १।१६।११८ १।१६।११७ ११११७ उवासगदसाओ ७१७ ५/२,२१ १।१।१५७ १११/१५७ १८५७ ओ०सु० ५६ १८५७ १।११६७ १८५७ १४८।५७ १।५।१५ १८५७ १३८ । १६५ १८१६५ १/८/१६५ १८१६५ ११८१६५ ११८१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १/१७/१६ १।१७।१४ १/३/२४ १।३।२४ १।६।११७ १।३।२४ वृत्ति ७|१० ३।२०,२१ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ७१२६ २१२२ ११६६ ६।२८ ६.२८ २१३,४ ११११-१३ ओ०सू० १४१ ३।४२ ३२४२ ६१२० ना० १।१।१६६ ११६५ अम्गिमित्ताए वा जाव विहाइ अज्ज जाव ववरोविज्जसि ३।४४ अज्भवसाणे जाव खओवसमेणं ८.३७ अट्टेहि य जाव वागरणेहि ७१४८ अट्टेहि य जाव निप्पट्ट ६.२८ अड़ढे चत्तारि ६।३,४;१०१३,४ अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठहिरण को. डीओ सकसाओ निहाणपउत्ताओ अहि वड्डि अहि ससाओ पवि अद्रवया दस गो साहस्सिएग वएणं अड्ढे जाव अपरिभूए १।११ अणारिए जहा चुलणोपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ ५.४२ अणारिए जाव समाचरति ३।४४,४१४२ अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ६२१,२२,२३,७१२३,२४ अण्णदा कदाइ बह्यिा जाव विहर इ १९५४ अपच्छिम जाव अणवखमाणे ११७२ अपच्छिम जाव भत्तपाण ८।४६ अपच्छिम जाव झूसियस्स ८।४६ अपच्छिम जाव वागरित्तए ८.४६ अब्भणुण्णाए तं चेव सब्बं कहेइ जाव ११७६ अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे ११५५ अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ८.१६ अभिगयजीवेजीणं जाव अणइक्कमणिज्जेणं ११३१ अभीए जाब विहरइ २१२६,३५; ३१२२ अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं ।२४ अभीयं जाव पासई २।४०,३१२३ अभीयं जाव विहरमाणं २।२८,३० अवहरइ वा जाव परिवेइ अस्मिणी भारिया । सामी सामासढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ ६।५-१५ असोगवणिया जाव विहरसि ७१७ अहीण जाव सुरूवा ११४ अहीण जाव सुरूवाओ ८६ ८।४६ १७१-७८ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ २।२३ २१२३ २।२४ २।२४ ७२५ २१५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ س आओसेसि वा जाव ववरोवेसि ७.२६ ७२५ आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २०१६ आलोइज्जइ जाव तवोकम्म ११७८ ठा० ३१३४८ आलोइज्जइ जाव पडिवज्जिज्जइ ११७८ वृत्ति अ०३ आलोएइ जाव जहारिहं ८५० वृति अ० ३ आलोएइ जाव पडिवज्जइ ३१४६ वृत्ति अ० ३ आलोएयब्वं जाव पडिवज्जेयव्वं ११८० वृत्ति अ० ३ आलोएह जाव पडिवज्जेह १७८ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव अहारिहं ८/४६ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव तवोकम्म ११७७ वत्ति अ०३ आलोएहि नाव पडिवज्जाहि १३१८,३।४५८४६ वत्ति अ०३ इ? जाव पंचविहे १।१४ ओ० सू० १५ इड्डी जाव अभिस मण्णागए २२४० २४० इमेणं जाव धमणिसंतए १२६५ ११६४ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ३४२ ११७३ उक्खेवो ३११४।१५।१६।१७।१८।१९।११०११ २१ उज्जलं जाव अहियासेइ २।३३,३९,३१२६ उज्जलं जाव अहियासेमि ३१४४ उज्जलं जाव दुरहियामं २।२७ उहाणे इ वा जाव अणियता ६२१,२३ उठाणे इ वा जाब नियता ६।२१,२३,७।२६ ६।२० उदाणे इ वा जाव परक्कम ६।२०,२३;७।२६ उढाणे इ वा जाव परिसक्कार० ७.२४ ६।२० उहाणणं जाव परक्कमेणं ६।२३ ६।२० उदाणेणं जाव पूरिसक्कारपरक्कमेणं ६॥२१७२३ ६२० उद्धाविए जहा चुलणी पिया तहेव सव्वं भाणियब्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहल सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चलणीपिया बत्तन्वया सव्वा नवरं अरुणच्चा विमाणे उबवातो जाव महाविदेहे ३१४२-५२ उद्धाविए जहा सुरादेवो। तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ । सेसं जहा चलणीपियस्स जाव सोहम्मे ५।४२-५२ ३१४२-५२ वृत्ति वृत्ति ६१२० ६२० ७७५-८८ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप्पण्णापदंसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदंसणपरे जाव महिइए जाव तच्च० उरालाई जाव भुंजमा उरालाई जाव विहरिसए उराले जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाव किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आनंदो तव अपच्छिम ० एक्कारसमं जाव आराहेइ एवं एक्कारस उपास पडिमाओ तहेब जाव सोहमे कप्पे अरुणभए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्यं सव्वं जाव कणीयसं जाब आईच अहं तं उज्जलं जाव अहिया से मि एवं दक्खिणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्च पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं कणीयसं, एक्केक्के पंच सोल्लया तब करे, जहा पुतणीपियस्स, नवरं एक्केक्के पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिणि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओमणसंकरपा जाय भिवाइ कज्जेमु य आपूच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्ठपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलीपियरस ता भद्दा भगद एवं से जहा चुमणीपियस्स निरवसेसं जाव सोहम्मे कल्लं जाव जलते ३० ७।११.१० ७।४५ ८२७ १६ ३१५०-५२ पा३५ 쿠두 १।६३ ६।३५.४१ ३२४४ १,६६; ८१३७ ४ ४१ ४२२-३८ २।४५ ८४२ १८५६ ६१३३,३४ ७७ ७।२२ ४१४५-५२ १५७७ १२ ७१० ७/१० ८११ ८११८ २।५३-५५ १/६४ ११६५ ११६२ २१५०-५६ ३।२७-३८ १।६६ સા ३।२२-३८ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १।१३ २१८,१६ 61 ७७ ३।४५.५२ ओ० सू० २२ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४५ १६५७ २१२२ २।२२,२३ २३०,३१ २।३-६ ४.३६ १२११-१४ वृत्ति २।३.६ ८.१८ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि बिहरइ कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वभिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्व्या दसगोसाहम्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केगटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचइ गिहाओ तहेव जाव कणीय जाव आईचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएत्ता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चुल्लसया गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुबासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ७१४६ ७.३४ ३१४२ ३।४२ ৮s ११४८ ३१४२ ३२४२ ३१४२ ११७६ २०१८ ३१४१ ३१२१ १७६,७७ ६१८ २४४ ३।४२ ३।२७-३८ ३२२१-२६ ५५२ २।५५,५६ ४।३-६ भ० १२११ २।४३ ८।१०-१५ है।१६,१७ १११६-२४ २११६,१७ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ १:५६ ७।१४ ७.५० ४।४२ १६५७ ७।१५ ७.३५ ११५७ ७।१५ १९२० ७.३५ राय० सू० १२ ३१४२ ११५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ११५७ ५.४० ५४१ जाया जाव पडिलाभेमाणी जाव पज्जुवासइ जुगवं जाव निउण सिप्पोवगए जेट्टपुत्तं जाव कणीयसं जाव आइंचइ ठावेता जाव विहरित्तए । णमंस इ जाव पज्जुवासइ णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ णाइटूरे जाव पंजलियडा पहाए जाव अप्पमहग्धा० बहाए जाव पायच्छित्ते ण्हाए सुद्धप्पावेस अप्प० बहाया जाब पाच्छित्ता तं मित्त जाव विउलेणं पुष्फ ५ सक्कारेइ सम्माणेइ, २त्ता तस्सेव मित्त जाव पुरओ तञ्च पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि तत्थ णं बाणारसीए चूलणी पिया नाम गाहावई परिवसई अड्डे सामा भारिया अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ अट्ठ वडिप० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं जहा आणंदो ईसर जाव सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था तव जाव कणीयसं तिक्खुतो जाव वंद तीमे य जाव धम्मकहा सम्मत्ता तुम जाव ववरोविज्जसि दुहट्ट जाव ववरोविज्ज सि देवराया जाव सबकसि देवाणुप्पिए समग्रे भगवं महावीरे जाव समोसढे तं देवाणुधिया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स नाममुद्दगं च तहेव जाव पडिगए ३.३-६ ३२४५ ७१३५ २।४४ ३.४४ ७७५ २१४० २॥३-६ ३२४४ ११२० २०११ २।२२ २०२२ वृत्ति ११४५ ७.४४ ७.३१ ७.४६ ७.५० ७१५१ ७१५० ६०२०-२४ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८५ वृत्ति ३१२१-३७ ३।२१-३८ २।२२ २।२२ ११६६ श६२,६३ निक्खेवो २।५७,३१५३:४।५३,५१५४% ६१४१७८६८।५४६२७ निक्खेवो पढमस्स १८५ नोमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केके सत्त मंसमोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि श२१-३७ नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसरगं करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २त्ता जाव आइंचइ ७।५७-७३ नीलुप्पल जाव असि २१४५,३।२१,४४,४२१ नीलुप्पल जाव असिणा रा२२,२६ पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं १९७६ पढम अहामुत्तं जाव एक्कारस वि .३३,३४ पढम उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाद एक्कारस वि ३३४८,४६ पाउणित्ता जाव सोहम्मे १३५३ पाडिहारिएण जाव उवनिमंतिस्सामि ७.११ पावयणं जाव ज हेयं ७।३७ पीढ जाव ओगिरिहत्ता ७५२ पीढ़ जाव संधारएणं ७१५१ पीढ जाव संथारयं ७११८ पीढ-फलग जाव उवनिमतेत्तए ७११८ पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सलद्धे २०४० पुत्तं जाव आइंचइ ७७८ पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया धन्ना वि पडिभाइ जाव कणीयसं ४।४४ पुवरत्ता जाव धम्मजागरियं ११६५ पुन्वरतावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७.५४ पोसहिए. फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव मिहिधम्म पडिवज्ज इ जहा कामदेवो तहा जेपत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपज्जित्ताणं श६२-६३ ११८४ ११४५ श२३ १।४५ २४५ ११४५ ११४५ २१४० ३१४२ ३.४४ ११५७ २०१८ ना० ११११५३ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१५-२५ ७.१६ २।४० ३।१६ २१५५ १४५७ २।५-१६,५०-५५ ११४५ १९४५ १९६० १२६० ११८४ १६५७ २०१८ १२३ ७/७५ सू० ५२ वृत्ति ८२७ ८।२७ विहरइ । नवरं निरुवसगो एक्कारस्स वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियवाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे फलग जाव ओगिण्हित्ता फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए बंभयारी समणस्स बहूहिं जाव भावेत्ता बहूणं राईसर जहा चितिथं जाव विहरित्तए बहूहिं जाव भावेमाणस्स भवित्ता जाव अहं भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अज्झोबवण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकमाणी महइ जाव धम्मकहा समत्ता महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो तहेव मारणंतिय जाव कालं मित्त जाव जेट्टपुत्तं मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहुम्माय जाव एवं वयासी तहेव जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्थवाहाणं राईसर जाव सयस्स लढे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ! धम्मकहा । वदणिज्जे जाव पन्जुवास गिज्जे वंदामि जाव पज्जुवासामि ७।३७ ७७८ ७१३७ का२० ८।३८ ८।४६ ७१६ २।४२ २।४३,७:१५ १११७७११२ २।११ १।१७ श२० ओ० सू०१६-२२ ८.३८-४० ८।२७-२६ ११५७ श५७ ११५७ ओ० सू० ५२ ११२३,५३ ८१४६ बा२७-२६ ११२३ १११३ ११५७ २१४३,४४ ६।२६,२७ ७१० ७११५ ओ० सू०२ ओ० सू० ५२ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवासाहि ११४५:७।३१ ओ० सू० ५२ वंदिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि ७११ ओ० सू० ५२ वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि ७।१० ओ० सू० ५२ वयासी जाव उववज्जिहिसि ८४६ ८.४१ वाताहतं वा जाव परिवेइ ७१२६ ७२५ विणस्स माणे जाव विलुप्पमाणे ७.४७,४६ विहरइ । तए गं २१५१-५४ ११६२-६५ वीइक्ताई तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ । धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियाग नाणत अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ६।१८-२६ २११८,१६,५०-५६ वीइक्कता एवं तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णत्ति पा२५,२६ २०१८,१६ संचाएइ जाव सणियं २१३४ २१२८ संताणं जाव भावाणं १७८ १७८ संतेहिं जाव वागरित्तए ८.४६ ८।४६ संतेहिं जाव वागरिया ८.४६ ८.४६ सखिखिणियाई जाव परिहिए २१४० सद्दहामि णं जाव से जहेयं १२३ रा० सू० ६६५ सद्दालपुत्ता तं चेव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि ७१७ ७।१०,११ समएणं अज्जसहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुबासमाणे ११३-५ रा० सू० ६८६; ओ० स० ८२,८३ समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि १।२० ओ० सू० ५२ समणोवासाए जाव अहियासेइ ५।३८ २०२७ समणोवासा जाव विहरइ ४।४०,५।३८ ३१२२ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया जाव न भंजेसि ३१४४,७७५ २१२२ समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३२१ २२२२ समणोवासया ! जाव न भंजेसि २।३४;५।२१,३६ २।२२ समणोवासया ! तं चेव भणइ ७७७ ७७४ समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ ३१२३,२४ ३१२१,२२ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३।२३-२५ ७.१० ३१४४ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भजेसि समुपज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चितेइ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ । तहेव सावयधम्मं पडिवज्जइ । साचैव वत्तव्या जाव जेट्ठपुत्तं सहइ जाव अहियासे इ संत जाव अहियासेंति सहित जाव अहिया सित्तए साइमं जहा पूरणो जाव जेट्ठपुत्तं सामी समोसढे । चुलणी पिया वि जहा आनंदो तहा निग्गओ । तहेव गिहिधम्मं पडिवज्जइ । गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसा लाए सामी समोस जहा आणंदो तहा गिहिधम्मं पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्त सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्मं पडिवज्जइ । सा सव्वेव वत्तव्या जाव पडिला भेमाणी विहरइ साहस्सीणं जाव अण्णेसि सिंघाडग जाव पहेसु सिंघाडग जाव विप्पइरितए सीलव्वय-गुणेहिं जाव भावेत्ता सील जाव भावेमाणस्स सीलव्वय जाव भावे माणस्स सोलाई जाव न भंजेसि सीलाई जाव पोसहोववासाई सीलाई क्याई न छड़े सि तो जीवियाओ सुक्के जाव किसे सुद्धप्पावेसाई जाव अप्पम हग्धा सुरादेवे गाहावर अड्ढे छ हिरण्णकोडोओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएणं ३६ ३।४१ २२८ ७/७८ २७-१६ २।२७ २४६ २।४६ १/५७ ३।७-१६ ५।७-१६ ६/७-१७ २१४० ५१३६ ५।४२ ८५३ છા ८।२५ ४२१ २२२ २२४ १६४ ७११५, ३५ ३३६ २२२ ३१४२ १।१७-२३, ५४-६० वृत्ति २१२७ २१२७ भ० ३११०२ २७-१६ २७-१६ २७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५१३६ ११८४ ११५७ १८५७ २१२२ २२२ २२२ भ० २६४ ११४६ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३-१६ १।११-१४:२१७-१६ २।३६,३७ २३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडि बज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ठ जाब एवं वयासी हट्ठत? जाब गिहिधम्म हट्टतुट्ट जाव समण हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियए जहा आणदो तहा गिहिधम्म पडि दज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्टतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेइ, २ सा एवं बयासी खिप्पामेव लहकरण जाव पज्जुवासइ पा२६,३० ११२३ ११५१,५२ २।४८ १७४८१४८ ८।२७,२८ ओ० सू० ८० ११२३,२४ ११२३ १२३ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्टा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छ जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७३७ ७।२६ २१४० ओ० सू० ८० भ० ६१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ ७.५० अंतगडदसाओ अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाब इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ८२० ६५२ ३१२० ८७ ना० १।५३५ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० अणुतरे जाय केवल अतुरियं जाय अनंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे आव पचाहि अरिनेमिस्स जाव पन्थइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि ० आपुच्छामि देवाप्पियाणं आरुजाव सिद्धे आहेवच्च जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जिता ईसर जाव सत्यवाहाणं उच्च जाव अडइ उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाय अडामो उच्च जान पडिलाइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर० जम्मुक्त जाय अणुपते उराले जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदसे इ उवागच्छित्ता जान बंदद ओहर जाव भिया ओह जाब वि करयल० करे जहा गोमसामी जान अट काए जान दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहिया कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं ३८ ३।१२ ३।२३ ३२५१ ३।१०२ રાજ ५१११ 515 ६१९५ १।१६ २३।१०१ १।१४ ३१०१ १।१४ ६७६ ६।५५ ३१२६,३० ६६७८ ६८० ३१२५, २६ ३०६१ ३॥६० ६।५२ ३१५० ८१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३।४३ ५१२२६१३५,४१ ६।५४ शब्द ३७६ १११६ 디투 वृति भ० २२१०८ उवा० २१२२ शह ३१७० ३।७६ ठा० ७/१३ नाम १।१।११४ ना० ११५१८७ ३१६६-६२ ना० १५२६ १८७६६ ना० २।५।६ भ० २२१०६ भ० २२१०६ ३१२४ २०२४ ३।२३ ३२४, २५ ना० १ १/६६ ना० १।१।१६२ ५:२६ ना० १।१।२० भ० २/६४ ६/५७ ३/६१ ३०४३ ना० १|१|३४ ना० १।१।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १।१।१०६ राय० सू० ६६८ ५।२१ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ८.३३ ११२१ ४७ ३२२१ ३२१७ ६।१,२ ५॥३१ ५।३१ १।२५ ३२० .३।३ ८.१७,१८ १।५,६ १७ ७।१,२ ३११ ८.१६ २११,२ ११५,६ ११५ ११७ १५,६ चउत्थ जाव भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थस्स वग्गरस निक्खेवग्रो छटुंछट्टेणं जाव विहरंति जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स जइ छुट्टस्स उक्खेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अट्ठमस्स बगस्स उक्खेवओ जाव दस जइ णं भंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वगस्स उक्खेवओ जाव तेरस जइ तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसे इ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव सलेहणाकालं पहाए जाव विभूसिए व्हाया जाव पायच्छित्ता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे य धम्मकहा तीसे य धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सीहं सुमिणे नमसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडित्तए नवमस्स उक्खेवओ निगया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजभइ ३।४७-४६ ६५७ ३।२२ ८.३६ ३४४ ना०१।१२५३-५८ भ० २।११० भ० २।१०७ ६।५३ ८.१५ ओ० सू०७० ओ० सू० २० १११९,२० राय० सू० ६६३ ना० १११।१०० वृत्ति ३११३ ३१६२ ६१५०,८८ ३१६५ ३।११६ ३१२२ ३१११२ ओ० सू० ५२ भ० २११०७ ३३३ ना० १।१६५ ३१७८-८५ भ०११४१६८,ना०१११११५-१५१ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६४ ५८ ५२८ ८६ ६५१ ३।१०४ ३।३० ३१७७ ३।२६,२७ ६१९४ रायसू० ६६३ ना० १११११५० ८१८ ना० ११११०१ ३।९५ ३१२२,२३ ना० १११११४ ३१२४,२५ ना० १११६४ ५।१२ ५.१२ ५।१४ ५।१३ ६।२८ नेरइय जाव उववज्जति पउमावईए य धम्मकहा पव्वावेइ जाव संजमियब्वं पारेइ जाव आराहिया पाक्यणं जाव अब्भुट्टेमि पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुयाहिं अणु लोमाहि जाव आघवित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोसढे विहरइ भूतं जाव पव्वइस्संति भूतं वा जाव पव्वइस्सति मालागारे जाव घाएमाणे मासियाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाब सिद्ध मुडा जाव पव्वइया मुंडा जाव पव्वयामि मुडे जाव पव्वइए मुंडे जाव पव्वइत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सइ रज्जे य जाद अंतेउरे रूवेणं जाव लावण्णेणं लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठवेंति विण्णवणाहि जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरित्तए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छ?स्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाब विहरइ सरिसया जाव नलकूबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा ना० १११८४ ३।२० ३१२० ३।२० ३१२० ३२० ना० १११११६ श२४ ३१३०,५।११ ५।२१,२२ ६१५३ ५।१६ ३१५० ५।११ ३१५७ ३१३१ ६.४५ ६।८४ ८.१४ ३३१३ ६.१०२ ना० १।१६।१३३ मा१४ श२४ ४१७ ३३२० ना० १।१० ३११६ ना० १२१२६० ३।१२ ३१३० ३३१० ५।१४ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥२८ ३।६२ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाब महापहपहेसु सिद्धे जाव पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वत्रियकुले ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० १।१६६ ३।६३-७३ ६।५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७:११०-११३ ना० ११०१०१ ओ०सू०२० ३२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१ वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकं खति ३२४ ३१२२ इमासि जाव साहस्सीणं ३१५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३२३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३१३१ उच्च जाव अडमाणे ३१२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठइ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २०६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ एवं जाव सोणियत्ताए ३२३४ ३।३१ एवामेव ३३६-४४,४६,४७,४६,५० ३।३१ गोयमे जाव एवं १।१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ श जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३२५२ भ०२।६४; मा०१॥श२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पब्वयामि । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाव जहा जमाली तहा आपुच्छर । मुच्छिया । सपदिवत्तया जहा महम्बले जाव जाहे नो संचाए जहा थावच्चापुत्तस्स जियस तुं आम्बद्द छतचागराओ सपमेव जियसत्तू निरमणं करेति जहा थावच्चातस्स कण्हो जाव पव्वद अणगारे जाए इरियासमिए जाब गुत्तबंभवारी 1 जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चि तरुणिया एवामेव लिमिव जाव आहारेह मुंडावली वा मुंडे जाव पब्वइए सजमेणं जाव विहरइ संजमेणं जाव विहरामि सुक्के० सुक्काओ जाव सोणियत्ताए सुपुष्णे सुकवत्वे कलक् सोहम्मीसाण जाव आरणए अंतरष्णा जाव चरेड एवं जाव इमस्स एवं जाव चिरपरिगत ० एवं जान परियति पत्थणिज्जं एवं चिरपरि० रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियब्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिंदिए -- ४२ ३।११-२१ १७ ३।५१ ३१४५ ३।५७ ३६३८ ३६६ ३।६६ ३।५७ ३/३७ ३१३२ ३।५८ १३८ पण्हावागरणाई १०/१५ ५।१० ३:२६ ५८ ४/१५ १०/१७ १०/१५ १०/१७ १०।१६ १०.१६ २०] १।३३.११.११: ना० १११, ११५ ना० १।१।६३ ३।४३ ३/४३ ३।२७ ३।३१ ३।२२ મારક ३।२७ ३।३१ ३।३१ ३१५८ ना० १।१।२११ १०1१४ ५।१ ३।१ ४/१३ ४११ fals * १०/१४ १०/१४ १०/१४ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ विवागसुयं ११८।१,२ १।४।२८ श२८ १।२।१,२ १।२१६४ वृत्ति वृति १७७ १।२।२४ १।३।१३ श२१२६ १२६२३ १.१४४७,१४३११६ १३।७ ११११७० ११११२ अं०६५७ ना० ११११३३ ११२।१४ श।२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ अट्ठमस्स उक्वेवओ अट्रि जाव महियगतं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउड़ अब्भणुण्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्जमाणं अविणिज्जमाणंसि जाव भियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुष्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापडिरूव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणिट्रतराए चेव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरूवे आसि जाव पच्चणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुत्ते जाव साह? आहेवच्चं जाव विहर इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति इंदमहे इ वा जाव निरगच्छति इगुरूवे जाव सुरूवे इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उबरदत्ते निच्छुढे जहा उज्झियए उक्किट्टि जाव करेमाणे उक्किट्टि जाव समुद्द० १।१।३६ ११६२ १।२७ १२।१० श।१६ ११३३१६ ११३१४१ ११६।३५ शरा७:१३१७ ११।१६ ११०२० २।१२१५ ना० ११८६४२ २०४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १।११४२ ११११४२ १।२।६४ ११२१६४ वृत्ति ना० १११६६ ना० १११११७ २११११५ ११११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ ११२६५६ १।३।२४ ओ०सू० ५२ १।१७० २।१।३१ २७३४ श३४३ १।३।२४ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११७० ११२।१४ ११२।१,२ श२११,२ १।२।१४,१५ वृत्ति वृत्ति उक्कोस नेरइएसु उक्खित्त जाब सूले० १६ उक्खेवओ नवमस्स १।६।१,२ उक्खेवओ सत्त मस्स ११७५१,२ उग्छोसिज्जमाण जाव चिता १।४।१२,१३ उज्जला जाब दुरहियासा ११११५६ उम्मुक्क जाव जोवणग० १२११७० उम्मुक्कबालभावा जोवणेण स्वेण लावण्णण य जाव अईव १।६।३४ उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ ११६२६ उराले जाव लेस्से २।१२० उवगिज्जमाणे जाव विहरद ११९४८ उस्सुक्कं जाव दसरत्तं ११३१५२ एवं पस्समाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ११११५० ओहय० १२।२७ पोह्य जाव झियाइ १२।२४;११६१६ ओहय जाव झियासि ११२।२५,१।६।१७ ओहह्य जाव पास १।२।२५१।६१७ करयल० ११३१४०,५५,५६११६।३८ करयल० १४३१५० करयल जाव एवं ११३१४४,१।४।२८ करयल जाव एवं ११३१५२,५३; १६६१३४ करयल जार पडिसुणेति १९३१५३,६२११६:३४,११६२०,४० करयल जाव वद्धावेइ १।९।४५ करेइ जाव सस्थोवाडिए कुमारे जाव विहरद १२६।३६ खुत्तो १४१०७० गंगदत्ता वि १७।३३ गामागर जाव सण्णिवेसा २।१।३१ गाहावई जाव तं धणे २१११२३ गिण्हावेइ जाव एएणं ११५२७ घाएति २ ११३।१४ चउत्थं छ? उत्तरेणं इमेयारूवे ११७।१०,११ चउत्थस्स उक्खेवओ ११४११,२ ११४१३६ १२४१३५ ओ० सू०८२ ना० १११६३ वृत्ति १४१२५० १०।२४ वृत्ति ११।२४ १।२।२४ ११३१४० ११३१४० १।११६६ ओ० सू० ५६ ११३१५५ वृत्ति १४११६६ १।१।७० १२२१५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति १०२१६४ ११३।१४ श७१२।१५ १।२।१,२ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटुंटुणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव छठुस्स उसे चिदइ जान अप्येगइयाणं जस जवा जहा विजय मिले जव कालमासे काल किल्ला जातिअंधे जाव आगितिमेते जायसड्ढे जाव एवं जाव पुढवी ० दिइएन जाव उववज्जिहि हाए जाव पायच्छित्ते हावाए जाव पायच्छिताए हाया जाय पायच्छिताओ व्हाया जाय पायच्छिता तं सेव जान से णं तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि तं महया जहा पढमं तहा तच्चस्स उक्खेवो तह ति जान पडित ताओ जाव फले तीसे य० तो णं जाव ओवाइणइ दसमस्स उनसेवाओ दारगरस जाव आगितिमिले नगरगोरूवा जाव भीया नगरमोहवा जाव सभा तवा जाव उग्पोरोति नगरगोरुवाणं जाव सभाग नगर जान विणिज्जामि निक्लेवओ निक्खेवो निच्छुभेमाणे अन्य कत्थर सुई वा अलभ अण्णया कपाइ रहस्सिय सुदरिसाए हिं नीय जाव अडइ पंचमस्त अभयणस्स उपलेव पंचाणुव्वयं जाव गिहिधम्मं पज्जे जाब एलमुत ४५ ११२११२-१४ १:६।१,२ ११२/२८ १।१।१६ १७३१,३२ १११०६४ १।१।२५ १०३।६५.१०४०३९ १।१८७० १२३४७,५५११६०४५ १४२०५० ११७/२० १।३।२४ १।३।१५ १/६/२३ २११३२ १।३।१,२ १।३१४६ १।७।२३ १।१।२३ १।१०।१३,१४ १।७।२१ १।१०।१,२ |१|११२६ १/२/३४ १।२/३३ १२/२० ११२/२४ १/३०६६ १०२०७४ १०४४० १०५ ३०:१०६२३०१७३११२६२६ १०६४६० १०४/२६, २७ १४७७ ११५११, २ २।१।३१ १।६।२३ भ० २०१०६-१०६ १।२।१.२ ११२२२४ ओ० सू० ५२ १०२ ५०, ५१ १११।१४ ओ० सू० ८३ ११११७० १११.५७ १४२४६४ ११२४६४ १०२३६४ १२/६४ १।२।१५ १२६।१८ २।१।१२ ० २।१५८ १।२।१,२ ११११६६ १७११६ ना० १११।१०० ११६२१.२२ १२७११६ १।२।१,२ १११।१४ १/२/३३ १।२।२४ १/२/२४ ११२/२४ १।१।७१ १।१।७१ १।२/६२,६३ १४२।१५ १२/१,२ २।१।१३ १०६।१४ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वृत्ति पम्हल० ११७२१ पावं जाव समज्जिणइ १४११७० ११११५१ पुढवीए संसारो तहेव पुढवी १।५।२६ १॥३॥६५ पुष्फ जाव गहाय १७२३ ११७२१ पुरा जाव विहर १११४१,४२,१४२१६५ ११११४१ पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं १२१५ १५११४१ पुव्वभवपुच्छा वागरेइ ११७.१२,१३ १।११४२,४३ पूवभवे जाव अभिसमण्णागया २२१४१५ वृति पुवाणुपुब्धि जाव जेणेव २१२ ना० १११४ पुख्वाणपुटिव जाव दुइज्जमाणे २१११३२ २।१।३१ पोराणाणं जाव एवं २७।११ १२।१५ पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे ११११६६ ११११४१ पोराणाणं जाव विहरइ ११३१६४।१।४।६१,११५।२८,१।७३७,१८१८,२६:१।९।५८ १।१०।१८ १।११४१ फलएहि जाव छिप्पत्रेणं १1३.४३ ११३१२४ फुट्ट माणेहिं जाव विहरइ २।१।११ ना० १६१६३ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि १२२१२६ १।२।२४ बहहिं चूण्णप्पओगेहि य जाव आभिओगित्ता १११०१७ ११।७२ बहहिं जाव हाया १७४२५ ११७२३ भगवं जाव जओ णं १९३४ ११:३३ भगवं जाव पज्जुवासामो १६११२१ ओ०सू० ५२ भवित्ता जाव पब्वइस्लाइ २।१।३५ २१११३ भवित्ता जाव पवएज्जा २१११३१ २।१।१३ मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ ११२।१५ भ० २।११० महत्थं जाव पडिच्छइ ११३१५६ ११३१४० महत्थं जाव पाहुडं ११३०५५ १०३।४० महावीरे जाव समोसरिए १११११७ वृत्ति महिय जाव पडिसेहेति ११३१४६ मासाण जाव आगितिमेत्ते १४१०६४ मासाण जाव दारियं १।३१ १।२।३१ मासाण जाव पयाया १७२६ ११२१३१ मित्त ११३२६०,११५१७ १।२।३७ मित्त० १७२७ १७११६ मित्त जाव अण्णाहि ११३१२८ ११३।२४ मित्त जाब परियणं ११६४७ १२।३७ मित्त जाव परियणेण १६५७ ११२३७ वृत्ति Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति वृत्ति मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिवुडाओ मित्त जाव परिवूडे मित्त जाव महिलाओ मित्त जाव सद्धि मित्त जाव सद्धि मियादेवी जाव पडिजागरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति रटुं च रट्रेय जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जाव पभियो सईसर जाव प्पभियओ राईसर जाव सत्थवाह. राईसर जाव सत्थवाहाण राईसर जाव सत्थवाहेहि राया जाव जीईवयमाणे वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि सगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सण्णद्ध जाव पहरणे सण्णद्धबद्ध जाव पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा० सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि समणे जाव विहरइ समाणे सिंघाडग तहेव जाव सूदरिसणाए समुप्पणे जाव तहेव निग्गए सागरोवम० सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव पहेसु संदरथण सुबहुं जाव समज्जिगित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं हट्ठतुहियया हय जाव पडिसेहिए ११२।५४ १॥२३७ ११७४२३ ११७११६ १।३१५५ २।३७ १७/२६ १७.१६ १७.२३ १।७।१६ ११६।४५ १।२।३७ १।१।२६ १२१११५ २११६३१ २।१।१३ ११११५७ १५११५७ ११११५७ २१११३ ११२१७२ ११५० १।१०१७ १.१५० १६५२२,२३ ११११५० ११११५० ओ०सू० ५२ १९५७ १।१३५० १।९।३७ १६६२३ श२४७ शरा२४ १।२।२० १२।२८ १२।१४ ११३।४७ १।२।१४ १२३।२४ ११२।१४ १२६१२२ १६१०२० ना० १११९ ११४१२२-२४ ११२।५७-५६ १।३।१५ १४२११५ १६१७० १।११५७ १११०।१३ १६११५३ १।२।५७,१८२१:२।११२३ ११११५३ १२।७ वृत्ति १८११३११६१२६७१।१०१८ शा५१ २।१११०,११ ओ०सू० १४८,१४६ १।१।२६ ओ०सू०२० ११३१५० ११३१४६ वृत्ति Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि-पत्र मूलपाठ पंक्ति शुद्ध अशुद्ध मणप्पत्ते २० जहेसु ~ हीत्थ कट्ट १७७ २०६ ३०६ मणप्पत्ते जूहेसु हत्थी कटु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस ~ ~ विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवासण्णयाए देवदेसंस ४२६ ~ ~ ४५५ ४६१ ५१६ ५५१ तुम तुम ताई ताइ °समुदएणं सस्सिरीएण दस GG KE -WWW समुदएण सस्सिरीएणं दस खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणदे खणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियाणदे पा०६ पाठान्तर पटटसि पिणद्धति आसुरुत्त पट्टसि पिणद्धेति ४८ पा० ४ पा०२ आसुरुत्ते परिशिष्ट अभिगयजीवेजी णं अभिगयजीवाजीवेणं Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रही जीवानाम